कà¥à¤°à¤¾à¤¨ ने कैसे बचाई जान?
Author
Rajeev ChoudharyDate
20-Jan-2017Category
लेखLanguage
HindiTotal Views
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Sandeep AryaUpload Date
20-Jan-2017Download PDF
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यदि à¤à¤• की जान बचने का कारण तो कà¥à¤°à¤¾à¤¨ बनी तो उन 29 लोगों की जान जाने का कारण कà¥à¤¯à¤¾ बना जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤°à¤¾à¤¨ नहीà¤
मीडिया को विशà¥à¤µ का सबसे बोदà¥à¤§à¤¿à¤• वरà¥à¤— समà¤à¤¾ जाता है जो समसà¥à¤¤ समाज को आगे लेकर चलता है उसका घटनाओं से परिचय कराता है. घटनाओं का तारà¥à¤•à¤¿à¤• विशà¥à¤²à¥‡à¤·à¤£ करता है और समाज के सामने उसका सच रखता है. लेकिन कà¥à¤› खबरे à¤à¤¸à¥€ à¤à¥€ आती है जब मीडियाकरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ पर तरस आता है. अà¤à¥€ कई रोज पहले बीबीसी समेत कई मीडिया चैनलों ने à¤à¤• खबर चला रखी है कि “कà¥à¤°à¤¾à¤¨ ने बचाई हिनà¥à¤¦à¥‚ की जान” जà¥à¤žà¤¾à¤¤ हो बांगà¥à¤²à¤¾à¤¦à¥‡à¤¶ में ढाका के à¤à¤• रेसà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤‚ होली आरà¥à¤Ÿà¤¿à¤œà¤¨ बेकरी में पिछले साल à¤à¤• जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ को हà¥à¤ चरमपंथी हमले में 29 लोग मारे गठथे. आतंकियों ने उन लोगों की गरà¥à¤¦à¤¨ चाकू से रेत डाली थी जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤°à¤¾à¤¨ की आयतें नहीं आती थी जिनमें जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° जापान और इटली के परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• थे लेकिन इसी होटल में काम करने वाले à¤à¤• करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ शिशिर सरकार जो हिनà¥à¤¦à¥‚ था उसने बताया कि आतंकियों ने मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤°à¤¾à¤¨ की आयतें सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ को कहा. “मैं आराम से खाना बनाते हà¥à¤ कà¥à¤°à¤¾à¤¨ की आयतें सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ लगा. मेरे बहà¥à¤¤ सारे मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ दोसà¥à¤¤ रहे हैं. इसलिठमैं कà¥à¤°à¤¾à¤¨ के कà¥à¤› सूरा जानता हूं लेकिन फिर à¤à¥€ मैं डरा हà¥à¤† था. मैं सोच रहा था कि कà¥à¤¯à¤¾ वो मेरी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ से संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ हैं?” “ये रमजान का महीना था इसलिठसà¥à¤¬à¤¹ से पहले मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® बंधकों को सहरी खाने को दिया गया.” मैं बहà¥à¤¤ डरा हà¥à¤† था. डर के मारे मैं खाना निगल नहीं पा रहा था. लेकिन तà¤à¥€ मैंने सोचा कि अगर मैंने नहीं खाया तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शक हो जाà¤à¤—ा कि मैं मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ नहीं हूं.” इसके बाद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उन लोगों की गरà¥à¤¦à¤¨ रेत डाली जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤°à¤¾à¤¨ नहीं आती थी.
बस यही से सवाल खड़ा होता है कि यदि à¤à¤• की जान बचने का कारण तो कà¥à¤°à¤¾à¤¨ बनी तो उन 29 लोगों की जान जाने का कारण कà¥à¤¯à¤¾ बना जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤°à¤¾à¤¨ नहीं आती थी? कà¥à¤¯à¤¾ मीडिया में साहस है जो इस खबर को तरह लिख दे कि कà¥à¤°à¤¾à¤¨ ने ली 29 मासूमों की जान? आखिर मीडिया इस खबर से कà¥à¤¯à¤¾ जताना चाह रही है शायद यही कि यदि जिनà¥à¤¦à¤¾ रहना है तो आयत याद करना जरूरी है? यदि à¤à¤¸à¤¾ है तो मीडिया से कà¥à¤› सवाल इसी धरà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤ªà¥‡à¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ के दायरे में रहकर कर रहा हूठढाका में मारे गये 29 लोग यदि कà¥à¤°à¤¾à¤¨ सà¥à¤¨à¤¾ देते तो कà¥à¤¯à¤¾ वो बच जाते? शायद हाà¤? पर वो मासूम कà¥à¤°à¤¾à¤¨ की आयतें नहीं सà¥à¤¨à¤¾ पाठइस कारण उनकी हतà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤ˆ आखिर उनकी हतà¥à¤¯à¤¾ का जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° कौन? कà¥à¤°à¤¾à¤¨ या आतंकी? हाठयदि à¤à¤¸à¤¾ होता की आतंकी हमला करते समय कà¥à¤°à¤¾à¤¨ पà¥à¤¨à¥‡ लगे पà¥à¤¤à¥‡-पà¥à¤¤à¥‡ अपने किये पर शरà¥à¤®à¤¿à¤‚दा होकर किसी की जान नही बाकि बंधकों को रिहा कर दिया तो में समà¤à¤¤à¤¾ कà¥à¤°à¤¾à¤¨ ने बचाई जान. पर जब à¤à¥€ इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की चरà¥à¤šà¤¾ होती है तो आतंक को पंथनिरपेकà¥à¤· बताया जाता है आतंकी का कोई मजहब नहीं होता यह साबित किये जाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया जाता है. मà¥à¤à¥‡ नहीं पता इमाम हà¥à¤¸à¥ˆà¤¨ की गरà¥à¤¦à¤¨ पर इबà¥à¤¨à¥‡ मà¥à¤²à¥à¤œà¤¿à¤® नामक वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ ने विष à¤à¤°à¥€ तलवार से कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ वार किया था. कà¥à¤¯à¤¾ कोई बता सकता है कि इनमे से मृतक या हतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ दोनों में से किसने कà¥à¤°à¤¾à¤¨ नहीं पà¥à¥€ थी?
