क्या संस्कृत अवेस्ता की भाषा से बनी है? क्या वेदों से जिन्दा अवेस्ता प्राचीन है? 
अनेकों लोग कहते है कि पारसियों की भाषा से वैदिक संस्कृत बनी। यदि ऐसा माना जाए तो संस्कृत में प्राप्त मूर्धन्य का अवेस्ता में अभाव नहीं होना चाहिए जबकि मूर्धन्य का अवेस्ता में अभाव पाया जाता है। मूर्धन्य का प्रयोग धातुपाठ में बहुदा है - 
अड्ड अभियोगे 
कड्ड कार्कश्ये
टुवेपृ कम्पने 
मठ मदनिवासयो इत्यादि ।
किन्तु पारसी में यह सर्वथा नहीं है। साथ ही संस्कृत में प्राप्त होने वाले छ ,भ और ल का भी पारसी में अभाव है यदि पारसी से संस्कृत मानी जावे तो फिर छान्दस्, छन्द ये सब कैसे बन गए? 
अब इस पर कोई यह कहे कि पारसी के ज को छ कर दिया अर्थात् 
जन्द से छन्द बना तो ऐसे में संस्कृत की उपस्थिति पारसी के समकालीन सिद्ध हो जाएगी फिर पारसी से संस्कृत बनी ऐसा कहना गलत होगा क्योंकि किसी वर्ण के स्थान पर दूसरे वर्ण का विकल्प से उच्चारण तभी हो सकता है जब दूसरा भी उपलब्ध हो जैसे कि अंग्रेजों द्वारा तकार के स्थान पर टकार तभी बोला जाता है जब उनकें पास पहले से ही टकार हो,यदि उनकें पास टकार नहीं होता तो वो तकार से विकल्प ही नहीं कर पाते। अतः ज का छ से विकल्प होना सहीं नहीं है। यदि यह कहें कि छ बना लिया और जन्द में ज के स्थान पर प्रयोग कर लिया तो यह बात भी सहीं नहीं क्योंकि ऐसा होने पर संस्कृत में ज का अभाव होना चाहिए था लेकिन यहां ज और छ दोनो प्राप्त होते है। अतः संस्कृत पारसी अवेस्ता की भाषा से नहीं बनी। 
बल्कि कई शब्द संस्कृत धातुओं के विकार है - 
चीज्दी (ज़िंदा अवेस्ता ४४:१६ ) यह शब्द खबरदार जी ने संस्कृत की चित धातु से बना बताया है । धातुपाठ चित संचेतने १०/१४४ में यह पठित है । 
दमानम (अवेस्ता ३१:१८ ) इस शब्द को खबरदार जी ने संस्कृत के तमन (ऋग्वेद १/६३/८ ) के आधार पर अध्यात्म अर्थ किया है।
मदा (अवेस्ता ४५.१ ) -इसमें खबरदार जी ने मद धातु बताई है जो कि धातुपाठ मद तृप्तियोगे (१०/१७४ ) में पठित है।
अतः सिद्ध है कि संस्कृत पारसी से नहीं बनी है। 
अब देखते है कि क्या वेद जिन्दाअवेस्ता से बने तो यह बात भी गलत है क्योंकि अवेस्ता में वेदों का नामोल्लेख होता है लेकिन वेदों में कहीं भी जिन्दा अवेस्ता का उल्लेख नहीं है जैसे - 
वए2देना (यस्न 35/7) -वेदेन 
अर्थ= वेद के द्वारा 
2) वए2दा (उशनवैति 45/4/1-2)- वेद 
अर्थ= वेद 
वएदा मनो (गाथा1/1/11) -वेदमना 
अर्थ= वेद मे मन रखने वाला 
इससे सिद्ध है कि वेद का अस्तित्व अवेस्ता से पूर्व है। 
इतना ही नहीं अवेस्ता के रचनाकार जोराष्ट्रर से भी पूर्व महाभारत हो चुका है क्योंकि भारतीय ब्राह्मणों में व्यास संज्ञा भगवान वेदव्यास के बाद से चली है और वेद तो भगवान व्यास से भी काफी पहले के है। पारसियों के ऐतिहासिक ग्रन्थ जो कि जरथ्रुस्ट के समय लिखा गया जिसमें उसका इतिहास है में व्यास नामक एक ब्राह्मण का उल्लेख है जिसका जरथ्रुस्ट से वार्तालाप भी हुआ था । उस शातीर नामक पारसी ग्रन्थ में लिखा है - 
"अकनु बिरमने व्यास्नाम अज हिंद आयद ! दाना कि अल्क चुना नेरस्त !!
अर्थात :- "व्यास नाम का एक ब्राह्मन हिन्दुस्तान से आया . वह बड़ा ही चतुर था और उसके सामान अन्य कोई बुद्धिमान नहीं हो सकता ! "
अतः सिद्ध है कि पारसियों का अवेस्ता तो व्यास भगवान के भी बाद का है। अतः वेदों का अवेस्ता से पूर्व विद्यमान होना सिद्ध है। इससे वैदिक वाक् का पारसियो की अवेस्ता की भाषा (गाथिक) से पूर्व होना सिद्ध है।

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