महरà¥à¤·à¤¿ दयानंद सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी के मानस पà¥à¤¤à¥à¤° थे शà¥à¤¯à¤¾à¤® जी कृषà¥à¤£ वरà¥à¤®à¤¾
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Rajeev ChoudharyDate
02-Apr-2018Category
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02-Apr-2018Download PDF
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महरà¥à¤·à¤¿ दयानंद सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ जी के मानस पà¥à¤¤à¥à¤° थे शà¥à¤¯à¤¾à¤® जी कृषà¥à¤£ वरà¥à¤®à¤¾
मारà¥à¤š 1857 देश को अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ शाशन से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ दिलाने के लिठकà¥à¤°à¤¾à¤‚ति का बिगà¥à¤² बज चà¥à¤•à¤¾ था। कई सौ सालों से गà¥à¤²à¤¾à¤®à¥€ की बेड़ियों में जकड़ी à¤à¤¾à¤°à¤¤ माता को सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° कराने के लिठकà¥à¤°à¤¾à¤‚तिवीर अपने पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ की आहà¥à¤¤à¤¿ हà¤à¤¸à¤¤à¥‡-खेलते दे रहे थे। उसी समय 4 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर 1857 को गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ के कचà¥à¤› जिले के मांडवी गांव में à¤à¤• बचà¥à¤šà¥‡ की किलकारी गूंजी जिनका नाम था शà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤œà¥€ कृषà¥à¤£ वरà¥à¤®à¤¾ किसे पता था कि आज पैदा होने वाला यह ननà¥à¤¹à¤¾ सा बालक आने वाले समय में देश के कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारियों के गà¥à¤°à¥ के रूप में जाना जायेगा।
पिता की असमय मृतà¥à¤¯à¥ के बाद उनकी पढाई मà¥à¤‚बई के विलà¥à¤¸à¤¨ काॅलेज से हà¥à¤ˆà¥¤ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ से उनका नाता यहीं से जà¥à¥œà¤¾, जो बाद में आॅकà¥à¤¸à¤«à¥‹à¤°à¥à¤¡ यूनीवरà¥à¤¸à¤¿à¤Ÿà¥€ में संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ पà¥à¤¾à¤¨à¥‡ के काम आया। उनकी पतà¥à¤¨à¥€ à¤à¤¾à¤¨à¥à¤®à¤¤à¤¿ à¤à¤• समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ परिवार से थीं, इसी दौरान उनका समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयानंद सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ से हà¥à¤† और वे उनके शिषà¥à¤¯ बन गà¤à¥¤ पूरे देश में शà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤œà¥€ ने उनकी शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं को पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ करने के लिठदौरे किà¤à¥¤ कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी गतिविधियों के माधà¥à¤¯à¤® से आजादी के संकलà¥à¤ª को गतिशील करने वाले शà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤œà¥€ कृषà¥à¤£ वरà¥à¤®à¤¾ पहले à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ थे, जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आॅकà¥à¤¸à¤«à¥‹à¤°à¥à¤¡ से à¤à¤®.à¤. और बैरिसà¥à¤Ÿà¤° की उपाधियां मिली थी। यहां तक कि काशी में उनका à¤à¤¾à¤·à¤£ सà¥à¤¨à¤•à¤° काशी के पंडितों ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पंडित की उपाधि दे दी, à¤à¤¸à¥€ उपाधि पाने वाले वे पहले गैर बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ थे।
मातà¥à¤° बीस वरà¥à¤· की आयॠसे ही वे कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी गतिविधियों में हिसà¥à¤¸à¤¾ लेने लगे थे। शà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤œà¥€ कृषà¥à¤£ वरà¥à¤®à¤¾ à¤à¤¾à¤°à¤¤ माता के उन वीर सपूतों में से à¤à¤• हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपना सारा जीवन देश की आजादी के लिठसमरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ कर दिया था। इंगà¥à¤²à¥ˆà¤‚ड से पà¥à¤¾à¤ˆ कर वापस à¤à¤¾à¤°à¤¤ आकर कà¥à¤› समय के लिठवकालत की और फिर कà¥à¤› राजघरानों में दीवान के तौर पर कारà¥à¤¯ किया पर बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ सरकार के अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ से तà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ होकर वह à¤à¤¾à¤°à¤¤ से इंगà¥à¤²à¥ˆà¤£à¥à¤¡ चले गये। लंदन में इंडिया हाउस के नाम से à¤à¤• à¤à¤µà¤¨ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया जो कà¤à¥€ कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारियों का तीरà¥à¤¥à¤¸à¥à¤¥à¤² हà¥à¤† करता था। वीर सावरकर से लेकर à¤à¥€à¤•à¤¾à¤œà¥€ कामा तक और à¤à¤¾à¤ˆ परमानंद से लेकर करà¥à¤œà¤¨ वाइली को लंदन में ही मारने वाले मदनलाल धींगरा तक हर उस कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी को इंडिया हाउस में पनाह मिली जो देश की आजादी का सपना संजोये हà¥à¤¯à¥‡ था। उस वकà¥à¤¤ यह संसà¥à¤¥à¤¾ कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ के जमावड़े के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾à¤¸à¥à¤°à¥‹à¤¤ सिदà¥à¤§ हà¥à¤ˆà¥¤
