जीवातà¥à¤®à¤¾ के बाहर à¤à¥€à¤¤à¤° वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• परमातà¥à¤®à¤¾ को जानना मनà¥à¤·à¥à¤¯ का मà¥à¤–à¥à¤¯ करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯
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Manmohan Kumar AryaDate
14-May-2018Category
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14-Jun-2018Download PDF
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संसार में अनेक आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ हैं। कोई ताजमहल को आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ कहता है तो कोई लोगों को मरते हà¥à¤ देख कर à¤à¥€ विचलित न होने और यह समà¤à¤¨à¥‡ कि वह कà¤à¥€ नहीं मरेगा, इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के विचारों को आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ मानते हैं। हमें इनसे à¤à¥€ बड़ा आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ यह पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को यथारà¥à¤¥ रूप में जानता नहीं है। वह समà¤à¤¤à¤¾ है कि मैं à¤à¤• शरीर हूं और इसका à¤à¤°à¤£ व पोषण करना, इससे सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°, सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ व आकरà¥à¤·à¤• बनाकर रखना ही उसके जीवन का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ है। धनोपारà¥à¤œà¤¨ से मनà¥à¤·à¥à¤¯ को सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की सà¥à¤– व सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती हैं। अतः धनोपारà¥à¤œà¤¨ ही उसे मनà¥à¤·à¥à¤¯ के जीवन का मà¥à¤–à¥à¤¯ उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है। यहां तक की आज के धरà¥à¤®à¤—à¥à¤°à¥ कहे जाने वाले à¤à¥€ नाना पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के साधन अपनाकर धनोपारà¥à¤œà¤¨ में ही लगे हà¥à¤ हैं। उनकी समà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ का विवरण जाना जाये तो वह शायद à¤à¤¾à¤°à¤¤ के बड़े बड़े उदà¥à¤¯à¥‹à¤—पतियों से à¤à¥€ कहीं अधिक धनवान हैं। à¤à¤¸à¥‡ मनà¥à¤·à¥à¤¯ आतà¥à¤®à¤¾ और परमातà¥à¤®à¤¾ की बातें करें तो वह विवेकशील मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को उचित पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ नहीं होती। हमारे सामने हमारे ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ व योगियों के आदरà¥à¤¶ व अनà¥à¤•à¤°à¤£à¥€à¤¯ जीवन हैं। इन ऋषि व योगियों में से कà¤à¥€ किसी ने अपने निजी सà¥à¤– के लिठलोगों से सतà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¤à¥à¤¯ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करते हà¥à¤ धनैशà¥à¤µà¤°à¥à¤¯ की कामना व मांग नहीं की। आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ यह à¤à¥€ होता है कि धरà¥à¤® व विवेक से सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ अनà¤à¤¿à¤œà¥à¤ž जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€, मूरà¥à¤– व à¤à¥‹à¤²à¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯ कह सकते हैं, à¤à¤¸à¥‡ लोग धरà¥à¤®à¤—à¥à¤°à¥à¤“ं की अनà¥à¤šà¤¿à¤¤ बातों का शिकार हो कर अपना सब कà¥à¤› लà¥à¤Ÿà¤¾ बैठते हैं और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यह अहसास तक à¤à¥€ नहीं होता कि उनसे कà¥à¤¯à¤¾ à¤à¥‚ल या मूरà¥à¤–ता का काम हà¥à¤† है?
