तà¥à¤°à¥ˆà¤¤à¤µà¤¾à¤¦ का सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤
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Naveen AryaDate
04-Jan-2018Category
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RajeevUpload Date
04-Jan-2018Download PDF
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तà¥à¤°à¥ˆà¤¤à¤µà¤¾à¤¦ का सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤
à¤à¤• यà¥à¤µà¤• बैठे - बैठे आईने में अपने ही आपको निहार रहा था,निहारते ही जा रहा था, घंटों हो गठलेकिन उसकी आà¤à¤–ें आईने से अलग हो ही नहीं रही थी ।पहली नज़र में तो मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ लगा कि यह चेहरे को कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ देखता रहता है ! आजकल के यà¥à¤µà¤¾ बस अपने चेहरे के पीछे ही लगे रहते हैं, इसी को सजाने संवारने में ही सारा दिन तो कà¥à¤¯à¤¾, कà¥à¤› लोग तो सारा जीवन ही बिता देते हैं। लेकिन उस यà¥à¤µà¤• के दिमाग में कà¥à¤› और ही चल रहा था, वो यà¥à¤µà¤• अनà¥à¤¯ यà¥à¤µà¤•à¥‹à¤‚ से बिलकà¥à¤² अलग ही सोच रखनेवाला था । à¤à¤•à¤¾-à¤à¤• मैं चौंक गया जब उसने मà¥à¤à¤¸à¥‡ यह पूछा कि आचारà¥à¤¯ जी ! आखिर मैं कौन हूठ? कà¥à¤¯à¤¾ मैं आईने में जो दिख रहा हूठयही हूठ? कà¥à¤¯à¤¾ मैं अपने आप में ही हूठया किसी ने मà¥à¤à¥‡ बनाया है ? यà¥à¤µà¤• के इन सामानà¥à¤¯ से सवालों में बहà¥à¤¤ ही गूॠरहसà¥à¤¯ छिपा हà¥à¤† था। इन पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ पर विचार करने से à¤à¤• बात समठमें आई कि हमें तीन चीजों के बारे में जानना या विचार करना बहà¥à¤¤ ही जरà¥à¤°à¥€ है, पहला- मैं कौन हूठ? दूसरा- ये जो शरीर दिख रहा है, यह कौन है ? तीसरा- इस शरीर को रंग–रूप देनेवाला, बनाने वाला कौन है ?
उस यà¥à¤µà¤• की जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ से मेरा मन à¤à¥€ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हो गया और मैं अपने आप से ही यह पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ करने लगा कि आखिर इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की बातें कितने लोगों के मन में आती हैं ? कà¥à¤¯à¤¾ उस यà¥à¤µà¤• के मन में जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° आइना देखते समय यह विचार आया ठीक à¤à¤¸à¥‡ ही सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को विचार नहीं करने चाहिà¤, कà¥à¤¯à¤¾ इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के सवाल मन में नहीं लाने चाहिठ। यदि हर वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के मन में इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो जाये जिसको कि शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ शबà¥à¤¦ में ‘आतà¥à¤®à¤à¤¾à¤µ-à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾’ कहा जाता है ।अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ केवल अपने असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ से समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¤ à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾.विचार या चिनà¥à¤¤à¤¨ à¤à¥€ यदि हम करें तो हमारे मन में उठने वाले इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की अनेक शंकाओं का निवारण तथा जीवन में à¤à¥€ होने वाली अनेक समसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का समाधान हो सकता है ।
