आज का मनà¥à¤·à¥à¤¯ अपने जनà¥à¤®à¤¦à¤¾à¤¤à¤¾ और सà¥à¤µà¤¯à¤‚ के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से अनà¤à¤¿à¤œà¥à¤žâ€™
Author
Manmohan Kumar AryaDate
06-Sep-2017Category
लेखLanguage
HindiTotal Views
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RajeevUpload Date
06-Sep-2017Download PDF
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कà¥à¤¯à¤¾ हम अपने आप और अपने जनà¥à¤®à¤¦à¤¾à¤¤à¤¾ को जानते हैं। हमें लगता है कि संसार के 99 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ लोग न तो अपने आप को जानते हैं न अपने जनà¥à¤® दाता को ही जानते हैं। इस न जानने का मà¥à¤–à¥à¤¯ कारण अविदà¥à¤¯à¤¾ है। विदà¥à¤¯à¤¾ उसे कहते हैं कि जिससे पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का यथारà¥à¤¥ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ को यह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ कैसे हो कि वह कौन है, उसका सà¥à¤µà¤°à¥‚प कà¥à¤¯à¤¾ है, किसने उसे उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किया, किस उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से किया व मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन का वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• लकà¥à¤·à¥à¤¯ कà¥à¤¯à¤¾ है? इसका सही उतà¥à¤¤à¤° केवल मनà¥à¤·à¥à¤¯ को बनाने वाली सतà¥à¤¤à¤¾ ही दे सकती है। कà¥à¤¯à¤¾ उस सतà¥à¤¤à¤¾ से इन पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ का उतà¥à¤¤à¤° जाना जा सकता है तो हमारा उतà¥à¤¤à¤° हां में है। उस सतà¥à¤¤à¤¾ से इन पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ का उतà¥à¤¤à¤° कैसे जाना जा सकता है, इस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ का उतà¥à¤¤à¤° है कि इस संसार व मनà¥à¤·à¥à¤¯ आदि पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को बनाने वाली सतà¥à¤¤à¤¾ इस बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ में सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• है। उसने इस संसार में अननà¥à¤¤ सूरà¥à¤¯, चनà¥à¤¦à¥à¤°, पृथिवी व अनà¥à¤¯ लोक लोकानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ को बनाया है। यदि उसने बनाया है तो यह निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ है कि वह सà¤à¥€ रचनायें जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पूरà¥à¤µà¤• करता है। इसका अरà¥à¤¥ है कि वह जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ वा सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž है। उसकी सरà¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¤à¤¾ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना को देखकर और उसका अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करके à¤à¥€ मिलता है। यह à¤à¥€ जानने योगà¥à¤¯ बात है कि जà¥à¤žà¤¾à¤¨ केवल चेतन सतà¥à¤¤à¤¾ में ही निहित व समाहित होता है। इससे यह जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि जिस सतà¥à¤¤à¤¾ से यह संसार व हम सब बने हैं वह à¤à¤• चेतन, सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž à¤à¤µà¤‚ सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• सतà¥à¤¤à¤¾ है। अब यदि उस सतà¥à¤¤à¤¾ ने हमें अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ हमारे शरीर को बनाया और हमारी आतà¥à¤®à¤¾ जो कि जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व करà¥à¤® आदि गà¥à¤£à¥‹à¤‚ के कारण à¤à¤• चेतन ततà¥à¤µ है, तो वह मनà¥à¤·à¥à¤¯ व अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को अपने जीवन निरà¥à¤µà¤¾à¤¹ के लिठआवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ के अनà¥à¤°à¥‚प जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ अवशà¥à¤¯ देगा। यह à¤à¥€ जरूरी है कि उसके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में पà¥à¤°à¤¥à¤® दिनों में ही देना समीचीन व तरà¥à¤• संगत है। यह जान लेने के बाद संसार में पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ सतà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ पर विचार करें तो वेद ही विशà¥à¤µ का सबसे पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है जिसे विदेशी व अपने देश के सà¤à¥€ लोग सबसे पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करते हैं। यह वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ ही ईशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है जो सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ सतà¥à¤¤à¤¾ ने सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को दिया था। इसका पूरा वरà¥à¤£à¤¨ महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ कृत सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ में उपलबà¥à¤§ है जिसे वहां देखा जा सकता है।
