वेद और चिकितà¥à¤¸à¤•
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Naveen AryaDate
04-Jan-2018Category
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HindiTotal Views
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RajeevUpload Date
04-Jan-2018Download PDF
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वेद और चिकितà¥à¤¸à¤•
जैसे कि हम सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ हैं, वेद समसà¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का अथाह सागर है । हम मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठआवशà¥à¤¯à¤• व उपयोगी सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ ईशà¥à¤µà¤° ने इस वेद में समाहित किया हà¥à¤† है । इसमें यदि गोता लगायेंगे तो विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के, अनà¥à¤¯-अनà¥à¤¯ विषयों से समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हमें पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता रहेगा । इसीलिठमहरà¥à¤·à¤¿ मनॠजी ने सतà¥à¤¯ ही कहा है कि “सरà¥à¤µ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤®à¤¯à¥‹ ही सः” । ईशà¥à¤µà¤° ने इस मनà¥à¤·à¥à¤¯ शरीर को बहà¥à¤¤ ही विचितà¥à¤°à¤¤à¤¾ के साथ निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया है । समà¥à¤à¤µà¤¤à¤ƒ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से इससे उतà¥à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿ और कà¥à¤› बन ही नहीं सकता था । समगà¥à¤° बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करने वाले ईशà¥à¤µà¤° की महिमा कहें या फिर यह पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ कि ही नà¥à¤¯à¥‚नता कहें कि इस शरीर को इतना सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°, वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ व सà¥à¤–-सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं से यà¥à¤•à¥à¤¤ बनाने के बाद à¤à¥€ इसमें अनेक दोष पाठजाते हैं ।
हम देखते हैं कि इस शरीर में सहसà¥à¤° पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के रोग उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो जाते हैं, चाहे कारण कà¥à¤› à¤à¥€ हो, चाहे हमारी अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ हो अथवा आहार-विहार में दोष हो परनà¥à¤¤à¥ परिणाम तो सामने ही है । इस शरीर में जब हजारों पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के रोग उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो जाते हैं तो शरीर की बहà¥à¤¤ बड़ी हानि à¤à¥€ होती है । हमारे समसà¥à¤¤ कारà¥à¤¯ रà¥à¤• जाते हैं, कारà¥à¤¯ करने की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ à¤à¥€ घट जाती है और शरीर दà¥à¤°à¥à¤¬à¤² व कà¥à¤·à¥€à¤£ हो जाता है, इससे हमें अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ दà¥à¤ƒà¤– à¤à¥€ होता है और हम मृतà¥à¤¯à¥ के अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ निकट पहà¥à¤à¤š जाते हैं तथा कà¤à¥€-कà¤à¥€ तो रोग की अधिकता से ही वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की मृतà¥à¤¯à¥ हो जाती है । उनसे बचना हमारा पà¥à¤°à¤¾à¤¥à¤®à¤¿à¤• करà¥à¤¤à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है । कहा à¤à¥€ गया है कि – “शरीरं खलॠधरà¥à¤® साधनं” अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ यह शरीर ही धरà¥à¤®à¤¾à¤šà¤°à¤£ करने का पà¥à¤°à¤®à¥à¤– साधन है । यदि हमें धरà¥à¤®, अरà¥à¤¥, काम और मोकà¥à¤· रूपी मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन का पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ चतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¯ को सिदà¥à¤§ करना है तो शरीर को अवशà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ रखना होगा । वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को सà¥à¤µà¤¯à¤‚ अपना चिकितà¥à¤¸à¤• होना चाहिठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ अपने शरीर को जितना समठसकता है उतना कोई और नहीं । हमें आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ रखना होगा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि ईशà¥à¤µà¤° की कृपा से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के माधà¥à¤¯à¤® से हमारे पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤“ं ने शरीर को सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ और दीरà¥à¤˜à¤¾à¤¯à¥ बनाने के लिठपà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• रोग के लिठअरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ उसी-उसी रोग के अनà¥à¤°à¥‚प हजारों पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की औषधियाठबनाई हैं ।
