माता के समान हितकारी गाय की रकà¥à¤·à¤¾ करना मनà¥à¤·à¥à¤¯ मातà¥à¤° का परम करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ व धरà¥à¤®â€
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Manmohan Kumar AryaDate
05-Sep-2017Category
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05-Sep-2017Download PDF
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माता के समान हितकारी गाय की रकà¥à¤·à¤¾ करना मनà¥à¤·à¥à¤¯ मातà¥à¤° का परम करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ व धरà¥à¤®â€
संसार के जितने à¤à¥€ देश है या यह कहिये कि पृथिवी तल पर जहां-जहां à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ है, वहां-वहां गाय à¤à¥€ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है। यह वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° ने मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के हितों को देखकर की है। यदि उसे मनà¥à¤·à¥à¤¯ का हित करना अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ न होता तो ईशà¥à¤µà¤° गाय को बनाता ही नहीं। मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को अपने हित व सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥‚रà¥à¤¤à¤¿ के लिठगाय की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है, गाय को मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ नहीं है। बिना गाय के मनà¥à¤·à¥à¤¯ का जीवन जल व वायॠरहित जीवन के समान होता। गाय à¤à¤• पालतू पशॠहै। यदि हम संसार के सà¤à¥€ पशà¥à¤“ं की गणना कर उनसे मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन को होने वाले लाà¤à¥‹à¤‚ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से तà¥à¤²à¤¨à¤¾ करें तो यह पायेंगे कि सà¤à¥€ पशà¥à¤“ं में गाय ही à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ है जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ के जीवन को चलाने, बà¥à¤¾à¤¨à¥‡, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ को तीवà¥à¤° व सूकà¥à¤·à¥à¤® बनाने तथा रोगों से दूर रखने में सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤¤à¥€ है। इस दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से अनà¥à¤¯ पशà¥à¤“ं का योगदान गौण है। मां के दूध की तरह गोमाता का दूघ à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठपूरà¥à¤£ आहार होता है। बचà¥à¤šà¤¾ हो या यà¥à¤µà¤¾ अथवा वृदà¥à¤§, गाय का दूध सà¤à¥€ आयॠवरà¥à¤— के लोगों के लिठउपयोगी, कà¥à¤·à¥à¤§à¤¾ को दूर करने वाला, सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯à¤µà¤°à¥à¤§à¤•, बलवरà¥à¤§à¤•, आरोगà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¤•, आयà¥à¤µà¤°à¥à¤§à¤•, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤¬à¤² विसà¥à¤¤à¤¾à¤°à¤•, मनà¥à¤·à¥à¤¯, समाज व राषà¥à¤Ÿà¥à¤° की अरà¥à¤¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ को सà¥à¤¦à¥ƒà¤£ करने वाला आदि अनेकानेक गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ है। यदि संसार में गाय न होती तो हमें लगता है कि संसार में मनà¥à¤·à¥à¤¯ à¤à¥€ न होता कारण कि तब कृषि के लिठबैल व खाद कहा से मिलते? मनà¥à¤·à¥à¤¯ व गाय, दोनो à¤à¤• दूसरे पर आशà¥à¤°à¤¿à¤¤ हैं। गाय के इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ गà¥à¤£à¥‹à¤‚ के कारण वेदों में गोरकà¥à¤·à¤¾ पर परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ शिकà¥à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚, विचार व जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ कथन मिलते हैं। वेद गो को विशà¥à¤µ की माता बताने के साथ इसे विशà¥à¤µ की नाà¤à¤¿ à¤à¥€ घोषित करते हैं। गो-हतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के