सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में ईशà¥à¤µà¤° ने ही वेद के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किसने मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को वाणी-à¤à¤¾à¤·à¤¾ à¤à¤µà¤‚ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दियाâ€
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Manmohan Kumar AryaDate
24-Mar-2018Category
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24-Mar-2018Download PDF
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सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में ईशà¥à¤µà¤° ने ही वेद के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किसने मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को वाणी-à¤à¤¾à¤·à¤¾ à¤à¤µà¤‚ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दियाâ€
हमारा आज का संसार 1.96 अरब वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ तब असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में आया था जब सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ परमातà¥à¤®à¤¾ ने इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में पà¥à¤°à¤¥à¤®à¤µà¤¾à¤° अमैथà¥à¤¨à¥€ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किया था। मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ से पूरà¥à¤µ परमातà¥à¤®à¤¾ अनà¥à¤¨, ओषधियां और वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ तथा अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ कर चà¥à¤•à¥‡ थे। सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° शà¥à¤¦à¥à¤§ वायॠव जल à¤à¥€ उपलबà¥à¤§ था। चैतà¥à¤° शà¥à¤•à¥à¤² पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾ का अवसर था। इसके पà¥à¤°à¤¥à¤® दिन ही मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ होकर वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया गया था। परमातà¥à¤®à¤¾ ने मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की सृषà¥à¤Ÿà¤¿ यà¥à¤µà¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में की थी। सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ व पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की संखà¥à¤¯à¤¾ का अनà¥à¤ªà¤¾à¤¤ लगà¤à¤— समान था। परमातà¥à¤®à¤¾ से मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ हो जाने पर पहली आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ इन सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को वाणी व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ देने की थी। वाणी, à¤à¤¾à¤·à¤¾ तथा जà¥à¤žà¤¾à¤¨ देने के लिठमाता-पिता, शिकà¥à¤·à¤• अथवा आचारà¥à¤¯ की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ होती है। उस समय सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ यà¥à¤µà¤¾ थे परनà¥à¤¤à¥ वाणी, à¤à¤¾à¤·à¤¾ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ किसी को नहीं था। इन मà¥à¤¨à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ में अगà¥à¤¨à¤¿, वायà¥, आदितà¥à¤¯, अंगिरा व बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ नाम के पांच ऋषियों को à¤à¥€ परमातà¥à¤®à¤¾ ने उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किया था। यह जब उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ तो मनà¥à¤·à¥à¤¯ हà¥à¤ थे परनà¥à¤¤à¥ परमातà¥à¤®à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¥à¤® चार ऋषियों को à¤à¤•-à¤à¤• वेद का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया गया था। उसके बाद उन चार ऋषियों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ जी को सà¤à¥€ चारों वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ देने से यह सà¤à¥€ पांच यà¥à¤µà¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯ ऋषि कहलाये। जिन चार वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया गया था वह ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦, यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦, सामवेद और अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ थे।
यह लोग संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ नहीं जानते थे। अतः à¤à¤¾à¤·à¤¾, शबà¥à¤¦à¤¾à¤°à¥à¤¥, वेद मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ के अरà¥à¤¥ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ परमातà¥à¤®à¤¾ ने ही इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वेदमनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के पदारà¥à¤¥ सहित दिया था। वेद का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर ही यह ऋषि बोलने में समरà¥à¤¥ हà¥à¤ थे। वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर इन ऋषियों ने बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ जी को चारों वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ कराया। हमारा अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ है कि जब अगà¥à¤¨à¤¿ ऋषि ने बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ जी को ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ कराया था, तब वहां उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ वायà¥, आदितà¥à¤¯ व अंगिरा à¤à¥€ अवशà¥à¤¯ सà¥à¤¨ रहे होंगे। इन तीनों ऋषियों को à¤à¥€ ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हो गया था। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से à¤à¤• à¤à¤• करके इन पांचों ऋषियों को चारों वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हो गया। इन पांच ऋषियों ने अपना करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ समठकर उसका पालन करते हà¥à¤ शेष सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को शिकà¥à¤·à¤•, अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• व आचारà¥à¤¯ की à¤à¤¾à¤‚ति सà¤à¥€ वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ कराया था। à¤à¤¾à¤·à¤¾ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ इन ऋषियों ने पहले सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को करा दिया था जिससे यह अपने सà¤à¥€ वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° व विचारों का परसà¥à¤ªà¤° आदान पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने में समरà¥à¤¥ हो गये थे। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने पर यह सà¤à¥€ ऋषि व मनà¥à¤·à¥à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾, शबà¥à¤¦ व उनके वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° को जान सके थे। पूरी पृथिवी सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° खाली पड़ी होने के कारण कà¥à¤› कà¥à¤› मनà¥à¤·à¥à¤¯ आगे आगे बà¥à¤¤à¥‡ गये और वहां बसते रहे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वहीं पर रहना आरमà¥à¤ कर दिया था। जनसंखà¥à¤¯à¤¾ बà¥à¤¨à¥‡ पर उनकी सनà¥à¤¤à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ और आगे जाकर बसती रहीं और इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° विगत 1.96 अरब वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में इस सारी पृथिवी पर मनà¥à¤·à¥à¤¯ बस गये। महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल तक संसार के सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का à¤à¤• ही धरà¥à¤® वेद व वैदिक धरà¥à¤® था। कालानà¥à¤¤à¤° में किनà¥à¤¹à¥€à¤‚ कारणों से जहां जहां अविदà¥à¤¯à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ, वहां के मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ ने अपने बीच के दूसरों से कà¥à¤› अधिक बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ मनà¥à¤·à¥à¤¯ की शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं को ही धरà¥à¤® व परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ मानना आरमà¥à¤ कर दिया। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° दूसरे देशों में महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल के बाद मत व समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ आदि की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ व वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° हà¥à¤†à¥¤ महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल के बाद à¤à¤¾à¤°à¤¤ में à¤à¥€ अविदà¥à¤¯à¤¾ के कारण नाना मत-मतानà¥à¤¤à¤° उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ जिनमें पà¥à¤°à¤¥à¤® बौदà¥à¤§ मत, उसके बाद जैन मत ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शंकर दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¤¿à¤¤ अदà¥à¤µà¥ˆà¤¤ मत पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ में आया। इसके बाद तो मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की बाॠसी आ गई। इन सà¤à¥€ मतों की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं में नà¥à¤¯à¥‚नाधिक à¤à¥‡à¤¦ व अनà¥à¤¤à¤° थे। इन कारण से मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का संगठन à¤à¤‚ग हो गया और ईसा की आठवीं सदी से à¤à¤¾à¤°à¤¤ धीरे धीरे पतन की ओर बà¥à¤¤à¥‡ हà¥à¤ गà¥à¤²à¤¾à¤® हो गया।
सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ वेदों पर आधारित संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ थी। यह सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ आज के संसार के सà¤à¥€ लोगों के पà¥à¤°à¤¥à¤® पूरà¥à¤µà¤œ थे। संसार के सà¤à¥€ लोग इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ की सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‡à¤‚ हैं जो करोड़ों पीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ बाद आज की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ हैं। पà¥à¤°à¤¥à¤® मनà¥à¤·à¥à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ बोलते थे और बाद में लोगों के दूर दूर जाकर बसने से उनमें à¤à¤¾à¤·à¤¾ की वह शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¤à¤¾ न रही। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से अनेक पीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के गà¥à¤œà¤°à¤¨à¥‡ पर उनकी अनà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ बनती बिगड़ती व संशोधित होती रही। आज संसार में जितनी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं वह वेदों की संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ के ही विकारों के कारण से हैं। अनेक विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ ने संसार की à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के अनेक शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ को संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ का विकार बताया है और इसके उदाहरण à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किठहैं। आज जो à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं आज से सहसà¥à¤°à¥‹à¤‚ वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ बाद उनका सà¥à¤µà¤°à¥‚प कà¥à¤¯à¤¾ होगा, इसे जानना समà¥à¤à¤µ नहीं है परनà¥à¤¤à¥ अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ से कहा जा सकता है कि इनमें à¤à¥€ परिवरà¥à¤¤à¤¨ हो सकता है। इस सबके होने पर à¤à¥€ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ अपने पूरà¥à¤µ, वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ रूप में बनी रहेगी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इसका आधार अषà¥à¤Ÿà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€-महाà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ व निरà¥à¤•à¥à¤¤ के निरà¥à¤µà¤šà¤¨ आदि हैं। हमें लगता है कि जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° वेद के मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ व शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ तथा उनके अरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ में विकार व परिरà¥à¤µà¤¤à¤¨ नहीं हà¥à¤† इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ पर आधारित संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का विशेष परिवरà¥à¤¤à¤¨ नहीं होगा।