तो अंत में इन तीन चीजों को जानना हमारे लिठअतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ आवशà¥à¤¯à¤• है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ से ही हमारा तथा सारे संसार का वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° वा वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° चल रहा है । इन तीनों को जाने बिना कोई à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ नितांत सà¥à¤–ी नहीं हो सकता । तो ये तीन चीजें कौन सी हैं ? पहली है – मैं अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जीवातà¥à¤®à¤¾, दूसरी है – यह शरीर अथवा यह शरीर जिससे बना है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿, और तीसरी है – जिसने यह शरीर बनाया अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ ईशà¥à¤µà¤° ।वासà¥à¤¤à¤µ में देखा जाये तो पà¥à¤°à¥‡ संसार में ये तीन चीजें ही हैं , इन से अतिरिकà¥à¤¤ कà¥à¤› और है ही नहीं, जिनको कि जानना आवशà¥à¤¯à¤• हो ।
तीन पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पदारà¥à¤¥ होते हैं पहला साधà¥à¤¯- अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सिदà¥à¤§ करने योगà¥à¤¯ अथवा पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने योगà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥ जो कि हमारा लकà¥à¤·à¥à¤¯ या गनà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ होता है, दूसरा है साधक- अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ साधà¥à¤¯ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने वाला वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ और तीसरा है साधन- जिसकी सहायता से साधà¥à¤¯ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया जाता है । हम यह अनà¥à¤à¤µ करते हैं कि कोई à¤à¥€, कà¤à¥€ à¤à¥€ लेश मातà¥à¤° à¤à¥€ दà¥à¤ƒà¤– कि इचà¥à¤›à¤¾ नहीं करता किनà¥à¤¤à¥ पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿ सदा सà¥à¤– की ही कामना करता है । इससे जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि हमारा लकà¥à¤·à¥à¤¯ सà¥à¤– पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ ही है और ईशà¥à¤µà¤° के सà¥à¤– सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª और सà¥à¤– पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¤à¤¾ होने से वह सà¥à¤– हमें केवल ईशà¥à¤µà¤° से ही पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो सकता है अतः ईशà¥à¤µà¤° ही हमारा लकà¥à¤·à¥à¤¯ अथवा साधà¥à¤¯ है। हम सà¥à¤µà¤¯à¤‚ सà¤à¥€ जीवातà¥à¤®à¤¾ साधक हैं जो कि सà¥à¤– के लिठपà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨à¤¶à¥€à¤² हैं और पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ हमारे लकà¥à¤·à¥à¤¯ कि सिदà¥à¤§à¤¿ में सहायक होने से साधन है। इन तीनों सतà¥à¤¤à¤¾à¤“ं में à¤à¥‡à¤¦ यह है कि ईशà¥à¤µà¤° और जीव चेतन ततà¥à¤¤à¥à¤µ हैं अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ गà¥à¤£ यà¥à¤•à¥à¤¤ हैं और पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ जड़ ततà¥à¤¤à¥à¤µ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ रहित है । ईशà¥à¤µà¤° सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž है और जीवातà¥à¤®à¤¾ अलà¥à¤ªà¤œà¥à¤ž है । पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ और जीवातà¥à¤®à¤¾ आननà¥à¤¦ से रहित हैं तथा ईशà¥à¤µà¤° ही आननà¥à¤¦ से यà¥à¤•à¥à¤¤ है। ईशà¥à¤µà¤° सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• है, जीवातà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ à¤à¤•à¤¦à¥‡à¤¶à¥€ हैं और पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ कà¥à¤› सीमा तक फैली हà¥à¤ˆ है । इन तीन पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ को ‘ तà¥à¤°à¥ˆà¤¤ ’ कहते हैं और इनके असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ वा विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ रूप सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त को ही तà¥à¤°à¥ˆà¤¤à¤µà¤¾à¤¦ का सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ कहा जाता है। उस यà¥à¤µà¤• को जो मैंने समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ था, आइये हम à¤à¥€ इस तà¥à¤°à¥ˆà¤¤à¤µà¤¾à¤¦ के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ को जानने-जनाने व समà¤à¤¨à¥‡-समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ का पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ करते हैं ।
