इस माठकी à¤à¥€ पà¥à¤•à¤¾à¤° सà¥à¤¨à¥‡
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Rajeev ChoudharyDate
14-Sep-2018Category
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HindiTotal Views
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14-Sep-2018Download PDF
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à¤à¤• माठवह होती है जो हमें जनà¥à¤® देती है. हमारा पालन-पोषण करती है. दूसरी ‘मां’ वह है जिसे दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ धरती माता के नाम से जानती है. यह हमें साà¤à¤¸, खाना-पीना देती है, रहने के लिठसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ देती है. इसे यूठकहें कि पैदा होने के बाद दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में जितनी चीजें दिखती हैं, सब कà¥à¤› इसी ‘धरती माता की देन है. जब हमारी जनà¥à¤® देने वाली मां यदि बीमार पड़ जाती हैं, तो हम परेशान हो उठते है हम उसके इलाज के लिठदिन-रात à¤à¤• कर देते हैं, जबकि इस मां ने दो-चार ही बेटे-बेटियां जनà¥à¤®à¥‡ हैं. लेकिन धरती माता जिसके कई करोड़ ‘बेटे-बेटी’ हैं. वह बीमार है और आज पà¥à¤•à¤¾à¤° रही है लेकिन कोई संà¤à¤¾à¤²à¤¨à¥‡ वाला नहीं है.
आखिर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ आज हम इस ‘मां’ के दà¥à¤¶à¥à¤®à¤¨ बन गठहैं? हरे-à¤à¤°à¥‡ वृकà¥à¤· काट रहे हैं. इसके गरà¥à¤ में रोज खतरनाक परीकà¥à¤·à¤£ कर रहे हैं. इतना जल दोहन किया कि कई हिसà¥à¤¸à¥‡ जलविहीन हो गठहैं. पूरी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में इस वकà¥à¤¤ जितना पानी बचा है उसमें से 97.5 फीसदी समà¥à¤¦à¥à¤°à¥€ पानी है जो की खारा है. बाकी 1.5 फीसदी बरà¥à¤« के रà¥à¤ª में है. सिरà¥à¤« 1 फीसद पानी ही हमारे पास बचा है जो कि पीने योगà¥à¤¯ है. साल 2025 तक à¤à¤¾à¤°à¤¤ की आधी आबादी और दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ की 1.8 फीसदी आबादी के पास पीने का पानी नहीं होगा और 2030 तक वैशà¥à¤µà¤¿à¤• सà¥à¤¤à¤° पर पानी की मांग आपूरà¥à¤¤à¤¿ के मà¥à¤•à¤¾à¤¬à¤²à¥‡ 40 फीसदी जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ हो जाà¤à¤—ी.
इसके बाद यदि आगे बढे तो दिन पर दिन पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• संसाधनो जैसे खनिज पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का उपयोग जैसे कोयला, अà¤à¥à¤°à¤• समेत अनà¥à¤¯ खनिज पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के लिठइस धरा का दोहन जारी है यदि विकसित देशों की खपत के आकडों की माने तो 2050 तक इनका दोहन 140 अरब टन पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वरà¥à¤· हो जाà¤à¤—ा. यानि धरा बिलकà¥à¤² खोखली हो जाà¤à¤—ी. सोचिये जब इस धरा के अनà¥à¤¦à¤° जल नहीं होगा ऊपर पेड़ नहीं होंगे तब कà¥à¤¯à¤¾ होगा.? वही होगा जो हम हमेशा सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ आये है तब पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ में पà¥à¤°à¤šà¤‚ड उथल-पà¥à¤¥à¤² होगी. à¤à¥‚कमà¥à¤ª के कारण पूरे देश के देश पृथà¥à¤µà¥€ के गरà¥à¤ में समा जायेंगे. जहाà¤-जहाठउतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤à¤ होगी, वे देश महासागर में परिणत हो जायेंगे.
सब जानते है पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के रà¥à¤ª में à¤à¤—वान ने मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¤• बेहद ही खूबसूरत उपहार दिया है. लेकिन हम इसी उपहार को संजोय रखने के लिठनाकामयाब साबित हो रहे है, हमारी इस फितरत का खामियाजा धरती को à¤à¥à¤—तना पड़ रहा है. हमारा पास खà¥à¤¬à¤¸à¥‚रत पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के अलावा कई अनà¥à¤¯ चीजें जैसे अनà¥à¤¨, पानी, वृकà¥à¤·, उरà¥à¤œà¤¾, खनिज पदारà¥à¤¥ आदि है किनà¥à¤¤à¥ अगर हम समय रहते नहीं चेते तो हमारे पास ये पदारà¥à¤¥ à¤à¥€ नहीं रहेंगे. तब हम कà¥à¤¯à¤¾ करेंगे?
