30 अप्रैल, 2017 को आर्यसमाज वजीरपुर, जेजे कालोनी के स्वर्ण जयन्ती समारोह के अवसर पर श्री धर्मपाल जी को सपत्नीक सम्मानित किया गया है। आज कुछ समय पूर्वयह जानकारी पाकर हमें हार्दिक प्रसन्नता हुई। यह सम्मान श्री धर्मपाल जी आर्य को तो है ही, हमें लगता है कि इसका श्रेय उनके ऋषिभक्त पूज्य पिता लाला दीपचन्द आर्य जी और माता बालमति आर्या जी को भी जाता है। इन आर्य माता-पिता से प्राप्त संस्कारों के कारण ही श्री धर्मपाल जी आर्य की गुरुकुल झज्जर में प्रसिद्ध विद्वानों के आचार्यत्व में शिक्षा दीक्षा हुई। इस शिक्षा के परिणाम से वह संस्कृत के विद्वान बनने के साथ ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज के समस्त परम्पराओं से भी परिचित हुए। ऋषिभक्त लाला दीपचन्द जी आर्य ने ऋषि दयानन्द और आर्ष ग्रन्थों के प्रचार प्रसार का अति प्रशंसनीय कार्य किया है। उनका यश अमर व अक्षुण है। आपने आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली की स्थापना कर उसके माध्यम से अनेक दुर्लभ एवं महत्वपूर्ण ग्रंथों का लागत से भी कम मूल्य पर भव्य एव आकर्षक आकार प्रकार में प्रकाशन किया। आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली की स्थापना वर्ष 1966 में हुई थी। हम सन् 1970 व उसके कुछ बाद ही इस ट्रस्ट की मासिक पत्रिका दयानन्द सन्देश से जुड़ गये थे। सन् 1974 के मई महीने में दिल्ली जाकर माता बालमति आर्या और लाला दीपचन्द आर्य जी से पहली बार मिले थे। पं. राजवीर शास्त्री न्यास की पत्रिका दयानन्द सन्देश का उत्तम सम्पादन करते थे। उनके लेख पढ़कर पाठक उनकी ऋषि भक्ति के सम्मुख नतमस्तक हो जाते थे। आपने आर्यसमाज को नये नये विषयों के महत्वपवूर्ण विशेषांक देकर आर्य साहित्य को समृद्ध किया है। वैदिक मनोविज्ञान, जीवात्म ज्योति, विषय सूची, सृष्टि संवत् तथा वेदार्थ समीक्षा विशेषांक और ऐसे अनेक महत्ववपूर्ण व शोध पूर्ण विशेषांक वा ग्रन्थ आपकी लेखनी से निःसृत होकर आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट से प्रकाशित हुए हैं। अब हम इनके नये संस्करणों की प्रतीक्षा कर रहे हैं जब कि किसी प्रकाशक व आर्य नेताओं की इन पर दृष्टि पड़े और इनका कल्याण हो।