सबसे पहले हम सà¥à¤µà¤¯à¤‚ से ही पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ करते हैं । हम दिन à¤à¤° के वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° में ‘ मैं ’ शबà¥à¤¦ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— अनेकों बार करते हैं लेकिन अनेक लोगों को यह पता ही नहीं होता कि ‘मैं कौन हूऒ - ?। मैं – कहने से हम à¤à¤¸à¤¾ मानते हैं कि यह दृशà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ शरीर ही है जिसके साथ हम ‘ मैं ’ का वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करते हैं ।जैसे कि मैं मोटा हूठ– पतला हूà¤, मैं गोरा हूठ– कला हूà¤, मैं लमà¥à¤¬à¤¾ हूठ– नाटा हूठइतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ । हमें यह वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होना चाहिठकि मैं – रूप सतà¥à¤¤à¤¾ का सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª कà¥à¤¯à¤¾ है ? मैं शबà¥à¤¦ किस वसà¥à¤¤à¥ का वाचक है ? आज कल के वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• कहलाने वाले बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤œà¥€à¤µà¥€ वरà¥à¤— à¤à¥€ à¤à¤²à¥‡ ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन को सरल- सà¥à¤—म बनाने के लिठअनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के संसाधनों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ व खोज कर लिया हो परनà¥à¤¤à¥ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ के विषय में इनको लेश मातà¥à¤° à¤à¥€ वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं है। जब हम किसी वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ से पूछते हैं कि आप कौन हैं- ? तो इसके उतà¥à¤¤à¤° में वह यह बताता है कि मैं अमà¥à¤• नाम का वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ हूà¤, जैसे कि मैं देवदतà¥à¤¤ हूà¤, मैं यजà¥à¤žà¤¦à¤¤à¥à¤¤ हूठइतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ अथवा यह बताता है कि मैं डाकà¥à¤Ÿà¤° हूà¤, मैं शिकà¥à¤·à¤• हूà¤, मैं मंतà¥à¤°à¥€ हूà¤, मैं वकील हूà¤, मैं इनà¥à¤œà¥€à¤¨à¤¿à¤¯à¤° हूà¤, इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿à¥¤ इससे यह जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि हम शरीर को ही मैं मानकर समसà¥à¤¤ वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° कर रहे हैं ।
इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का à¤à¤• पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी के जीवन में à¤à¥€ देखने में आता है जब सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी ने मथà¥à¤°à¤¾ में दंडी गà¥à¤°à¥ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विरजानंद जी का दरवाज़ा खटखटाया तो अनà¥à¤¦à¤° से आवाज़ आई कि- ‘आप कौन हैं’ - ? तब सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ जी का बड़ा ही मारà¥à¤®à¤¿à¤• व सार-गरà¥à¤à¤¿à¤¤ उतà¥à¤¤à¤° था कि – ‘यही तो जानने आया हूठकि- मैं कौन हूऒ । वासà¥à¤¤à¤µ में मैं कोई दृशà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ शरीर नहीं हूठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि मृतà¥à¤¯à¥ के समय à¤à¥€ यह दृशà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ शरीर तो विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ रहता ही है परनà¥à¤¤à¥ ‘मैं’ कहने वाला कोई नहीं रहता । यदि मैं शरीर होता तो मृतà¥à¤¯à¥ के बाद à¤à¥€ मैं - मेरे का वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° कर लेता लेकिन à¤à¤¸à¤¾ होता नहीं है ।