कहा जाता आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ अविषà¥à¤•à¤¾à¤° की जननी है. किनà¥à¤¤à¥ यदि हम समय रहते आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾à¤“ं के अविषà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को अपना ले तो हम पृथà¥à¤µà¥€ को या अपनी आने वाली पीà¥à¥€ को काफी हद तक बचा सकते है. आज विधà¥à¤¤ उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ में उपयोग होने वाला सबसे बड़ा ईंधन कोयला है जोकि धरती के गरà¥à¤ को चीरकर निकाला जा रहा है. लेकिन कब तक? अगले कà¥à¤› सालों में ही कोयला पूरी तरह से समापà¥à¤¤ हो जाà¤à¤—ा. हम इस तथà¥à¤¯ से à¤à¥€ इनकार नहीं कर सकते हैं कि देश की आबादी में तेजी से वृदà¥à¤§à¤¿ हो रही है. देश में अधिकांश बिजली (लगà¤à¤— 53 पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤) का उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ कोयले से होता है और जिसके चलते यह à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯à¤µà¤¾à¤£à¥€ की गई है कि वरà¥à¤· 2040-50 के बाद देश में कोयले के à¤à¤‚डार समापà¥à¤¤ हो जाà¤à¤‚गे. इसके बाद दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ विधà¥à¤¤ के लिठकà¥à¤¯à¤¾ इजाद करेगी?
अधिकांश का जवाब होगा पानी! किनà¥à¤¤à¥ गà¥à¤²à¥‹à¤¬à¤² वारà¥à¤®à¤¿à¤‚ग जलवायॠपरिवरà¥à¤¤à¤¨ के कारण नदियों पर जो संकट मंडरा रहा है उसे देखकर तो लगता नहीं! आप सà¥à¤µà¤¯à¤‚ अपने इरà¥à¤¦à¤—िरà¥à¤¦ देखिये आपके देखते-देखते कितनी छोटी-छोटी नहरे और नदियाठआज या सूख गयी या फिर गंदे नालों में तबà¥à¤¦à¥€à¤² हो गयी. इसे देखकर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारी नदियों का जीवन à¤à¥€ अब लमà¥à¤¬à¤¾ नहीं बचा. अब अंत में उतà¥à¤¤à¤° हो सकता है कि सौर ऊरà¥à¤œà¤¾ शायद à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में यही सबसे उपयà¥à¤•à¥à¤¤ विकलà¥à¤ª हमारे हाथ में होगा.
सौर ऊरà¥à¤œà¤¾ का à¤à¤• अतà¥à¤²à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤°à¥‹à¤¤ होने के साथ-साथ à¤à¤¾à¤°à¤¤ की अनà¥à¤¯ गैर-परंपरागत ऊरà¥à¤œà¤¾à¤“ं में सबसे बेहतरीन विकलà¥à¤ªà¥‹à¤‚ में से à¤à¤• है. इससे पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को कोई नà¥à¤•à¤¸à¤¾à¤¨ नहीं है इस कारण आज सौर ऊरà¥à¤œà¤¾, à¤à¤¾à¤°à¤¤ में ऊरà¥à¤œà¤¾ की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾à¤“ं की बà¥à¤¤à¥€ माà¤à¤— को पूरा करने का सबसे अचà¥à¤›à¤¾ तरीका है. इस दिशा में देश की सबसे पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ सामाजिक संसà¥à¤¥à¤¾ आरà¥à¤¯ समाज ने à¤à¤• अचà¥à¤›à¥€ पहल का शà¥à¤à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ करने जा रही है जिसमें पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• आरà¥à¤¯ समाज मंदिर और आरà¥à¤¯ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ अगले कà¥à¤› समय में सौर ऊरà¥à¤œà¤¾ का इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² कर पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को बचाने में अपना सहयोग पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करेंगे या ये कहें कि धरती माठको बचाने बेटे की à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤à¤—ा.
आंकड़े बताते है कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ के लगà¤à¤— सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वरà¥à¤— मीटर के हिसà¥à¤¸à¥‡ में, पà¥à¤°à¤¤à¤¿ घंटे 4 से 7 किलोवाट की औसत से सूरà¥à¤¯ का पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है. à¤à¤¾à¤°à¤¤ में पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वरà¥à¤· लगà¤à¤— 2,300 से 3,200 घंटे धूप निकलती है. इस कारण हम बड़ी मातà¥à¤°à¤¾ में सौर ऊरà¥à¤œà¤¾ से विधà¥à¤¤ उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ कर सकते है. साथ ही हम लोगों से पोलीथीन का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— समापà¥à¤¤ कर परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ बचाने में जागरूकता के कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ à¤à¥‚गरà¥à¤à¥€à¤¯ जल का सà¥à¤¤à¤° बà¥à¤¾à¤¨à¥‡ के लिठमकानों à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ में वरà¥à¤·à¤¾ जल संगà¥à¤°à¤¹ की जागरूकता का à¤à¥€ कारà¥à¤¯ करेंगे. वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ के बचाव तथा जल के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— में à¤à¥€ लोगों को सावधानी बरतने के लिठआगà¥à¤°à¤¹ करेंगे. सब जानते है कि लाख कोशिशों के बाद à¤à¥€ दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¤° के वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• ‘दूसरी पृथà¥à¤µà¥€’ को नहीं ढूंढ सकें. अत: धरती माता के बचाव के लिठसबको आगे आना चाहिà¤. वरना हमारे पास पछताने के अलावा कà¥à¤› नहीं बचेगा..
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