गोमाता विशà¥à¤µ की पूजनीय कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ है?
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Manmohan Kumar AryaDate
09-Apr-2018Category
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09-Apr-2018Download PDF
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गोमाता विशà¥à¤µ की पूजनीय कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ है?
संसार में जड़ व चेतन दो पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पदारà¥à¤¥ है। चेतन पदारà¥à¤¥ à¤à¥€ दो व दो पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के हैं। पà¥à¤°à¤¥à¤® ईशà¥à¤µà¤° जिसने इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को रचा है और दूसरे चेतन पदारà¥à¤¥ जीवातà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं जो सूकà¥à¤·à¥à¤®, अनादि, अविनाशी, अमर, नितà¥à¤¯, à¤à¤•à¤¦à¥‡à¤¶à¥€, अणà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤°, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व करà¥à¤® की सामरà¥à¤¥à¥à¤¯ से यà¥à¤•à¥à¤¤, ससीम व अलà¥à¤ªà¤œà¥à¤ž है। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व गति यह दो मà¥à¤–à¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• गà¥à¤£ जीवातà¥à¤®à¤¾ के हैं। संसार में जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं की संखà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ अननà¥à¤¤ हैं। ईशà¥à¤µà¤° की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ में जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं की संखà¥à¤¯à¤¾ उसको जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होने से सीमित कह सकते हैं। जीवातà¥à¤®à¤¾ का सà¥à¤µà¤°à¥‚प जनà¥à¤® व मरण धरà¥à¤®à¤¾ है। जीवातà¥à¤®à¤¾ को जनà¥à¤® इसके पूरà¥à¤µ जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ के करà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से मिलता है। जब किसी जीवातà¥à¤®à¤¾ की मनà¥à¤·à¥à¤¯ योनि में मृतà¥à¤¯à¥ होती है तो उसे अपने करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के सà¥à¤– व दà¥à¤ƒà¤–ी रूपी फलों को à¤à¥‹à¤—ना होता है। परमातà¥à¤®à¤¾ उनके करà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° उसे मनà¥à¤·à¥à¤¯ व इतर पशॠआदि योनियों में जनà¥à¤® देता है जिससे वह अपने किये हà¥à¤ पूरà¥à¤µ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का यथोचित, न कम न अधिक, फल à¤à¥‹à¤— ले। हम सब जानते हैं कि पशà¥à¤“ं में गाय à¤à¥€ à¤à¤• पशॠहै। वैदिक धरà¥à¤® में गाय को विशà¥à¤µ की माता कहा है जो कि उसके गà¥à¤£à¥‹à¤‚, मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ व पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को होने वाले लाà¤à¥‹à¤‚ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से उचित ही है। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ से ही गो सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को अपने दà¥à¤—à¥à¤§ से पà¥à¤·à¥à¤Ÿ व पोषित करती आ रही है। जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° जीवातà¥à¤®à¤¾ का माता के गरà¥à¤à¤µà¤¾à¤¸ में उसके à¤à¥‹à¤œà¤¨ व रूधिर आदि से शरीर बनता है, उसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से हमारा शरीर à¤à¥€ अनà¥à¤¨ व फलों सहित गोमाता के गोदà¥à¤—à¥à¤§ से बना हà¥à¤† है। अनà¥à¤¨ व फलों की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में गोदà¥à¤—à¥à¤§ अलà¥à¤ª पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ से पà¥à¤°à¤šà¥à¤° व आवशà¥à¤¯à¤• मातà¥à¤°à¤¾ में सà¥à¤²à¤ हो जाता है और गà¥à¤£à¤µà¤¤à¥à¤¤à¤¾ में à¤à¥€ यह सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ होने से इसकी दातà¥à¤°à¥€ गोमाता पूजनीय à¤à¤µà¤‚ वनà¥à¤¦à¤¨à¥€à¤¯ हो जाती है।
मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾à¤“ं में पà¥à¤°à¤®à¥à¤– आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ à¤à¥‹à¤œà¤¨ ही है। यदि उसे à¤à¥‹à¤œà¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ न हो तो à¤à¥‹à¤œà¤¨ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने वाली शकà¥à¤¤à¤¿ के अà¤à¤¾à¤µ में वह कà¥à¤› काम नहीं कर सकता। अनà¥à¤¨, फलों, वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ व सबà¥à¤œà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ सहित गोदà¥à¤—à¥à¤§ का अपना अपना महतà¥à¤µ है। अलग अलग पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के अनà¥à¤¨ से शरीर को अलग अलग पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पौषà¥à¤Ÿà¤¿à¤• ततà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं परनà¥à¤¤à¥ गोदà¥à¤—à¥à¤§ पूरà¥à¤£ आहार है जिसका सेवन करने से, यदि अनà¥à¤¨ व फल आदि न à¤à¥€ मिले तो à¤à¥€, मनà¥à¤·à¥à¤¯ न केवल जीवित ही रहता है अपितॠनिरोग रहते हà¥à¤ जीवन के सà¤à¥€ कारà¥à¤¯ कर सकता है। गो माता की सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‡à¤‚ जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° आरमà¥à¤ में गोदà¥à¤—à¥à¤§ पर पूरी तरह से निरà¥à¤à¤° होती हैं और उनका विकास à¤à¤²à¥€à¤à¤¾à¤‚ति होता है, इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° गोदà¥à¤—à¥à¤§ से मनà¥à¤·à¥à¤¯ à¤à¥€ à¤à¥‹à¤œà¤¨ के सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ व शकà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ बनता है। गोदà¥à¤—à¥à¤§ के इसी गà¥à¤£ के कारण वेदों ने गो की महिमा का बखान किया है जिससे मनà¥à¤·à¥à¤¯ उसे जानकर गोपालन व गोसेवा करके सà¥à¤–ी सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ जीवन व लमà¥à¤¬à¥€ आयॠपà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सके। गोदà¥à¤—à¥à¤§ का सेवन करने वालों में रोगों से लड़ने की अदà¥à¤à¥à¤¤ शकà¥à¤¤à¤¿ होती है। वह कà¤à¥€ रूगà¥à¤£ नहीं होते और यदि हो à¤à¥€ जायें तो शीघà¥à¤° ही सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ हो जाते हैं। गोदà¥à¤—à¥à¤§ अमृत के समान महोषधि है जो निरोग रखने व रोगों को दूर à¤à¤—ाने में लाà¤à¤ªà¥à¤°à¤¦ होती है। गोदà¥à¤—à¥à¤§ से अनेक सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ, सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¦ व शकà¥à¤¤à¤¿à¤µà¤°à¥à¤§à¤• पदारà¥à¤¥ दधि, मकà¥à¤–न, मटà¥à¤ ा, घृत, पंचगवà¥à¤¯ आदि पदारà¥à¤¥ बनते हैं। गोघृत से अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° करने से परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ शà¥à¤¦à¥à¤§ रहता है व पà¥à¤°à¤¦à¥à¤·à¤£ दूर होता है। अनेक साधà¥à¤¯ व अससाधà¥à¤¯ कोटि के रोगों में à¤à¥€ गोघृत से अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° करने से लाठहोता है। वैदिक धरà¥à¤® में अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° का दैनिक करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में विधान है। इससे अरà¥à¤œà¤¿à¤¤ पà¥à¤£à¥à¤¯ से न केवल वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ जीवन सà¥à¤–दायक बनता है अपितॠइसके फल से हमारा आगामी à¤à¤¾à¤µà¥€ पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® à¤à¥€ उनà¥à¤¨à¤¤ व सà¥à¤–ी होता है।
गोदà¥à¤—à¥à¤§ के साथ ही गोमूतà¥à¤° à¤à¥€ औषधीय गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से समाविषà¥à¤Ÿ है। गोमातà¥à¤° के सेवन से उदर कृमियों पर लाà¤à¤•à¤¾à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ होने के साथ तà¥à¤µà¤šà¤¾ आदि के अनेक रोग दूर होते हैं। खेती वा कृषि में खाद व कृमियों के नाश के लिठà¤à¥€ गोबर व गोमूतà¥à¤° आदि का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— उपयोगी होता है। गोबर व गोमूतà¥à¤° से बनी खाद सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ व सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯à¤µà¤°à¥à¤§à¤• अनà¥à¤¨ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करने में सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• लाà¤à¤•à¤¾à¤°à¥€ होती है। रासायनिक खाद का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करने से अनेक शारीरिक रोग होते हैं और इस पर धन à¤à¥€ बहà¥à¤¤ वà¥à¤¯à¤¯ होता है। गोबर से गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ अपनी à¤à¥‹à¤ªà¤¡à¥€à¤¨à¥à¤®à¤¾ कचà¥à¤šà¥‡ निवासों में लेपन करते हैं जिससे सà¥à¤µà¤šà¥à¤›à¤¤à¤¾ व शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ समà¥à¤ªà¤¦à¤¿à¤¤ होती है। गोबर के उपले बनाकर रसोई के लिठईघन के रूप में पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया जाता है। अनà¥à¤¯ सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के ईधन वायॠपà¥à¤°à¤¦à¥à¤·à¤£ करने के साथ à¤à¥‹à¤œà¤¨ पकाने वाले पर à¤à¥€ अपना दà¥à¤·à¥à¤ªà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ डालते हैं जबकि गोबर का ईधन के रूप में पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— अनà¥à¤¯ ईघनों से कहीं जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ होता है। इससे जो धà¥à¤†à¤‚ होता है वह वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का सबसे अचà¥à¤›à¤¾ à¤à¥‹à¤œà¤¨ होता है। गोदà¥à¤—à¥à¤§, गोमूतà¥à¤° व गोबर आदि सà¤à¥€ पदारà¥à¤¥ अरà¥à¤¥ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से à¤à¥€ देश व परिवार के लिठबहà¥à¤¤ लाà¤à¤•à¤¾à¤°à¥€ सिदà¥à¤§ होते हैं।
गाय से बछिया या बछड़े होते हैं जो कृषि कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ सहित अनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से देश व समाज के लिठउपयोगी होते हैं। गाय अमृत के समान गोदà¥à¤—à¥à¤§ देती है जिसके बदले में हमें उसे मातà¥à¤° पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ में सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° सà¥à¤²à¤ घास आदि वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ ही खिलानी होती हैं। आज देश में à¤à¤• शà¥à¤°à¤®à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ 200 से 400 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ कमाता है। महीने में यदि उसने 20 दिन काम किया तो उसकी आय 4,000 से 8,000 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ ही होती है। इस आय से उसे अपने 5 या 7 परिवार जनों का पालन à¤à¥€ करना होता है और अपनी शारीरिक शकà¥à¤¤à¤¿ को बनाये रखना होता है। à¤à¤¸à¥€ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में वह बाजार में 60 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ लिटर वाला दूध नहीं ले सकता। इस आय वाला वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ शहरों में किराये का à¤à¤• कमरा à¤à¥€ नहीं ले सकता और न ही अपने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को अचà¥à¤›à¥€ शिकà¥à¤·à¤¾ दे सकता है। à¤à¤¸à¥‡ में यदि किसी निरà¥à¤§à¤¨ परिवार में à¤à¤• या दो गाय हों तो वह उससे दà¥à¤—à¥à¤§ की अपनी आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ पूरी करके शेष दूध को अनà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में बेच कर अपना निरà¥à¤µà¤¾à¤¹ कर सकते हैं। इस दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से गाय का महतà¥à¤µ सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• सिदà¥à¤§ होता है। गाय माता से हमें बैल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं जो खेत जोतने और कृषि के अनेक कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ सहित बैलगाड़ी में à¤à¥€ सामान ढोने के काम आते हैं। गाय से न केवल गोदà¥à¤—à¥à¤§, गोबर व गोमूतà¥à¤° ही पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं अपितॠगाय की सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• मृतà¥à¤¯à¥ होने पर उसका चमà¥à¤° à¤à¥€ हमारे पैरों की रकà¥à¤·à¤¾ करता है। इतने उपयोगी जीव वा पशॠका पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• मनà¥à¤·à¥à¤¯ कितना ऋणी है वह वही वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ जान सकता है जिसकी आतà¥à¤®à¤¾ और संसà¥à¤•à¤¾à¤° पवितà¥à¤° हो। आजकल अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ व पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ तौर तरीको वाली जीवन शैली ने मनà¥à¤·à¥à¤¯ के मन से अंहिसा व समà¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¨à¤¾ जैसी पवितà¥à¤° à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं को काफी मातà¥à¤°à¤¾ में कम कर दिया है। यहीं कारण है कि पशà¥à¤“ं के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ देश व संसार में जो हिंसा होती है, उसका कहीं कोई विशेष विरोध नहीं करता।
मनà¥à¤·à¥à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯ तà¤à¥€ होता है जब वह अपना पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• कारà¥à¤¯ सोच विचार कर अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सतà¥à¤¯ व असतà¥à¤¯ का विचार कर करे। जब हम गाय आदि पशà¥à¤“ं की बात करते हैं तो हमें उसके सà¥à¤– व दà¥à¤– पर à¤à¥€ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देना चाहिये। हमें कांटा लगता है तो हमें दà¥à¤ƒà¤– होता है। कोई हमारे पà¥à¤°à¤¤à¤¿ हिंसा का कारà¥à¤¯ करता है तो à¤à¥€ हमें दà¥à¤ƒà¤– होता है। यहां तक की अनेक लोग रूगà¥à¤£ होने पर डाकà¥à¤Ÿà¤° से इंजेकà¥à¤¶à¤¨ लगाने में à¤à¥€ डरते हैं। अतः हमें कोई अधिकार नहीं है कि हम गाय वा किसी अनà¥à¤¯ पशॠका गला कांटे, उसकी हतà¥à¤¯à¤¾ करें व उसका मांस खाये। पशॠहतà¥à¤¯à¤¾ व मांसाहार मानव सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ के विपरीत कूà¥à¤°à¤°à¤¤à¤¾ है जिसका कारण अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ व कà¥à¤¸à¤‚सà¥à¤•à¤¾à¤° है। à¤à¤¸à¥‡ लोग मनà¥à¤·à¥à¤¯ कहलाने योगà¥à¤¯ नहीं है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनका कारà¥à¤¯ मनन व सतà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¤à¥à¤¯ का विचार कर नहीं हो रहा है। मांसाहारी लोगों से हम पूछना चाहते हैं कि जब परमातà¥à¤®à¤¾ के नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¥€ à¤à¤¸à¥‡ ही कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ से गà¥à¤œà¤°à¤¨à¤¾ होगा तो तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ कैसा लगेगा? इस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ पर शायद कोई विचार करना à¤à¥€ नहीं चाहेगा। परनà¥à¤¤à¥ करà¥à¤®à¤«à¤² सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¤¸à¤¾ होता है, à¤à¤¸à¤¾ होगा, यह असमà¥à¤à¤µ नहीं है। ‘अवशà¥à¤¯à¤®à¥‡à¤µ ही à¤à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¤‚ कृतं करà¥à¤® शà¥à¤à¤¾à¤¶à¥à¤à¤®à¥’ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° हमारे पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• अचà¥à¤›à¥‡ व बà¥à¤°à¥‡ करà¥à¤® का उसी के अनà¥à¤°à¥‚प, उतनी ही मातà¥à¤°à¤¾ में न कम और न अधिक सà¥à¤– व दà¥à¤– हमें मिलेगा जैसा हमने इस जीवन में दूसरों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ किया है। जो लोग पशॠहिंसा के कारà¥à¤¯ में लगे हैं या जो मांस खाते हैं, वह इस पर अवशà¥à¤¯ विचार करें। महरà¥à¤·à¤¿ मनॠने लिखा है कि मांसाहार की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ देने वाला, पशॠकी हतà¥à¤¯à¤¾ करने वाला, मांस बेचने वाला, मांस पकाने वाला, मांस परोसने वाला और खाने वाला, यह सब बराबर पाप के à¤à¤¾à¤—ी हैं। इन सà¤à¥€ लोगों को अपनी आगामी पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® पर अवशà¥à¤¯ विचार करना चाहिये।