यदि इस शरीर से कोई पृथक ततà¥à¤¤à¥à¤µ को हम सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° नहीं करते तो इस संसार में पाप-पà¥à¤£à¥à¤¯,धरà¥à¤®-अधरà¥à¤®,नà¥à¤¯à¤¾à¤¯-अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯,आदि वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° का कोई मतलब ही नहीं रह जाता, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह शरीर तो नषà¥à¤Ÿ ही हो जायेगा।
जब हम कोई à¤à¥€ परोपकार का कारà¥à¤¯ करते हैं अथवा à¤à¤• सैनिक जब अपने देश के लिठअपना पà¥à¤°à¤¾à¤£ तक नà¥à¤¯à¥‹à¤šà¥à¤›à¤¾à¤µà¤° कर देता है तो वह इस सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ के आधार पर ही कारà¥à¤¯ करता है कि मैं नितà¥à¤¯ हूà¤,नषà¥à¤Ÿ होने वाला नहीं हूà¤,आगे à¤à¥€ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ रहूà¤à¤—ा और इन पà¥à¤£à¥à¤¯ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के फल सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª मà¥à¤à¥‡ अगले जनà¥à¤® में सà¥à¤– तथा सà¥à¤– के साधन पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होंगे ।इस सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ के विपरीत यदि हम सब नषà¥à¤Ÿ ही हो जायेंगे तो कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ à¤à¤²à¤¾ कोई वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤£à¥à¤¯ या धरà¥à¤®à¤¾à¤šà¤°à¤£ करना चाहेगा। सांखà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° महरà¥à¤·à¤¿ कपिल जी कहते हैं कि “शरीरादिवà¥à¤¯à¤¤à¤¿à¤°à¤¿à¤•à¥à¤¤à¤ƒ पà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥” (सांखà¥à¤¯.-1-104),अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सà¥à¤¥à¥‚ल शरीर से लेकर सूकà¥à¤·à¥à¤® पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ परà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ जितने à¤à¥€ जड़ (अचेतन) पदारà¥à¤¥ हैं उन सब से सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ पृथक ततà¥à¤¤à¥à¤µ है पà¥à¤°à¥à¤· जीवातà¥à¤®à¤¾ । इससे पता चलता है कि मैं-मेरा का वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करने वाला इस शरीर से कोई à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ ही ततà¥à¤¤à¥à¤µ है। न मैं शरीर हूà¤, न मैं पà¥à¤°à¥à¤· हूà¤, न मैं सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ हूà¤, न मैं बालक हूà¤, न मैं वृदà¥à¤§ हूà¤, न मैं गोरा हूà¤, न मैं काला हूà¤, न मैं मोटा हूà¤, न मैं पतला हूà¤, इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° समसà¥à¤¤ शारीरिक लकà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ से रहित हूà¤à¥¤ मैं à¤à¤• चेतन सतà¥à¤¤à¤¾ हूठजो कि सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के विषयों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ करने में समरà¥à¤¥ है। मैं आतà¥à¤®à¤¾ ही हूठ।
