वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• लोकतंतà¥à¤° की जीत
Author
Rajeev ChoudharyDate
16-Mar-2017Category
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HindiTotal Views
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Sandeep AryaUpload Date
16-Mar-2017Download PDF
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जबकि पà¥à¥‡ लिखे मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® तबके से जवाब आ रहा है कि विधायक हिनà¥à¤¦à¥‚ हो या मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ इससे कà¥à¤¯à¤¾ फरà¥à¤• पड़ता है।
जिस तरह पांच राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में जातिवाद को लेकर राजनीतिक समीकरण बन रहे थे चà¥à¤¨à¤¾à¤µ में कथित जातिवादी नेता अपनी जाति को लेकर जीत के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आशà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ थे। राजनीति के नाम पर समाज में जातिवाद का जहर घोला जा रहा था। चà¥à¤¨à¤¾à¤µ परिणाम के बाद वह कहीं न कहीं बिखरता नजर आया। कà¥à¤¯à¤¾ अब इन परिणामों के बाद कहा जा सकता है कि देश अपने वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• लोकतंतà¥à¤° की ओर जा रहा हैघॠपांच राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में यदि उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ जैसे जनसंखà¥à¤¯à¤¾ बाहà¥à¤²à¥à¤¯ राजà¥à¤¯ को ही देखें तो उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ की जनता ने जातिवाद की राजनीति करने वालों को नकार दिया है। जीत किसकी हà¥à¤ˆ तथा कौन सरकार बनाà¤à¤—ा यह विषय आरà¥à¤¯ समाज के लिठइतने मायने नहीं रखता। आरà¥à¤¯ समाज के लिठमायने रखता है सामाजिक समरसताठसामाजिक सदà¥à¤à¤¾à¤µ और राजनैतिक सà¥à¤¤à¤° से ऊपर उठकर जातिगत और राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ à¤à¤•à¤¤à¤¾ बनी रहे। जिसके लिठआरà¥à¤¯ समाज अपने पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ के दिनों से ही बलिदान देता आया है।
पिछले कà¥à¤› साल के राजनीतिक इतिहास पर यदि गौर करें तो विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ राजनैतिक दलों के नेताओं के पास जहाठसरà¥à¤µà¤¸à¤®à¤¾à¤µà¥‡à¤¶à¥€ विकासठअसà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤²à¤ रोजगारठजनता की मूलà¤à¥‚त सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं की अपेकà¥à¤·à¤¾ सिरà¥à¤« à¤à¤• मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾ जातिवाद की खाई खोदने का कारà¥à¤¯ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ के दौरान देखने को मिलता है। इन ताजा हà¥à¤ चà¥à¤¨à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ में ही देखें तो किस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° दलित.मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤®à¤ यादव.मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤®à¤ जाट आदि मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® समीकरण बनाये जा रहे थे। जातिगत और सामाजिक à¤à¤¯ पैदा कर वोट बटोरने का कारà¥à¤¯ होता दिख रहा था। शायद राजनेता अब à¤à¥€ 1990 के दशक की सोच और मानसिकता लेकर चल रहे हैं उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ समय की दीवार पर लिखी इबारत को साफ.साफ समà¤à¤¨à¤¾ होगा और जाति को लेकर अपनी समठबदलनी होगी या फिर वकà¥à¤¤ की बदलती हà¥à¤ˆ धारा उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• किनारे कर अपने रासà¥à¤¤à¥‡ चल देगी।
आज राजनीति के अतीत के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ बदल रहे हैं। आज मतदाता बदल गया उसकी राजनैतिक सोच बदली या कहो उसकी समठबॠरही है। आज वो तमाम संचार के साधनोंठमीडिया माधà¥à¤¯à¤®à¥‹à¤‚ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤• मतदाता ही नहीं अपितॠराजनीति का à¤à¤• हिसà¥à¤¸à¤¾ à¤à¥€ बन गया है। आज उसके अनà¥à¤¦à¤° अपने आरà¥à¤¥à¤¿à¤• हित, राषà¥à¤Ÿà¥à¤° की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ नीति और विकास को लेकर जागरूकता बà¥à¥€ है। शायद इससे à¤à¥€ तथाकथित जातिवादी नेताओं के घेरे टूट रहे हैं। अब सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ हमारी आंखों के आगे है बशरà¥à¤¤à¥‡ हममें उस सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ की आंखों में à¤à¤¾à¤‚कने का साहस हो। सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ यह है कि देश का मतदाता जाति और समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ की घेरेबंदी से तेजी से बाहर निकल रहा है। बरसों पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ इस फांस को वह तोड़ रहा है।