किसी वसà¥à¤¤à¥ के विषय में यथारà¥à¤¥ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वही दे सकता है जो उसका निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करता है। आजकल जो उदà¥à¤¯à¥‹à¤— व कमà¥à¤ªà¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ जिस उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦ को बनाती हैं, वही उसके विषय में यथोचित जानकारी दिया करती हैं। à¤à¤¸à¤¾ नहीं होता कि बनाये तो कोई और उसकी जानकारी दूसरा कोई दे। यह बात अलग है कि यदि बनाने वाले से सही जानकारी मिल जाये तो फिर उसको जान व समठकर दूसरे उसे उचित मातà¥à¤°à¤¾ में जान जाते हैं और आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ पड़ने पर उसका उपयोग कर उनके उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦ की मरमà¥à¤®à¤¤ आदि कर लिया करते हैं। मनà¥à¤·à¥à¤¯ को जिस सतà¥à¤¤à¤¾ ने बनाया है उसी सतà¥à¤¤à¤¾ का दिया हà¥à¤† जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वेद है। अतः वेद में ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ के जनà¥à¤®à¤¦à¤¾à¤¤à¤¾ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हो सकता है। वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने पर जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि आतà¥à¤®à¤¾ को शरीर से संयà¥à¤•à¥à¤¤ करने वाला परमातà¥à¤®à¤¾ है। उपनिषदों में à¤à¥€ इसका इसी रूप में वरà¥à¤£à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। ईशà¥à¤µà¤° à¤à¤¸à¤¾ इस लिठकर पाता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वह सूकà¥à¤·à¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¿à¤¸à¥‚कà¥à¤·à¥à¤® है और जीवातà¥à¤®à¤¾ के à¤à¥€à¤¤à¤° à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• है। यदि हम घर के अनà¥à¤¦à¤° हैं तो जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होने पर उसकी अनà¥à¤¦à¤°à¥‚नी खराबियों को ठीक कर सकते हैं। अनà¥à¤¦à¤° की खराबियों को ठीक करने के लिठअनà¥à¤¦à¤° होना या बाहर से अनà¥à¤¦à¤° जाना आवशà¥à¤¯à¤• होता है। ईशà¥à¤µà¤° पहले से ही सब वसà¥à¤¤à¥à¤“ं वा पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¦à¤° व बाहर वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। वह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व सरà¥à¤µ शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ है अतः वह आतà¥à¤®à¤¾ को उसके करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° माता-पिता के शरीरों में पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿ कराकर व वहां उनके शरीर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जनà¥à¤® देता है। जनà¥à¤® के बाद à¤à¤• शिशॠमें जो शारीरिक वृदà¥à¤§à¤¿ होती है उसके लिठउसे उचित आहार विहार की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ होती है परनà¥à¤¤à¥ शरीर व उसके सà¤à¥€ अंगों में वृदà¥à¤§à¤¿ ईशà¥à¤µà¤° व उसके बनाये हà¥à¤ नियमों से ही होती है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ अपनी à¤à¥‚ख के निवारण के लिठजो à¤à¥‹à¤œà¤¨ करता है, गोदà¥à¤—à¥à¤§ व फलों आदि का सेवन करता है, उसे पता à¤à¥€ नहीं होता कि इसी आहार से शरीर के à¤à¥€à¤¤à¤° किस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की रसायनिक व अनà¥à¤¯ कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हो रही हैं और कैसे उससे रस, मांस, मजà¥à¤œà¤¾, असà¥à¤¥à¤¿ व रकà¥à¤¤ आदि पदारà¥à¤¥ बन कर शरीर को पोषण व वृदà¥à¤§à¤¿ के लिठआवशà¥à¤¯à¤• ततà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ हो रहे हैं। यह सब जो हो रहा है उसका यदि कोई वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• करà¥à¤¤à¤¾ है तो वह आंखों से न दिखने वाला सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प, निराकार, सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨, सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž, सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• परमेशà¥à¤µà¤° ही है। इसका अनà¥à¤¯ कोई उतà¥à¤¤à¤° नहीं है। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ आज तक इसका उतà¥à¤¤à¤° नहीं दे सका। इसका कारण है कि हमारे वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• ईशà¥à¤µà¤° को जानने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ नहीं करते। वह à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ को तो मानते हैं परनà¥à¤¤à¥ अà¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• सतà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚, ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾, को जानने व मानने का समà¥à¤šà¤¿à¤¤ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ ही नहीं करते हैं।
मनà¥à¤·à¥à¤¯ जब जनà¥à¤® लेता है तो उसे à¤à¤¾à¤·à¤¾ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ नहीं होता, अतः अनà¥à¤¯ किसी विषय का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होने की तो अपेकà¥à¤·à¤¾ ही नहीं की जा सकती। आज का सारा संसार मधà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ अविदà¥à¤¯à¤¾à¤œà¤¨à¥à¤¯ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ के चकà¥à¤° में फंसा हà¥à¤† है। उन मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ को ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾ विषयक समà¥à¤šà¤¿à¤¤ वा पूरà¥à¤£ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं है, à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• जगत का à¤à¥€ पूरà¥à¤£ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं है, अतः वह आज à¤à¥€ अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ व अविदà¥à¤¯à¤¾à¤œà¤¨à¥à¤¯ मधà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं को ढो रहे हैं। