यह कहानी बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न पढाई जाये?
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Rajeev ChoudharyDate
26-Dec-2016Category
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amitUpload Date
26-Dec-2016Download PDF
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“जाति वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ और वसà¥à¤¤à¥à¤° परिवरà¥à¤¤à¤¨â€
केंदà¥à¤°à¥€à¤¯ माधà¥à¤¯à¤®à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ बोरà¥à¤¡ (सीबीà¤à¤¸à¤ˆ) ने 19वीं सदी में दकà¥à¤·à¤¿à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤ में अपने सà¥à¤¤à¤¨à¥‹à¤‚ को ढकने के हक के लिठलड़ाई लड़ने वाली नांगेली नाम की महिला की कहानी को पाठà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® से हटाने का फैसला किया है. 2006-2007 में “जाति वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ और वसà¥à¤¤à¥à¤° परिवरà¥à¤¤à¤¨” नाम से इस सेकà¥à¤¶à¤¨ में इस आंदोलन में जोड़ा गया था. उस आंदोलन के बारे में किताबों में बताठजाने पर कई संगठनों ने आपतà¥à¤¤à¤¿ की थी. कई संगठनों का इस बारे में कहना था कि à¤à¤• औरत का बà¥à¤°à¥‡à¤¸à¥à¤Ÿ को ढकने के लिठआंदोलन और उसके बà¥à¤°à¥‡à¤¸à¥à¤Ÿ को काट लिठजाने की कहानी शरà¥à¤®à¤¨à¤¾à¤• है और बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को नहीं पà¥à¤¾à¤ˆ जानी चाहिà¤. पर पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ यह है कि कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न पढाई जाये जातीय वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ का यह कà¥à¤°à¥‚प चेहरा? बलà¥à¤•à¤¿ इस कहानी के साथ बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को वीर सावरकर की मोपला à¤à¥€ पढाई जानी चाहिà¤
आखिर कà¥à¤¯à¤¾ नांगेली और उसके आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ की कहानी जिसे पà¥à¤•à¤° समाज और सरकार आज शरà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤° हो रही है. पर पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ यह है कि यदि यह शरà¥à¤® 19 वीं सदी के धरà¥à¤® के ठेकेदारों और शासकों को होती तो कà¥à¤¯à¤¾ हम धारà¥à¤®à¤¿à¤• रूप से इतने बड़े बदलाव केरल के अनà¥à¤¦à¤° होते? नंगेली का नाम केरल के बाहर शायद किसी ने न सà¥à¤¨à¤¾ हो. किसी सà¥à¤•à¥‚ल के इतिहास की किताब में उनका जिकà¥à¤° या कोई तसà¥à¤µà¥€à¤° à¤à¥€ नहीं मिलेगी. लेकिन उनके साहस की मिसाल à¤à¤¸à¥€ है कि à¤à¤• बार जानने पर कà¤à¥€ नहीं à¤à¥‚लेंगे, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि नंगेली ने सà¥à¤¤à¤¨ ढकने के अधिकार के लिठअपने ही सà¥à¤¤à¤¨ काट दिठथे. केरल के इतिहास के पनà¥à¤¨à¥‹à¤‚ में छिपी ये लगà¤à¤— सौ से डेॠसौ साल पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ कहानी उस समय की है जब केरल के बड़े à¤à¤¾à¤— में तà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¤•à¥‹à¤° के राजा का शासन था.
उस समय जातिवाद की जड़ें बहà¥à¤¤ गहरी थीं और निचली जातियों की महिलाओं को उनके सà¥à¤¤à¤¨ न ढकने का आदेश था. उलà¥à¤²à¤‚घन करने पर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ “बà¥à¤°à¥‡à¤¸à¥à¤Ÿ टैकà¥à¤¸” यानी “सà¥à¤¤à¤¨ कर” देना पड़ता था. नांगेली à¤à¥€ कथित निचली जाति में आने वाली महिला थीं. उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡à¤‚ राजा के इस अमानवीय टैकà¥à¤¸ का विरोध किया. नांगेली ने अपने सà¥à¤¤à¤¨ ढकने के लिठटैकà¥à¤¸ नहीं दिया मामला राजा तक पहà¥à¤‚चा तो सजा के तौर पर इस जà¥à¤°à¥à¤® के लिठवहां के राजा ने नांगेली के सà¥à¤¤à¤¨ कटवा दिà¤. जिससे उसकी मौत हो गई. नांगेली का मौत ने दकà¥à¤·à¤¿à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤ में à¤à¤• सामाजिक आंदोलन की चिंगारी à¤à¥œà¤•à¤¾ दी.