लिठमृतà¥à¤¯à¥ दणà¥à¤¡ का पà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¨ करते हैं। यह वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° की, वेद ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होने के कारण, है न की अलà¥à¤ªà¤œà¥à¤ž व मलिन बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की। आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ होता है कि कोई विवेकशील व अलà¥à¤ªà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ à¤à¤¸à¥‡ उपयोगी पशॠकी हिंसा की वकालत व उसके मांस को à¤à¤•à¥à¤·à¥à¤¯ मानने की मूरà¥à¤–ता à¤à¥€ कर सकता है? फिर यह है इसलिठसंसार का इससे बड़ा आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ और कà¥à¤› नहीं हो सकता। अपवितà¥à¤° बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के लोगों में ही गोहतà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤µ उसके मांस के à¤à¤•à¥à¤·à¤£ की इचà¥à¤›à¤¾ हो सकती है। जो à¤à¥€ गाय का मांस खाता है वह ईशà¥à¤µà¤° व मनà¥à¤·à¥à¤¯ की जीवातà¥à¤®à¤¾ के सà¥à¤µà¤°à¥‚प व करà¥à¤®à¤«à¤² विधान से पूरी तरह अनà¤à¤¿à¤œà¥à¤ž है और यह अनà¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¤à¤¾ उसे मूरà¥à¤– व अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ सिदà¥à¤§ करती है।
वैदिक धरà¥à¤® में चेतन देवताओं में, ईशà¥à¤µà¤° के बाद, माता का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ आता है। à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ है व इसके पीछे कà¥à¤¯à¤¾ रहसà¥à¤¯ वा तरà¥à¤• हैं? माता बचà¥à¤šà¥‡ की जीवातà¥à¤®à¤¾ को अपने गरà¥à¤ में रखकर उसके शरीर के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ में सहायक होती है और उसे जनà¥à¤® देने के साथ उसका लालन व पालन à¤à¥€ करती है। यह कारà¥à¤¯ किसी सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ केवल जनà¥à¤®à¤¦à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥€ मां ही करती है, अतः माता का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ किसी à¤à¥€ सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ के लिठसरà¥à¤µà¥‹à¤ªà¤°à¤¿ होता है। गाय गोदà¥à¤—à¥à¤§, गोमूतà¥à¤° व गोबर पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करती है। गोदà¥à¤—à¥à¤§ से दही, घृत, मकà¥à¤–न, मटà¥à¤ ा, पनीर, खीर, सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ वà¥à¤¯à¤‚जन व मिठाईयां आदि अनेक पदारà¥à¤¥ बनते हैं जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ के लिठसà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯à¤µà¤°à¥à¤§à¤• होने के साथ उसकी कà¥à¤·à¥à¤§à¤¾ वा à¤à¥‚ख को मिटाते हैं। गोदà¥à¤—à¥à¤§ का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ अनà¥à¤¨ के समान व उससे à¤à¥€ ऊपर है, कारण यह है कि गोदà¥à¤—à¥à¤§ पूरà¥à¤£ आहार है जबकि अलग-अलग अनà¥à¤¨ में अपने-अपने विशिषà¥à¤Ÿ गà¥à¤£ होते हैं और उसे सà¥à¤µà¤¤à¤¨à¥à¤¤à¥à¤° वा अकेले न खाकर अनà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ घृत, तेल, नमक, मिरà¥à¤š, मसाले आदि मिलाकर व उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ रसोईघर में पकाकर सेवन किया जाता है जिसके लिठरसोई के नाना पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के सामानों चूलà¥à¤¹à¥‡, ईधन, बरà¥à¤¤à¤¨à¥‹à¤‚ आदि की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ होती है। गोदà¥à¤—à¥à¤§ à¤à¤¸à¤¾ पूरà¥à¤£ आहार है जिसे बिना किसी अनà¥à¤¨ व रसोई आदि के सामान की अनà¥à¤ªà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में à¤à¥€ सेवन करके सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ व बलवान रहा जा सकता है। हमारी माताओं का शरीर