मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा करना कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ है गलत?
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Rajeev ChoudharyDate
16-Aug-2018Category
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16-Aug-2018Download PDF
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महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मूरà¥à¤¤à¤¿-पूजा करना वैसा ही है जैसे à¤à¤• चकà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ राजा को पूरे राजà¥à¤¯ का राजा
सनातन धरà¥à¤® को मानने वाले हर रोज सà¥à¤¬à¤¹-शाम किसी न किसी देवी-देवता की पूजा करते हैं. हिंदू धरà¥à¤® को मानने वाला किसी न किसी मूरà¥à¤¤à¤¿ रूपी à¤à¤—वान का उपासक है. किसी की राम में, किसी की कृषà¥à¤£ में तो किसी की शंकर में आसà¥à¤¥à¤¾ है. इसके विपरीत महरà¥à¤·à¤¿ दयानंद दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ आरà¥à¤¯ समाज का मानना है कि मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा नहीं करनी चाहिठया कह सकते हैं कि वह मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा के खिलाफ हैं. आरà¥à¤¯ समाज के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°, मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा करने वाला वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ होता है.
आरà¥à¤¯ समाज के ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वेद में मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा को अमानà¥à¤¯ कहा गया है. इसके पीछे कारण बताया जाता है कि ईशà¥à¤µà¤° का कोई आकार नहीं है और ना ही वो किसी à¤à¤• जगह वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है. आरà¥à¤¯ समाज के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ईशà¥à¤µà¤° दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के कण-कण में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है. इसलिठसृषà¥à¤Ÿà¤¿ के कण-कण में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ ईशà¥à¤µà¤° को केवल à¤à¤• मूरà¥à¤¤à¤¿ में सीमित करना ईशà¥à¤µà¤° के गà¥à¤£, करà¥à¤® और सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ के खिलाफ है. ईशà¥à¤µà¤° हमारे हृदय में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ आतà¥à¤®à¤¾ में वास करते हैं. इसलिठà¤à¤—वान की पूजा, पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ à¤à¤µà¤‚ उपासना के लिठमूरà¥à¤¤à¤¿ अथवा मंदिर की कोई जरूरत नहीं है.
किसने की मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤
à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ में मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ लगà¤à¤— तीन हजार साल पहले जैन धरà¥à¤® में हà¥à¤ˆ थी. जैन धरà¥à¤® के समरà¥à¤¥à¤•à¥‹à¤‚ ने अपने गà¥à¤°à¥à¤“ं की मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा कर इसकी शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ की थी. जबकि उस समय तक हिंदू धरà¥à¤® के शंकराचारà¥à¤¯ ने à¤à¥€ मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा का विरोध किया था, लेकिन शंकराचारà¥à¤¯ की मृतà¥à¤¯à¥ के बाद उनके समरà¥à¤¥à¤•à¥‹à¤‚ ने उनकी ही पूजा शà¥à¤°à¥‚ कर दी, जिसके बाद हिंदू धरà¥à¤® में à¤à¥€ मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा शà¥à¤°à¥‚ हो गई.
महरà¥à¤·à¤¿ दयानंद के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मूरà¥à¤¤à¤¿-पूजा करना वैसा ही है जैसे à¤à¤• चकà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ राजा को पूरे राजà¥à¤¯ का राजा न मानकर à¤à¤• छोटी सी à¤à¥‹à¤ªà¥œà¥€ का सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ माना जाना. इसी तरह à¤à¤—वान को à¤à¥€ संपूरà¥à¤£ विशà¥à¤µ का सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ न मानकर सिरà¥à¤« उसी मंदिर का सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ माना जाना जिस मंदिर में उस à¤à¤—वान की मूरà¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है. इनके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° चारों वेदों के 20589 के मंतà¥à¤°à¥‹ में से à¤à¤¸à¤¾ कोई मंतà¥à¤° नहीं है, जिसमें मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा का जिकà¥à¤° या समरà¥à¤¥à¤¨ किया गया हो. जबकि इसके उलटा वेदों में वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ किया गया है कि à¤à¤—वान की कोई मूरà¥à¤¤à¤¿ नहीं हो सकती.
न तसà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾sअसà¥à¤¤à¤¿ यसà¥à¤¯ नाम महदà¥à¤¯à¤¸: – (यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ 32 , मंतà¥à¤° 3)
मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा के विरोध पीछे कà¥à¤¯à¤¾ है आरà¥à¤¯ समाज का तरà¥à¤•?
मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा के विरोध में खड़े लोगों में सबसे पहले नाम आता है 'आरà¥à¤¯ समाज' का. जिसकी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ महरà¥à¤·à¤¿ दयानंद सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अपà¥à¤°à¥ˆà¤² 1875 में मà¥à¤‚बई में की गई थी. इस समाज के नियमों में ही है कि आप मूरà¥à¤¤à¤¿ के उपासक नहीं हो सकते. गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² पौंधा देहरादून में धरà¥à¤® विषय के आचारà¥à¤¯ शिवदेव शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ à¤à¤• कहानी सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ कहते हैं कि जब दयानंद सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ अपने बालà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤² अवसà¥à¤¥à¤¾ में थे, और उनका नाम मूलशंकर हà¥à¤† करता था. वो शिव के बहà¥à¤¤ बड़े à¤à¤•à¥à¤¤ हà¥à¤† करते थे. वो पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• सोमवार और शिवरातà¥à¤°à¤¿ को वà¥à¤°à¤¤ रखा करते थे.
इसी तरह à¤à¤• बार शिवरातà¥à¤°à¤¿ के तà¥à¤¯à¥‹à¤¹à¤¾à¤° पर रात को पूजा और à¤à¤œà¤¨ करने के बाद मूलशंकर अनà¥à¤¯ सà¤à¥€ शिव à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ की तरह वहीं मंदिर में रà¥à¤• गà¤. आधी रात के बाद जब बालक मूलशंकर की नींद खà¥à¤²à¥€ तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने देखा कि शिवलिंग पर चà¥à¤¾à¤ हà¥à¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ पर चूहे चà¥à¥‡ हà¥à¤ हैं. वो बताते है कि दयानंद सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ के दिमाग में उसी समय यह बात खटकी की जो मूरà¥à¤¤à¤¿ में समाया हà¥à¤† à¤à¤—वान à¤à¤• छोटे से चूहे से अपनी रकà¥à¤·à¤¾ नहीं कर सकता तो पूरे विशà¥à¤µ की कà¥à¤¯à¤¾ रकà¥à¤·à¤¾ करेगा?
इसी आधार पर आरà¥à¤¯ समाज मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा का पà¥à¤°à¤œà¥‹à¤° विरोध करता है. बकौल, शिवदेव शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€, महरà¥à¤·à¤¿ दयानंद सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मूरà¥à¤¤à¤¿-पूजा कोई सीढ़ी या माधà¥à¤¯à¤® नहीं बलà¥à¤•à¤¿ à¤à¤• गहरी खाई है. जिसमें गिरकर मनà¥à¤·à¥à¤¯ चकनाचूर हो जाता है और à¤à¤• बार इस खाई में गिर जाता है वो इस खाई से आसानी से नहीं निकल सकता है.
सà¥à¤§à¤¾à¤‚शॠगौर
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