इस कà¥à¤°à¥‚प परंपरा की चरà¥à¤šà¤¾ में खास तौर पर निचली जाति नादर की सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का जिकà¥à¤° होता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अपने वसà¥à¤¤à¥à¤° पहनने के हक के लिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ही सबसे पहले विरोध जताया. नादर की ही à¤à¤• उपजाति नादन पर ये बंदिशें उतनी नहीं थीं. उस समय न सिरà¥à¤« अवरà¥à¤£ बलà¥à¤•à¤¿ नंबूदिरी बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤®à¤£ और कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ नायर जैसी जातियों की औरतों पर à¤à¥€ शरीर का ऊपरी हिसà¥à¤¸à¤¾ ढकने से रोकने के कई नियम थे. नंबूदिरी औरतों को घर के à¤à¥€à¤¤à¤° ऊपरी शरीर को खà¥à¤²à¤¾ रखना पड़ता था. वे घर से बाहर निकलते समय ही अपना सीना ढक सकती थीं. लेकिन मंदिर में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ऊपरी वसà¥à¤¤à¥à¤° खोलकर ही जाना होता था. नायर औरतों को बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के सामने अपना वकà¥à¤· खà¥à¤²à¤¾ रखना होता था। सबसे बà¥à¤°à¥€ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ दलित औरतों की थी जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कहीं à¤à¥€ अंगवसà¥à¤¤à¥à¤° पहनने की मनाही थी. पहनने पर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सजा à¤à¥€ हो जाती थी.
इस अपमानजनक रिवाज के खिलाफ 19 वीं सदी के शà¥à¤°à¥‚ में आवाजें उठनी शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆà¤‚. 18 वीं सदी के अंत और 19 वीं सदी के शà¥à¤°à¥‚ में केरल से कई मजदूर, खासकर नादन जाति के लोग, चाय बागानों में काम करने के लिठशà¥à¤°à¥€à¤²à¤‚का चले गà¤. बेहतर आरà¥à¤¥à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿, धरà¥à¤® बदल कर ईसाई बन जाने और यूरपीय असर की वजह से इनमें जागरूकता जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ थी और ये औरतें अपने शरीर को पूरा ढकने लगी थीं. धरà¥à¤®-परिवरà¥à¤¤à¤¨ करके ईसाई बन जाने वाली नादर महिलाओं ने à¤à¥€ इस पà¥à¤°à¤—तिशील कदम को अपनाया. इस समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ को जातीय वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ के कारण समà¥à¤®à¤¾à¤¨ तो दूर कपडे à¤à¥€ नहीं मिल रहे थे उस समय इसà¥à¤²à¤¾à¤® ने इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बà¥à¤°à¥à¤•à¤¾ दिया ईसाइयत ने समà¥à¤®à¤¾à¤¨ जिस कारण केरल में बड़ा धारà¥à¤®à¤¿à¤• समीकरण उलट पà¥à¤²à¤Ÿ हà¥à¤†!