à¤à¤• पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ यह à¤à¥€ विचारणीय है कि यदि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में परमातà¥à¤®à¤¾ वेदों और इनकी à¤à¤¾à¤·à¤¾ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ न देता तो कà¥à¤¯à¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ कर उसका पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ कर सकते थे? हमें इसका उतà¥à¤¤à¤° यह मिलता है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ किसी à¤à¤¾à¤·à¤¾ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ नहीं कर सकते। à¤à¤¾à¤·à¤¾ में विकार होकर तो नई à¤à¤¾à¤·à¤¾ का आरमà¥à¤ सà¥à¤µà¤¤à¤ƒ व सà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤œà¤¿à¤¤ रूप से हो सकता है परनà¥à¤¤à¥ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में पà¥à¤°à¤¥à¤® à¤à¤¾à¤·à¤¾ का बनाना किसी मनà¥à¤·à¥à¤¯ व मनà¥à¤·à¥à¤¯ समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ के वश की बात नहीं है। संसार में समय समय पर इससे संबंधित कà¥à¤› पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— à¤à¥€ किठगये हैं परनà¥à¤¤à¥ सबका निषà¥à¤•à¤°à¥à¤· यही निकला है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ दूसरों से बिना सà¥à¤¨à¥‡ किसी शबà¥à¤¦ का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ à¤à¥€ नहीं कर सकते, à¤à¤¾à¤·à¤¾ बनाना तो बहà¥à¤¤ दूर की बात है। इसका कारण यह है कि à¤à¤¾à¤·à¤¾ के लिठवà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£, वाकà¥à¤¯ और शबà¥à¤¦ चाहियें। शबà¥à¤¦ अकà¥à¤·à¤°à¥‹à¤‚ से मिलकर नियमपूरà¥à¤µà¤• बनते हैं। अकà¥à¤·à¤°à¥‹à¤‚ की सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की धà¥à¤µà¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को अपने à¤à¥€à¤¤à¤° समेटे हà¥à¤ à¤à¤• वरà¥à¤£à¤®à¤¾à¤²à¤¾ होती है। उस वरà¥à¤£à¤®à¤¾à¤²à¤¾ का सबसे पहले निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करना आवशà¥à¤¯à¤• होता है। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में यदि परमातà¥à¤®à¤¾ à¤à¤¾à¤·à¤¾ और वेद का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ न देता तो यह मनà¥à¤·à¥à¤¯ सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ à¤à¤¾à¤·à¤¾ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से शूनà¥à¤¯ होते। उस अवसà¥à¤¥à¤¾ में वह परसà¥à¤ªà¤° बोल नहीं सकते थे। बोलने के लिठविचार चाहिये और विचार के लिठà¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ होती है। हम बिना à¤à¤¾à¤·à¤¾, जो कि पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ हमारी मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ होती है, उसमें विचार करते हैं। आदिकाल के मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के पास कोई à¤à¤¾à¤·à¤¾ न होने के कारण वह विचार नहीं कर सकते थे। जब विचार ही नहीं कर सकते थे तो वरà¥à¤£à¤®à¤¾à¤²à¤¾ के अकà¥à¤·à¤°, उनसे शबà¥à¤¦ और शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ से वाकà¥à¤¯ व वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ के नियमों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¤¾à¤·à¤¾ बनाना समà¥à¤à¤µ नहीं था। अतः यह सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करना पड़ता है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ को मानव शरीर, यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ व उसके सà¤à¥€ पदारà¥à¤¥, माता-पिता आदि जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° अपौरूषेय सतà¥à¤¤à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° की देन हैं, उसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° आंखों, कान, मà¥à¤¹à¤‚, जिहà¥à¤µà¤¾ आदि को à¤à¤¾à¤·à¤¾ में पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤ कराने के लिठमूल à¤à¤¾à¤·à¤¾ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ परमातà¥à¤®à¤¾ से ही पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤† था। यदि परमातà¥à¤®à¤¾ à¤à¤¾à¤·à¤¾ और वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ न देता तो मनà¥à¤·à¥à¤¯ आज तक बहरा व गूंगा होता और ईशà¥à¤µà¤°, जीवातà¥à¤®à¤¾ व अनà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का जो जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वेदों में व उसके बाद ऋषियों, जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने दिया है, वह à¤à¥€ न होता। मनà¥à¤·à¥à¤¯ होता à¤à¥€, इसमें à¤à¥€ सनà¥à¤¦à¥‡à¤¹ है।
à¤à¤¾à¤·à¤¾ और वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ मे परमातà¥à¤®à¤¾ से मिला, यह वेद, तरà¥à¤• व यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ आदि सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ से सिदà¥à¤§ है। संसार के सà¤à¥€ लोगों को इस सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करना चाहिये। इसलिठसà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करना चाहिये कि सतà¥à¤¯ को मानना और मनवाना मनà¥à¤·à¥à¤¯ का करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है। जो à¤à¤¸à¤¾ नहीं करता वह मनà¥à¤·à¥à¤¯ नहीं अपितॠपशॠशà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ का ही वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ कहा जा सकता है। इसके साथ हम यह à¤à¥€ कहना चाहते हैं कि सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ को ईशà¥à¤µà¤° व ऋषियों से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की रकà¥à¤·à¤¾ करनी चाहिये। पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ की विरासत होने से यह सबका धरà¥à¤® व करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है। सबको अपने करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ को जानकर उसका पालन करना अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ है। यदि नहीं करते तो à¤à¤¸à¥‡ लोगों का मनà¥à¤·à¥à¤¯ होकर à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के कारà¥à¤¯ न करने से यह सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¶à¤‚सनीय नही होगी। ओ३मॠशमà¥à¥¤
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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