ईशà¥à¤µà¤° कहाठरहता हैं..?
Author
Rajeev ChoudharyDate
16-Jun-2018Category
लेखLanguage
HindiTotal Views
931Total Comments
0Uploader
RajeevUpload Date
16-Jun-2018Download PDF
-0 MBTop Articles in this Category
- फलित जयोतिष पाखंड मातर हैं
- राषटरवादी महरषि दयाननद सरसवती
- राम मंदिर à¤à¥‚मि पूजन में धरà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤°à¤ªà¥‡à¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ कहाठगयी? à¤à¤• लंबी सियासी और अदालती लड़ाई के बाद 5 अगसà¥à¤¤ को पà¥
- सनत गरू रविदास और आरय समाज
- बलातकार कैसे रकेंगे
Top Articles by this Author
- राम मंदिर à¤à¥‚मि पूजन में धरà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤°à¤ªà¥‡à¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ कहाठगयी? à¤à¤• लंबी सियासी और अदालती लड़ाई के बाद 5 अगसà¥à¤¤ को पà¥
- साईं बाबा से जीशान बाबा तक कà¥à¤¯à¤¾ है पूरा माजरा?
- शरियत कानून आधा-अधूरा लागू कयों
- तिबà¥à¤¬à¤¤ अब विशà¥à¤µ का मà¥à¤¦à¥à¤¦à¤¾ बनना चाहिà¤
- कà¥à¤¯à¤¾ आतà¥à¤®à¤¾à¤à¤‚ अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ में बोलती है..?
आमतौर पर à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ धारणा बना ली गयी है कि ईशà¥à¤µà¤° कहीं आकाश में रहता होगा और वही से बैठकर संचालन करता रहा होगा. वो कोई सफेद सी दाà¥à¥€ वाला बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤— सा दिखने वाला होगा. à¤à¤• आम हिनà¥à¤¦à¥‚ सोचता है वह सà¥à¤µà¤°à¥à¤— में रहता होगा, उसका महल दिवà¥à¤¯ रौशनी से नहाया हà¥à¤† होता होगा. à¤à¤• मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® सोचता है नहीं खà¥à¤¦à¤¾ का घर तो जनà¥à¤¨à¤¤ में है वह वहीं बैठकर उनकी नमाज अजान का शबाब लिख रहा होगा.
इनà¥à¤¹à¥€ कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾à¤“ं के जंजाल में वरà¥à¤·à¥‹ से इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ à¤à¥à¤°à¤®à¤¿à¤¤ है, उसे धरà¥à¤® के नाम पर सिरà¥à¤« à¤à¥à¤°à¤® बेचा जा रहा है उसे सà¥à¤µà¤°à¥à¤—-नरक की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ बेचीं जा रही है, उसे ईशà¥à¤µà¤° के ठिकानों के चितà¥à¤° बेचें जा रहे है उन चितà¥à¤°à¥‹à¤‚ से लगता है जैसे बादलों के बीच उसका घर होगा. हालाà¤à¤•à¤¿ यह à¤à¤• अनसà¥à¤²à¤à¤¾ रहसà¥à¤¯ है जिसे लोग अपनी कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सà¥à¤²à¤à¤¾ लेते है. पर ये रहसà¥à¤¯ इतना अनसà¥à¤²à¤à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ है कà¥à¤¯à¤¾ वासà¥à¤¤à¤µ में ईशà¥à¤µà¤° का घर इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ इंसानी कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾à¤“ं के आस-पास होगा? मसलन जैसी इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ वैसा ईशà¥à¤µà¤° का घर.?
कà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤¸à¤¾ नहीं लगता संसार की करीब-करीब समसà¥à¤¤ जातियों ने ईशà¥à¤µà¤° के रहने के ठिकाने अपनी-अपनी कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ से पैदा किये.? असल में यह सब ढंग पिछले 3 हजार सालों के दौरान पैदा हà¥à¤ इससे पहले ईशà¥à¤µà¤° था पर चितà¥à¤° नहीं थे. मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ नहीं थी, मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ नहीं थी. ईशà¥à¤µà¤° की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ थी लेकिन घंटे घडियाल न थे. अजान न थी. अराधानाओं का शोर नहीं था तब इनà¥à¤¸à¤¾à¤¨ मौन अवसà¥à¤¥à¤¾ में धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में जाकर अनà¥à¤¤à¤¸à¥ में गहरे उतरता, धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में जाकर उससे मिलन के आनंद का अनà¥à¤à¤µ करता...
