और कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति की मशाल बन गये सरदार à¤à¤—त सिंह
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Rajeev ChoudharyDate
23-Mar-2018Category
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24-Mar-2018Download PDF
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और कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति की मशाल बन गये सरदार à¤à¤—त सिंह
जलियांवाला बाग में किशोरावसà¥à¤¥à¤¾ की दहलीज पर दसà¥à¤¤à¤• दे रहा वह (12 वरà¥à¤·à¥€à¤¯) सिख लड़का उस मैदान पर ठिठक कर खड़ा हो गया, जहां खून से लथपथ धरती की गंध à¤à¤• ही दिन पहले हà¥à¤ बरà¥à¤¬à¤° हतà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤¾à¤‚ड की गवाही दे रही थी। अपनी जेब से उसने à¤à¤• शीशी निकाली जिसे वह लहू-सनी मिटà¥à¤Ÿà¥€ à¤à¤°à¤•à¤° अपने साथ ले जाने के लिठलाया था। लड़का शाम को देर से घर पहà¥à¤‚चा। किशोर à¤à¤—त सिंह की उस दिन जैसे जिंदगी की दिशा ही बदल गई। उसी दिन से उसके खून में इंकलाब हिलोरें मारने लगा। उसी दिन से वह अपने पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ देश के लिठजान नà¥à¤¯à¥‹à¤›à¤¾à¤µà¤° करने के लिठवचनबदà¥à¤§ सिपाही बन गया और अंत में उसने अपना वचन निà¤à¤¾ दिया। कितने कम शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में वयोवृदà¥à¤§ लेखक पà¥à¤°à¥‹. मलविंदर सिंह वढैच ने सरदार à¤à¤—त सिंह के जीवन का उतà¥à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿ वरà¥à¤£à¤¨ कर डाला।
शहीद-à¤-आजम à¤à¤—त सिंह का जनà¥à¤® 28 सितमà¥à¤¬à¤°, 1907 को पंजाब के लायलपà¥à¤° जिला ;फैसलाबाद, पाकदà¥à¤§ के बंगा गांव में हà¥à¤† था। à¤à¤—त सिंह के दादा सरदार अरà¥à¤œà¥à¤¨ सिंह पहले सिख थे जो आरà¥à¤¯ समाजी बने। इनके तीनों सà¥à¤ªà¥à¤¤à¥à¤°-किशन सिंह, अजीत सिंह व सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ सिंह पà¥à¤°à¤¸à¤¿( सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ सेनानी थे। परिवार पर आरà¥à¤¯ समाज के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ के बारे में à¤à¤—त सिंह के छोटे à¤à¤¾à¤ˆ सà¥à¤µ. रणबीर सिंह ने à¤à¤• बार कहा था कि आरà¥à¤¯ समाज में मेरे दादा सà¥à¤µ. अरà¥à¤œà¥à¤¨ सिंह शामिल थे। फिर मेरे पिता सà¥à¤µ. किशन सिंह, चाचा सà¥à¤µ. अजीत सिंह को महातà¥à¤®à¤¾ हंसराज जी व लाला लाजपत राय के साथ आरà¥à¤¯ समाज का कारà¥à¤¯ करने का अवसर पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ रहा है। हमारे विचार और मानसिक उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ à¤à¥€ बड़ी हद तक आरà¥à¤¯ समाज की देन है। अनà¥à¤¯ बहà¥à¤¤ से उपकारों के लिठà¤à¥€ हम आरà¥à¤¯ समाज के ऋणी हैं।
à¤à¤—त सिंह के जीवन में कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी परिवरà¥à¤¤à¤¨ आने का à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़ा कारण था उनका लाहौर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ नेशनल कॉलेज में सनॠ1921 में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶à¥¤ 1923 में नेशनल कॉलेज में उनके छातà¥à¤° काल की à¤à¤• घटना बताते हà¥à¤ उनके गà¥à¤°à¥ जयचंदà¥à¤° विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤‚कार ने लिखा था कि à¤à¤—त सिंह की शादी उसके पिता सà¥à¤µ. किशन सिंह करना चाहते थे। लड़की शायद महाराजा रणजीत सिंह के खानदान में किसी धनी खानदान की थी। वह बहà¥à¤¤ सà¥à¤‚दर थी और बहà¥à¤¤-सा दहेज à¤à¥€ मिलने वाला था। à¤à¤—त सिंह मेरे पास आया और बोला, ‘मà¥à¤à¥‡ कहीं à¤à¥‡à¤œ दीजिà¤à¥¤’ मैंने कानपà¥à¤° में विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ जी के पास उसे à¤à¥‡à¤œà¤¾à¥¤ à¤à¤—त सिंह की शादी तो हà¥à¤ˆ पर कैसे हà¥à¤ˆ इसका वरà¥à¤£à¤¨ करते हà¥à¤ à¤à¤—त सिंह की शहादत के बाद उनके घनिषà¥à¤ मितà¥à¤° à¤à¤—वती चरण वोहरा की धरà¥à¤®à¤ªà¤¤à¥à¤¨à¥€ दà¥à¤°à¥à¤—ा à¤à¤¾à¤à¥€ ने, जो सà¥à¤µà¤¯à¤‚ à¤à¤• कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी वीरांगना थीं, कहा था, ‘‘फांसी का तखà¥à¤¤à¤¾ उसका मंडप बना, फांसी का फंदा उसकी वरमाला और मौत उसकी दà¥à¤²à¥à¤¹à¤¨à¥¤ à¤à¤—त सिंह ने मन ही मन सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को राषà¥à¤Ÿà¥à¤° पर कà¥à¤°à¥à¤¬à¤¾à¤¨ करने की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ कर ली थी, पर उनके परिजन उनकी शादी करना चाहते थे। à¤à¤—त सिंह के मितà¥à¤° विजय कà¥à¤®à¤¾à¤° सिनà¥à¤¹à¤¾ ने à¤à¤• बार उससे पूछा था कि,‘‘तà¥à¤® शादी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं करना चाहते?’’ तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दो टूक कहा, ‘‘मैं विधवाओं की संखà¥à¤¯à¤¾ नहीं बà¥à¤¾à¤¨à¤¾ चाहता।
à¤à¤—त सिंह मातà¥à¤° साà¥à¥‡ 23 वरà¥à¤· की अलà¥à¤ªà¤¾à¤¯à¥ में ‘शोषण à¤à¤µà¤‚ सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦’ के खिलाफ à¤à¤• वीर योदà¥à¤§à¤¾ व महान विचारक के रूप में लड़ते हà¥à¤ लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤¾ की चरम सीमा पर पहà¥à¤‚चे। वह अपने अमूलà¥à¤¯ जीवन को दांव पर लगाकर, अपने पà¥à¤°à¤¿à¤¯ देश के दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨ को ‘बेहाल’ और पीड़ित जनता को निहाल करने का à¤à¤°à¤¸à¤• पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करता है। इतना सब कà¥à¤› करने के बावजूद à¤à¤µà¤‚ à¤à¤°à¥€ जवानी में देश पर नà¥à¤¯à¥‹à¤›à¤¾à¤µà¤° होने वाला यह मतवाला देशà¤à¤•à¥à¤¤, अपने देशवासियों से अलविदा होते हà¥à¤ देखिठकà¥à¤¯à¤¾ कहता है, ‘मैं देश की जितनी सेवा करना चाहता था उसका हजारवां हिसà¥à¤¸à¤¾ à¤à¥€ नहीं कर सका।’
असेमà¥à¤¬à¤²à¥€ बम कांड के उपरानà¥à¤¤ आतà¥à¤®à¤¸à¤®à¤°à¥à¤ªà¤£ कर, à¤à¤—त सिंह ने बी.के. दतà¥à¤¤ के साथ 8 अपà¥à¤°à¥ˆà¤², 1929 को गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤°à¥€ दे दी। à¤à¤—त सिंह की गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤°à¥€ के बाद उन पर दिलà¥à¤²à¥€ व लाहौर की अदालतों में मà¥à¤•à¤¦à¥à¤¦à¤®à¤¾ चलाया गया। फलतः 12 जून, 1929 को उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ काले पानी का आजीवन कारावास व 7 अकà¥à¤¤à¥‚बर, 1930 को मृतà¥à¤¯à¥ दंड की सजा सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ गई। अंततः 23 मारà¥à¤š, 1931 को जब उनकी उमà¥à¤° मातà¥à¤° 23 साल, 5 मास व 25 दिन थी उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लाहौर सैंटà¥à¤°à¤² जेल में राजगà¥à¤°à¥ व सà¥à¤–देव के साथ सायं 7.33 पर शहीद कर दिया गया।
à¤à¤• सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ सेनानी के रूप में à¤à¤—त सिंह का योगदान à¤à¥€ अपने आप में अदà¥à¤à¥à¤¤ है। उदाहरणारà¥à¤¥ 8 अपà¥à¤°à¥ˆà¤², 1929 को गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤° होने से पूरà¥à¤µ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ संगà¥à¤°à¤¾à¤® की लगà¤à¤— पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• गतिविधियों में बà¥-चॠकर à¤à¤¾à¤— लिया। सनॠ1920 में जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शà¥à¤°à¥‚ किया उस समय à¤à¤—त सिंह मातà¥à¤° 13 वरà¥à¤· के थे और 1929 में जब गिरफà¥à¤¤à¤¾à¤° हà¥à¤ तो 22 वरà¥à¤· के यà¥à¤µà¤¾à¥¤ इन 9 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में à¤à¤—त सिंह की कहानी à¤à¤• सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ सेनानी के रूप में हमेशा देशवासियों के सीने में अमर रहेगी। à¤à¤¾à¤°à¤¤ मां की मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ के लिठअपने पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ को अमर बलिदान करने वाले शहीद à¤à¤—त सिंह को आरà¥à¤¯ समाज का शतà¥-शतॠनमन।
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