माता पिता की नितà¥à¤¯ सेवा करना सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ का धरà¥à¤® वा पितृ-यजà¥à¤ž है
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Manmohan Kumar AryaDate
13-Jul-2018Category
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13-Jul-2018Download PDF
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मनà¥à¤·à¥à¤¯ के जीवन में ईशà¥à¤µà¤° के बाद माता-पिता का सबसे अधिक महतà¥à¤µ है। इसके बाद जिन लोगों का महतà¥à¤µ है उनमें हमारे आचारà¥à¤¯, गà¥à¤°à¥ व उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ आते हैं जिनसे हम जà¥à¤žà¤¾à¤¨, विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ व अनेक विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करते व सीखते हैं। यदि दà¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ से कोई मनà¥à¤·à¥à¤¯ अपने माता-पिता आदि देवताओं के सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर उनकी सेवा आदि नहीं करता तो उसका जीवन पशà¥à¤“ं से à¤à¥€ निकृषà¥à¤Ÿ शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ का होता है। माता-पिता न हों तो हमें मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन मिलना ही असमà¥à¤à¤µ है। माता-पिता हमारे जनà¥à¤®à¤¦à¤¾à¤¤à¤¾ होने के साथ हमारे पालनकरà¥à¤¤à¤¾ à¤à¥€ होते हैं। वह हमारी शिकà¥à¤·à¤¾ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¥€ आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾à¤“ं को अपने पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ से अरà¥à¤œà¤¿à¤¤ धन का वà¥à¤¯à¤¯ कर पूरà¥à¤¤à¤¿ करते हैं। यह कारà¥à¤¯ माता पिता के अतिरिकà¥à¤¤ समाज में कोई और नहीं करता है। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से माता-पिता से हमें जो लाठव सà¥à¤– पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है, उसका ऋण उतारना हमारा करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है। यदि हम अपने माता-पिता के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अपना ऋण नहीं उतारेंगे तो करà¥à¤® फल सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ईशà¥à¤µà¤° हमसे उसकी पूरà¥à¤¤à¤¿ इस जनà¥à¤® वा परवरà¥à¤¤à¥€ जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ में करेगा जिसका परिणाम सà¥à¤– तो होना समà¥à¤à¤µ नहीं है, अवशà¥à¤¯ दà¥à¤ƒà¤– ही होगा।
संसार का कोई मनà¥à¤·à¥à¤¯ à¤à¤¸à¤¾ नहीं है जो दà¥à¤ƒà¤– चाहता हो। सà¤à¥€ दà¥à¤ƒà¤– से बचने के उपाय करते हैं। मनà¥à¤·à¥à¤¯ उचà¥à¤š शिकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है, यह आवशà¥à¤¯à¤• है। इसी के साथ उसे यह à¤à¥€ चाहिये कि वह योगà¥à¤¯ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• कर जीवन में होने वाले सà¤à¥€ दà¥à¤ƒà¤–ों के कारणों को जाने और उन कारणों से बचने व उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दूर करने के उपायों को à¤à¥€ जानना चाहिये। जीवन में मिलने वाले दà¥à¤ƒà¤–ों के अनेक कारण होते हैं। उनमें से à¤à¤• कारण यह à¤à¥€ होता है कि हमने पूरà¥à¤µà¤œà¤¨à¥à¤® या इस जनà¥à¤® में अपने माता-पिता के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वह सदà¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° न किया हो जो हमें करना चाहिये था अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जो हमारा करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ था। हो सकता है कि हमारे वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° से उनकी आतà¥à¤®à¤¾ व शरीर को दà¥à¤ƒà¤– पहà¥à¤‚चा हो जिसमें यह à¤à¥€ समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ है कि हमारे होते हà¥à¤ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उचित आवास, à¤à¥‹à¤œà¤¨, वसà¥à¤¤à¥à¤° व सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ जीवन उपलबà¥à¤§ न हो पाया हो। हमें अपने माता-पिता की तो आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾à¤“ं का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ तो रखना ही है, इसके साथ हमें अपने आचारà¥à¤¯, गà¥à¤°à¥à¤“ं व उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ की à¤à¥‹à¤œà¤¨, वसà¥à¤¤à¥à¤° व धन आदि से सेवा करने का अवसर गंवाना नहीं है। à¤à¤¸à¤¾ यदि हम करेंगे तो इन करà¥à¤®à¥‹à¤‚ को करके हम अनेक दà¥à¤ƒà¤–ों से बच सकते हैं। जहां तक पूरà¥à¤µ जनà¥à¤® के हमारे करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल है, वह तो हमें अवशà¥à¤¯ ही à¤à¥‹à¤—ने होंगे। उससे बचने का कोई उपाय नहीं है। हां, हमें यह जानकर कि हमें पूरà¥à¤µà¤œà¤¨à¥à¤®à¥‹à¤‚ के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ को अवशà¥à¤¯ à¤à¥‹à¤—ना है, हंस कर à¤à¥‹à¤—ें या रो कर à¤à¥‹à¤—ें, इनमें अचà¥à¤›à¤¾ है कि हम हंस कर उन दà¥à¤ƒà¤–ों को à¤à¥‹à¤—ें। हमें ईशà¥à¤µà¤° का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ व उपासना सहित सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ आदि सदà¥à¤—à¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ करते हà¥à¤ अविचलित होते हà¥à¤ वाचिक, मानसिक व कायिक दà¥à¤ƒà¤–ों को धैरà¥à¤¯ पूरà¥à¤µà¤• सहन करना चाहिये। à¤à¤¸à¤¾ करने से हमारे पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤¬à¥à¤§ से अशà¥à¤ करà¥à¤® नà¥à¤¯à¥‚न होते रहते हैं।
