देश और समाज को अपना सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µ समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करने वाले आदरà¥à¤¶ महापà¥à¤°à¥à¤· ऋषिà¤à¤•à¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦
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Manmohan Kumar AryaDate
15-Nov-2018Category
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HindiTotal Views
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15-Nov-2018Download PDF
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महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ जी ने सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में जिस पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ वैदिक कालीन गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥€à¤¯ शिकà¥à¤·à¤¾ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ का विवरण पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया था उसे साकार रूप देने का सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ उनके पà¥à¤°à¤®à¥à¤– अनà¥à¤¯à¤¤à¤® शिषà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ जी (पूरà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤® महातà¥à¤®à¤¾ मà¥à¤‚शीराम) ने लिया था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इसके लिये अपना सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µ अरà¥à¤ªà¤£ किया। इतिहास में शायद à¤à¤¸à¤¾ उदाहरण नहीं मिलता। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपना पूरा जीवन, समसà¥à¤¤ धन दौलत, à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• समà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ सहित अपने दोनों पà¥à¤¤à¥à¤° à¤à¥€ गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥€à¤¯ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ किये थे। गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² को सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करने के लिठसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ जी ने जो तà¥à¤¯à¤¾à¤— व बलिदान किया उसका उलà¥à¤²à¥‡à¤– उनके जीवनीकार पं. सतà¥à¤¯à¤¦à¥‡à¤µ विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤‚कार जी ने अपनी पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• ‘सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦’ में किया है। हम उसी विवरण को यहां पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ कर रहे हैं।
गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ के समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ में ‘जो बोले सो कà¥à¤£à¥à¤¡à¤¾ खोले’ की कहावत महातà¥à¤®à¤¾ मà¥à¤‚शीराम जी पर अकà¥à¤·à¤°à¤¶à¤ƒ चरितारà¥à¤¥ होती है। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के संसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤• ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने शिकà¥à¤·à¤¾ की जिस पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¨ आरà¥à¤· पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ को पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¥€à¤µà¤¿à¤¤ करने पर अपने गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में जोर दिया है, इसके लिठमहातà¥à¤®à¤¾ जी ने हृदय में कà¥à¤› à¤à¤¸à¥€ सà¥à¤«à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ पैदा हà¥à¤ˆ कि उसके पीछे à¤à¤¿à¤–ारी बन गये। गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ का पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ आपने ही आरà¥à¤¯ जनता के समà¥à¤®à¥à¤– उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ किया था। उस पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ को मूरà¥à¤¤ रूप दने के लिठआप को ही गांव-गांव घूम कर गले में à¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¤¾ की à¤à¥‹à¤²à¥€ डाल कर चालीस हजार रà¥à¤ªà¤¯à¤¾ जमा करना पड़ा (आजकल के हिसाब से यह धनराशि लगà¤à¤— 15 से 25 करोड़ के बीच हो सकती है -मनमोहन) और घर-बार तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ à¤à¥€ गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² में आकर बसेरा डालना पड़ा। उस के आचारà¥à¤¯ और मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤§à¤¿à¤·à¥à¤ ाता होकर उसको पालने-पोसने और आदरà¥à¤¶ शिकà¥à¤·à¤£à¤¾à¤²à¤¯ बनाने का सब काम à¤à¥€ आप को ही करना पड़ा। हृदय