मनà¥à¤·à¥à¤¯ का जीवन मातà¥à¤° शरीर नहीं अपितॠइससे कहीं अधिक है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ के à¤à¥€à¤¤à¤° à¤à¤• चेतन ततà¥à¤µ जीवातà¥à¤®à¤¾ है जो अनादि, अनà¥à¤¤à¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨, नितà¥à¤¯, अलà¥à¤ªà¤œà¥à¤ž, जनà¥à¤® व मरण के बनà¥à¤§à¤¨à¥‹à¤‚ में बनà¥à¤§à¤¾ हà¥à¤†, सदà¥à¤•à¤°à¥à¤®à¥‹à¤‚ व दà¥à¤·à¥à¤•à¤°à¥à¤®à¥‹à¤‚ को करने वाला व ईशà¥à¤µà¤° की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ व à¤à¤¾à¤µà¥€ जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ में उनके फलों का à¤à¥‹à¤— करने वाला, ससीम, सà¥à¤– व दà¥à¤ƒà¤–ों का à¤à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤¾ होने सहित अपनी विदà¥à¤¯à¤¾ को बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ वाला, वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने में सकà¥à¤·à¤® व समरà¥à¤¥ तथा वेदानà¥à¤¸à¤¾à¤° ईशà¥à¤µà¤°à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤¨à¤¾ कर ईशà¥à¤µà¤° का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° करने व मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने à¤à¥€ समरà¥à¤¥ है। इस जीवातà¥à¤®à¤¾ के अनादि काल से अननà¥à¤¤ बार जनà¥à¤® हो चà¥à¤•à¥‡ हैं और आगे à¤à¥€ इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से यह अपने करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° जनà¥à¤® व मरण के बनà¥à¤§à¤¨à¥‹à¤‚ में फंसा रहेगा। वेदों वा शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ व करà¥à¤® के फलों का à¤à¥‹à¤— करने के बाद विवेक होने पर मोकà¥à¤· का विधान है परनà¥à¤¤à¥ अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ से यह मोकà¥à¤· ऋषि, योगी व बहà¥à¤¤ उचà¥à¤š कोटि के वैदिक विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ व ईशà¥à¤µà¤°à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤• जो यम व नियमों को अपने जीवन में यथारà¥à¤¥ रूप में सेवन करते हैं, उनको पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। à¤à¤¸à¥‡ लोग संसार में देखने में या तो आते ही नहीं अथवा पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ सामानà¥à¤¯ लोगों की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से दूर ही रहते हैं। अतः सामानà¥à¤¯ व वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤µà¤¿à¤¹à¥€à¤¨ लोगों की पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को देखकर यही अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ होता है कि सà¤à¥€ व अधिकांश लोगों का उनके इस जनà¥à¤® व पूरà¥à¤µ के बिना à¤à¥‹à¤—े हà¥à¤ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® होता रहेगा और वह कà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ योनि व कà¤à¥€ पशà¥, पकà¥à¤·à¥€ आदि नीच योनियों में जनà¥à¤® लेकर अपने मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन में किये हà¥à¤ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का à¤à¥‹à¤— करते रहेंगे। यह à¤à¥€ तथà¥à¤¯ है कि हम अपने इस जनà¥à¤® से पूरà¥à¤µ जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ को अपनी अलà¥à¤ªà¤œà¥à¤žà¤¤à¤¾ व शरीर परिवरà¥à¤¤à¤¨ आदि के कारण à¤à¥‚ल चà¥à¤•à¥‡à¤‚ हैं जबकि परमातà¥à¤®à¤¾ को अनादि काल से अब तक के हमारे न केवल सà¤à¥€ जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ अपितॠसà¤à¥€ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का à¤à¥€ पूरà¥à¤£ निरà¥à¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है। परमातà¥à¤®à¤¾ कà¤à¥€ किसी जीवातà¥à¤®à¤¾ के किसी à¤à¥€ करà¥à¤® अथवा पूरà¥à¤µ की बातों को विसà¥à¤®à¤°à¤£ नहीं करता या उससे पूरà¥à¤µ की कोई बात कà¤à¥€ विसà¥à¤®à¤°à¤¿à¤¤ नहीं होती है।
हम उपरà¥à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ सà¤à¥€ बातों, सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ व वैदिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं को अपने जीवन में à¤à¥‚ले रहते हैं। हमारे धरà¥à¤® गà¥à¤°à¥ व विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ à¤à¥€ हमें यह तथà¥à¤¯ बताना नहीं चाहते। वह à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ हमसे धन की अपेकà¥à¤·à¤¾ रखते हैं और उसे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिठइधर उधर की अनावशà¥à¤¯à¤• बातें करके हमें खà¥à¤¶ रखते हà¥à¤ व जीवन की यथारà¥à¤¥ सचà¥à¤šà¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से विमà¥à¤– रखते हैं जिससे वह à¤à¥€ धन पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सà¥à¤–ों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ कर सकें। