आज बांग्लादेश ऐसे रास्ते पर है जिससे वापसी मुमकिन नहीं लगती.

भारत के बहुत पढ़े लिखे और अत्यधिक शिक्षित कथित धर्मनिरपेक्षवादी अभिव्यक्ति के नाम पर हमारे देश में अक्सर लीला कर मीडिया में छाये रहते है सीरिया में आइ. एस के खोफ से पलायन को मजबूर एलन कुर्दी की मौत हो गयी थी. एक बच्चे एलन कुर्दी की मौत ने कथित सेकुलरो को तोड़ डाला था. जिस कारण पूरा यूरोप, अमेरिका, एशिया तक एक ऐसा माहौल मीडिया के द्वारा रचा गया जैसे आतंक के भय से यह सिर्फ पहली मौत हो! वैसे देखा जाये तो लगभग सभी देशों में नये सेकुलर उभर रहे है, जिन्हें बड़ी सावधानी से विचारधारा की समझ रखने वाले, तर्कशील, जमीनी हकीकत समझने वाले सच्चे धर्मनिरपेक्ष लोगों को खत्म करने के बाद पाला जा रहा है.

तसलीमा नसरीन भी सेकुलर है और अरुधंति राय भी. पर कमाल देखिये! अरुंधती को अलगावादी नेताओं और कश्मीर का दर्द तो दिखता है पर बांग्लादेश में हिन्दुओं की चीख नहीं सुनती. दरअसल ये बहरापन नहीं बल्कि एक विचारधारा है. जिसे यहाँ धर्मनिरपेक्षता और पड़ोसी देशों में कट्टरता कहा जाता है. विचारधारा की रफ्तार देखिये जो बांग्लादेश को जन्म 1971 से 2016 तक ले आई. अपने छोटे से जीवन में ही बांग्लादेश ने धर्मनिरपेक्षता से इस्लामी कट्टर राष्ट्र तक का सफर तय कर लिया है. 2013 से अब तक हर उस व्यक्ति कत्ल किया जा चुका है जो इस कट्टर विचारधारा के खिलाफ खड़ा हुआ.

बांग्लादेश सरकार खुद को धर्मनिरपेक्ष कहती रही है. लेकिन पिछले दो सालों से चल रहे इन हत्याओं के सिलसिले को रोक पाने में वह बिलकुल नाकामयाब रही है, इन हत्याओं में शामिल अपराधियों को पकड़ने और उन्हें सजा देने में भी उसकी कोई खास रूचि नहीं है. हाँ अगर कहीं रूचि दिखाई देती है तो आतंक के नाम पर अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वीओं जमाते इस्लामी के नेताओं को फांसी पर लटकाने में. जमात के लोगों को सजा या फांसी ने इन हमलों पर असर नहीं डाला है. इसका अर्थ यह है कि इस तरह की खूनी कट्टरता को एक स्तर पर स्थानीय समर्थन है. दूसरी ओर हर ऐसी हत्या इस हिंसक विचार के लिए नई जमीन तैयार करती है. जिसकी सिंचाई वहां रह रहे अल्पसंख्यको को अपने खून से करनी पड़ती है.

मैं बात कर रहा था विचारधारा की. ऐसा नहीं कि सभी विचारधारा गलत है. अच्छी विचारधाराओं से तो नये राष्ट्र खड़े होते है जो समय के साथ उसकी गरिमा बनाये रखते है वो राष्ट्र बने रहते है वरन अनुशासन से शुरू होकर अव्यवस्थाओं के कुचक्र में फंसकर खत्म हो जाते है. उदहारण, सूडान, सीरिया, इराक समेत बहुतेरे मुल्क है. इन देशों को बर्बाद किसी प्राकृतिक आपदा ने नहीं किया बस उस विचारधारा ने किया जिसकी राह पर आज बांग्लादेश है. उर्दू भाषा के विरोध में पाकिस्तान से अलग हुआ बांग्लादेश बांग्ला के पक्ष में था जिससे उसकी सांस्कृतिक विरासत बची रहे किन्तु वहां का हाल देखकर अब लगता है कि कट्टर जेहादी विचाधारा किसी एक स्थाई भाषा की मोहताज नहीं है. यहां कट्टरता का प्रचार उसी बांग्ला भाषा में हुआ जिसके आधार पर कभी यह देश बना था.

जब किसी राष्ट्र में बच्चों के सपने भय से टूटते है तो समझो वो राष्ट्र पतन की ओर चल पड़ा है. पाकिस्तान के टूटने से बदले का एक सुख और एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण की खुशी वहां रह रहे लोगों ने मिलकर मनाई कि एक जो धर्म की जगह भाषा को आधार-सिद्धांत मानता था. लेकिन आज बांग्लादेश ऐसे रास्ते पर है जिससे वापसी मुमकिन नहीं लगती. हमेशा वो ही देश बने रहते है सभी स्वस्थ विचारधाराओं का सम्मान करते है. दुनिया में सिर्फ उन्हीं देशों में स्थाई लोकतंत्र बचा है जहाँ वैचारिक कट्टरता दफना दी जाती है. यदि इस प्रसंग में इस्लामिक देशों की बात की जाये तो 56 के करीब देशों में सिर्फ बांग्लादेश ही एक ऐसा मुल्क बचा है जहाँ लोकतंत्र है. किन्तु इस वैचारिक कट्टरता के दिनोंदिन उफान को देखकर लगता है कि कुछ दिन बाद यह पाकिस्तान और अफगानिस्तान की राह पर चल पड़ेगा. दरअसल जिस देश में भी रोजगार के अवसर या आर्थिक पूर्ति आधुनिक शिक्षा के बजाय धर्म की जाती हो वहां अशिक्षा को ही लोग बने रहना देना चाहते है. चाहे इसमें बांग्लादेश के मौलवी हो या जम्मूकश्मीर के सेंकडों स्कूल जला देने वाले अलगावादी या फिर तालिबान और इस्लामिक स्टेट के आतंकी ही क्यों ना हो!!

 

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