आज दीपावली का दिन है, ऋषि दयाननद आज के दिन जनमे थे और अपने पराण को भी इसी दिन तयाग दिया था| क गजराती परिवार में जनमे मूलशंकर ने मूरति पूजा के परति अनध शरदधा से विचलित होकर सतय की खोज में गृह का तयाग कर दिया था,और चतरदिक भरमणं के उपरांत उनहें मथरा में परजञा चकष दंडी सवामी विरजानंद के रूपमें.क सा गर मिला जिससे जञान परापत हो सका | 

 
19 वीं शताबदी के उततरारध में अंगरेजी समराजय का परशासनिक शिकंजा पूरी तरह से हम को जकड़ चूका था| सवधिनता के लि 1857 का परयास असफल होजाने के बाद विदेशी शासन के विरदध खड़े होनेकी मानसिकता तिरोहित हो चकी थी, से समय में उभरे ऋषि दयाननद, जिनहें विरजानंद जैसे गर परापत थे | भारतीय जागृति की जो महीम चलाई उसीके फल सवरप प०बाल गंगाघर तिलक,लाला लाजपतराय,बिपिनचंदरपाल की.तिकड़ीने.अधयातमिक जागृती को सीधे राजनीतिक आयाम परदान किया |

 
दयाननद ने भारत में सरवाधिक समी और बोली जाने वाली भाषा हिंदी के माधयम से समाने का परयास किया और देवनागरी मे लिपि बदध किया | दयाननद इस देश के सबसे पहले वयकति थे जिनहोंने संतों और विचारकों दवारा अभिवयकति के लि परमपरागत भाषा संसकृत या निज की मातरी भाषा.अथवा तबतक परचलित हो चकी अंगरेजी के बजाय जन जन कि भाषा हिंदी को माधयम बनाया |

 
दयाननद सरसवती ने जिस समय पाखंड खंडनी पताका लेकर अनधविशवास के विरदध अभियान चलाया था उस समय देश के बड़े हिससे में पिंडारियो की लूटपाट, हतया का उततरारध चल रहा था | यह पिंडारी जो डकैत ही थे तथा उनमे अधिकतर इसलाम मतावलमबी थे, अपने को काली का भकत घोषित किये ह थे | वह जिनहें लटते थे उनका सिर काट लेते थे, काली को चढाने के लिये | अंगरेजों का परशासनिक शिकंजा जकड़ जाने और राजा राममोहन राय जैसे लोगों के कतिपय सीमित सधारवादी परयास के बावजूद सारा लमबी अवधि की दासता से जनमी करीतियों से पटा पड़ा था | छआछूत उसका क सवरूप था| बाल विवाह बालिकाओ को शिकषा न देना, कनया के जनम और को अशभ मानना, विधवा का सिर मड़ा देना आदि 
 
समाज में इसलामी मतावलमबी शासकों की कतसित दृषटि के कारण यदयपि शरू हवा या तथापि तब तक दृ हो चला था | अपनी भाषा, बेश भूषा के परति हीनता के भाव के साथ साथ दासतव की परबृतति का बोलबाला हो चला था.से समय में दयाननद ने जो परयास किया वह सरवागीण था | उनहों ने समाज को अनध विशवास के गरत से निकालने के लि जहा करीतिओं पर करारी चोट की वहीं उनहोंने उसे आतम गौरव के साथ खड़ा होने का बोध कराया. उनहों ने अतीत के सवरणिम दिनों का साकषात कार कराया | उनहोंने ही सबसे पहले घोषित किया की वेद दनिया का सबसे शरेषठ गरनथ है | उनहों ने बताया की दनिया में जानने योगय सा कछभी नहीं है जो वेदमें न हो | इसके साथ ही दयाननद ने परोहिताई ढोंग को बेनकाब करना भी शरू किया | सथान सथान पर परोहिताई वयवसथा की जकडन को सनातन वयवसथा बताने वाले को उनहोंने शासतरारथ के माधयम से पराजित करने का दिगविजयी अभियान चलाया जिस काशी में जगत गर आदि शंकराचारय को भी कतिपय परशनों के उततर देने के लि अनभूति हेत वैदिक मानयता को परवेश करना पड़ा | तथा गौतम बदध को सारनाथ से ही लौट जाना पड़ा उस काशी में विदवानों को शासतरारथ से दयाननद ने न केवल परासत किया अपित अपनी समयक सोच का सथाई परभाव भी छोड़ा|

