मनà¥à¤·à¥à¤¯ और पशà¥-पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में जीवातà¥à¤®à¤¾ à¤à¤• जैसा है
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Manmohan Kumar AryaDate
05-May-2018Category
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HindiTotal Views
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05-May-2018Download PDF
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हम संसार में मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ सहित अनेक पशà¥, पकà¥à¤·à¥€ व अनà¥à¤¯ अनेक पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ योनियों को देखते हैं। सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ व जीवित पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में à¤à¤• अनादि, अमर, अलà¥à¤ªà¤œà¥à¤ž, सूकà¥à¤·à¥à¤® व ससीम चेतन जीवातà¥à¤®à¤¾ होता है। इन सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ योनियों में जो जीवातà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं वह à¤à¤• जैसी हैं। अनेक मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को मनà¥à¤·à¥à¤¯ और अनà¥à¤¯ सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के शरीरों में उनकी आतà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ à¤à¤• जैसी हैं व नहीं, à¤à¥à¤°à¤®à¤¿à¤¤ देखा जाता है। कà¥à¤› वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ हम अपने कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में बैठे थे। वहां जीवातà¥à¤®à¤¾ की चरà¥à¤šà¤¾ चली तो à¤à¤• मितà¥à¤° पूरे विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ के साथ बोले कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ का आतà¥à¤®à¤¾ अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ योनियों के शरीरों की आतà¥à¤®à¤¾à¤“ं से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ है। उनकी मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ थी कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ के करà¥à¤® कैसी à¤à¥€ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न हों, मनà¥à¤·à¥à¤¯ की मृतà¥à¤¯à¥ होने पर उसकी आतà¥à¤®à¤¾ का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® मनà¥à¤·à¥à¤¯ योनि में ही होता है। उनके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° गाय की आतà¥à¤®à¤¾ का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® गाय योनि में, जिस पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ का जो आतà¥à¤®à¤¾ है, उसका à¤à¤¾à¤µà¥€ जनà¥à¤® उसी पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ में होता है। हमें अपने मितà¥à¤° के यह विचार उचित पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ नहीं लगे थे। हमने उनके विचारों का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤µà¤¾à¤¦ किया और बताया कि जीवातà¥à¤®à¤¾ सà¤à¥€ योनियों में à¤à¤• जैसा व समान है परनà¥à¤¤à¥ आतà¥à¤®à¤¾à¤“ं के पूरà¥à¤µà¤œà¤¨à¥à¤® के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° परमातà¥à¤®à¤¾ ने उनकी इस जनà¥à¤® की योनि निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ की है। योगदरà¥à¤¶à¤¨ के ऋषि ने à¤à¤• सूतà¥à¤° में कहा कि हमारी जाति, आयॠऔर à¤à¥‹à¤— हमारे पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤¬à¥à¤§ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° परमातà¥à¤®à¤¾ निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ करता है। इस पर विचार करें तो यह सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ वेदानà¥à¤•à¥‚ल होने सहित तरà¥à¤• व यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ के आधार पर à¤à¥€ उचित लगता है। इसके आधार पर हमारे पूरà¥à¤µ जनà¥à¤® के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के आधार पर ही हमें यह मनà¥à¤·à¥à¤¯ योनि मिली है। पूरà¥à¤µ जनà¥à¤® में हो सकता है कि हम मनà¥à¤·à¥à¤¯ रहे हों और यह à¤à¥€ समà¥à¤à¤µ है कि हम मनà¥à¤·à¥à¤¯ न रहे हों अपितॠकिसी पकà¥à¤·à¥€ या पशॠआदि योनि में रहे हों। हमारे इस जनà¥à¤® की जाति, आयॠऔर à¤à¥‹à¤— का कारण हमारा पूरà¥à¤µ जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ के करà¥à¤® वा पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤¬à¥à¤§ है। हमने उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ दिनों इस विषय पर à¤à¤• लेख à¤à¥€ लिखा था जो कà¥à¤› आरà¥à¤¯ पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾à¤“ं में पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ हà¥à¤† था। आज पà¥à¤¨à¤ƒ इस विषयक पर पाठकों तक ऋषि दयाननà¥à¤¦ जी के विचार पहà¥à¤‚चाने का मन हà¥à¤† जिसका परिणाम यह लेख व इसकी आगामी कà¥à¤› पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ हैं।
