राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¦ पर सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ का चिंतन
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Dr. Vivek AryaDate
13-May-2018Category
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HindiTotal Views
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13-Jun-2018Download PDF
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पूरà¥à¤µ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¤à¤¿ डॉ पà¥à¤°à¤£à¤µ मà¥à¤–रà¥à¤œà¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संघ के नागपà¥à¤° कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में जाने की चरà¥à¤šà¤¾ जोरों पर हैं। समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में लिखा आया है कि डॉ मà¥à¤–रà¥à¤œà¥€ जी ने सà¥à¤µà¤¯à¤‚सेवकों को राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¦ का पाठपà¥à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤ पà¥à¤°à¤£à¤µ मà¥à¤–रà¥à¤œà¥€ जी के à¤à¤¾à¤·à¤£ में राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¦ विषय पà¥à¤°à¤®à¥à¤– था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने संबोधन में à¤à¤¾à¤°à¤¤ के इतिहास, उसकी संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿, धरà¥à¤®, à¤à¤¾à¤·à¤¾, पà¥à¤°à¤¾à¤‚त सà¤à¥€ का जिकà¥à¤° किया। à¤à¤¾à¤°à¤¤ की विशालता का जिकà¥à¤° करते हà¥à¤ डॉ. मà¥à¤–रà¥à¤œà¥€ ने कहा कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ हमेशा से खà¥à¤²à¤¾ समाज रहा है। जो यहां आया वह यहीं का होकर रह गया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि धरà¥à¤® के आधार पर राषà¥à¤Ÿà¥à¤° की अवधारणा गलत है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि विविधता में à¤à¤•à¤¤à¤¾ हमारी ताकत है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि राषà¥à¤Ÿà¥à¤° की आतà¥à¤®à¤¾ बहà¥à¤²à¤µà¤¾à¤¦ और पथनिरपेकà¥à¤·à¤µà¤¾à¤¦ में बसती है जो सदियों में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हà¥à¤† हैं। यह हमारी à¤à¤• मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ है। जिससे यह राषà¥à¤Ÿà¥à¤° बना है।
पà¥à¤°à¤£à¤µ मà¥à¤–रà¥à¤œà¥€ जी के राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¦ के चिंतन में पंडित नेहरू के चिंतन का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ रूप से दीखता हैं। जबकि 19वीं शताबà¥à¤¦à¥€ में अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ राज में राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¦ रूपी चेतना की कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति करने वाले सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयानंद जिनका चिंतन वेदों पर आधारित था। जिनके चिंतन से हज़ारों कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारियों को देश को सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° करवाने की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ मिली। डॉ मà¥à¤–रà¥à¤œà¥€ जी ने अपने à¤à¤¾à¤·à¤£ में उनका नाम तक नहीं लिया।
पाठकों को सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ के राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¦à¥€ चिंतन से हम इस लेख के माधà¥à¤¯à¤® से अवगत करवाà¤à¤‚गे।
अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ राज में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ का सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ लà¥à¤ªà¥à¤¤ हो गया था। सà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶à¤µà¤¾à¤¸à¥€ सà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶à¤µà¤¾à¤¸à¥€ पर अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤° करने पर उतारू था। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ ने सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® देशवासियों को मनà¥à¤·à¥à¤¯ की बनने की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ दी।
सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में मनà¥à¤·à¥à¤¯ की परिà¤à¤¾à¤·à¤¾ करते हà¥à¤ लिखते है-
“मनà¥à¤·à¥à¤¯ उसी को कहना कि मनन-शील होकर सà¥à¤µà¤¾à¤¤à¥à¤®à¤µà¤¤à¥ अनà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के सà¥à¤–-दà¥à¤ƒà¤– और हानि लाठको समà¤à¥‡, अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥€ बलवान से à¤à¥€ न डरे और धरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ निरà¥à¤¬à¤² से à¤à¥€ डरता रहे। इतना ही नहीं किनà¥à¤¤à¥ अपने सरà¥à¤µ सामरà¥à¤¥à¥à¤¯ से धरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾à¤“ं की चाहे वे महा अनाथ, निरà¥à¤¬à¤² और गà¥à¤£à¤°à¤¹à¤¿à¤¤ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न हो। उनकी रकà¥à¤·à¤¾, उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿, पà¥à¤°à¤¿à¤¯ आचरण; और अधरà¥à¤®à¥€ चाहे चकà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ सनाथ महाबलवान à¤à¥€ हो तथापि उसका नाश, अवनति और अपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤šà¤°à¤£ सदा किया करे। इस काम में चाहे उसको कितना ही दारà¥à¤£ दà¥à¤ƒà¤– पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो, चाहे पà¥à¤°à¤¾à¤£ à¤à¥€ चले जावें परंतॠइस मनà¥à¤·à¥à¤¯ रूपी धरà¥à¤® से पृथक कà¤à¥€ न होवे। ”
सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ ने सà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶à¥€à¤¯ राजà¥à¤¯ सरà¥à¤µà¥‹à¤ªà¤°à¤¿ और उतà¥à¤¤à¤® बताया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लिखा-
अब अà¤à¤¾à¤—ोदय से और आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के आलसà¥à¤¯, पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦, परसà¥à¤ªà¤° के विरोध से अनà¥à¤¯ देशों के राजà¥à¤¯ करने की तो कथा ही कà¥à¤¯à¤¾ कहनी किनà¥à¤¤à¥ आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤ में à¤à¥€ आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का अखंड, सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°, सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨, निरà¥à¤à¤¯ à¤à¤¾à¤°à¤¤ इस समय नहीं है।जो कà¥à¤› है सो कà¥à¤› à¤à¥€ विदेशियों के पादाकà¥à¤°à¤¾à¤‚त हो रहा है। कà¥à¤› थोड़े राजà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° हैं। दà¥à¤°à¥à¤¦à¤¿à¤¨ जब आता है तब देशवासियों को अनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से दà¥à¤ƒà¤– à¤à¥‹à¤—ने पड़ते हैं। कोई कितना ही करे किनà¥à¤¤à¥ जो सà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶à¥€à¤¯ राजà¥à¤¯ होता है, वह सरà¥à¤µà¥‹à¤ªà¤°à¤¿ उतà¥à¤¤à¤® होता है।
विदेशियों का राजà¥à¤¯ कà¤à¥€ à¤à¥€ पूरà¥à¤£ सà¥à¤–दायक नहीं है। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी लिखते है कि मत-मतानà¥à¤¤à¤° के आगà¥à¤°à¤¹ रहित, अपने और पराये का पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤ शà¥à¤¨à¥à¤¯, पà¥à¤°à¤œà¤¾ पर पिता-माता के समान कृपा, नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ और दया के साथ विदेशियों का राजà¥à¤¯ à¤à¥€ पूरà¥à¤£ सà¥à¤–दायक नहीं हैं। विदेशियों के आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤ में राजà¥à¤¯ होने का कारण आपस की फूट, मतà¤à¥‡à¤¦, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ का सेवन न करना, विदà¥à¤¯à¤¾ न पà¥à¤¨à¤¾-पà¥à¤¾à¤¨à¤¾, बालà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में असà¥à¤µà¤¯à¤‚वर विवाह, विषयासकà¥à¤¤à¤¿ कà¥à¤²à¤•à¥à¤·à¤£, वेद-विदà¥à¤¯à¤¾ का कà¥à¤ªà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° आदि कà¥à¤•à¤°à¥à¤® है।
सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी आगे लिखते है कि जब आपस में à¤à¤¾à¤ˆ à¤à¤¾à¤ˆ लड़ते है तà¤à¥€ तीसरा विदेशी आकर पंच बन बैठता है। जब से विदेशी मांसाहारी इस देश में आके गौ आदि पशà¥à¤“ं के मारने वाले मदà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤¨à¥€ राजà¥à¤¯à¤¾à¤§à¤¿à¤•à¤¾à¤°à¥€ हà¥à¤ हैं। तब से आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के दà¥à¤ƒà¤– की बà¥à¤¤à¥€ होती जाती हैं।
आपस की फूट से कौरव पाणà¥à¤¡à¤µ और यादव का सतà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤¾à¤¶ हो गया। परनà¥à¤¤à¥ अब तक à¤à¥€ वही रोग पीछे लगा है। न जाने यह à¤à¤¯à¤‚कर राकà¥à¤·à¤¸ कà¤à¥€ छूटेगा या आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सब सà¥à¤–ों से छà¥à¥œà¤¾ कर दà¥à¤ƒà¤– सागर में डà¥à¤¬à¤¾ मारेगा? (सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶)
पारस मणि पतà¥à¤¥à¤° सà¥à¤¨à¤¾ जाता है, वह बात à¤à¥‚ठी है। परनà¥à¤¤à¥ आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤à¥à¤¤ देश ही सचà¥à¤šà¤¾ पारस मणि है कि जिसको लोह रूपी दरिदà¥à¤° विदेशी छूते के साथ ही सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ धनाढà¥à¤¯ हो जाते हैं। (सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶)
जब लोग वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ और à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯à¤¤ में उनà¥à¤¨à¤¤à¤¶à¥€à¤² नहीं होते तब लोग आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤à¥à¤¤ और अनà¥à¤¯ देशसà¥à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ नहीं होती। जब बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के कारण वेदादि सतà¥à¤¯ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का पठनपाठन, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ आशà¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ के यथावतॠअनà¥à¤·à¥à¤ ान, सतà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ होते हैं तà¤à¥€ देशोनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ होती है। (सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ समà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ à¥)
आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के राजà¥à¤¯ के लाà¤à¥‹à¤‚ को गिनाते हà¥à¤ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में लिखते है कि-
“à¤à¤• गाय के शरीर से दूध, घी, बैल, गाय उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होते से à¤à¤• पीà¥à¥€ में चार लाख पचहतà¥à¤¤à¤° हज़ार छः सौ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सà¥à¤– पहà¥à¤à¤šà¤¤à¤¾ है। वैसे पशà¥à¤“ं को न मारें, न मारने दे। देखो! जब आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का राजà¥à¤¯ था तब ये महोपकारक गाय आदि पशॠनहीं मारे जाते थे।तà¤à¥€ आरà¥à¤¯à¤µà¤°à¥à¤¤ अनà¥à¤¯ à¤à¥‚गोल देशों में मनà¥à¤·à¥à¤¯ आदि पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ बड़े आनंद में वरà¥à¤¤à¤¤à¥‡ थे, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि दूध, घी, बैल आदि पशà¥à¤“ं की बहà¥à¤¤à¤¾à¤ˆ से अनà¥à¤¨, रस पà¥à¤·à¥à¤•à¤² पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते थे।”
सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ को यूरोपियन का सà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶ पà¥à¤°à¥‡à¤® सिखाते हà¥à¤ लिखते है-
“देखो यूरोपियन अपने देश के बने हà¥à¤ जूते को कचहरी और कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ में जाने देते हैं इस देश के जूते नहीं। इतने ही में समठलो कि अपने देश के बने जूतों की à¤à¥€ जितनी मान पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा करते हैं, उतनी à¤à¥€ अनà¥à¤¯ देशसà¥à¤¥ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की नहीं करते।”