शà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤œà¥€ कृषà¥à¤£ वरà¥à¤®à¤¾ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयानंद सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ ही नहीं बलà¥à¤•à¤¿ उनके कटà¥à¤Ÿà¤° à¤à¤•à¥à¤¤ थे। 1918 के बरà¥à¤²à¤¿à¤¨ और इंगà¥à¤²à¥ˆà¤‚ड में हà¥à¤ विदà¥à¤¯à¤¾ समà¥à¤®à¥‡à¤²à¤¨à¥‹à¤‚ में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤¾à¤°à¤¤ का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿à¤¤à¥à¤µ किया था। 1905 में लारà¥à¤¡ करà¥à¤œà¤¨ की जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के विरà¥( संघरà¥à¤·à¤°à¤¤ रहे। इसी वरà¥à¤· इंगà¥à¤²à¥ˆà¤‚ड से मासिक दा इंडियन सोशिओलाॅजिसà¥à¤Ÿ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ किया, जिसका पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ बाद में जिनेवा में à¤à¥€ किया गया। 1905 में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ को लेकर इंडियन होम रूल सोसायटी की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की थी।
इसके लिठशà¥à¤¯à¤¾à¤® जी कृषà¥à¤£ वरà¥à¤®à¤¾ ने बाकायदा कई फाॅलोशिप à¤à¥€ शà¥à¤°à¥‚ कीं। à¤à¤¸à¥€ ही à¤à¤• शिवाजी फाॅलोशिप के जरिठवीर सावरकर à¤à¥€ लंदन हाउस में रहने आà¤à¥¤ इसी लंदन हाउस में सावरकर ने कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी मदन लाल धींगरा को हथियार चलाने की टà¥à¤°à¥‡à¤¨à¤¿à¤‚ग दी, जिसने बाद में à¤à¤¾à¤°à¤¤ सचिव वाइली की लंदन में ही गोली मारकर हतà¥à¤¯à¤¾ कर दी गई। उस समय à¤à¤¾à¤°à¤¤ सचिव बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ सरकार का वह अधिकारी या मंतà¥à¤°à¥€ होता था, जिसको à¤à¤¾à¤°à¤¤ का वायसराय रिपोरà¥à¤Ÿ करता था। इस तरह से किसी à¤à¥€ बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ अधिकारी के मारने की अब तक की ये सबके बड़ी घटना रही है, वह à¤à¥€ उनके घर में घà¥à¤¸à¤•à¤° यानी लंदन में। साफ है कि इंडिया हाउस यà¥à¤µà¤¾ कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारियों का गॠबनता चला गया।
समय गà¥à¤œà¤°à¤¤à¤¾ चला गया शà¥à¤¯à¤¾à¤® जी कृषà¥à¤£ वरà¥à¤®à¤¾ पूरे वेग से देश की आजादी के लिठकारà¥à¤¯ करते रहे लेकिन तारीख थी 30 मारà¥à¤š 1930 और वकà¥à¤¤ था रात के 11.30 बजे। जेनेवा के à¤à¤• हाॅसà¥à¤ªà¤¿à¤Ÿà¤² में à¤à¤¾à¤°à¤¤ मां के à¤à¤• सचà¥à¤šà¥‡ सपूत ने आखिरी सांस ली और उसकी मौत पर लाहौर की जेल में à¤à¤—त सिंह और उसके साथियों ने शोक सà¤à¤¾ रखी, जबकि वह खà¥à¤¦ à¤à¥€ कà¥à¤› ही दिनों के मेहमान थे। लेकिन शहीदों को मृतà¥à¤¯à¥ कà¤à¥€ सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ नहीं करती अपितॠवे सà¥à¤µà¤¯à¤‚ मर कर अमर हो जाते हैं। इतिहास साकà¥à¤·à¥€ है। à¤à¤¸à¥€ महानॠआतà¥à¤®à¤¾à¤“ं का बलिदान कà¤à¥€ वà¥à¤¯à¤°à¥à¤¥ नहीं गया बलà¥à¤•à¤¿ समय आने पर à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ पà¥à¤°à¤–र पà¥à¤°à¤šà¤‚ड रूप में पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ हो निकला और अनà¥à¤—ामियों के पथ पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ ही नहीं किया अपितॠसमय पड़ने पर इस संघरà¥à¤· में अपने जीवन को नà¥à¤¯à¥‹à¤›à¤¾à¤µà¤° कर दिया और पीछे बलिदानों के अवशेष रख गठआरà¥à¤¯ समाज का पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® à¤à¤¸à¥‡ महावीरों को जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने राषà¥à¤Ÿà¥à¤° की सà¥à¤µà¤¤à¤¨à¥à¤¤à¥à¤°à¤¤à¤¾ लिठकिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° अपना अनà¥à¤¤à¤¿à¤® रकà¥à¤¤ बिनà¥à¤¦à¥ तक बहा दिया। तन-मन-धन की बलि देकर सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ कर दिया कि इनका सेवा कारà¥à¤¯ में कितना उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ था तथा बलिवेदी से कितना ऊंचा पà¥à¤°à¥‡à¤® था। महरà¥à¤·à¤¿ दयानंद सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ के मानस पà¥à¤¤à¥à¤°, अमर कà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤•à¤¾à¤°à¥€ पंडित शà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤œà¥€ कृकृषà¥à¤£ वरà¥à¤®à¤¾ को उनकी पà¥à¤£à¥à¤¯à¤¤à¤¿à¤¥à¤¿ पर आरà¥à¤¯ समाज का शतà¥-शतॠनमन।
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