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ व उसका वैदिक साहितà¥à¤¯ ही हमें इन सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ व मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं से परिचित कराता है। वैदिक साहितà¥à¤¯ के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ से à¤à¤• अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤®à¥à¤– बात हमारे समà¥à¤®à¥à¤– यह आती है कि इस संसार का रचयिता ईशà¥à¤µà¤° है। ईशà¥à¤µà¤° सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• और सरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤®à¥€ है। वह हमारी आतà¥à¤®à¤¾ के à¤à¥€à¤¤à¤° व बाहर सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° समान रूप से à¤à¤•à¤°à¤¸ व आननà¥à¤¦ से पूरà¥à¤£ होकर विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है और हमारे पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• विचार व करà¥à¤® को, à¤à¤²à¥‡ ही हम उस करà¥à¤® को दिन के उजाले में करें या फिर रातà¥à¤°à¤¿ के अनà¥à¤§à¤•à¤¾à¤° में छà¥à¤ª कर करें, पूरà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤¾ जानता है। वह करà¥à¤® फल पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¤à¤¾ है और यथासमय इस जनà¥à¤® में व परजनà¥à¤® में नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• व अवशà¥à¤¯à¤®à¥‡à¤µ उनका फल देता है। इस तथà¥à¤¯ को विसà¥à¤®à¥ƒà¤¤ कर हम संसार में शà¥à¤ व पà¥à¤£à¥à¤¯ अथवा पाप व अशà¥à¤ दोनों पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के करà¥à¤® किया करते हैं। पà¥à¤£à¥à¤¯ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ से हमें सà¥à¤– पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है और पाप करà¥à¤® हमारे जनà¥à¤® जनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ में दà¥à¤ƒà¤– का कारण बनते हैं। इन दà¥à¤ƒà¤–ों से बचने के लिठही परमातà¥à¤®à¤¾ ने सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में हमें वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया था जिससे हम करà¥à¤® के सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª व उसके महतà¥à¤µ को समठसकें और पाप करà¥à¤®à¥‹à¤‚ से बचकर अपने जीवन की दà¥à¤ƒà¤–ों से रकà¥à¤·à¤¾ कर सकें। परनà¥à¤¤à¥ देखा यह गया है कि बड़े बड़े विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ à¤à¥€ पाप करने से पूरà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤¾ बच नहीं पाते। बड़े बड़े विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ व धरà¥à¤®à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯à¥‹à¤‚ में पूरà¥à¤£ विदà¥à¤¯à¤¾ नहीं होती। उनमें à¤à¥€ कम व अधिक अविदà¥à¤¯à¤¾ व उसके संसà¥à¤•à¤¾à¤° उनके चितà¥à¤¤ में होते हैं। उनका नाश व निरà¥à¤¬à¥€à¤œ होना तो समाधि पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर विवेक की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होने पर ही होता है। अतः विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से à¤à¥€ अशà¥à¤ करà¥à¤® व अपराध हो जाते हैं जिसका परिणाम दà¥à¤ƒà¤– होता है।
आधà¥à¤¨à¤¿à¤• यà¥à¤— में महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ जी à¤à¤• आदरà¥à¤¶ पà¥à¤°à¥à¤· हà¥à¤ हैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने न केवल योग विदà¥à¤¯à¤¾ को सिदà¥à¤§ किया, उसे अपने आचरण व जीवन में धारण किया अपितॠउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने विदà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर उसका अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ करते हà¥à¤ वेदों का यथारà¥à¤¥ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया था। वह करà¥à¤® व करà¥à¤® फल को वेदादि शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ से यथावतॠजान पाये थे और उसे जानकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अशà¥à¤ व पाप करà¥à¤®à¤¾à¤‚ का सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ तà¥à¤¯à¤¾à¤— à¤à¥€ किया था। वेद, वैदिक साहितà¥à¤¯ सहित ऋषि दयाननà¥à¤¦ जी का जीवन सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठà¤à¤• आदरà¥à¤¶ उदाहरण हैं जिसको अपनाकर हम अपनी विदà¥à¤¯à¤¾ बà¥à¤•à¤¾à¤° सनà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤— का अवलमà¥à¤¬à¤¨ कर सकते हैं। इससे हमें à¤à¥€ लाठहोगा और हमारे समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• में आने वाले वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¥€ लाठहोगा। यह जीवन बहà¥à¤¤ लमà¥à¤¬à¤¾ नहीं है। यदि हम अपनी à¤à¤• सौ वरà¥à¤· की आयॠकी कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ करें तो हमारे आरमà¥à¤ के 25 वरà¥à¤· तो बाल व यà¥à¤µà¤¾ काल जिसमें हम अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ आदि करते हैं वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ हो जाते हैं। बाद के 75 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में 25 वरà¥à¤· व कà¥à¤› अधिक वरà¥à¤· हम गृहसà¥à¤¥ जीवन का निरà¥à¤µà¤¾à¤¹ करते हैं। इन 25 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में नà¥à¤¯à¥‚नतम à¤à¤• चौथाई अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ 6 वरà¥à¤· से अधिक का समय तो हमारे सोने में ही वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ हो जाता है। आजीविका के कामों में à¤à¥€ हमें पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ 8 से 12 घंटे देने पड़ते हैं। यदि औसत 10 घंटे à¤à¥€ माने तो 25 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में 10 से 11 वरà¥à¤· हमारे आजिविका के कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ हो जाते हैं। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° लगà¤à¤— 25 वरà¥à¤· में से 16-17 निकल जाने पर हमारे पास 8-9 वरà¥à¤· ही बचते हैं। हमारा यह समय à¤à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ रकà¥à¤·à¤¾ सहित अनेक सामाजिक, धारà¥à¤®à¤¿à¤• आदि अनेक कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को करने में वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ होता है। अतः हमें गृहसà¥à¤¥ जीवन में सà¥à¤– à¤à¥‹à¤—ने के लिठबहà¥à¤¤ अधिक समय नहीं मिलता। वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥ व संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ के 25-25 वरà¥à¤· तो साधना व धरà¥à¤® पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° के लिठहोते हैं। इसमें जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ सà¥à¤– à¤à¥‹à¤—ेगा वह à¤à¤• पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से अपने परजनà¥à¤® को किसी न किसी रूप में बिगाड़ता है।