“देखो, सौ वरà¥à¤· से कà¥à¤› ऊपर इस देश में आये यूरोपीयनों को हà¥à¤, और आज तक ये लोग मोटे कपड़े आदि पहनते हैं। जैसा कि अपने सà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶ में पहनते थे,परंतॠउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपना चाल चलन नहीं छोड़ा। और तà¥à¤® में से बहà¥à¤¤ लोगों ने उनका अनà¥à¤¸à¤°à¤£ कर लिया। इसी से तà¥à¤® निरà¥à¤¬à¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ और वे बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ ठहरते हैं।”
सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी निषà¥à¤ªà¤•à¥à¤· होने का विचार पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ करते हà¥à¤ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में लिखते है-
“यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ मैं आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤ देश में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤† और बसता हूं तथापि जैसे इसके मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ की à¤à¥‚ठी बातों का पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤ किये बिना यथातथà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ करता हूं। वैसा ही बरà¥à¤¤à¤¾à¤µ दूसरे देश के मतवालों के साथ करता हूं। मेरा मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ का वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° जैसा सà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ है वैसा ही विदेशियों के है। ”
आरà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤µà¤¿à¤¨à¤¯ में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयानंद सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ रूप से लिखते है-
-अनà¥à¤¯ देशवासी राजा हमारे देश में कà¤à¥€ न हो तथा हम कà¤à¥€ पराधीन न हो।
-हे कृपासिंधॠà¤à¤—वन ! हम पर सहायता करो जिससे सà¥à¤¨à¥€à¤¤à¤¿ यà¥à¤•à¥à¤¤ होके हमारा सà¥à¤µà¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ अतà¥à¤¯à¤‚त बà¥à¥‡à¥¤
सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ राजा के उचà¥à¤š आचरण पर जोर देते हà¥à¤ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में लिखते है-
“जैसा राजा होता है वैसी ही उसकी पà¥à¤°à¤œà¤¾ होती है इसलिठराजा और राजपà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ को अति उचित है कि कà¤à¥€ दà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¾à¤šà¤¾à¤° न करें किनà¥à¤¤à¥ सब दिन धरà¥à¤® नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ से बरà¥à¤¤à¤•à¤° सबके सà¥à¤§à¤¾à¤° के दृषà¥à¤Ÿà¤¾ बने।”
पà¥à¤°à¤£à¤µ मà¥à¤–रà¥à¤œà¥€ जी अनेकता में à¤à¤•à¤¤à¤¾ की और विविधता में सà¥à¤‚दरता की बात कर रहे थे। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ का चिंतन उसके बिलकà¥à¤² विपरीत है।
सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी 1877 में à¤à¤•à¤¤à¤¾ परिषद में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ में कहते है-
“हम à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤¾à¤¸à¥€ सब परसà¥à¤ªà¤° à¤à¤•à¤®à¤¤ हो कर à¤à¤• ही रीती से देश का सà¥à¤§à¤¾à¤° करें तो आशा है à¤à¤¾à¤°à¤¤ देश सà¥à¤§à¤° जायेगा। किनà¥à¤¤à¥ कतिपय मौलिक मंतवà¥à¤¯ में मतà¤à¥‡à¤¦ होने के कारण सब à¤à¤•à¤¤à¤¾ सूतà¥à¤° में आबदà¥à¤§ नहीं हो सके।”
सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¦à¥à¤§ की अनà¥à¤à¥‚मिका में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी लिखते है कि
“जब तक इस मनà¥à¤·à¥à¤¯ जाति में परसà¥à¤ªà¤° मिथà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¤à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤° का विरà¥à¤¦à¥à¤§ वाद न छूटेगा तब तक अनà¥à¤¯à¥‹à¤½à¤¨à¥à¤¯ को आननà¥à¤¦ न होगा। ”
सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयानंद से जब पूछा गया कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ का पूरà¥à¤£ हित कब होगा? यहां जातीय उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ कब होगी?
सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी उतà¥à¤¤à¤° देते है- à¤à¤• धरà¥à¤®, à¤à¤• à¤à¤¾à¤·à¤¾ और à¤à¤• लकà¥à¤·à¥à¤¯ बनाये बिना à¤à¤¾à¤°à¤¤ का पूरà¥à¤£ हित और जातीय उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ का होना दà¥à¤·à¥à¤•à¤° कारà¥à¤¯ है। सब उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का केंदà¥à¤° सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ à¤à¤•à¥à¤¯ हैं।
शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¦à¥à¤¦à¤¦à¤¯à¤¾à¤¨à¤‚दपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी का विचार इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से मिलता है।
“जहाठà¤à¤¾à¤·à¤¾-à¤à¤¾à¤µ और à¤à¥‡à¤· में à¤à¤•à¤¤à¤¾ आ जाय वहां सागर में नदियों की à¤à¤¾à¤‚ति सारे सà¥à¤– à¤à¤• à¤à¤• करके पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने लग जाते हैं। मैं चाहता हूं देश के राजे-महाराजे अपने शासन में सà¥à¤§à¤¾à¤° और संशोधन करें। अपने राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में धरà¥à¤®, à¤à¤¾à¤·à¤¾ और à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ में à¤à¤•à¤¤à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ कर दें। फिर à¤à¤¾à¤°à¤¤ में आप ही आप सà¥à¤§à¤¾à¤° हो जायेगा।”
डॉ मà¥à¤–रà¥à¤œà¥€ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° अनेकता में à¤à¤•à¤¤à¤¾ में देश की विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤ à¤à¥€ आती हैं। जबकि सà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ को à¤à¤•à¤¤à¤¾ का सूतà¥à¤° मानने वाले सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ से जब वेदों का अनà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ रूपी पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ पूछा गया तो सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी कहते है-
“अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ तो विदेशियों के लिठहà¥à¤† करता है। नागरी के अकà¥à¤·à¤° थोड़े दिनों में सीखे जा सकते हैं। आरà¥à¤¯à¤à¤¾à¤·à¤¾ का सीखना कोई कठिन नाम नहीं। फारसी और अरबी के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ को छोड़कर, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤ की सà¤à¥à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ ही आरà¥à¤¯à¤à¤¾à¤·à¤¾ है। यह अति कोमल और सà¥à¤—म है। जो इस देश में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होकर अपनी à¤à¤¾à¤·à¤¾ को सिखने में कोई à¤à¥€ परिशà¥à¤°à¤® नहीं करता, उससे और आशा कà¥à¤¯à¤¾ की जा सकती है? उसमें धरà¥à¤® लगà¥à¤¨ है, इसका à¤à¥€ कà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है?आप तो अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ की समà¥à¤®à¤¤à¤¿ देते है परंतॠदयानंद के नेतà¥à¤° तो वह दिन देखना चाहते हैं, जब कशà¥à¤®à¥€à¤° से कनà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ तक और अटक से कटक तक नागरी अकà¥à¤·à¤°à¥‹à¤‚ का ही पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° होगा। मैंने आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤ में à¤à¤¾à¤·à¤¾ का à¤à¤•à¥à¤¯ संपादन करने के लिये ही अपने सकलगà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ आरà¥à¤¯à¤à¤¾à¤·à¤¾ में लिखे और समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ किये है। ”
सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी का मूल चिंतन वेदों पर आधारित था। वेदों में अनेक मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में राषà¥à¤Ÿà¥à¤° à¤à¤•à¤¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ का सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ मिलता हैं।
वेदों में सà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶à¥€ राजà¥à¤¯ का सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ -
मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को चाहिठकि पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ करने से पराधीनता छà¥à¥œà¤¾à¤•à¥‡ सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ को निरंतर सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करे। – यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ १५/५
इस संसार में किसी मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को विदà¥à¤¯à¤¾ के पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ का अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸, अपनी सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ और सब पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से अपने कामों की उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ को न छोड़ना चाहिà¤à¥¤ – यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ ५/ ४३