यह न केवल दरà¥à¤¶à¤¨, उपनिषदॠऔर वेद आदि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का ही पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¥à¤¯ विषय रहा है बलà¥à¤•à¤¿ सदा से ऋषि- मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का, विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥-मनीषियों का à¤à¥€ जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ व चिनà¥à¤¤à¤¨-मनन का केनà¥à¤¦à¥à¤°à¤à¥‚त विषय रहा है। शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¦à¥ à¤à¤¾à¤—वत गीता में आतà¥à¤®à¤¾ के विषय में कहा है कि – नैनं छिनà¥à¤¦à¤¨à¥à¤¤à¤¿ शसà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿ नैनं दहति पावकः।न चैनं कà¥à¤²à¥‡à¤¦à¤¯à¤¨à¥à¤¤à¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥‹ न शोषयति मारà¥à¤¤à¤ƒà¥¤(गीता 2.23) इसका अरà¥à¤¥ है आतà¥à¤®à¤¾ को न किसी असà¥à¤¤à¥à¤°-शसà¥à¤¤à¥à¤° से काटा जा सकता है, न ही उसको अगà¥à¤¨à¤¿ जला सकती है, जल उसको न à¤à¤¿à¤—ो सकता है और न ही वायॠउसको सà¥à¤–ा सकती है । नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ दरà¥à¤¶à¤¨ में आतà¥à¤®à¤¾ के सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª के विषय में महरà¥à¤·à¤¿ गौतम जी ने कहा है कि ‘इचà¥à¤›à¤¾à¤¦à¥à¤µà¥‡à¤·à¤ªà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨à¤¸à¥à¤–दà¥à¤ƒà¤–जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¾à¤¨à¤¿ आतà¥à¤®à¤¨à¥‹ लिंगमिति’ (नà¥à¤¯à¤¾à¤¯- 1-1-10) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ इचà¥à¤›à¤¾, दà¥à¤µà¥‡à¤·=वैर, पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨=चेषà¥à¤Ÿà¤¾, सà¥à¤–-दà¥à¤ƒà¤–=इन का अनà¥à¤à¤µ करना, तथा जà¥à¤žà¤¾à¤¨ आदि सà¤à¥€ गà¥à¤£ आतà¥à¤®à¤¾ को पहचानने के लकà¥à¤·à¤£ हैं। इससे यह सिदà¥à¤§ होता है कि चेतन आतà¥à¤®à¤¾ à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ सतà¥à¤¤à¤¾ है जो कि à¤à¤• निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ मनà¥à¤·à¥à¤¯, पशà¥, पकà¥à¤·à¥€ आदि शरीर में रहता हà¥à¤† सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का संपादन करते रहता है और जिसके चले जाने से शरीर कोई काम का नहीं रहता।
अब हम शरीर के विषय में विचार करते हैं ।शरीर पांच à¤à¥‚तों से बना हà¥à¤† है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ ये à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• अथवा पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• है।यह शरीर तीन पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का होता है।à¤à¤• है सà¥à¤¥à¥‚ल शरीर,जो कि हाथ, पैर, शिर आदि दृशà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ पांच à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤•à¥€ है दूसरा है सूकà¥à¤·à¥à¤® शरीर, जो कि पांच जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯, पांच करà¥à¤®à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯, पांच तनà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾, मन, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿, और अहंकार, इन अठारह ततà¥à¤¤à¥à¤µà¥‹à¤‚ का समाहार है और तीसरा है कारण शरीर जो कि इस शरीर का मूल कारण सतà¥à¤¤à¥à¤µà¤—à¥à¤£, रजोगà¥à¤£ और तमोगà¥à¤£ का समाहार रूप है । अब इस शरीर को बनाने वाले के विषय में विचार करें । शरीर को देखने से ही जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि किसी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ ने ही इसको ये रूप-रंग पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करके बहà¥à¤¤ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° और आकरà¥à¤·à¤• बनाया है । जो वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ जिस पदारà¥à¤¥ को बनता है उसको उस पदारà¥à¤¥ विषयक सब पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होना आवशà¥à¤¯à¤• है । परिकà¥à¤·à¤£ से पता चलता है कि इस शरीर विषयक कà¥à¤› à¤à¥€ हमें जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं होता ।