 
किसी भी समाज के पतन का मखय कारण होता है उसकी धीरे धीरे ढोंग में बती आसथा| ढोंग के परभाव से समाज ततव के परति उदासीन होता जाता है और सथूलता के परति अंतर भय से गरसत होने के कारण शरदधावान इस भावना को हम शरदधा भी नहीं कह सकते कयोंकि शरदधा सी भावना है जिसमे किसी परकार के सवारथ या भय की गंजाइश नहीं होती| वह तो आराधय के गणों से मोहित होकर पूरण समपरण की भावना का नाम है| पराधीनता की कई शताबदियों के कारण शासकों से निरंतर बने रहने वाले भय से सरकषा की भावना से जिन लोगो के शरणागत होने की परवृतति को बावा दिया उनमे वह लोग भी शामिल थे जिनहोंने अपने शासन के दौरान अतयाचार किया| कबरों और मजारों की पूजा इसी परकार की शरणागत भावना का उदहारण है| उततर परदेश की राजधानी लखनऊ के करीब बहराइच में सैयद सालार के मेले में अभी भी 90 परतिशत हिनदू भाग लेते है | सैयद सालार महमूद गजनवी के साथ भारत आया था | आय कल 22 या 23 वरष थी| उसने शरावसती के राजा सहेल देव जी जाती के पारसी थे | उनकी पतरी का डोला मागा और उसे परापत करने के लि चढाई की, और मारा गया | राजा सहेल देव की समृति में तो कछ नहीं हवा,लेकिन सैयद सालार को गाजी मान लिया गया, तथा गाजि मियां की मजार और उससे जड़ी अपार संपतति आज है |

 
इसमें 90 परतिशत योगदान हिनदओं की उन जातियों का है जो सहेलदेव की बिरादरी के ही हैं | जहा क ओर मजारों और कबरों.की पूजा में सरकषा की भावना ने समाज को परभावित किया था वही परमपरागत भारतीय करमकांड को परोहिताई ने पूरी तरह से बिकृत कर दिया था | दयाननद जो की ईशवर की सरवशरेषटता के हामी कार थे उनहों ने उसे न केवल सरवशकतिमान बलकि सरवबयापक सरवअंतरयामी भी बताया | उनहों ने परोहिताई ढोंग पर करारी चोट करते ह सभी को सभी परकार की शिकषा का अधिकारी जनेऊ आदि परतीक चिनहोको धारण करने का पातर घोषित करते ह बाल विवाह का विरोध और विधवा विवाह का अभियान चलाया | समाज को ढोंग से उबारने के लि उनहों ने उततर और पशचिम भारत में वयापक अभियान चलाया | वे पूरव और दकषिण नहीं जा सके थे, फलतः असपृशयाता आदि से पूरव और दकषिण भारत आज भी परभावित है तथा परोहिताई की जकड़न से उसे आज़ादी 67 वरष बाद भी मकति नहीं मिल सकी है | सवदेशी दयानानद के अभियान का मूल आधार था, जिसलि उनहों ने कहा था सवदेशी राजा यदि शतरवत आचरण करता है तो भी,वह पतर वत आचरण करने वाले विदेशी राजा से शरेषठ है |

