महान राष्ट्रवादी व्यक्तित्व के धनी थे स्वामी श्रद्धानन्द जी

अधिकांश राजनैतिक सत्ता की चौखट में कार्य करनेवाले इतिहासकारों ने भारत के धर्म और समाज के इतिहास की खोज करने की जरूरत ही महसूस नहीं की. अपने-अपने कुशलतापूर्वक तरीके से धार्मिक और सांस्कृतिक टकरावों का वो युद्ध तो लिखा जो तलवार और भालों से लड़ा गया लेकिन कभी उस वैचारिक युद्ध का जिक्र तक नहीं किया जिसे अपने सनातन महापुरुषों ने अपनी वैदिक विचारधारा के बल पर जीता. हमेशा से इतिहास लेखन में कुछ अपवादो को छोड़ दे तो इतिहास लेखन सत्ता और सत्तातर के बीच बँट गया. जो केंद्र में सत्तारूढ़ पक्ष रहा, उनका इतिहास लिखा गया. इस कारण सत्ता से बाहर रहने वाले सभी सामाजिक घटकों को इतिहास में अदृश्य कर दिया गया गया और लोगों ने समझा बस यही इतिहास है.

 

19 वीं सदी में इंग्लैण्ड के अधीन भारत एक नई अंगड़ाई ले रहा था. जो अपनी सांस्कृतिक विरासत से सीख लेकर आगे बढ़ रहा था. स्वामी दयानंद सरस्वती, राजा राम मोहन रॉय, समेत अनेक  सुधारक पुनर्जागरणवादी, रूढ़िवादियों पर प्रहार करने के लिए संस्कृत कृतियों-शास्त्रों को हथियार बनाकर मैदान में आये इन्ही इतिहास के पुरोधाओं में एक योद्धा थे स्वामी श्रद्धानन्द जी. राष्ट्र में क्रांति के अग्रदूतों में इस विषय में किये गये अध्ययन में सर्वाधिक चर्चित राष्ट्रवादी कृतिव्य धनी थे स्वामी श्रद्धानन्द जी, जिन्होंने सामाजिक संरचना के भीतर और पितृसत्तात्मक अधीनता के तहत रह रही महिलाओं की शिक्षा से लेकर उनकी भूमिका को लेकर मुखर हुए, धर्म के क्षेत्र में छुआछूत, जातिवाद आदि पर प्रहार किया, साथ ही युवाओं में राष्ट्र के प्रति चेतना को जगाया. लेकिन इनका इतिहास कहाँ गया? सही बात तो यह है भारत में छोटी कक्षाओं में सामाजिक अध्ययन के आवरण में इतिहास को ही गायब कर दिया गया है. जिनका जिक्र तक नहीं होता. अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि इतिहास के अंधेरे कोनों की हम खुदाई करें और इन वीरों, महापुरुषों की सही तस्वीरों को सामने लायें. जिन्होंने अपना सर्वस्व देश, जाति और धर्म के लिए बलिदान कर दिया.

 

स्वामी श्रद्धानंद के बचपन का नाम मुंशीराम था. वे पढने में बहुत मेधावी, परन्तु बड़े ही उदंड स्वभाव के थे. पिता जी नानकचंद बरेली में पुलिस इंस्पेक्टर थे! बालक के नास्तिक होने के कारण पिता जी बड़े ही असहज महसूस करते थे. उसी समय महर्षि दयानंद सरस्वती बरेली पधारे. पिता जी इनको उनके प्रवचन के लिए लेकर गए. उनके उपदेशों को सुनकर ये प्रभावित ही नहीं हुए बल्कि उनके प्रति श्रद्धा भाव उत्पन्न हो गया.  उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा, जिससे नास्तिकता भी समाप्त हो गयी और उनके मन में पुनर्जन्म के प्रति जो अनास्था थी वह भी समाप्त हो गयी और आर्यसमाज के निकट आ गए! पढाई पूर्ण करने के बाद उन्होंने वकालत के साथ आर्य समाज के जालंधर जिला अध्यक्ष के रूप में अपना सार्बजनिक जीवन प्रारम्भ किया.