कौन सा यनà¥à¤¤à¥à¤° या पà¥à¤°à¥à¤œà¤¾ कहाठजोड़ा गया है,किस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° सà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤œà¤¿à¤¤ किया गया है अनà¥à¤¦à¤° कà¥à¤¯à¤¾-कà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ हो रही है इसका लेश मातà¥à¤° à¤à¥€ परिजà¥à¤žà¤¾à¤¨ हमें नहीं है। इससे पता चलता है कि हमसे à¤à¥€ कोई तीवà¥à¤° बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ है जो कि इन सब पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं को सà¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ बनाकर संचालित कर रहा है ।
यह à¤à¥€ हम अनà¥à¤à¤µ करते हैं कि चाहते हà¥à¤ à¤à¥€ हम अपनी इचà¥à¤›à¤¾ अनà¥à¤¸à¤¾à¤° कोई शरीर न धारण कर सकते हैं और न ही कोई फेर-बदल कर पाते हैं और न ही कोई आतंरिक कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं के ऊपर नियनà¥à¤¤à¥à¤°à¤£ कर पाते हैं। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° विचार करने से अनà¥à¤¤à¤¿à¤® में हम सà¥à¤µà¤¯à¤‚ से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ कोई दूसरी सतà¥à¤¤à¤¾ को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करने में विवश हो जाते हैं और उसी को हम ईशà¥à¤µà¤° नाम से समà¥à¤¬à¥‹à¤§à¤¨ करते हैं। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° समगà¥à¤° विशà¥à¤µ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ में ये तीन ही सतà¥à¤¤à¤¾ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ हैं। किसी à¤à¥€ विषय को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करने में यह आवशà¥à¤¯à¤• है कि वह पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ से सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§ होता हो । पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤ƒ पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤·, अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ और शबà¥à¤¦, इन तीन पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¬à¤² माना जाता है । तो आइये जानने का पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ करते हैं कि इन तीन पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के विषय में कà¥à¤¯à¤¾-कà¥à¤¯à¤¾ शबà¥à¤¦ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ उपलबà¥à¤§ हैं ।
वेदों में à¤à¤¸à¥‡ अनेक मनà¥à¤¤à¥à¤° उपलबà¥à¤§ हैं जिनसे यह सिदà¥à¤§ हो जाता है कि ये तीन पदारà¥à¤¥ सà¥à¤µà¤¤à¤ƒ सिदà¥à¤§ हैं। दà¥à¤µà¤¾ सà¥à¤ªà¤°à¥à¤£à¤¾ सयà¥à¤œà¤¾ सखाय समानं वृकà¥à¤·à¤‚ परिषषà¥à¤µà¤œà¤¾à¤¤à¥‡ तयोरनà¥à¤¯à¤ƒ पिपà¥à¤ªà¤²à¤‚ सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¥ अतà¥à¤¤à¤¿ अनशà¥à¤¨à¤¨à¥à¤¨à¤¨à¥à¤¯à¥‹ अà¤à¤¿à¤šà¤¾à¤•à¤¶à¤¿à¤¤à¥€ । इस मनà¥à¤¤à¥à¤° में दà¥à¤µà¤¾ सà¥à¤ªà¤°à¥à¤£à¤¾ शबà¥à¤¦ से दो चेतन ततà¥à¤¤à¥à¤µ को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किया गया है और उनमें से à¤à¤• पिपà¥à¤ªà¤²à¤‚ सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¥ अतà¥à¤¤à¤¿ से जीवातà¥à¤®à¤¾ को निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ किया गया है जो कि संसार में रहते हà¥à¤ à¤à¥‹à¤—ों को à¤à¥‹à¤—ता है और दूसरी à¤à¤• चेतन सतà¥à¤¤à¤¾ है ईशà¥à¤µà¤° जो कि अनशà¥à¤¨à¤¨à¥ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ à¤à¥‹à¤—ों को à¤à¥‹à¤— न करता हà¥à¤† अà¤à¤¿à¤šà¤¾à¤•à¤¶à¤¿à¤¤à¥€ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ केवल साकà¥à¤·à¥€ मातà¥à¤° रूप में देखते रहता है। इस मनà¥à¤¤à¥à¤° में वृकà¥à¤· शबà¥à¤¦ से तीसरी पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को लकà¥à¤·à¤¿à¤¤ किया गया है। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ इस मनà¥à¤¤à¥à¤° में तीनों पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किया गया है। ठीक à¤à¤¸à¥‡ ही बालादेकमणीयसà¥à¤•à¤®à¥à¤¤à¥ˆà¤•à¤‚ नैव दृशà¥à¤¯à¤¤à¥‡, ततः परिषà¥à¤µà¤œà¥€à¤¯à¤¸à¥€ देवता सा मम पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¥¤(अथरà¥à¤µ.10.8.25) इस पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ मनà¥à¤¤à¥à¤° में बालादेकं अणीयसà¥à¤•à¤‚ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ बाल से à¤à¥€ सूकà¥à¤·à¥à¤® कह के पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ किया है, ‘à¤à¤•à¤‚ नैव दृशà¥à¤¯à¤¤à¥‡’ शबà¥à¤¦ से जीवातà¥à¤®à¤¾ को निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤¿à¤¤ किया गया है और ‘देवता सा मम पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾’ शबà¥à¤¦ से ईशà¥à¤µà¤° को निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤¿à¤¤ किया गया है।
योग दरà¥à¤¶à¤¨ में à¤à¥€ तीन ततà¥à¤¤à¥à¤µà¥‹à¤‚ को पृथक पृथक सतà¥à¤¤à¤¾ वाला सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किया गया है जैसे कि – कà¥à¤²à¥‡à¤¶à¤•à¤°à¥à¤®à¤µà¤¿à¤ªà¤¾à¤•à¤¾à¤¶à¤¯à¥ˆà¤°à¤ªà¤°à¤¾à¤®à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿà¤ƒ पà¥à¤°à¥à¤·à¤µà¤¿à¤¶à¥‡à¤·à¤ƒ ईशà¥à¤µà¤°à¤ƒ (योगदरà¥à¤¶à¤¨-1-24)अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ अविदà¥à¤¯à¤¾ आदि पांच कà¥à¤²à¥‡à¤¶, सकाम करà¥à¤®, जनà¥à¤®-आयà¥-à¤à¥‹à¤— रूपी फल और संसà¥à¤•à¤¾à¤° आदि से यà¥à¤•à¥à¤¤ जीवातà¥à¤®à¤¾ होता है और इन सब से रहित ईशà¥à¤µà¤° होता है। ‘दà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾ दृशिमातà¥à¤° शà¥à¤¦à¥à¤§à¥‹à¤½à¤ªà¤¿ पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤ªà¤¶à¥à¤¯’ (योग सूतà¥à¤°) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जीवातà¥à¤®à¤¾ केवल दà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾ रूप है, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ वृतà¥à¤¤à¤¿ के अनà¥à¤°à¥‚प देखने वाला, शà¥à¤¦à¥à¤§ सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª है। और पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के विषय में कहा है कि – à¤à¥‚तेनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤•à¤‚ à¤à¥‹à¤—ापवरà¥à¤—ारà¥à¤¥à¤‚ दृशà¥à¤¯à¤‚ (योग सूतà¥à¤°) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ à¤à¥‚त और इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª वाली जीवातà¥à¤®à¤¾ को à¤à¥‹à¤— व अपवरà¥à¤— दिलाने वाली पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ होती है। इससे यह सिदà¥à¤§ होता है कि दरà¥à¤¶à¤¨ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ ने à¤à¥€ तà¥à¤°à¥ˆà¤¤à¤µà¤¾à¤¦ के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किया है। योगदरà¥à¤¶à¤¨ के à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° महरà¥à¤·à¤¿ वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जी ने à¤à¥€ तीनों की सतà¥à¤¤à¤¾ को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करते हà¥à¤ कहा है कि ‘अथ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¥à¤·à¤ƒ वà¥à¤¯à¤¤à¤¿à¤°à¤¿à¤•à¥à¤¤à¤ƒ कोऽयमॠईशà¥à¤µà¤°à¥‹ नाम इति’(योगसूतà¥à¤° अवतरणिका- 1-24 ) । अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ और जीवातà¥à¤®à¤¾ से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ यह तीसरा ईशà¥à¤µà¤° नामक पदारà¥à¤¥ कौन है ? इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° उपनिषदॠमें à¤à¥€ ऋषि ने कहा कि – अजामेकां