जिसमें ईशà¥à¤µà¤° सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करते हैं, उसे à¤à¥€ जिन खादà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ à¤à¥‹à¤œà¤¨ की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ होती है उसकी पूरà¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ गोदà¥à¤—à¥à¤§ व इससे बने पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ से हो जाती है। इस विषय में यह à¤à¥€ कह सकते हैं कि अनà¥à¤¨ व फलों की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में गाय व गोदà¥à¤—à¥à¤§ आसानी से बारह महीनों व वरà¥à¤· के 365 दिन उपलबà¥à¤§ होता है। माता व सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ के शरीरों व उसके पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• अंग की रचना में गोदà¥à¤—à¥à¤§ का महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है। यदि गोदà¥à¤—à¥à¤§ न होता तो माता, पिता, सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ व अनà¥à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के शरीर à¤à¥€ न होते। अतः माता व सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ दोनों को जीवन देने का काम गोमाता व उसका दà¥à¤—à¥à¤§ करता है। इस दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से गो à¤à¤• पशॠन होकर हमारी जनà¥à¤®à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤¨à¥€ माता के समान व उससे à¤à¥€ कई बातों में कà¥à¤› अधिक ही सिदà¥à¤§ होती है। यही कारण है कि वेदों से लेकर हमारे महापà¥à¤°à¤œà¥à¤žà¤¾ के धनी ऋषियों ने गो व गोदà¥à¤—à¥à¤§ की महतà¥à¤¤à¤¾ गाई है और गो को अवधà¥à¤¯ कहने के साथ गोहतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के गोहतà¥à¤¯à¤¾ के अधम कृतà¥à¤¯ के लिठमनà¥à¤·à¥à¤¯ हतà¥à¤¯à¤¾ के समान पाप मानते हà¥à¤ उसे मार देने का विधान किया है। यह विधान गोमाता के महतà¥à¤µ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से उचित ही है। यहां यह à¤à¥€ विचारणीय à¤à¤µà¤‚ जानने योगà¥à¤¯ है कि गाय से हमें उसके बचà¥à¤šà¥‡ गाय व बैल à¤à¥€ मिलते हैं। गाय से गोदà¥à¤—à¥à¤§ आदि अमृत तà¥à¤²à¥à¤¯ आरोगà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ बल वरà¥à¤§à¤• पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है तो बैल हमारे खेतों में हल के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जà¥à¤¤à¤¾à¤ˆ व बà¥à¤†à¤ˆ में सहायक होते हैं जिससे हमें à¤à¤°à¤ªà¥‚र अनà¥à¤¨ तो मिलता ही है साथ ही कृषि के लिठसरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® व बिना मूलà¥à¤¯ का खाद बैल का गोबर व मूतà¥à¤° à¤à¥€ मिलता है जो खाद के साथ कीटनाशक का कारà¥à¤¯ à¤à¥€ करता है। यह सब उपलबà¥à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ बिना मूलà¥à¤¯ à¤à¤• गाय से हमें होती हैं।
ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने देश में सबसे पहले गोरकà¥à¤·à¤¾ का कारà¥à¤¯ किया और गोहतà¥à¤¯à¤¾ बनà¥à¤¦ करने की मांग की थी। इसके लिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ à¤à¥€ किया था और गोहतà¥à¤¯à¤¾ बनà¥à¤¦ करने के लिठà¤à¤• मैमोरैनà¥à¤¡à¤® तैयार किया था जो इंगà¥à¤²à¥ˆà¤£à¥à¤¡ की महारानी विकà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ को समà¥à¤¬à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ था। उनका पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ था कि देश के करोड़ों लोगों के हसà¥à¤¤à¤¾à¤•à¥à¤·à¤° कराकर इसे वह महारानी विकà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ को à¤à¥‡à¤œà¥‡à¤‚गे। कारà¥à¤¯ तीवà¥à¤° गति से चल रहा था। लाखों वा करोड़ो लोगों के हसà¥à¤¤à¤¾à¤•à¥à¤·à¤° करा लिये गये थे और कà¥à¤› करने शेष थे। इसी बीच उनके विरोधियों