इस सारे मामले को समà¤à¤¨à¥‡ के लिठयदि अमेरिका के à¤à¤• इतिहासकार, विचारक à¤à¤µà¤‚ समीकà¥à¤·à¤• डैनियल पाइपà¥à¤¸ की माने तो वो लिखते है कि इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¥€ तीन पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से विà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ किये जा सकते हैं à¤à¤• सलाफी, जो कि सलाफ के काल के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ रखते हैं (मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की पहली तीन पीढी), इनका लकà¥à¤·à¥à¤¯ इसकी पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ है और इसके लिये ये अरबी वसà¥à¤¤à¥à¤° पहनते हैं, पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं को अपनाते हैं तथा à¤à¤• मधà¥à¤¯à¤¯à¥à¤—ीन मनसिकता अपनाते हैं जिसके चलते मजहब आधारित हिंसा का वातावरण बनता है. दूसरा मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® बà¥à¤°à¤¦à¤° और उसके जैसे जिनकी आकाà¤à¤•à¥à¤·à¤¾ आधà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ के इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ संसà¥à¤•à¤°à¤£ की है, यह परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ पर निरà¥à¤à¤° करता है कि वे हिंसक आधार पर कारà¥à¤¯ करते हैं या नहीं. तीसरा विधि आधारित इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¥€ जो कि वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ के अंदर कारà¥à¤¯ करते हैं, राजनीतिक, मीडिया, विधिक तथा शिकà¥à¤·à¤¾ गतिविधियों में लिपà¥à¤¤ होते हैं और परिà¤à¤¾à¤·à¤¾ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से वे हिंसा में शामिल नहीं होते. लेकिन यह लोग मीडिया आदि के मंचो से उपरोकà¥à¤¤ तीनों का समरà¥à¤¥à¤¨ करते दिख जायेंगे. उनके मतà¤à¥‡à¤¦ वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• हैं परंतॠवे à¤à¤•, दूसरे व तीसरे सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर हैं, सà¤à¥€ इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¥€ à¤à¤• ही दिशा में बढते हैं और वह है पूरी तरह और à¤à¤¯à¤¾à¤¨à¤• रूप से इसà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ कानून की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ और इस लकà¥à¤·à¥à¤¯ में परसà¥à¤ªà¤° सहायक होते हैं.
यह लोग बड़ी सावधानी से दà¥à¤¸à¤°à¥‡ से खिलाफ की खबरें कà¥à¤› तरीके से रखते है मानों वो घटना उसके पकà¥à¤· में हà¥à¤ˆ हो और यह आज से नही पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ रिवाज है औरंगजेब के बारे में इनसे सà¥à¤¨ लीजिये कि कà¥à¤¯à¤¾ गजब का बादशाह था जनाब अपनी टोपियाठखà¥à¤¦ सीलता था. उदहारण के तौर पर अमेरिका में वरà¥à¤²à¥à¤¡ टà¥à¤°à¥‡à¤¡ सेंटर पर हà¥à¤ हमले के बाद इसà¥à¤²à¤¾à¤® के तीसरे पायदान यानि के मीडिया और उसके बोदà¥à¤§à¤¿à¤• जगत ने इसे बिन-लादेन की वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त शतà¥à¤°à¥à¤¤à¤¾ बताया था. मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ में हà¥à¤ सीरियल बम विसà¥à¤«à¥‹à¤Ÿ जिनमे सैकड़ों लोग मरे और हजारों जखà¥à¤®à¥€ थे को 1992 की बावरी मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ से दाउद इबà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥€à¤® का गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ बताकर अपना पलà¥à¤²à¤¾ à¤à¤¾à¥œ लिया था. पिछले वरà¥à¤· नीस फà¥à¤°à¤¾à¤‚स की घटना जिसमें टà¥à¤°à¤• दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सड़क पर 70 से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ लोगों की हतà¥à¤¯à¤¾ की गयी थे इसके अपराधी को सनकी करार दे दिया गया था. इसी वरà¥à¤· अमेरिका के à¤à¤• पब में पचास के करीब लोगों की हतà¥à¤¯à¤¾ करने वाले को यह कहकर बचाया गया था कि वह समलेंगिकता का विरोधी है जिस कारण उसने इस घटना को अंजाम दिया. कà¥à¤¯à¤¾ मीडिया आतंकियों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® व अनà¥à¤¯ लोगों के मन में हमदरà¥à¤¦à¥€ पैदा करने का कारà¥à¤¯ कर रहा है? उपरोकà¥à¤¤ सà¤à¥€ घटनाओं और ढाका हमले की इस तकरीर को सà¥à¤¨à¤•à¤° कà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤¸à¤¾ नहीं लगता जैसे हतà¥à¤¯à¤¾ करने वाले बेहद रहमदिल हो वो कà¥à¤°à¤¾à¤¨ के लिठकारà¥à¤¯ कर रहे हो? आखिर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ इस तरह की निंदा की जाने वाली घटनाओं को मानवता के विपरीत हà¥à¤ˆ घटनाओं को हमें ही कौनसे अंदाज में परोसा जा रहा है. यह सोचना अतिआवशà¥à¤¯à¤• है....राजीव चौधरी
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