कोई à¤à¥€ बात तà¤à¥€ सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° की जा सकती है जब उसके पीछे परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ तरà¥à¤• व यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ हों। à¤à¤• अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ यह होता है कि उस बात को उस विषय का कोई बड़ा पà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ à¤à¥€ सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करता हो। इस दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से हम इस विषय में ऋषि दयाननà¥à¤¦ के विचारों को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ कर रहे हैं। ऋषि दयाननà¥à¤¦ वेदों के पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ थे। वह ईशà¥à¤µà¤° à¤à¤•à¥à¤¤ à¤à¤µà¤‚ योगी थे और उनके विषय में यह पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है कि वह 16 घंटे तक की समाधि लगा सकते थे परनà¥à¤¤à¥ देश की दà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¤¾ के कारण उसका सà¥à¤§à¤¾à¤° करने के लिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने समाधि के सà¥à¤– का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर दिया था। वह पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ लगà¤à¤— 1 घंटा व रातà¥à¤°à¤¿ में अधिक समय तक समाधिसà¥à¤¥ अवसà¥à¤¥à¤¾ में रहते थे। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ दीरà¥à¤˜à¤•à¤¾à¤²à¥€à¤¨ समाधि लगाने में सिदà¥à¤§ होते हैं वह ईशà¥à¤µà¤° के सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ के कारण अपनी मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं को अधिक सतà¥à¤¯à¤¤à¤¾ व पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ के साथ कहते हैं à¤à¤¸à¤¾ माना जा सकता है। यदि वह असतà¥à¤¯ कथन करेंगे तो उनकी समाधि अवसà¥à¤¥à¤¾ में बाधा आ सकती है। समाधि के लिठà¤à¤• पातà¥à¤°à¤¤à¤¾ यह à¤à¥€ है कि साधक मन, वचन व करà¥à¤® से सतà¥à¤¯ का ही विचार व पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करे।
सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ के नवमॠसमà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ जी ने à¤à¤• पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ किया है जिसमें कहा है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ और अनà¥à¤¯ पशà¥à¤šà¤¾à¤¦à¤¿ के शरीर में जीव à¤à¤• से हैं या à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ जाति के? दूसरा पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यह लिखा है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ का जीव पशà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿ में और पशà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿ का मनà¥à¤·à¥à¤¯ के शरीर में और सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ का पà¥à¤°à¥à¤· के और पà¥à¤°à¥à¤· का सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के शरीर में जाता आता है वा नहीं? इन पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ का ऋषि ने उतà¥à¤¤à¤° देते हà¥à¤ लिखा है कि मà¥à¤¨à¤·à¥à¤¯ और पशà¥à¤“ं में जीव à¤à¤• से हैं परनà¥à¤¤à¥ पाप पà¥à¤£à¥à¤¯ के योग से मलिन और पवितà¥à¤° होते हैं। दूसरे पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ के उतà¥à¤¤à¤° में वह बताते हैं मनà¥à¤·à¥à¤¯ का जीव पशà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿ में और पशà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿ का मनà¥à¤·à¥à¤¯ में आता जाता है। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि जब पाप बॠजाता है, पà¥à¤£à¥à¤¯ नà¥à¤¯à¥‚न होता है तब मनà¥à¤·à¥à¤¯ का जीव पशà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿ नीच शरीर में और जब धरà¥à¤® अधिक तथा अधरà¥à¤® नà¥à¤¯à¥‚न होता है तब देव अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ का शरीर मिलता है। और जब पà¥à¤£à¥à¤¯ पाप बराबर होता है तब साधारण मनà¥à¤·à¥à¤¯ जनà¥à¤® होता है। इसमें à¤à¥€ पà¥à¤£à¥à¤¯ पाप के उतà¥à¤¤à¤®, मधà¥à¤¯à¤® और निकृषà¥à¤Ÿ होने से मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ में à¤à¥€ उतà¥à¤¤à¤®, मधà¥à¤¯à¤®, निकृषà¥à¤Ÿ शरीरादि सामगà¥à¤°à¥€ वाले होते हैं। और जब अधिक पाप का फल पशà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿ शरीर में à¤à¥‹à¤— लिया है, पà¥à¤¨à¤ƒ पाप पà¥à¤£à¥à¤¯ के तà¥à¤²à¥à¤¯ होने वा रहने से मनà¥à¤·à¥à¤¯ शरीर में आता है और पà¥à¤£à¥à¤¯ के फल à¤à¥‹à¤— कर फिर à¤à¥€ मधà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¥ मनà¥à¤·à¥à¤¯ के शरीर में आता है।
ऋषि दयाननà¥à¤¦ जी आगे लिखते हैं कि जब जीव शरीर से निकलता है उसी का नाम ‘मृतà¥à¤¯à¥’ और शरीर के साथ संयोग होने का नाम ‘जनà¥à¤®’ है। जब शरीर छोड़ता है तब यमालय अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ आकाशसà¥à¤¥ वायॠमें रहता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि ‘यमेन वायà¥à¤¨à¤¾’ वेद में लिखा है कि यम नाम वायॠका है। इसके बाद ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ बातें लिखी है जिसका जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हमारे आज के विदà¥à¤µà¤¤ समाज को à¤à¥€ नहीं है। à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है कि ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने जानकारी समà¥à¤à¤µà¤¤à¤ƒ किसी ऋषà¥à¤¯à¥‹à¤•à¥à¤¤ वा आपà¥à¤¤ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ के आधार पर लिखी है। यह à¤à¥€ समà¥à¤à¤µ है कि ऋषि जी ने यह जानकारी अपने शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के आधार पर अपने विचारों के मननपूरà¥à¤µà¤• लिखी हो। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जो लिखा है वह पà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• तथà¥à¤¯ हैं और हम सबको आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ पड़ने पर इस जानकारी को विरोधी विचारों का खणà¥à¤¡à¤¨ करते हà¥à¤ इसे पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करना चाहिये। ऋषि लिखते हैं कि मृतà¥à¤¯à¥ होने के साथ वा बाद शरीर से जो जीवातà¥à¤®à¤¾ निकलती है वह आकाशसà¥à¤¥ वायॠमें रहती है। इस जीवातà¥à¤®à¤¾ को धरà¥à¤®à¤°à¤¾à¤œ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ परमेशà¥à¤µà¤° उसके पाप पà¥à¤£à¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° जनà¥à¤® देता है। वह वायà¥, अनà¥à¤¨, जल अथवा शरीर के छिदà¥à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दूसरे के शरीर में ईशà¥à¤µà¤° की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ से पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿ होता है। (जीवातà¥à¤®à¤¾) जो (पà¥à¤°à¥à¤· शरीर में) पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿ होकर कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ वीरà¥à¤¯ में जा गरà¥à¤ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हो शरीर धारण कर (पà¥à¤°à¤¸à¤µ काल में) बाहर आता (जनà¥à¤® लेता) है। जो सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के शरीर धारण करने योगà¥à¤¯ करà¥à¤® हों तो सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ और पà¥à¤°à¥à¤· के शरीर धारण करने योगà¥à¤¯ करà¥à¤® हों तो पà¥à¤°à¥à¤· के शरीर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करता है। और नपà¥à¤‚सक गरà¥à¤ की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿-समय सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¥à¤· के शरीर में समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ करके रज वीरà¥à¤¯ के बराबर होने से होता है। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° नाना पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के जनà¥à¤® मरण में तब तक जीव पड़ा रहता है कि जब तक उतà¥à¤¤à¤® करà¥à¤®à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤¨à¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करके मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ को नहीं पाता। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उतà¥à¤¤à¤® करà¥à¤®à¤¾à¤¦à¤¿ करने से मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ में उतà¥à¤¤à¤® जनà¥à¤® और मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ में महाकलà¥à¤ª परà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ जनà¥à¤® मरण दà¥à¤ƒà¤–ों से रहित होकर आननà¥à¤¦ में रहता है।