ने विष देकर उनका जीवन समापà¥à¤¤ कर दिया। इससे हानि यह हà¥à¤ˆ कि गोरकà¥à¤·à¤¾, गोसंवरà¥à¤§à¤¨ वा गोहतà¥à¤¯à¤¾ बनà¥à¤¦à¥€ का काम बीच में अधूरा ही छूट गया। यह à¤à¥€ बता दें कि गांधी जी à¤à¥€ गोरकà¥à¤·à¤¾ के पà¥à¤°à¤¬à¤² समरà¥à¤¥à¤• थे। उनका यंग इणà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¾ में गोरकà¥à¤·à¤¾ के समरà¥à¤¥à¤¨ और गोरकà¥à¤·à¤¾ के विरà¥à¤¦à¥à¤§ लिखा गया लेख उपलबà¥à¤§ है जिसमें उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गोरकà¥à¤·à¤¾ के विरोधियों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ कठोर कारà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¹à¥€ का समरà¥à¤¥à¤¨ किया है। अतः यदि ऋषि दयाननà¥à¤¦ कà¥à¤› और वरà¥à¤· जीवित रहते या गांधी जी जीवित रहे होते तो अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ है कि वह देश में गोहतà¥à¤¯à¤¾ तो किसी कीमत पर न होने देते। हम यह à¤à¥€ बता दें कि सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ ने अपनी पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• गोकरà¥à¤£à¤¾à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ में गाय से होने वाले आरà¥à¤¥à¤¿à¤• लाà¤à¥‹à¤‚ की गणना कर सिदà¥à¤§ किया है कि गोरकà¥à¤·à¤¾ देश की खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ की गारणà¥à¤Ÿà¥€ है। सà¤à¥€ देशवासियों को इसे निषà¥à¤ªà¤•à¥à¤· à¤à¤¾à¤µ से पà¥à¤¨à¤¾ चाहिये।
संसार में मांसाहार इस लिठà¤à¥€ बॠरहा है कि मांसाहार करने वाले लोगों को मांसाहार के सà¤à¥€ पहलà¥à¤“ं व हानियों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं है। जो लोगों पà¥à¥‡ लिखे व समà¤à¤¦à¤¾à¤° हैं वह विवेक की कमी, अपनी जीठके सà¥à¤µà¤¾à¤¦ व कà¥à¤› धारà¥à¤®à¤¿à¤• व अनà¥à¤¯ कारणों से इसका पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° नहीं करते और न ही आम जनता के सामने सतà¥à¤¯ पकà¥à¤· को रखते हैं। कई मतों ने इसे अपने धरà¥à¤® से à¤à¥€ जोड़ रखा है जिसका कारण उनके मतों में इसके पकà¥à¤· में कà¥à¤› उलà¥à¤²à¥‡à¤– मिलते हैं जो मांसाहार के पोषक हैं। हमारी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ में उन उलà¥à¤²à¥‡à¤–ों को आपद धरà¥à¤® मानकर मांसाहार को सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ छोड़ देना चाहिये। जब साधारण व अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ पर पà¥à¤°à¤¾à¤£ रकà¥à¤·à¤¾ का संकट आ जाये तो उस समय वह अपने जीवन की रकà¥à¤·à¤¾ के लिठअà¤à¤•à¥à¤·à¥à¤¯ पदारà¥à¤¥ का सेवन कर लेते हैं परनà¥à¤¤à¥ सामानà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में जब अनà¥à¤¯ à¤à¤•à¥à¤·à¥à¤¯ पदारà¥à¤¥ पà¥à¤°à¤šà¥à¤° मातà¥à¤°à¤¾ में उपलबà¥à¤§ हों, तब मांसाहार करना रोगों सहित अलà¥à¤ªà¤¾à¤¯à¥ को आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ करने के साथ करà¥à¤®à¤«à¤² सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° जनà¥à¤®-जनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤° में पशà¥à¤“ं के समान जीवन व पीड़ा का à¤à¥‹à¤— कराने वाला होगा। परजनà¥à¤®à¥‹à¤‚ में हमारी सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ वैसी ही होगी जैसी की इस जनà¥à¤® में हमारे निमितà¥à¤¤ से अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की हà¥à¤ˆ है। हम समà¤à¤¤à¥‡ हैं कि यदि संसार के सà¤à¥€ लोग जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ व बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ होते और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वैदिक धरà¥à¤® के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ व उसकी यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ सहित लाठव हानि को जाना व समà¤à¤¾ होता तो वह