हम अपने माता-पिता के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अपने करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ व उनके निरà¥à¤µà¤¾à¤¹ की चरà¥à¤šà¤¾ कर रहे हैं। माता-पिता के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अपने करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की à¤à¤²à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से पूरà¥à¤¤à¤¿ का नाम ही पितृ यजà¥à¤ž है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ को चाहिये कि जहां वह नाना पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के मानसिक वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करता है, वहीं अधिक नहीं दो से पांच मिनट अपने माता-पिता के उपकारों व उनके कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ को à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ सà¥à¤®à¤°à¤£ कर लिया करे। à¤à¤¸à¤¾ करने से उसे यह लाठहोगा कि वह उनके पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अपने करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से शायद विमà¥à¤– न हो। वह यदि माता-पिता की अचà¥à¤›à¥€ तरह से सेवा करेगा तो उसे माता-पिता का आरà¥à¤¶à¥€à¤µà¤¾à¤¦ मिलेगा और साथ ही माता-पिता की सेवा दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वह जो सदà¥à¤•à¤°à¥à¤® करà¥à¤® रहा है उसका लाठà¤à¥€ उसे ततà¥à¤•à¤¾à¤² व कालानà¥à¤¤à¤° में अवशà¥à¤¯ ही पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होगा। हम जब अपने जीवन के विषय में सोचते हैं तो हमारे माता-पिता के हमारे लिये गये अनेक उपकार समà¥à¤®à¥à¤– आते हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ करने में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अनेक कठिनाईयां व दà¥à¤ƒà¤– सहे थे। आज हम चाह कर à¤à¥€ उनकी आतà¥à¤®à¤¾ को अपनी सेवा के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ व सà¥à¤–ी नहीं कर सकते। इसका कारण की बहà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के माता-पिता संसार में ही न हो। बहà¥à¤¤ लोगों को माता-पिता, समाज व विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ से माता-पिता के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की शिकà¥à¤·à¤¾ ही नहीं मिलती। अतः बचपन से ही हमारे विदà¥à¤µà¤¾à¤¨, पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤, आचारà¥à¤¯ व गà¥à¤°à¥ आदि सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को घर व विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ आदि में उपदेश करते रहें। राम व शà¥à¤°à¤µà¤£ कà¥à¤®à¤¾à¤° आदि की कथाओं के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¥€ सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को माता-पिता की सेवा के महतà¥à¤µ को बताया जाये तो उन सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को बड़ा होने पर इस विषय में पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¤¾à¤ª नहीं करना पड़ेगा।
हम जीवन में जो कà¥à¤› à¤à¥€ बनते हैं वह माता-पिता सहित अपने आचारà¥à¤¯ व गà¥à¤°à¥à¤“ं की कृपा से बनते हैं। जीवन में शिकà¥à¤·à¤¾ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का बहà¥à¤¤ महतà¥à¤µ है। हमारे सà¤à¥€ ऋषि वेदों के परम जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ हà¥à¤† करते थे। यह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ उनको गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ में अपने आचारà¥à¤¯ व ऋषियों से ही पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता था। सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ का à¤à¥€ जीवन में बहà¥à¤¤ महतà¥à¤µ है। पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल से ही हमारे ऋषियों ने सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ को नितà¥à¤¯ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ किया है। वेद, दरà¥à¤¶à¤¨, उपनिषद, मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿, वेदांग आदि का सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को जीवन à¤à¤° करना चाहिये। सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ का à¤à¥€ आवशà¥à¤¯à¤• अंग है। यदि हम सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ नहीं करेंगे तो हम सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ को उचित तरह से नहीं कर सकेंगे। सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ करने से मनà¥à¤·à¥à¤¯ को ईशà¥à¤µà¤°, जीव व संसार के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सहित अपने करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚, लकà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ तथा उसके साधनों का à¤à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है। जीवन के आरमà¥à¤ काल में हमें विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ में अपने आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£, à¤à¤¾à¤·à¤¾, जà¥à¤žà¤¾à¤¨, विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ तथा सामानà¥à¤¯ विषयों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करना होता है।