राजपà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ को योगà¥à¤¯ है कि à¤à¥‹à¤œà¤¨, वसà¥à¤¤à¥à¤° और खाने पीने के पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ से शरीर के बल को उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ देवें, किनà¥à¤¤à¥ वà¥à¤¯à¤à¤¿à¤šà¤¾à¤° आदि दोषों में कà¤à¥€ पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤ न होवें। -यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ ८/३९
जिस देश में पूरà¥à¤£ विदà¥à¤¯à¤¾ वाले राजकरà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ हों वहां सब की à¤à¤• मती होकर अतà¥à¤¯à¤‚त सà¥à¤– बà¥à¥‡à¥¤ - यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ ३३/६८
राजा पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ को चाहिठकि विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की सà¤à¤¾ में जाकर नितà¥à¤¯ उपदेश सà¥à¤¨à¥‡à¤‚ जिससे सब करने और न करने योगà¥à¤¯ विषयों का बोध हो। – ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ १/४à¥/१०
लाला लाजपत राय ने सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयानंद के राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¦ रूपी चिंतन पर गंà¤à¥€à¤° à¤à¤µà¤‚ अति महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ करते हà¥à¤ अपनी पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• आरà¥à¤¯ समाज में लिखा है-
“सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ का à¤à¤• à¤à¤• शबà¥à¤¦ चाहे उसे सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में पà¥à¤¿à¤, चाहे आरà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤µà¤¿à¤¨à¤¯ में अवलोकन कीजिये, चाहे वेद à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ में देखिये, राजनैतिक सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ की अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤·à¤¾ से परिपूरà¥à¤£ है। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयानंद पूरà¥à¤£ देशà¤à¤•à¥à¤¤ थे और जब कà¤à¥€ इस देश की सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ का इतिहास लिखा जायेगा तो सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी का नाम उन महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¥à¤® शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में अंकित होगा जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उनà¥à¤¨à¥€à¤¸à¤µà¥€à¤‚ शताबà¥à¤¦à¥€ में इस देश को सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° करवाने की नींव डाली। ”
डॉ मà¥à¤–रà¥à¤œà¥€ जी का यह कहना कि राषà¥à¤Ÿà¥à¤° की आतà¥à¤®à¤¾ बहà¥à¤²à¤µà¤¾à¤¦ और पथनिरपेकà¥à¤·à¤µà¤¾à¤¦ में बसती है। यह सदियों में विकसित हà¥à¤ˆ है। डॉ जी का यह कथन वेदों की शिकà¥à¤·à¤¾ से मेल नहीं खाता। राषà¥à¤Ÿà¥à¤° की अवधारणा और सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ से समान रूप से वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करने का सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ ईशà¥à¤µà¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वेदों के माधà¥à¤¯à¤® से सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में ही दे दिया गया था। इसे विकसित करने की नहीं अपितॠअपनाने की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ हैं।
यही 1947 के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ वेदों पर आधारित और सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ à¤à¤•à¤¤à¤¾ का सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ हमारे संविधान में अपनाया जाता तो आज हमारे देश में जितनी à¤à¥€ समसà¥à¤¯à¤¾à¤à¤‚ हैं जैसे à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤µà¤¾à¤¦, पà¥à¤°à¤¾à¤‚तवाद, मतवाद, परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤µà¤¾à¤¦, जातिवाद, कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ आदि का निराकरण कब का हो गया होता।
अà¤à¥€ à¤à¥€ समय है। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ के राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¦ रूपी चिंतन को अपनाया जाना चाहिà¤à¥¤ जिससे à¤à¤¾à¤°à¤¤ देश फिर से संसार में शिरोमणि कहला सके। कà¥à¤¯à¥‚ंकि
मनà¥à¤·à¥à¤¯ जनà¥à¤® का होना सतà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¤à¥à¤¯ के निरà¥à¤£à¤¯ करने कराने के लिठहै, न कि वादविवाद विरोध करने कराने के लिà¤à¥¤- सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦
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