बà¥à¤°à¥‡à¤¸à¥à¤Ÿ टैकà¥à¤¸ का मकसद जातिवाद के ढांचे को बनाठरखना था.ये à¤à¤• तरह से à¤à¤• औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी. इस कर को बार-बार अदा कर पाना इन गरीब समà¥à¤¦à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठमà¥à¤®à¤•à¤¿à¤¨ नहीं था. केरल के हिंदà¥à¤“ं में जाति के ढांचे में नायर जाति को शूदà¥à¤° माना जाता था जिनसे निचले सà¥à¤¤à¤° पर à¤à¥œà¤µà¤¾ और फिर दलित समà¥à¤¦à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ को रखा जाता था. उस दौर में दलित समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ के लोग जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° खेतिहर मजदूर थे और ये कर देना उनके बस के बाहर था. à¤à¤¸à¥‡ में à¤à¥œà¤µà¤¾ और नायर समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ की औरतें ही इस कर को देने की थोड़ी कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ रखती थीं. जो à¤à¥€ इस नियम की अहेलना करती उसे सरे बाजार अपने ऊपरी वसà¥à¤¤à¥à¤° उतारने को मजबूर किया जाता. अवरà¥à¤£ औरतों को छूना न पड़े इसके लिठसवरà¥à¤£ पà¥à¤°à¥à¤· लंबे डंडे के सिरे पर छà¥à¤°à¥€ बांध लेते और किसी महिला को बà¥à¤²à¤¾à¤‰à¤œ या कंचà¥à¤•à¥€ पहना देखते तो उसे दूर से ही छà¥à¤°à¥€ से फाड़ देते. सवरà¥à¤£à¥‹à¤‚ के अलावा राजा खà¥à¤¦ à¤à¥€ परंपरा निà¤à¤¾à¤¨à¥‡ के पकà¥à¤· में था. कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न होता! आदेश था कि महल से मंदिर तक राजा की सवारी निकले तो रासà¥à¤¤à¥‡ पर दोनों ओर नीची जातियों की अरà¥à¤§à¤¨à¤—à¥à¤¨ कà¥à¤‚वारी महिलाà¤à¤‚ फूल बरसाती हà¥à¤ˆ खड़ी रहें.
नांगेली का मौत के बाद सà¤à¥€ वंचित महिलाà¤à¤‚ à¤à¤• हो गईं और उनके विरोध की ताकत बॠगई. सà¤à¥€ जगह महिलाà¤à¤‚ पूरे कपड़ों में बाहर निकलने लगीं. इसी वरà¥à¤· मदà¥à¤°à¤¾à¤¸ के कमिशà¥à¤¨à¤° ने तà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¤•à¥‹à¤° के राजा को खबर à¤à¤¿à¤œà¤µà¤¾à¤ˆ कि महिलाओं को कपड़े न पहनने देने और राजà¥à¤¯ में हिंसा और अशांति को न रोक पाने के कारण उसकी बदनामी हो रही है. अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ के और नादर आदि अवरà¥à¤£ जातियों के दबाव में आखिर तà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¤•à¥‹à¤° के राजा को घोषणा करनी पड़ी कि सà¤à¥€ महिलाà¤à¤‚ शरीर का ऊपरी हिसà¥à¤¸à¤¾ वसà¥à¤¤à¥à¤° से ढंक सकती हैं. 26 जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ 1859 को राजा के à¤à¤• आदेश के जरिठमहिलाओं के ऊपरी वसà¥à¤¤à¥à¤° न पहनने के कानून को बदल दिया गया. कई सà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ पर विरोध के बावजूद आखिर तà¥à¤°à¤¾à¤µà¤£à¤•à¥‹à¤° की महिलाओं ने अपने वकà¥à¤· ढकने जैसा बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥€ हक छीन कर लिया.
अजीब लग सकता है, पर केरल जैसे पà¥à¤°à¤—तिशील माने जाने वाले राजà¥à¤¯ में à¤à¥€ महिलाओं को अंगवसà¥à¤¤à¥à¤° या बà¥à¤²à¤¾à¤‰à¤œ पहनने का हक पाने के लिठ50 साल से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सघन संघरà¥à¤· करना पड़ा हो तो सोचो इस जाति पर कितने अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤° हà¥à¤ होंगे हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं को à¤à¤• बार जरà¥à¤° सोचना चाहिठकि आखिर गलती किसकी थी? उमà¥à¤®à¥€à¤¦ करते है इस लेख को पà¥à¤•à¤° आप लोग वीर सावरकर की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• मोपला जरà¥à¤° पढेंगे ताकि à¤à¤¾à¤°à¤¤ की धारà¥à¤®à¤¿à¤• तà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤¦à¥€ का सचà¥à¤šà¤¾ इतिहास जाना जा सके. आखिर कà¥à¤¯à¤¾ कारण रहे की कà¤à¥€ दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में हमारा वैदिक परचम लहराता था जो आज सिरà¥à¤« à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ à¤à¥‚-à¤à¤¾à¤— तक सिमट कर रह गया. गलती हमारी थी तो सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ हमारी होनी चाहिठया फिर सोचना चाहिठकà¥à¤¯à¤¾ हम फिर यही गलती अà¤à¥€ à¤à¥€ तो नहीं दोहरा रहे है?......राजीव चौधरी
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