 
इतिहास के शोध करताओंने यह भी लिखा है की 1857 के सवाधीनता के लि संघरष की परेरणा देने वाले जिन सनयासी का उललेख आता है वह सवामी दयाननद ही थे | इस तथय की ओर अधिक शोध की आवशयकता है, लेकिन जो बात बिना किसी शोध की आवयशकता ने उनहोंने अपने गरनथ सतयारथ परकाश में लिख दी है वह इस बात का परयापत सबूत है की दयाननद के अभियान का उददेशय कया था ? उनहों ने परतयेक भारतीओं के लि आरय शबद जिसका अरथ शरेषठ है बं ससंसकृत का परयोग किया था | दयाननद ने इस शताबदी के परारंभ होनेके पूरव उनहें आरय की संजञा परदान किया था | उनका बिशवास वरण वयबसथा बं वरणाशरम में था लेकिन किसी परिवार में जनम लेने के कारण ऊच नीच की भावना को वे इस सनातन वयवसथा के सरवथा विपरीत मानते थे | उनका मानना था और समाज को वैसा ही मानने के लि अपने आगरह की वयापकता के लि ही उनहों ने आरय समाज नामक संगठन को खड़ा किया था, जिसकी कालांतर में दो धारा शिकषा के कषेतर में हो गयी |

 
क गरकल पदधति दूसरी डी ० ० वी ० पदधति.आज आरय समाज का संगठन दयाननद के उददेशय से भटक कर संपतति की हवश का शिकार हो कर उन लोगों के हाथों खिलौना बना हवा है,जिन को वैदिक सिदधानत से कछ भी लेना देना नहीं है,जभी तो आज सरवोदेशिक सभा में मसलमानों को बलवा कर आफतार पारटी दी जा रही है | उतसव के नाम पर विदेश भरमण अथवा परयटन का बयापार होने लगा है, जिस वैदिक विचारों से दनिया के लोग दयाननद और आरय समाज को जान पाये थे,आज उसी आरय समाज को मातर बारात घर के नामसे लोग जान रहे हैं | 

 
भारत की जो सथिति 19 वीं शताबदी में थी उसमे और 20 वीं शताबदी की अंतमें केवल क अंतर यह है की देशका परशासन सवदेशिओं के हाथों में है | लेकिन से सवदेशिओं के हाथ में की जिनकी सवदेशी भावना सपत हो चकी है,जो सवदेशी भाषा बोलने और सवदेशी पहनावा पहनने में भी हीनता अनभव करते हैं | आजादी के 67 वरष के बाद भी शासकों की भाषा अंगरेजी ही है, जिनहें भारतीय इतिहास की जानकारी नहीं जो भारत ऋषि परमपरा.और धारमिक देश है, आज उसी भारत का परधान मंतरी बनाना चाहते थे उसी को जो भारत का भ नहीं जानते, धरम का ध नहीं.जानते| यह तो परमातमा की अनकमपा है की शरी नरेनदर भाई मोदी जी को परमातमा ने खड़ा कर दिया -तो आज वह लोग विरोधी पकषमे बैठने के काबिल भी न रहे | दयाननद के परादरभाव के समय ढोंग चरम सीमा पर था | ढोंग अरथात जो हम दूसरों से करने की अपेकषा करते हैं. परामरश देते हैं वह सवयं नहीं करते | उन दिनो ठगों का बोल बाला था सवयं के अनभूति समापत हो गई थी | कछ पाने के लि अंगरेज बहादर के दरबार में अरजी पेश करने की कमी चल पड़ी थी | उस समय पाखणडी काली के नाम से हमें लटते थे,अब उन पिंडारीयों ने सेकलारिजम का मखौटा लगा लिया है | सेकयूलारिजम के नाम पर पिंडारीयों से भी भयावह लट चल रही है | हमारी जो सथिति 19 वीं शताबदी के अंतिम वरषीं में देश मे कई सौ देशी राजा भी थे.उनकी अपनी हकूमत थी |

