सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ का हिनà¥à¤¦à¥€ में लिखा जाना à¤à¤• अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• घटना
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Manmohan Kumar AryaDate
28-Aug-2018Category
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HindiTotal Views
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RajeevUpload Date
28-Aug-2018Download PDF
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सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ कोई सामानà¥à¤¯ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ न होकर वैदिक धरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का धरà¥à¤®à¤—à¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है जिसका आधार वेद और वेद की निरà¥à¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ सतà¥à¤¯ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ à¤à¤µà¤‚ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ हैं। हम सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ को धरà¥à¤® गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ इस लिये कह रहे हैं कि सामानà¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ वेदों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर उससे वह लाठनहीं उठा सकता जो सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में वेदों के पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ सà¤à¥€ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं को सरल व सà¥à¤¬à¥‹à¤§ आरà¥à¤¯-हिनà¥à¤¦à¥€-à¤à¤¾à¤·à¤¾ में ऋषि दयाननà¥à¤¦ जी ने पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया है। यदि किसी जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¥ को इस संसार के उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿-करà¥à¤¤à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करना हो तो वह सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ के पà¥à¤°à¤¥à¤® व सपà¥à¤¤à¤® समà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ को पà¥à¤•à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सकता है। जीवातà¥à¤®à¤¾ और सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ विषयक सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ व जानकारी à¤à¥€ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ के सातवें व आठवें समà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ को पà¥à¤•à¤° हो जाती है। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ की विशेषयता यह à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होती है कि इसमें वेद सहित 6 दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ ऋषियों के वेदानà¥à¤•à¥‚ल सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ वा पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¸à¤‚गानà¥à¤¸à¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया गया है जिससे पूरा विषय कम समय में हृदयंगम हो जाता है और पà¥à¥‡ गये विषय के बारे में किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की शंका व à¤à¥à¤°à¤® नहीं होता। ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾ का जितना शà¥à¤¦à¥à¤§ व गमà¥à¤à¥€à¤° जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में उपलबà¥à¤§ होता है, हमारा अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ है कि वैसा व उतना संसार के किसी मत व पनà¥à¤¥ के धरà¥à¤® गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ में उपलबà¥à¤§ नहीं होता। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि विशà¥à¤µ के साहितà¥à¤¯ में दà¥à¤°à¥à¤²à¤ आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• व सामाजिक जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¤• ही गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ में हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में उपलबà¥à¤§ हो जाता है। आरà¥à¤¯à¤à¤¾à¤·à¤¾ हिनà¥à¤¦à¥€ का महतà¥à¤µ इस कारण से है कि यह आज करोड़ों लोगों की बोलचाल की à¤à¤¾à¤·à¤¾ है। यह सà¤à¥€ लोग इसी à¤à¤¾à¤·à¤¾ में सोचते हैं व परसà¥à¤ªà¤° बोलचाल का वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करते हैं। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ से पूरà¥à¤µ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ विषयों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ किसी à¤à¤• गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ को पà¥à¤•à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं होता था। यह वैदिक साहितà¥à¤¯ के अनेक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में बिखरा हà¥à¤† था जिसे ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने आधà¥à¤¨à¤¿à¤• काल की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ के अनà¥à¤°à¥‚प संकलित कर पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° वा वाद-विवाद शैली में उपलबà¥à¤§ कराया है। इसके अतिरिकà¥à¤¤ à¤à¥€ ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने बहà¥à¤¤ सी à¤à¤¸à¥€ बातें सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ की है जो उनकी अपनी खोज व विचार शकà¥à¤¤à¤¿ से हमें उपलबà¥à¤§ होती हैं। यदि वह यह गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ न लिखते तो आज हम इस पà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से वंचित होते और लोग सà¥à¤µà¤¯à¤‚ à¤à¥à¤°à¤®à¤¿à¤¤ होकर हमें à¤à¥€ à¤à¥à¤°à¤® में रखकर हमारा शोषण और दोहन करते और हमें वह आतà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤– व शानà¥à¤¤à¤¿ न मिलती जो सतà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर होती है। यह à¤à¥€ जान लें कि सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ के उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤°à¥à¤§ के चार समà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤à¥€à¤¯ मतों, चारवाक-बौदà¥à¤§-जैन मत सहित ईसाई व मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® मत की समीकà¥à¤·à¤¾ विषयक हैं जो जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¥ को सतà¥à¤¯ मत का निरà¥à¤£à¤¯ करने में सहायक à¤à¤µà¤‚ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤µà¤°à¥à¤§à¤• हैं।
सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ से लेकर महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल व उसके सैकड़ों वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक विशà¥à¤µ वा आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤ में सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° वेदों का ही पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° था और वैदिक मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ à¤à¤µà¤‚ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ का आचरण ही लोगों का धरà¥à¤® होता था। इस लमà¥à¤¬à¥€ अवधि में विशà¥à¤µ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ थी। किसी à¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ के उदà¥à¤à¤µ का इतिहास जानना हो तो यह उस à¤à¤¾à¤·à¤¾ की सबसे पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ उपलबà¥à¤§ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• के आधार पर जाना जा सकता है। विशà¥à¤µ की सबसे पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• वेद है जिसकी à¤à¤¾à¤·à¤¾ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ है। वेद सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में तिबà¥à¤¬à¤¤ में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ थे। उन दिनों तिबà¥à¤¬à¤¤ में ही मानवीय सृषà¥à¤Ÿà¤¿ थी। पृथिवी का शेष à¤à¤¾à¤— उन दिनों मानव सृषà¥à¤Ÿà¤¿ से रहित था। बाद में तिबà¥à¤¬à¤¤ से चलकर आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ने सारी सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को बसाया है। इसका पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ संसार की पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ सà¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ से मिलते जà¥à¤²à¤¤à¥‡ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ का पाया जाना है। वेद, सृषà¥à¤Ÿà¤¿ व मनà¥à¤·à¥à¤¯ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ 1,96,08,53,118 वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ है। इससे यह जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ à¤à¥€ इतनी ही पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ है। संसार की जितनी à¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं, उन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं के पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤¤à¤® गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ को देखकर उन-उन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं का आरमà¥à¤ व इतिहास का अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ कर सकते हैं। हमारा अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ है कि किसी à¤à¤¾à¤·à¤¾ के पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤¤à¤® गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ से कà¥à¤› सौ वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ ही उस à¤à¤¾à¤·à¤¾ का पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ होना आरमà¥à¤ होता है। जो à¤à¤¾à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ में आती है वह उससे पूरà¥à¤µ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ का किंचित विकार व परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ रूप होता है। महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल के बाद संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— कम होने लगा था और उसके सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ पर आधारित अनेक बोलियों व à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं का जनà¥à¤® हà¥à¤†à¥¤ वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ समय में जो à¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ व à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं वह पहले बोलियां रही होंगी जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बाद में उन उन à¤à¤¾à¤·à¤¾ के विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उस à¤à¤¾à¤·à¤¾ का संशोधित सà¥à¤µà¤°à¥‚प दिया गया होगा। अपने समय में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ किसी अनà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ जिसे पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤—करà¥à¤¤à¤¾à¤“ं के लिये कà¥à¤²à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ कह सकते हैं, उससे उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ नवीन à¤à¤¾à¤·à¤¾ पूरà¥à¤µ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का विकार व संशोधित रूप होती है। कालानà¥à¤¤à¤° में वह पूरà¥à¤µ पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ मà¥à¤–à¥à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ गौण हो जाती है और वह परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ बोली उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ करके à¤à¤¾à¤·à¤¾ बन जाती है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ की जितनी à¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ हैं वह सà¤à¥€ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ से आविरà¥à¤à¥‚त व उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हैं। सà¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤šà¥à¤°à¤¤à¤¾ है। कà¥à¤› à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में पहले संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ के पà¥à¤°à¤šà¥à¤° मातà¥à¤°à¤¾ में शबà¥à¤¦ होते थे परनà¥à¤¤à¥ उस à¤à¤¾à¤·à¤¾ के लोगों ने संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अपने दà¥à¤µà¥‡à¤· आदि के कारण उन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं से संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ को शनैः शनैः हटाया है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ का सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ ही à¤à¤¸à¤¾ है कि अलà¥à¤ªà¤œà¥à¤ž होने के कारण यह अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ व à¤à¥à¤°à¤® से गà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ हो जाता है और अनेक अविवेकपूरà¥à¤£ निरà¥à¤£à¤¯ à¤à¥€ लिया करता है।
जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को सामानà¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ तक पहà¥à¤‚चाना विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ का काम होता है। इसके लिये सामानà¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखना आवशà¥à¤¯à¤• है। यदि हमारे पास उन à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में उचà¥à¤š कोटि का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हो जिसे हम जानते नहीं है, तो उससे हम कोई लाठनहीं उठा सकते। विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ हमें जो जà¥à¤žà¤¾à¤¨ देते हैं वह कà¥à¤·à¤£à¤¿à¤• व कà¥à¤› समय के लिठहोता है। उसको सà¥à¤¥à¤¿à¤° करने के लिये हमें पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ के माधà¥à¤¯à¤® से पà¥à¤¨à¤°à¤¾à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ करनी होती है। महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ के बाद वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के अपà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ होने व उसमें अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ व अधंविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ आ जाने का à¤à¤• कारण यह à¤à¥€ था कि संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ के जानने वाले लोग कम होते गये। वेदों के अरà¥à¤¥ लौकिक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ में समà¥à¤à¤µ नहीं हैं। इसका कारण है कि वेदों के शबà¥à¤¦ रूॠन होकर योग रूà¥, यौगिक वा धातà¥à¤œ हैं। अतः वेदों के रूॠअरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ से यदि संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ का विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ काम लेगा तो अरà¥à¤¥ का अनरà¥à¤¥ हो सकता है। à¤à¤¸à¤¾ ही सायण व महीधर के साथ हà¥à¤†à¥¤ वह वेद मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ के रूॠअरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ं को गà¥à¤°à¤¹à¤£ करने के कारण यथारà¥à¤¥ अà¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤¯ को जान नहीं सके और मिथà¥à¤¯à¤¾ अरà¥à¤¥ करके वेदों की महतà¥à¤¤à¤¾ को समापà¥à¤¤ करने का काम किया। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने वेदों के सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ जानने के लिये अनेक विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• किया। अनà¥à¤¤ में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤œà¥à¤žà¤¾à¤šà¤•à¥à¤·à¥ गà¥à¤°à¥ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ विरजाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€, मथà¥à¤°à¤¾ का शिषà¥à¤¯à¤¤à¥à¤µ वा सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤†à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लगà¤à¤— तीन वरà¥à¤· उनके सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ में रहकर वैदिक संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ किया और अपने योग बल का उपयोग करते हà¥à¤ वह वेदों के सरल व यथारà¥à¤¥ अरà¥à¤¥ करने में सफल हà¥à¤à¥¤ आज वेदों का सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ लोगों को उपलबà¥à¤§ है जिससे लोगों के ईशà¥à¤µà¤°, जीव व पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¤ सà¤à¥€ à¤à¥à¤°à¤® व शंकायें दूर हà¥à¤ˆà¤‚ हैं। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने वेदों की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं वा सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ व ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¾à¤¦à¤¿à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯à¤à¥‚मिका में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ कर उसे जन-जन तक पहà¥à¤‚चाने का कारà¥à¤¯ किया है। यह ऋषि दयाननà¥à¤¦ का ‘à¤à¥‚तो न à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯à¤¤à¤¿’ के समान कारà¥à¤¯ है। आज ककà¥à¤·à¤¾ 5 तक हिनà¥à¤¦à¥€ पà¥à¤¾ हà¥à¤† वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ वेद पà¥à¤•à¤° उसके सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥ को जान सकता है। यह ऋषि दयाननà¥à¤¦ की बहà¥à¤¤ बड़ी देन है। यदि ऋषि दयाननà¥à¤¦ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶, ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¾à¤¦à¤¿à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯à¤à¥‚मिका सहित वेदों का à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ हिनà¥à¤¦à¥€ में न करते तो आज देश à¤à¤° में वेदों के सहसà¥à¤°à¥‹à¤‚ नहीं अपितॠलाखों की संखà¥à¤¯à¤¾ में जो विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ हैं, वह कदापि न होते और समाज में अजà¥à¤žà¤¾à¤¨, अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸, पांखणà¥à¤¡ और रूà¥à¤¿à¤µà¤¾à¤¦ की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ की हम कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ à¤à¥€ नहीं कर सकते। यह अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ वृदà¥à¤§à¤¿ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होतीं। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ को लिखकर इसके पाठक को वैदिक धरà¥à¤® की शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ ता का परिचय दिया है और उसे विधरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के धरà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¤£ के षडयनà¥à¤¤à¥à¤° से à¤à¥€ बचाया है। अब आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ के जन जन तक पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° की है जिससे सà¤à¥€ आरà¥à¤¯ व हिनà¥à¤¦à¥‚ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ पà¥à¤•à¤° अपने धरà¥à¤® में आरूॠरहकर दूसरों को वैदिक धरà¥à¤® की विशेषता बताकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करने के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ कर सकें।
ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने सनॠ1874 के उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤°à¥à¤§ में सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ की रचना की थी। इसका दूसरा संशोधित संसà¥à¤•à¤°à¤£ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सनॠ1883 में तैयार किया था। आजकल सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ का संशोधित संसà¥à¤•à¤°à¤£ ही पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ है। इस सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ की देश को आधà¥à¤¨à¤¿à¤• रूप देने में बहà¥à¤¤ बड़ी à¤à¥‚मिका है। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में ईशà¥à¤µà¤°, जीव व पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का सतà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥‚प विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है और वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ करने सहित ईशà¥à¤µà¤°à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤¨à¤¾ और अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° यजà¥à¤ž करने की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ à¤à¥€ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है। अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ व पाखणà¥à¤¡à¥‹à¤‚ का नाश करने में à¤à¥€ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ की मà¥à¤–à¥à¤¯ à¤à¥‚मिका है। देश को आजाद करने की सबसे पहले सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ à¤à¥€ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ ने ही की थी। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• वैदिक गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥€à¤¯ शिकà¥à¤·à¤¾ सहित आधà¥à¤¨à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ का à¤à¥€ पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤• है। वह सबको शिकà¥à¤·à¤¾ का समान अधिकार देता है। शिकà¥à¤·à¤¾ सबके लिये अनिवारà¥à¤¯ व निःशà¥à¤²à¥à¤• सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं वाली होनी चाहिये। कोई à¤à¥€ निरà¥à¤£à¤¯ बहà¥à¤®à¤¤ से नहीं अपितॠविदà¥à¤¯à¤¾ व गà¥à¤£-दोष के आधार पर लिये जाने चाहिये। देश में à¤à¤• समान आचार संहिता होनी चाहिये। धरà¥à¤® का पालन निजी तौर पर किया जाना चाहिये। उसका देश व नागरिकों पर बà¥à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ नहीं होना चाहिये। देश को जनसंखà¥à¤¯à¤¾ की नीति à¤à¥€ बनानी चाहिये जिससे à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में à¤à¥à¤–मरी व अवà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ के साथ हिंसा आदि उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ न हो। मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की जनसंखà¥à¤¯à¤¾ à¤à¥€ समान दर से ही बà¥à¤¨à¥€ चाहिये, किसी वरà¥à¤— व समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ की कम व किसी की अधिक नहीं होनी चाहिये। देश में जनसंखà¥à¤¯à¤¾ वृदà¥à¤§à¤¿ से साधनों का अà¤à¤¾à¤µ होने सहित अनेक पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ जà¥à¥œà¥‡ हà¥à¤ हैं। इसे सà¥à¤¥à¤¿à¤° रखने के पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ किये जाने चाहियें। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ की सतà¥à¤¯ व अकाटà¥à¤¯ बातों को सबको सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करना चाहिये। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ को पà¥à¤¨à¥‡ से मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ का विकास होता है। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ पà¥à¤•à¤° मनà¥à¤·à¥à¤¯ की विशà¥à¤²à¥‡à¤·à¤£ कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ में वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। वह देश व समाज के हित-अहित के कारणों को जानने में समरà¥à¤¥ होता है। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ मानव मातà¥à¤° का समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ धरà¥à¤®à¤—à¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है। हिनà¥à¤¦à¥€ में होने से हम इसे पूरà¥à¤£ रूप से जानने में समरà¥à¤¥ होते हैं। सà¤à¥€ को सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ को अपना कर अपने दोनों लोकों का सà¥à¤§à¤¾à¤° करना चाहिये। ओ३मॠशमà¥à¥¤
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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