गाय देश की अरà¥à¤¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की रीॠहै। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के संसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤• महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ जी ने ‘गोकरà¥à¤£à¤¾à¤¨à¤¿à¤§à¤¿’ नाम से à¤à¤• पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• लिखी है जिसमें गोरकà¥à¤·à¤¾ के महतà¥à¤µ सहित गाय से होने वाले आरà¥à¤¥à¤¿à¤• लाà¤à¥‹à¤‚ का उलà¥à¤²à¥‡à¤– à¤à¥€ किया है। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ के दशमॠसमà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ में à¤à¥€ गोरकà¥à¤·à¤¾ के लाà¤à¥‹à¤‚ का वरà¥à¤£à¤¨ है। महरà¥à¤·à¤¿ ने गणित से गणना करके सिदà¥à¤§ किया है कि à¤à¤• गाय की à¤à¤• पीà¥à¥€ कà¥à¤² दूध व बैलों से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ अनà¥à¤¨ से à¤à¤• समय मे 3,99,760 लोगों का पालन होता है। इससे गोरकà¥à¤·à¤£ व गोसंवरà¥à¤§à¤¨ के महतà¥à¤š का अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ लगाया जा सकता है। यही कारण था कि महाà¤à¤¾à¤°à¤¤à¤•à¤¾à¤² व उसके कà¥à¤› समय बाद तक हमारा देश वीरों व वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की à¤à¥‚मि रहा है। यहां दूध की नदियां बहती थी। सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ व पà¥à¤°à¥à¤· की à¤à¤• सौ वरà¥à¤· की आयॠहोना आम बात थी। 100 से 160 व उससे à¤à¥€ अधिक आयॠके लोग महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल में रहे हैं। गाय की ही तरह बकरी की à¤à¤• पीà¥à¥€ के दूध से à¤à¥€ à¤à¤• समय में 25,920 लोगों का पालन होता है। गाय व बकरी की ही तरह à¤à¥ˆà¤‚स, हाथी, घोड़े, ऊंट, à¤à¥‡à¥œ व गधों से à¤à¥€ अनेक उपकार होते हैं। हमने गाय से कà¥à¤› थोड़े से ही लाà¤à¥‹à¤‚ का वरà¥à¤£à¤¨ किया है। गाय से होने वाले वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• लाà¤à¥‹à¤‚ पर देश में अनेक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ व पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‡à¤‚ उपलबà¥à¤§ हैं जिनका अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ किया जाना चाहिये। लेख की समापà¥à¤¤à¥€ पर महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ के सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ से कà¥à¤› विचार पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ कर रहे हैं। वह लिखते हैं ‘इन गाय आदि पशà¥à¤“ं को मारने वालों को सब मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की हतà¥à¤¯à¤¾ करने वाले जानियेगा। देखो ! जब आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का राजà¥à¤¯ था तब ये महोपकारक गाय आदि पशॠनहीं मारे जाते थे, तà¤à¥€ आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤ वा अनà¥à¤¯ à¤à¥‚गोल देशों में बड़े आननà¥à¤¦ में मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿ वरà¥à¤¤à¤¤à¥‡ थे। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि दूध, घी, बैल आदि पशà¥à¤“ं की वृदà¥à¤§à¤¿ होने से अनà¥à¤¨ रस पà¥à¤·à¥à¤•à¤² पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते थे। जब से विदेशी मांसाहारी इस देश में आकर, गो आदि पशà¥à¤“ं के मारने वाले मदà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤¯à¥€ राजà¥à¤¯à¤¾à¤§à¤¿à¤•à¤¾à¤°à¥€ हà¥à¤ हैं, तब से कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के दà¥à¤ƒà¤– की बà¥à¤¤à¥€ होती जाती है। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि ‘नषà¥à¤Ÿà¥‡ मूले नैव फलं न पà¥à¤·à¥à¤ªà¤®à¥à¥¤’ जब (गोहतà¥à¤¯à¤¾ करके सà¥à¤–रूपी) वृकà¥à¤· का मूल ही काट दिया जाय तो (फिर सà¥à¤–रूपी) फल फूल कहां से हों।‘ कोई मनà¥à¤·à¥à¤¯ कà¥à¤› à¤à¥€ व कितना à¤à¥€ कर लें वह ईशà¥à¤µà¤°, पृथिवीमाता व गोमाता के ऋण से जनà¥à¤®-जनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ उऋण नहीं हो सकता।
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