वेद में यह निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ à¤à¥€ किया गया है कि अलग-अलग रोगों के लिठअलग-अलग चिकितà¥à¤¸à¤•à¥‹à¤‚ को उस-उस विषयक विशेषजà¥à¤ž होना चाहिठ। वेद में चिकितà¥à¤¸à¤• के गà¥à¤£ व विशेषता और उसके करà¥à¤¤à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ वरà¥à¤£à¤¨ किया गया है । जैसे कि – “विपà¥à¤°à¤ƒ स उचà¥à¤¯à¤¤à¥‡ à¤à¤¿à¤·à¤—ॠरकà¥à¤·à¥‹à¤¹à¤¾à¤½à¤®à¥€à¤µà¤šà¤¾à¤¤à¤¨:” (ऋगà¥. 10.97.6) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ उतà¥à¤¤à¤® चिकितà¥à¤¸à¤• वह कहलाता है जो राकà¥à¤·à¤¸à¥‹à¤‚ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ रोग कृमियों का नाशक हो, रोगों को नषà¥à¤Ÿ करने वाला हो, जो समसà¥à¤¤ औषधियों का संगà¥à¤°à¤¹ करने वाला हो और अपने विषय का विपà¥à¤° अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ विशेषजà¥à¤ž हो । “सीरा: पततà¥à¤°à¤¿à¤£à¥€: सà¥à¤¥à¤¨ यदामयति निषà¥à¤•à¥ƒà¤¥” (ऋगà¥.10.97.9) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ चिकितà¥à¤¸à¤• को à¤à¤¸à¤¾ होना चाहिठकि वह रोगों के मूल कारणों को समà¤à¥‡ और उसको मूल से ही नषà¥à¤Ÿ कर देवे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि कारण के नषà¥à¤Ÿ होने से ही कारà¥à¤¯ à¤à¥€ नषà¥à¤Ÿ हो जायेगा । “ओषधी: पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥à¤šà¥à¤¯à¤µà¥: यतॠकिंच तनà¥à¤µà¥‹ रपः” (ऋगà¥. 10.97.10) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ चिकितà¥à¤¸à¤• औषधियों के माधà¥à¤¯à¤® से शरीर के सà¤à¥€ दोषों को बाहर निकाल देवे । “इमं मे अगदं कृत” (ऋ. 10.97.2) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ हमें अपने शरीर को रोग रहित बनाये रखना चाहिठ। “पà¥à¤° न आयूंषि तारिषत॔ (साम.184) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ हम इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की वायॠका सेवन करें जिससे फेफड़ा सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ रहे और हम दीरà¥à¤˜à¤¾à¤¯à¥ हों । चिकितà¥à¤¸à¤• à¤à¥€ हमें दीरà¥à¤˜à¤¾à¤¯à¥ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कराने वाला हो । “निषà¥à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ विहà¥à¤°à¥à¤¤à¤‚ पà¥à¤¨à¤ƒ” (साम.244) अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ चिकितà¥à¤¸à¤• à¤à¤¸à¤¾ पारंगत होवे कि शलà¥à¤¯à¤šà¤¿à¤•à¤¿à¤¤à¥à¤¸à¤¾ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ टूटी हडà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को जोड़ सके ।
चरक, सà¥à¤¶à¥à¤°à¥à¤¤ और अषà¥à¤Ÿà¤¾à¤‚गहृदय आदि गà¥à¤°à¤‚थों में à¤à¤¿à¤·à¤•à¥à¤ªà¤¾à¤¦ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ चिकितà¥à¤¸à¤• के गà¥à¤£-करà¥à¤®-सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ का अचà¥à¤›à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ किया गया है । वैदà¥à¤¯ शासà¥à¤¤à¥à¤° का जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¾ हो, अनेक बार रोगी, औषध-निरà¥à¤®à¤¾à¤£ और पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— का पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤·-दà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾ हो, समयानà¥à¤¸à¤¾à¤° उचित औषध का निरà¥à¤£à¤¯ करने में चतà¥à¤° हो, और आनà¥à¤¤à¤°à¤¿à¤• व बाहà¥à¤¯ रूप से पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ –निरà¥à¤®à¤²à¤¤à¤¾ रखने वाला हो । कोई à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ केवल शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ मातà¥à¤° से ही योगà¥à¤¯-वैदà¥à¤¯ नहीं हो सकता अपितॠउसे कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का होना à¤à¥€ अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ आवशà¥à¤¯à¤• है और उसे अपने शासà¥à¤¤à¥à¤° से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ अनà¥à¤¯ अनेक शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ होना चाहिठ। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से योगà¥à¤¯ चिकितà¥à¤¸à¤• सà¥à¤µà¤¯à¤‚ à¤à¥€ कà¤à¥€ रोगी नहीं होता और अनà¥à¤¯ लोगों का à¤à¥€ रोगोपचार करके रोगमà¥à¤•à¥à¤¤ व सà¥à¤––समृदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ समाज का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करके अपने चरम लकà¥à¤·à¥à¤¯ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने-कराने में समरà¥à¤¥ हो पाते हैं ।
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