 

वे महान क्रन्तिकारी देश भक्त संत थे. उन्होंने वेदों के प्रचार और वैदिक साहित्य के लिए गुरुकुलों की स्थापना की, देश की आजादी हेतु हजारो क्रांतिकारियों की श्रृंखला खडी की! वे देश की आजादी के अग्रणी नेता थे गाँधी जी को महात्मा की उपाधि देने वाले वही थे! वैदिक धर्म, वैदिक संस्कृति, और आर्य जाति की रक्षा के लिए, मरणासन्न अवस्था से उसे पुनः प्राणवान, गतिवान बनाकर उसे सर्बोच्च शिखर पर पहुचाने हेतु आर्य समाज ने सैकड़ों बलिदान दिए है, उसमे प्रथम पंक्ति के प्रथम पुष्प स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती थे.

 

लार्ड मैकाले के द्वारा प्रतिपादित शिक्षा पद्धति का विरोध करते हुए स्वामी श्रद्धानंद जी ने गुरुकुल पद्धति का  à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚भ करके देश में पुनः वैदिक शिक्षा को सम्बल प्रदान कर महर्षि दयानंद द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतो को प्रचार-प्रसार व कार्यरूप में परिणत किया, वेद और आर्य ग्रंथो के आधार पर जिन सिद्धांतो का प्रतिपादन किया था उन सिद्धांतो को कार्य रूप में लाने का श्रेय स्वामी श्रद्धानंद जी को ही है, गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना, अछूतोद्धार, शुद्धि, सद्धर्म प्रचार पत्रिका द्वारा धर्म प्रचार, सत्य धर्म के आधार पर साहित्य रचना, वेद पढने व पढ़ाने की व्यवस्था करना, धर्म के पथ पर अडिग रहना, आर्य भाषा के प्रचार तथा उसे जीवको -पार्जन की भाषा बनाने का सफल प्रयास, आर्य जाति की उन्नति के लिए हर प्रकार से प्रयास करना आदि ऐसे कार्य हैं जिनके फलस्वरुप स्वामी श्रद्धानंद अनंत काल के लिए अमर हो गए, उनका सर्वाधिक महानतम जो कार्य था, वह शुद्धि सभा का गठन जहाँ-जहाँ आर्य समाज था वहाँ-वहाँ शुद्धि सभा का गठन कराया और शुद्धि - आन्दोलन के द्वारा सोया हुआ भारत जागने लगा! कहते हैं जिस देश का नौजवान खड़ा हो जाता है वह देश दौड़ने लगता है! सच ही स्वामी जी ने हजारों देश भक्त नौजवानों को खड़ा कर दिया था !

 

स्वामी श्रद्धानंद जी ने बलात् हिन्दू से मुसलमान बने लोगों को पुनः हिन्दू धर्म में शामिल कर आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के द्वारा शुरू की परंपरा को पुनर्जीवित किया और समाज में यह विश्वास पैदा किया कि जो किसी भी कारण अपने धर्म से पतित हुए हुए हैं वे सभी वापस अपने हिन्दू धर्म में आ सकते हैं ! फलस्वरूप देश में हिन्दू धर्म में वापसी के वातावरण बनने से लहर सी आ गयी! राजस्थान के मलकाना क्षेत्र के हजारों लोगों की घर वापसी उन्हें भारी पड़ी,  जब महान् सिद्धान्तों पर आधारित सांस्कृतिक धरातल पर उन्हें कोई पराजित नहीं कर सका तब 23  दिसंबर 1926  को एक धर्मांध मुस्लिम युवक अब्दुल रशीद ने उन्हें गोली मारकर हत्या कर दी! वे अमर होकर आज भी हमारे प्रेरणा श्रोत बने हुए हैं, आइये उनके उद्देश्यो, उनके विचारों पर चल कर उनको श्रद्धांजलि दें. तभी इतिहास के इस अँधेरे कोने में प्रकाश जगमग दिखाई देगा.

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