 
आज भी ठीक उसी तरह के राजयों और केंदर में कई दलों की हकूमत हावी थी , जो ईश कृपा से अब ख़तम हो गई है | जैसे उस समय की पराथमिकता सतता में बने रहने की थी वैसे ही अब भी है | आज अगर अभाव है तो किसी दयाननद सरीखे पाखंड खंडनी पताका फहराते ह दिगविजयी की | किसी नरेश की तरह परेमिका के जाल में फंस कर जयचंद जैसे रसोईये ने दयाननद,को विष देने की साजिश को जान ने के बावजूद भी राजा किंकरतवयविमू था आज भी कछ सथिति वैसी ही बनी हई है, जैसा राजा ननही जान के चंगल में फंसे थे,आज भी कछ नेता गण मननी जान के चंगल में फंसे पड़े हैं | अभी पिछले दिनों दिगगी जी को दिखाया जा रहा था , और राय बरेली सरकेट हॉउस के सामूहिक दषकरम का भी खलासा नही हो सका है | हमारे नेताओं को न जाने कितने मननी वाई घेरे है,अब तो आधनिक मननीवाई के अनेक रूप हैं | भारत का असतितव इस समय दांव पर लगा हवा है,और दिवाली के दिन भारतीय लोग दांव पर दांव लगाते हैं जवा खेलना पाप है यह जानकर भी लोग इसी जवा को शगन के लि जवा खेलते हैं | जब की कोई जाने और न जाने पर भारत वासिओं को खूब मालूम है की यधिषटिर की जवा खेलने का परिणाम कया हवा आपस मे मार काट महाभारत जैसा कांड,और पतनी से भी हाथ धोना पड़ गया था | 

 
आज तो न मालूम लोग कितना ही रूपयों में आग लगादेंगे, और यह सारा काम आज़ के पे लिखे लोग ही करेंगे समाज में जो लोग अपने को पे लिखे बताते है.उनही का यह काम है परदशन को बावा देना जो खद इस काम को करेंगे और अपने बचचो से भी करवांगे | जिस परदशन से दूर रहने को अथवा जिससे परदशन को दूर करने के लि यजञ की वैदिक वयवसथा दी ऋषीने की जिस परकार धरती के वातावरण को दूषित करते हो ठीक उसी परकार सबका दायितव बनता है सबका की वातावरण को शोधित करो यजञ के माधयम से | यह हमारा धरम का सब से शरेषठ कारय है हमारे महा परषों ने इस काम को किया जो हमें विरासत में मिला है | जिसमे देवताओं की पूजा है,संगती करण,और दान भी है इसी यजञ को करने का अधिकार लोगों ने छीन लिया था, यह अधिकार हमें ऋषि दयाननद ने ही परापत कराया है,हब सब ऋषि के ऋणी हैं | हमारी संसकृति में न तो आतिश बाजी है और न ही कहीं जवा खेलने की बातें है यह महा पाप है,हमें न जवा खेलना है और न ही पटाखा चलाना है | 

 
अगर दांव लगानाही है तो जवा का न लगाव इस राषटर को अराजक ततवों के हाथ से बचाने का दांव लगाओ, दयाननद ने पाखंड खंडन कर अपनी पराणों की आहति दी थी,उस आहवान के अनरूप अपनी समाज और राषटर को खड़ा करने की दांव लगाव |दयाननद ने शयाम जी कृषण वरमा,महादेव गोविंद राणाडे,दादा भाई नौरोजी,प० बाल गंगाघर तिलक,वीर सावरकर,सायाजी राय गायक वाड, मदनलाल धिंडा, लाला हरदयाल, आदि लोगों को दयाननद ने ही तैयार किया था | आज के दिन ऋषि को याद करना है उनहें शरदधा समन अरपित करना है तो, अपने को दांव पर लगाते ह यह पाखंड आचछादित भारत को उन पाखणडीयों से देशको मकति दिलाने का परतिजञा कर अपने देश और धरम की रकषा ही सचची शरधानजली होगी | आज के दिन जब लोग दीप जलाकर उललास कर रहे थे उन दिनों ऋषि दयाननद के जीवन का दीप ब रहा था | आज के दिन आरय जानो को परतिजञालेनी चाहि अथवा वरत लेना चाहि की ऋषि के विचारों को जन जन तक पोहचा कर ऋषि ऋण को चकां | और जैसा दयाननद का जो काम बह आयामी था उसी परकार, सवधरम, सवराषटर, सवसंसकृति,और सवभाषा का परचार करते ह इस राषटर को समृदधि शाली बनाना ही दयाननद का छटा काम पूरा करना होगा | दयाननद ने अनेक बार विष पाण कर भी हमें सखी बनाने का परयास किया था हमारे लि भी परम करतबय बनता है की उनके छटे काम को पूरा करना |

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