लोहितशà¥à¤•à¥à¤²à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤£à¤¾à¤‚ बहà¥à¤µà¥€à¤ƒ पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ƒ सृजमानां सरूपाः, अजोहà¥à¤¯à¥‡à¤•à¥‹ जà¥à¤·à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤½à¤¨à¥à¤¶à¥‡à¤¤à¥‡ जहातà¥à¤¯à¥‡à¤¨à¤¾à¤‚ à¤à¥à¤•à¥à¤¤à¤à¥‹à¤—ामजोऽनà¥à¤¯à¤ƒà¥¤ (शà¥à¤µà¥‡à¤¤à¤¾à¤¶à¥à¤µà¥‡à¤¤à¤°à¥‹à¤ªà¤¨à¤¿à¤·à¤¦ – 4-5) । यहाठà¤à¥€ तीनों को अज अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ अनà¥à¤¤à¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ वाला कहा है ।
किसी à¤à¥€ पदारà¥à¤¥ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ में तीन कारण होना आवशà¥à¤¯à¤• है यथा निमितà¥à¤¤ कारण,उपादान कारण,और साधारण कारण। निमितà¥à¤¤ कारण वही होता है जो कि उस वसà¥à¤¤à¥ को बनाने वाला है, उपादान कारण वही है जिससे पदारà¥à¤¥ को बनाया जाता है और साधारण कारण वही होता है जो पदारà¥à¤¥ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ में सहायक होता है । जैसे कि घड़े की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ में कà¥à¤®à¥à¤à¤¾à¤° निमितà¥à¤¤ कारण,मिटà¥à¤Ÿà¥€ उपादान कारण और दणà¥à¤¡-चकà¥à¤° आदि साधारण कारण कहलाते हैं । इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ कि उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ में à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤° मà¥à¤–à¥à¤¯ निमितà¥à¤¤ कारण है, जीव साधारण निमितà¥à¤¤ है और पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ उपादान कारण है तथा दिशा,काल,आकाश आदि साधारण कारण कहलाते हैं । परनà¥à¤¤à¥ इन तीनों का कोई कारण उपलबà¥à¤§ नहीं होता अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ ये तीनों उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ ही नहीं होते अतः अनादि हैं और अविनाशी हैं।
हम सामानà¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° में à¤à¥€ देखते हैं कि à¤à¤• दà¥à¤•à¤¾à¤¨ को चलाने के लिये तीन चीजों कि महती आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ रहती है और वो तीन हैं दà¥à¤•à¤¾à¤¨à¤¦à¤¾à¤°,गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤• और सामान। यदि ये तीन चीजें न हों तो दà¥à¤•à¤¾à¤¨ चल ही नहीं सकती । जब à¤à¤• छोटी सी दà¥à¤•à¤¾à¤¨ की ही ये सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ है तो à¤à¤²à¤¾ इतनी बड़ी दà¥à¤•à¤¾à¤¨ यह संसार बिना तीन चीजों के कैसे चल सकता है? इस संसार रूपी दà¥à¤•à¤¾à¤¨ में à¤à¥€ दà¥à¤•à¤¾à¤¨à¤¦à¤¾à¤° तो है ईशà¥à¤µà¤°,गà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤• हैं हम सब जीवातà¥à¤®à¤¾à¤à¤‚ और सामान है यह पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿, इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° बिना इन तीनों के संसार à¤à¥€ नहीं चल सकता। à¤à¤¸à¥‡ अनेकों पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ उपलबà¥à¤§ होते हैं जिससे कि इन तीनों पदारà¥à¤¥ का असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करना अनिवारà¥à¤¯ हो जाता है ।जो कोई इन तीनों की सतà¥à¤¤à¤¾ को पृथक-पृथक सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° नहीं करते, जीवातà¥à¤®à¤¾ और ईशà¥à¤µà¤° की सतà¥à¤¤à¤¾ को à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ नहीं मानते अथवा पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ की सतà¥à¤¤à¤¾ को à¤à¥€ असत रूप या मिथà¥à¤¯à¤¾ रूप कहते हैं उनको इन शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ के आधार पर विशेष रूप से विवेचन करना चाहिठऔर वासà¥à¤¤à¤µà¤¿ï¿
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