श्री धर्मपाल आर्य जी आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली के यशस्वी प्रधान हैं। समय समय पर इस प्रकाशन से आर्य जगत को अनेक नये ग्रन्थों का उपहार मिलता आ रहा है। आर्यसमाज नया बांस खारी बावरी के बिलकुल समीप है। लाला दीपचन्द आर्य जी और श्री धर्मपाल आर्य जी इसी समाज से जुड़े हैं और इसके मुख्य अधिकारी रहते आ रहे हैं। सन् 1875 में दिल्ली में आर्यसमाज की शताब्दी मनाई गई थी। हम भी इस समारोह में सम्मिलित हुए थे। इस अवसर पर आर्यसमाज नयाबांस की ओर पं. हरिशरण सिद्धान्तालंकार जी का सामवेद भाष्य प्रकाशित कर बहुत अल्प मूल्य पर वितरित किया था। मूल्य सम्भवतः 16 रूपये था। हमें स्मरण है कि बहुत लोगों ने यह सामवेद भाष्य खरीदा था। हमारे पास भी यह संस्करण था जिसे बाद में हमने अपने किसी मित्र को भेंट कर दिया था। अब हमारे पास इसका नया भव्य संस्करण है। इस समय हमारी स्मृति में आ रहा है कि आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली से ऋषि की आद्य जीवनी ‘दयानन्द दिग्विजयार्क’, यजुर्वेद भाष्य भाष्कर व यजुर्वेद भाष्य भाष्कर भाषानुवाद टीकायें, उपदेशमंजरी का विस्तृत विषय सूची सहित एक उपयोगी भव्य संस्करण, ऋग्वेद भाष्य भाष्कर टीका के कुछ भाग, मनुस्मृति व विशुद्ध मनुस्मृति के अनेक संस्करण, तीन वृहत् खण्डों में वेदार्थ कल्पद्रुम, वैदिक कोष आदि अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ है। पं. लेखराम रचित ऋषि का वृहद जीवन चरित्र आर्य साहित्य के प्रमुख ग्रन्थों में है। इसका प्रकाशन भी ट्रस्ट की ओर से होता आया है। अब यह संस्करण सम्भवतः समाप्त हो गया है। हम आशा करते हैं कि शीघ्र ही इसके प्रकाशन की व्यवस्था भी होगी। अजमेर में आयोजित ऋषि निर्वाणोत्सव के अवसर पर दयानन्द ग्रन्थमाला का प्रकाशन सहित दीर्घकाल से सत्यार्थ प्रकाश के विभिन्न भव्य संस्करणों एवं ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कार विधि, आर्याभिविनय व दयानन्द लघु ग्रन्थ संग्रह आदि ग्रन्थों का प्रकाशन भी ट्रस्ट से हो चुका है व कुछ का अब भी हो रहा है। सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका तथा संस्कार विधि के आरम्भिक प्रामाणिक संस्करणों की फोटो प्रतियां भी पुस्तक रूप में ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित की गई थी जिसका उद्देश्य मूल ग्रन्थों का संरक्षण एवं इन ग्रन्थों में पाठ परिवर्तनों को रोकना था। इन्हीं के आधार पर अब इन ग्रन्थों का प्रकाशन किया जाता है। हमें यह लिखने में भी प्रसन्नता एवं गौरव अनुभव होता है कि आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली ने सत्यार्थ प्रकाश का लगभग 13 लाख की संख्या में प्रकाशन कर पुण्य अर्जित किया है और ऋषि मिशन की प्रशंसनीय सेवा की है। यह भी बता दें कि एक ओर जहां इन ऋषि ग्रन्थों का भव्य प्रकाशन हुआ है वहीं ट्रस्ट द्वारा इनका मूल्य भी बहुत अल्प रखा गया है। इस गुण ने ही आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट ने आर्यजगत में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है।

हमारा सौभाग्य है कि हमें लाला दीपचन्द आर्य जी व माता बालमति आर्या जी के दर्शन करने व उनसे वार्तालाप का अवसर मिला है। आर्यजगत की इन महान् हस्तियों से भेंट में हमें जो स्नेह मिला उसने हमारे मन पर एक विशेष सात्विक छाप बनाई हुई है। हमें कोई पूछे कि आदर्श आर्य कैसे होते हैं, तो हम इन्हीं की ओर संकेत करेंगे। माता-पिता के गुणों से परिपूर्ण श्री धर्मपाल आर्य जी आर्यसमाज सहित दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा और आर्यसमाज के अनेक कार्यों से सक्रिय रूप से जुड़े हैं। हमें स्मरण है कि जब जयपुर में महाराज मनु की प्रतिमा को उच्च न्यायालय परिसर से हटाने का आदेश हुआ था तो श्री धर्मपाल जी ने ही स्टे आर्डर लिया था और मुकदमें में बहस के लिए स्वयं ही पहुंचते थे। ऐसे अनेक कार्यों के लिए आप आर्यजगत के पूज्य हैं। हमें विश्वास है कि आप भविष्य में भी इन सभी कार्यों को जारी रखेंगे। हम समझते हैं कि आप जो सामाजिक व सार्वजनिक जीवन में कार्य कर रहे हैं उससे अच्छे कार्य और कुछ नहीं हो सकते। आप इन कार्यों को करते रहें। हम आपकी सफलता की कामना करते हैं। ईश्वर आपको स्वस्थ रखें। आपकी सार्वत्रिक उन्नति हो। आर्यसमाज वजीरपुर जेजे कालोनी में हुए सम्मान के लिए हम आपको और आपके पूरे परिवार को पुनः पुनः हार्दिक बधाई देते हैं। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

 

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