उपरà¥à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में हमने ऋषि दयाननà¥à¤¦ जी के विचारों को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया है जो वेद शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤•à¥‚ल व पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤¤ हैं। वेदों और शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में जीवातà¥à¤®à¤¾ का जो सà¥à¤µà¤°à¥‚प उपलबà¥à¤§ होता है, आज का विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ अà¤à¥€ वहां तक पहà¥à¤‚च नहीं पाया है और वह जीव को उस रूप में सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° नहीं करता जैसा जीव का वरà¥à¤£à¤¨ वेद आदि शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ व ऋषियों के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में मिलता है। ईशà¥à¤µà¤° व जीव विषयक वैदिक शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की बातें सतà¥à¤¯ हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करने में समय लगेगा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह विषय अà¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• होने के कारण मनà¥à¤·à¥à¤¯ की आतà¥à¤®à¤¾ के चिनà¥à¤¤à¤¨ मनन सहित सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ और योगाà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ आदि से अनà¥à¤à¤µ करने योगà¥à¤¯ है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ जी ने जो कहा है उसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मनà¥à¤·à¥à¤¯ व अनà¥à¤¯ सà¤à¥€ पशà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿ योनियों में जो चेतन जीवातà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं वह सब à¤à¤• जैसी हैं। वह करà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¤• योनि से दूसरी योनि में आ जा सकती हैं। सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के शरीर की आतà¥à¤®à¤¾ पà¥à¤°à¥à¤· शरीर में व पà¥à¤°à¥à¤· की आतà¥à¤®à¤¾ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ शरीर में आ जा सकती है। मृतà¥à¤¯à¥ होने पर जीवातà¥à¤®à¤¾ शरीर से निकलने के बाद आकाशसà¥à¤¥ वायॠमें रहती है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ जनà¥à¤® होने से पहले वह à¤à¤¾à¤µà¥€ पिता के शरीर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करती है। पिता के शरीर से वह माता के शरीर में जाती है और वहां से पà¥à¤°à¤¸à¤µ काल में वह जनà¥à¤® के समय शिशॠरूप में बाहर आती है। शिशॠरूप में जनà¥à¤® के बाद वह किशोर, किशोर से यà¥à¤µà¤¾, पà¥à¤°à¥Œà¥ व वृदà¥à¤§ अवसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं से गà¥à¤œà¤° कर पà¥à¤¨à¤ƒ मृतà¥à¤¯à¥ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती है। हम आशा करते हैं कि पाठकों को आतà¥à¤®à¤¾ के आवागमन विषयक ऋषि दयाननà¥à¤¦ के शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¸à¤®à¥à¤®à¤¤ विचारों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हो गया होगा। यही विचार जà¥à¤žà¤¾à¤¨ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ समà¥à¤®à¤¤ होने के साथ सतà¥à¤¯ व यथारà¥à¤¥ à¤à¥€ हैं। सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को आतà¥à¤®à¤¾ विषयक इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ विचारों को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करना चाहिये और इसके विरोधी विचारों को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° नहीं करना चाहिये। आतà¥à¤®à¤¾ विषयक इन विचारों को पà¥à¤•à¤° अपने à¤à¥à¤°à¤® को दूर कर दूसरों के à¤à¥à¤°à¤® को à¤à¥€ दूर करना चाहिये। इति ओ३मॠशमà¥à¥¤
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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