आजकल अनेक à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ हैं। हिनà¥à¤¦à¥€ व अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं का अपना महतà¥à¤µ है। यह à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हम सà¤à¥€ को सीखनी चाहियें। हम जहां रहते हैं वहां की कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ हमें होना चाहिये। इसके साथ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होना à¤à¥€ आवशà¥à¤¯à¤• है। इसके लिये सà¤à¥€ को विशेष पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ करने चाहिये। यदि सà¤à¥€ आरà¥à¤¯-हिनà¥à¤¦à¥‚ यह निशà¥à¤šà¤¯ कर लें कि हमें संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करना है तो इससे हमें बहà¥à¤¤ लाठहो सकता है। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर हम अपने शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को अचà¥à¤›à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से समठसकते हैं। शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से हमारा धरà¥à¤® व संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ बलशाली होंगे। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ जी ने सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ लिखकर à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़ी आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ की पूरà¥à¤¤à¤¿ की। उनके बनाये सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ को, जो कि आरà¥à¤¯à¤à¤¾à¤·à¤¾ हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में है, पà¥à¤•à¤° हम धरà¥à¤® व संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ विषयक अनेक बातों को आसानी से जान व समठसकते हैं। यह सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ ऋषि का समसà¥à¤¤ मानव जाति पर à¤à¤• महान उपकार है और हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं व आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पर तो यह उपकार à¤à¤¸à¤¾ है कि जिसका शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में वरà¥à¤£à¤¨ नहीं किया जा सकता। इस जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठही ऋषि दयाननà¥à¤¦ को अपने माता-पिता व उनका घर छोड़ना पड़ा था और देश के अनेक à¤à¤¾à¤—ों में जाकर विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ व योगियों को ढूंढ कर उनसे ईशà¥à¤µà¤° व आतà¥à¤®à¤¾ संबंधी अपने पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिठअपूरà¥à¤µ पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ करना पड़ा था। हमें सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ का नितà¥à¤¯ पाठकरना चाहिये। जीवन में जितनी बार à¤à¥€ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ का पाठकरेंगे उतना अधिक लाठहमें मिलेगा।
पितृ यजà¥à¤ž के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त हमें अपने माता-पिता की à¤à¥‹à¤œà¤¨, वसà¥à¤¤à¥à¤°, आवास आदि की अपने समान वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ कर उनकी पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ व सायं आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° सेवा à¤à¥€ करनी है। हमें उनके पà¥à¤°à¤¤à¤¿ à¤à¤¸à¤¾ सà¤à¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करना है कि जिससे उनका मन व आतà¥à¤®à¤¾ सदैव सनà¥à¤¤à¥à¤·à¥à¤Ÿ रहें। जहां तक समà¥à¤à¤µ हो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का कषà¥à¤Ÿ नहीं होना चाहिये। इस कारà¥à¤¯ से हमें इस जनà¥à¤® व परजनà¥à¤® में à¤à¥€ सà¥à¤– का लाठहोगा। यदि हम à¤à¤¸à¤¾ नहीं करेंगे तो ईशà¥à¤µà¤° की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से हमें माता-पिता की उपेकà¥à¤·à¤¾ का दणà¥à¤¡ मिलेगा जिससे बचने का अनà¥à¤¯ कोई उपाय नहीं है। अतः माता-पिता, आचारà¥à¤¯ और गà¥à¤°à¥à¤“ं के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ हमें अपने करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ को जानकर वा पितृ यजà¥à¤ž करके पितृ ऋण से उऋण होने का पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ करना चाहिये। ओ३मॠशमà¥à¥¤
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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