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ पैदा होता है वह या तो किसी मत-मतानà¥à¤¤à¤° या फिर नासà¥à¤¤à¤¿à¤• मत में पैदा होता है। उसके माता-पिता उसे अविदà¥à¤¯à¤¾ की वही बातें बतातें हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वह सà¥à¤µà¤¯à¤‚ मानते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि उनकी सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ बातों को यथावतॠसà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर लेती है। सà¤à¥€ मत-मतानà¥à¤¤à¤° अपने मत के विपरीत सतà¥à¤¯ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं, सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ व बातों को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° नहीं करते अपितॠउनसे दà¥à¤µà¥‡à¤· करते हैं। à¤à¤¸à¤¾ न करें तो उनका महतà¥à¤µ समाज में समापà¥à¤¤ होता है। अतः वह येन केन पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‡à¤£ अपने मत के किसी अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ को अपने से बाहर जाकर सतà¥à¤¯ का अनà¥à¤¸à¤‚धान करने की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ नहीं देते और न सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही करते हैं। इसका परिणाम जो होता है वह आज सबके सामने है। सà¤à¥€ मतों में अविदà¥à¤¯à¤¾ फैली हà¥à¤ˆ है। किसी को ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾ के यथारà¥à¤¥ सà¥à¤µà¤°à¥‚प का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं है।
ऋषि दयाननà¥à¤¦ के जीवन पर यदि दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤ªà¤¾à¤¤ करें तो वह असाधारण संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ व पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤¬à¥à¤§ को लेकर पैदा हà¥à¤ थे। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ माता-पिता दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शिवरातà¥à¤°à¤¿ के दिन वà¥à¤°à¤¤ व पूजा करने के लिठकहा जाता है। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शिव के बारे में जो बताया जाता है वह मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की शिव मूरà¥à¤¤à¤¿ में चरितारà¥à¤¥ नहीं होता तो वह मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा करना हमेशा के लिठछोड़ देते हैं। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इसके किसी परिणाम की परवाह नहीं होती। उनकी बहिन व चाचा की मृतà¥à¤¯à¥ होती है तो वह जनà¥à¤® व मृतà¥à¤¯à¥ से जà¥à¥œà¥‡ पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ पर विचार करने लगते हैं। इसके समाधान न मिलने पर वह परेशान हो जाते हैं और उनमें वैरागà¥à¤¯ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो जाता है। अतः इन व à¤à¤¸à¥‡ अनेक पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के समाधान के लिठवह उस समय घर छोड़ कर चले जाते हैं। यह वह समय था कि जब वैरागà¥à¤¯ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को जानकर उनके माता-पिता उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ विवाह के बनà¥à¤§à¤¨ में कसने व जकड़ने का पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§ करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि वह देश à¤à¤° में à¤à¥à¤°à¤®à¤£ करते हैं, सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर जाकर धारà¥à¤®à¤¿à¤• विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ व योगियों से अपने पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ का समाधान करने को कहते हैं। योग सीखते हैं। उपलबà¥à¤§ सà¤à¥€ धारà¥à¤®à¤¿à¤• व अनà¥à¤¯ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करते हैं। विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ व योगियों की खोज में उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–णà¥à¤¡ के परà¥à¤µà¤¤à¥‹à¤‚ को पैदल ही नाप लेते हैं। अनà¥à¤¤ में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विरजाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ नाम के विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है जो मथà¥à¤°à¤¾ में à¤à¤• संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ पाठशाला चलाते हैं। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ उनके शरणागत हो जाते हैं और तीन वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक उनसे विदà¥à¤¯à¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¨ कर विदà¥à¤¯à¤¾ में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कर पूरà¥à¤£ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ बन जाते हैं। वह वेदों को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करते हैं और अपनी अपूरà¥à¤µ विदà¥à¤¯à¤¾, योगबल व तप से उनके अरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ को जानकर इस निषà¥à¤•à¤°à¥à¤· पर पहà¥à¤‚चते हैं कि वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¥à¤°à¤® के अनà¥à¤•à¥‚ल होने के साथ सà¤à¥€ à¤à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ को दूर कर मनà¥à¤·à¥à¤¯ को निरà¥à¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ करने वाला है। गà¥à¤°à¥ की आजà¥à¤žà¤¾ का पालन करने के लिठवह सतà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वेदों का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° आरमà¥à¤ कर देते हैं। विपकà¥à¤·à¥€ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ à¤à¤µà¤‚ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ चरà¥à¤šà¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ करते हैं और देश के अनेक à¤à¤¾à¤—ों में जाकर सतà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वेदों का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करते हैं। घीरे धीरे उनके पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° से लोग उनकी तरà¥à¤• व यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ संगत बातों को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करने लगते हैं। लोगों की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ पर वह सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ व अनà¥à¤¯ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का लेखन व पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ करते हैं। वेदों के पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° के लिठआरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करते हैं। सà¤à¥€ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ के आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को जà¥à¤žà¤¾à¤¨ चरà¥à¤šà¤¾ के लिठआमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ करते हैं। कà¥à¤› आते हैं और वेदों के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के समà¥à¤®à¥à¤– निरà¥à¤¤à¥à¤¤à¤° या परासà¥à¤¤ हो जाते हैं। बहà¥à¤¤ से असलियत जानकर डर कर सामने आते ही नहीं हैं। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° वह धारà¥à¤®à¤¿à¤• सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ व मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं में दिगà¥à¤µà¤¿à¤œà¤¯ करते हैं। समाज व देश उनके लिठमहतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ था। वह सà¤à¥€ अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥‹à¤‚, कà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ व असमानताओं को दूर करने के लिठवैदिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं को मानने का शंखनाद करते हैं। समाज से उनके समरà¥à¤¥à¤¨ में अनेक लोग निकलते हैं। समाज में सà¥à¤§à¤¾à¤° होना आरमà¥à¤ हो जाता है और उनके देश की आजादी के विचारों के पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° से आजादी के आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ की नींव पड़ती है। आने वाले समय में वह देश व समाज सà¥à¤§à¤¾à¤° करने वाले सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¶à¤¾à¤²à¥€ नेता सिदà¥à¤§ होते हैं।
वेद à¤à¤µà¤‚ वेद समà¥à¤®à¤¤ वैदिक साहितà¥à¤¯ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ईशà¥à¤µà¤°, जीव व पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ अनादि व नितà¥à¤¯ मौलिक पदारà¥à¤¥ हैं। यह अनादि होने के कारण अमर व अननà¥à¤¤ à¤à¥€ हैं। जीव जनà¥à¤® मरण धरà¥à¤®à¤¾ है और जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विवेक को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होकर मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। ईशà¥à¤µà¤° नितà¥à¤¯ मà¥à¤•à¥à¤¤ है। जीवों के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के फल पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने के लिठवह इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को बनाता व चलाता है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ जो शà¥à¤ व अशà¥à¤ करà¥à¤® करता है उसे वह à¤à¥‹à¤—ने ही पड़ते हैं। संसार में कोई à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯, सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ईशà¥à¤µà¤° à¤à¥€ किसी के अशà¥à¤ व पाप करà¥à¤®à¥‹à¤‚ को न तो कà¥à¤·à¤®à¤¾ करता है न कà¥à¤·à¤®à¤¾ कर सकता है। इन सà¤à¥€ विषयों को सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ पà¥à¤•à¤° आसानी से समà¤à¤¾ जा सकता है। सतà¥à¤¯ के पिपासॠव अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ सहित वेद à¤à¤µà¤‚ वैदिक साहितà¥à¤¯ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करना चाहिये। इससे सब à¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ दूर हो जाती हैं। मनà¥à¤·à¥à¤¯ को जनà¥à¤® उसके पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤¬à¥à¤§ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सà¥à¤– व दà¥à¤– à¤à¥‹à¤—ने और तप व साधना से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिठपरमातà¥à¤®à¤¾ देता है। माता-पिता इस कारà¥à¤¯ में सहयोगी बनते हैं। वह ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ का पालन करने वाले निमितà¥à¤¤ मातà¥à¤° हैं। न माता-पिता को और न किसी बड़े से बड़े डाकà¥à¤Ÿà¤° को शरीर की रचना व उसके उपचार का पूरà¥à¤£ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है। ईशà¥à¤µà¤° ही सà¤à¥€ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं को जानने वाला व उसे वेद के रूप में देने वाला है। तपसà¥à¤µà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¥€ चिनà¥à¤¤à¤¨ मनन करने पर वह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ देता है जिससे नये नये अनà¥à¤¸à¤‚धान होकर मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सà¥à¤– मिलता है। हमने जिस विषय का विचार किया था उसका उतà¥à¤¤à¤° अपनी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ व विवेक से दिया है। पाठक इस विषय का ऋषि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ की सहायता से अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करके यथारà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ जान सकते हैं। सà¤à¥€ मतों के आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पूरà¥à¤µà¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹ छोड़कर वेद की शरण में आकर सतà¥à¤¯ का गà¥à¤°à¤¹à¤£ और असतà¥à¤¯ का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करना चाहिये। इसी में उनकी, विशà¥à¤µ की, मनà¥à¤·à¥à¤¯ व पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° की à¤à¤²à¤¾à¤ˆ है। इसी के साथ इस लेख को विराम देते हैं। ओ३मॠशमà¥à¥¤
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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