लगà¤à¤— बीते पौने तीन दशक से अपने को सेकà¥à¤¯à¥à¤²à¤° बताने वाली पारà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤®à¥‹à¤‚ को अपने सोच के फंदे में जकड़ रखा है। ये पारà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ चाहती हैं मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ अपनी पहचान के घेरे में कैद रहें जबकि मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में बहà¥à¤¤ से लोगठखासकर नौजवान चाहते हैं कि अचà¥à¤›à¥€ नौकरी मिलेठतरकà¥à¤•à¥€ होठजीवन.सà¥à¤¤à¤° सà¥à¤§à¤°à¥‡à¥¤ किनà¥à¤¤à¥ मदरसों और मसà¥à¤œà¤¿à¤¦à¥‹à¤‚ से संचालित होने इस मजहब के ढेरों नेताठइमामठउलेमा और मोलवी नहीं चाहते कि मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ उनके इस धारà¥à¤®à¤¿à¤• मकडजाल से बाहर आये। इसलिठवो सिविल कोड या तीन तलाक जैसे मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ को धारà¥à¤®à¤¿à¤• असà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ का पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ बनाकर वोट सà¥à¤µà¤°à¥‚प लेने का कारà¥à¤¯ करते नजर आते हैं।
हालाà¤à¤•à¤¿ मीडिया का à¤à¤• बड़ा धड़ा राजनीति में मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की कम होती नà¥à¤®à¤¾à¤‡à¤‚दगी को लेकर à¤à¥€ सवाल खड़े कर रहा हैं। जबकि पà¥à¥‡ लिखे मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® तबके से जवाब आ रहा है कि विधायक हिनà¥à¤¦à¥‚ हो या मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨ इससे कà¥à¤¯à¤¾ फरà¥à¤• पड़ता है। विकास तो सबको चाहिठऔर ये कोई à¤à¥€ कर सकता है। बहराल जीत अपने साथ जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ लेकर आती हैठघमंड नहीं! ये वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• लोकतंतà¥à¤° की जीत है, किसी धरà¥à¤®.जाति की नहीं और जब.जब समाज को कोई à¤à¤¸à¤¾ नेता मिला है जो सबके दà¥à¤ƒà¤– दरà¥à¤¦ को अपना दà¥à¤ƒà¤– दरà¥à¤¦ समà¤à¥‡à¤ तब.तब समाज ने उस नेता को अपने सर.आà¤à¤–ों पर बिठाया है। राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¤à¤¿ रहे डॉ अबà¥à¤¦à¥à¤² कलाम और सरदार पटेल à¤à¤¸à¥‡ ही वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ थे। देश का हर नागरिक उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपना पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ मानता थाठचाहे वह किसी जातिठकà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¤ समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ à¤à¤µà¤‚ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का हो। सचà¥à¤šà¤¾ नेता वही है जो निःसà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ à¤à¤¾à¤µ से जनता की सेवा करे। अपने लिठकà¥à¤› न चाहे। वह समाज के पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ हो। वह हर जाति का हो और हर जाति उसकी। मà¥à¤à¥‡ तो आजतक यह समठनहीं आया कि à¤à¤• जाति का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿à¤¤à¥à¤µ उसी जाति का वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ करे? सही नेता तो सबका पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ है।
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤‚तà¥à¤° दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के बेमिसाल उदाहरणों में से à¤à¤• है। लेकिन राजनीती से जà¥à¥œà¥‡ लोगों ने पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤‚तà¥à¤° को अपनी दà¥à¤•à¤¾à¤¨ बना डाला। जिस कारण पà¥à¤°à¤œà¤¾ के मà¥à¤¦à¥à¤¦à¥‡ हासिये पर चले गये। उतà¥à¤¤à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ चà¥à¤¨à¤¾à¤µ परिणाम के बाद जिस तरह à¤à¤• दलितवादी नेता का ईवीम मशीन में गड़बड़ का आरोप आया यह à¤à¥€ à¤à¤• किसà¥à¤® से जनादेश का अपमान है। हो सकता यह उनकी हार पर हताशा हो लेकिन इस बदलती परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में आज इन नेताओं को समà¤à¤¨à¤¾ होगा कि अब उनका पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ माल नहीं बिकेगा!! हालाà¤à¤•à¤¿ कहा जाता है कि जब राजा ही लà¥à¤Ÿà¥‡à¤°à¤¾ हो तो पà¥à¤°à¤œà¤¾ अपनी सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ कहाठढूà¤à¤¢à¥‡à¤—ी ! विवश समाज तब अपनी सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ अपने कबीलों में, जातियों में, समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ में अथवा अपने किसी à¤à¥€ समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ में खोजने को मजबूर हो जाता है। यह अलग बात है कि पूरी सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ वहाठà¤à¥€ नहीं मिलती। शोशण तो हर जगह है। à¤à¤• जाति के अनà¥à¤¦à¤° ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ठà¤à¤• परिवार के अनà¥à¤¦à¤° à¤à¥€ शोषण देखा जा सकता है।जाति तो कई बहानों में से à¤à¤• बहाना है, कारण नहीं तो फिर बेहतर यही है कि नेता अपनी धारणा बदलें। नठसिरे से सोचें कि आधà¥à¤¨à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤°à¤¤ में वोटर किन बातों को पसंद बनाकर अपने वोट डाल रहा है। आज वह अपनी जरूरतों का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रख रहा है या नेताओं की? राजीव चौधरी
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