पवितà¥à¤° बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ होकर गोहतà¥à¤¯à¤¾ व गोमांसाहार में पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤ होने का निनà¥à¤¦à¤¿à¤¤ करà¥à¤® कदापि न करते। हम मांसाहार नहीं करते व हमने जीवन में इसे छोड़ दिया इसका कारण केवल हमारा जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विवेक है। यही जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विवेक इतर मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ व लोगों में à¤à¥€ होता तो वह हमारी ही तरह गोरकà¥à¤·à¤¾ के समरà¥à¤¥à¤• और गोहतà¥à¤¯à¤¾ व गोमांस के विरोधी होते। यहां à¤à¥€ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की कà¥à¤› शिकà¥à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ व मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का अविवेक ही इस समसà¥à¤¯à¤¾ के मूल में जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है।
आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के संसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤•, वेद और वैदिक साहितà¥à¤¯ के दà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾ ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने à¤à¤• लघॠगà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ ‘गोकरà¥à¤£à¤¾à¤¨à¤¿à¤§à¤¿’ की रचना की थी। इसकी गवेषणापूरà¥à¤£ à¤à¥‚मिका के कà¥à¤› अंश यहां पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ हैं जो गोरकà¥à¤·à¤¾ के महतà¥à¤µ पर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ डालते हैं। ऋषि दयाननà¥à¤¦ लिखते हैं कि ‘वे धरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾, विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ लोग धनà¥à¤¯ हैं, जो ईशà¥à¤µà¤° के गà¥à¤£-करà¥à¤®-सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ, अà¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤¯, सृषà¥à¤Ÿà¤¿-कà¥à¤°à¤®, पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤·à¤¾à¤¦à¤¿ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ और आपà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के आचार से अविरà¥à¤¦à¥à¤§ चल कर सब संसार को सà¥à¤– पहà¥à¤‚चाते हैं और शोक है उन पर जो कि इनसे विरà¥à¤¦à¥à¤§ सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€, दयाहीन होकर जगतॠकी हानि करने के लिठवरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ हैं। पूजनीय जन वो हैं जो अपनी हानि हो तो à¤à¥€ सबका हित करने में अपना तन, मन, धन सब-कà¥à¤› लगाते हैं और तिरसà¥à¤•à¤°à¤£à¥€à¤¯ वे हैं जो अपने ही लाठमें सनà¥à¤¤à¥à¤·à¥à¤Ÿ रहकर अनà¥à¤¯ के सà¥à¤–ों का नाश करते हैं। वह आगे लिखते हैं कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में à¤à¤¸à¤¾ कौन मनà¥à¤·à¥à¤¯ होगा जो सà¥à¤– और दà¥à¤ƒà¤– को सà¥à¤µà¤¯à¤‚ न मानता हो? कà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤¸à¤¾ कोई à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ है कि जिसके गले को काटे वा रकà¥à¤·à¤¾ करें, वह दà¥à¤ƒà¤– और सà¥à¤– को अनà¥à¤à¤µ न करे? जब सबको लाठऔर सà¥à¤– ही में पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ है, तब बिना अपराध किसी पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ का पà¥à¤°à¤¾à¤£ वियोग करके अपना पोषण करना सतà¥à¤ªà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के सामने निनà¥à¤¦à¥à¤¯ करà¥à¤® कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न होवे? सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ जगदीशà¥à¤µà¤° इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ केी आतà¥à¤®à¤¾à¤“ं में अपनी दया और नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ को पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ करे कि जिससे ये सब दया और नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ होकर सरà¥à¤µà¤¦à¤¾ सरà¥à¤µà¥‹à¤ªà¤•à¤¾à¤°à¤• काम करें और सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¤¨ से पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ होकर कृपापातà¥à¤° गाय आदि पशà¥à¤“ं का विनाश न करें कि जिससे दà¥à¤—à¥à¤§ आदि पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ और खेती आदि कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ की सिदà¥à¤§à¤¿ से यà¥à¤•à¥à¤¤ होकर सब मनà¥à¤·à¥à¤¯ आननà¥à¤¦ में रहें।‘
महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने à¤à¤• गाय की à¤à¤• पीà¥à¥€ से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ बछिया और बैलों से होने वाले दà¥à¤—à¥à¤§ व अनà¥à¤¨ का गणित व अरà¥à¤¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° हिसाब लगाया है और सिदà¥à¤§ किया है कि à¤à¤• गाय की à¤à¤• पीà¥à¥€ से 4,10,440 मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का पालन à¤à¤• समय व à¤à¤• बार के à¤à¥‹à¤œà¤¨ के रूप में होता है। यदि गाय की उतà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤¤à¤° सनà¥à¤¤à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर विचार करें तो गाय से असंखà¥à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का पालन होता है। गाय का मांसाहार करने से केवल असà¥à¤¸à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ à¤à¤• बार के à¤à¥‹à¤œà¤¨ के रूप में तृपà¥à¤¤ हो सकते हैं। इस पर टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ करते हà¥à¤ वह कहते हैं कि ‘देखो ! तà¥à¤šà¥à¤› लाठके लिठलाखों पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को मार असंखà¥à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की हानि करना महापाप कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं?’ गाय के ही समान ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने à¤à¥ˆà¤‚स, ऊंटनी व बकरी से मिलने वाले दूध व उससे होने वाले à¤à¥‹à¤œà¤¨ संबंधी आरà¥à¤¥à¤¿à¤• लाठकी गणना कर à¤à¥€ इन पशà¥à¤“ं की रकà¥à¤·à¤¾ का à¤à¥€ आहà¥à¤µà¤¾à¤¨ व समरà¥à¤¥à¤¨ किया है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ उसे कहते हैं जो मननशील हो। अपने व दूसरों के सà¥à¤–, दà¥à¤ƒà¤– व हानि लाठको समà¤à¥‡à¥¤ यदि मनà¥à¤·à¥à¤¯ à¤à¤¸à¤¾ होगा तो वह न तो गोहतà¥à¤¯à¤¾ करेगा, न गोमांस व अनà¥à¤¯ पशà¥à¤“ं का ही मांस खायेगा। हमने निषà¥à¤ªà¤•à¥à¤· à¤à¤¾à¤µ से यह लेख लिखा है। लोग मानवीय व देश के आरà¥à¤¥à¤¿à¤• हितों के दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¥‹à¤£ से इस पर विचार करें तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ का बोध हो सकेगा। हमें यह à¤à¥€ आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ होता है कि लोग कागज के नोटों व जड़ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ की रकà¥à¤·à¤¾ में तो अपना जीवन वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ करने सहित अपने पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ को à¤à¥€ दांव पर लगा देते हैं परनà¥à¤¤à¥ ईशà¥à¤µà¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ हमारे हित के लिठबनाये गये गाय आदि पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर निरà¥à¤¦à¤¯à¤¤à¤¾ का वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करते हैं। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ किस आधार पर मनà¥à¤·à¥à¤¯ कहें हमें समठमें नहीं आता? इसी के साथ इस लेख को विराम देते हैं। ओ३मॠशमà¥à¥¤
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