वैदिक साहितà¥à¤¯ के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ से यह à¤à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि हम जितना अधिक सà¥à¤– à¤à¥‹à¤—ेंगे उतना अधिक हमारी इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ व शरीर के अवयव कमजोर व निरà¥à¤¬à¤² होते जाते हैं जो आगे चलकर रोग व आयà¥à¤¨à¤¾à¤¶ का कारण बनते हैं। अतः ईशà¥à¤µà¤°à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤¨à¤¾ à¤à¤µà¤‚ यजà¥à¤ž पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ वैदिक धरà¥à¤® व संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ ही सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® साधन है जिसका अनà¥à¤¸à¤°à¤£ कर मनà¥à¤·à¥à¤¯ अपने इस जीवन को शारीरिक बल की हानि व रोगों से बचाकर अपने परजनà¥à¤® को à¤à¥€ सà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¤à¤¾ है। अतः हमें वेदों के मारà¥à¤— पर ही चलना चाहिये। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ के सपà¥à¤¤à¤®à¤¸à¤®à¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ में बृहदारणà¥à¤¯à¤• उपनिषद का वचन देकर उसका हिनà¥à¤¦à¥€ अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ किया है। उसमें महरà¥à¤·à¤¿ याजà¥à¤žà¤µà¤²à¥à¤•à¥à¤¯ अपनी अपनी पतà¥à¤¨à¥€ मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ को आतà¥à¤®à¤¾ में विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ ईशà¥à¤µà¤° को जानने की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ कर रहे हैं। उपनिषद का वचन है ‘य आतà¥à¤®à¤¨à¤¿ तिषà¥à¤ नà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¨à¥‹à¤½à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥‹ यमातà¥à¤®à¤¾ न वेद यसà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ शरीरमà¥à¥¤ आतà¥à¤®à¤¨à¥‹à¤½à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥‹ यमयति स त आतà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤®à¥à¤¯à¤®à¥ƒà¤¤à¤ƒà¥¤’ इसका अरà¥à¤¥ करते हà¥à¤ ऋषि दयाननà¥à¤¦ लिखते हैं ‘महरà¥à¤·à¤¿ याजà¥à¤žà¤µà¤²à¥à¤•à¥à¤¯ अपनी सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ से कहते हैं कि हे मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¤¿! जो परमेशà¥à¤µà¤° आतà¥à¤®à¤¾ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जीव में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ और जीवातà¥à¤®à¤¾ से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ है, जिस को मूॠजीवातà¥à¤®à¤¾ नहीं जानता कि वह परमातà¥à¤®à¤¾ मेरे में (मेरी आतà¥à¤®à¤¾ में) वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• है, जिस परमेशà¥à¤µà¤° का जीवातà¥à¤®à¤¾ शरीर अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जैसे शरीर में जीव रहता है वैसे ही जीव में परमेशà¥à¤µà¤° वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• है। जीवातà¥à¤®à¤¾ से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ रहकर (परमातà¥à¤®à¤¾) जीव के पाप पà¥à¤£à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का साकà¥à¤·à¥€ होकर उन के फल जीवों को देकर नियम में रखता है वही अविनाशीसà¥à¤µà¤°à¥‚प (परमातà¥à¤®à¤¾) तेरा à¤à¥€ अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤®à¥€ आतà¥à¤®à¤¾ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ तेरे à¤à¥€à¤¤à¤° वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• है, उस (अपनी आतà¥à¤®à¤¾ और परमातà¥à¤®à¤¾) को तू जान।’
हम यदि अपनी आतà¥à¤®à¤¾ और परमातà¥à¤®à¤¾ को यथारà¥à¤¥à¤°à¥à¤ª में जान लेंगे तो हमें अपने जीवन के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ व लकà¥à¤·à¥à¤¯ सहित अपने साधनों का à¤à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हो जायेगा और तब हम अपनी आतà¥à¤®à¤¾ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• सतà¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° कर उसकी उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ कर सकते हैं। सांसारिक सà¥à¤–ों में पड़कर हम अपनी आतà¥à¤®à¤¾ को निरà¥à¤¬à¤² करते हैं जिसका परिणाम परजनà¥à¤® में उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ न होकर अवनति होता है। पशà¥, पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ व सà¥à¤¥à¤¾à¤µà¤° योनियों के उदाहरण हमारे सामने हैं। वेद और सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ पà¥à¤•à¤° हम जीवन जीने की सही दिशा पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सकते हैं और अपने मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन को सारà¥à¤¥à¤• कर सकते हैं। ओ३मॠशमà¥à¥¤
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