इस रहसà¥à¤¯ को सà¥à¤²à¤à¤¾à¤¨à¥‡ के लिठहमें सबसे पहले ईशà¥à¤µà¤° को समà¤à¤¨à¤¾ होगा कि कैसे यह विशाल बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤‚ड अपने आप, चल रहा है-बिना किसी à¤à¤•à¥à¤¸à¥€à¤¡à¥‡à¤‚ट के, कोई पà¥à¤²à¤¿à¤¸ वाला तक नहीं है, अरबों-खरबों चमकते तारे हैं सब चलायमान है. पृथà¥à¤µà¥€ अपनी धà¥à¤°à¥€ पर करोड़ों वरà¥à¤· से à¤à¤• ही चाल पर घूम रही हैं. मौसम अपने समय पर बदल रहे है. विशाल सागर अपनी लहरों से लगातार किनारें छà¥à¤‚ रहे है. कà¥à¤¯à¤¾ आपको लगता है इतना बड़ा बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤‚ड कैसे बिना किसी नियंता के चल रहा है?
सà¤à¥€ चीजें अचà¥à¤›à¥‡ ढंग से चल रही हैं.. यह सब अनादि काल से चला आ रहा है. न कोई हिसाब-किताब रखता है, न कोई सूरज से कहता है कि समय हो गया. कोई अलारà¥à¤® घड़ी नहीं है, जो सूरà¥à¤¯ से कहे कि चलो बाहर निकलो अब उदय हो जाओ. किनà¥à¤¤à¥ सब बिलकà¥à¤² ठीक-ठाक चल रहा है. करोड़ों आकाशगंगाà¤à¤‚ और गà¥à¤°à¤¹-नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° घूम रहे हैं, कौन जाने अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥‡ उजाले में कहां वे आपस में टकरा जाà¤à¤‚! कोई उनकी देखà¤à¤¾à¤² नहीं कर रहा, न लाल-हरी बतà¥à¤¤à¥€, न टà¥à¤°à¥‡à¤«à¤¿à¤• सिगà¥à¤¨à¤² है, न कोई अदालत है और न कानून की धारा न कोई पचड़ा लेकिन सब कà¥à¤› वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ रूप से चल रहा है.
इसलिठजब तक कोई à¤à¤• जीवंत देह की तरह सà¥à¤µà¤¸à¤‚चालित न हो. तो कैसे कोई बाहरी नियंता अनादि काल से अनंतकाल तक इसकी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ आसमान में बैठकर समà¥à¤à¤¾à¤² सकता हैं? वह बोर हो जाà¤à¤—ा, आखिर इस सारे à¤à¤®à¥‡à¤²à¥‡ का मतलब कà¥à¤¯à¤¾ है? कोई उसे सेलरी तो देता नहीं है. सोचता होगा मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤¯à¤¾ मिलता है?
इसमें वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤•à¤¤à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ है कि कोई बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ से बाहर कोई दूसरी शकà¥à¤¤à¤¿ इसे चला रही है. जरा सोचिये कà¥à¤¯à¤¾ इंजन गाड़ी से अलग हो सकता है? कि इंजन कहीं ओर रखा है और गाड़ी चल रही है.? शायद नहीं गाड़ी तà¤à¥€ चलेगी जब इंजन उसके अनà¥à¤¦à¤° हो. तो कà¥à¤¯à¤¾ इतने बड़े बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ की रचना कही बाहर बैठकर हो सकती है.या इसको चलाने के लिठबाहर से इसकी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ हो सकती हैं.? जैसे देह के अनà¥à¤¦à¤° रहकर आतà¥à¤®à¤¾ शरीर को संचालित करती है तो जरà¥à¤° वो नीति नियंता इसी बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ के अनà¥à¤¦à¤° ही होगा इसलिठयजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ में कहा गया है कि जो कण-कण में विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है, जो निराकार है, जो सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• है, जो अनादि है, जो अनंत, अजनà¥à¤®à¤¾ है वही परमातà¥à¤®à¤¾ है. यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ के चालीसवें अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ के अनà¥à¤¤ में मंतà¥à¤° का सार है कि हे मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚! जो में यहां हूà¤, वहीं सूरà¥à¤¯ आदि लोकों में हूà¤, सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° परिपूरà¥à¤£ आकाश के तà¥à¤²à¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• मà¥à¤ से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ कोई बडा नहीं है’ मैं ही सबसे बडा हूà¤, मैं ही सबसे सूकà¥à¤·à¤®, मैं यहाठà¤à¥€ हूठवहां à¤à¥€ हूà¤, अत: इससे साफ समà¤à¤¾ जा सकता है कि ईशà¥à¤µà¤° का कोई निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ ठिकाना नहीं है वह आलौकिक दिवà¥à¤¯ शकà¥à¤¤à¤¿ सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° विधमान है....
ALL COMMENTS (0)