के दो टà¥à¤•à¥œà¥‡-दोनों पà¥à¤¤à¥à¤° शà¥à¤°à¥‚ में ही गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² के अरà¥à¤ªà¤£ कर दिये गये थे। फलती-फूलती हà¥à¤ˆ वकालत रूपी हरा पौधा à¤à¥€ गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² के ही पीछे मà¥à¤°à¤à¤¾ गया था। पहिले ही वरà¥à¤·, सनॠ1902 में आपने अपना सब पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¤¾à¤²à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² को à¤à¥‡à¤‚ट किया। समà¥à¤µà¤¤à¥ 1908 में लाहौर आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के तीसवें उतà¥à¤¸à¤µ पर सदà¥à¤§à¤°à¥à¤® पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤• पà¥à¤°à¥‡à¤¸ à¤à¥€, जिसकी कीमत आठहजार से कम नही थी, गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² के चरणों पर चà¥à¤¾ दिया। तीस हजार से अधिक लगा कर खड़ी की गई जालनà¥à¤§à¤° की केवल à¤à¤• कोठी बाकी थी। उसको à¤à¥€ सनॠ1911 में गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² के दसवें वारà¥à¤·à¤¿à¤•à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤µ पर गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² पर नà¥à¤¯à¥Œà¤›à¤¾à¤µà¤° कर दिया। सà¤à¤¾ ने उसको बीस हजार में बेच कर यह रकम गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² के सà¥à¤¥à¤¿à¤° कोष में जमा की। यह सब उस हालत में किया गया था जबकि आपके सिर पर हजारों का ऋण था और गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² से निरà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¾à¤°à¥à¤¥ à¤à¥€ आप कà¥à¤› नहीं लेते थे। कोठी दान करते हà¥à¤ सà¤à¤¾ के पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ के नाम लिखे à¤à¤• पतà¥à¤° में आपने लिखा था ‘‘मà¥à¤à¥‡ इस समय 3600 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ ऋण देना है, वह मैं अपने लेख आदि की आय से चà¥à¤•à¤¾ दूंगा। इस मकान से उस ऋण का कोई समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ नहीं है।”
इस पर à¤à¥€ छिदà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤µà¥‡à¤·à¥€ लोगों के ये आकà¥à¤·à¥‡à¤ª थे कि आप अपने पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के लिठकà¥à¤› न छोड़ कर पीछे उन पर करà¥à¤œ का à¤à¤¾à¤° लाद जायेंगे। मà¥à¤‚शीराम जी ने वह सब ऋण उतार कर और सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ को गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² की सरà¥à¤µà¥‹à¤šà¥à¤š शिकà¥à¤·à¤¾ से अलंकृत करके à¤à¤¸à¥‡ सब लोगों के मà¥à¤‚ह बनà¥à¤¦ कर दिये थे। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° तन, मन, धन सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µ आपने गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² को अरà¥à¤ªà¤£ कर दिया। अधà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•à¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर à¤à¥€ इसका इतना असर पड़ा कि पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ सबने अपने वेतन में कमी कराई और à¤à¤•-à¤à¤• मास का वेतन गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² को दान में दिया। अनà¥à¤¤ में आप ने अपना सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ à¤à¥€ गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² के पीछे मिटà¥à¤Ÿà¥€ कर दिया। सनॠ1908 में आप को लाहौर में हरà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ का आपरेशन तक कराना पड़ा। पर, वह सब कषà¥à¤Ÿ सदा के लिठही बना रहा। पेटी बांधने पर à¤à¥€ वह कषà¥à¤Ÿ कà¤à¥€-कà¤à¥€ उगà¥à¤° रूप धारण कर लेता था। कई बार पांच-पांच, छः-छः मास के लिठडाकà¥à¤Ÿà¤° बाधित करके आप को कà¥à¤µà¥‡à¤Ÿà¤¾, कसौली आदि पहाड़ी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर à¤à¥‡à¤œà¤¤à¥‡ थे, पर आपको à¤à¤•-दो महीने में ही गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² की चिनà¥à¤¤à¤¾ वहां से वापिस लौटी लाती थी। गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² के लिठचनà¥à¤¦à¤¾ इकटà¥à¤ ा करने के लिठजो दौरे आपको करने पड़ते थे, उनसे सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ को बहà¥à¤¤ धकà¥à¤•à¤¾ लगता था। सनॠ1910, 1911 और 1912 में गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² से विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का शà¥à¤²à¥à¤• लेना बनà¥à¤¦ कर लिया गया था। उन वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में आपको बजट की पूरà¥à¤¤à¤¿ के लिठजो कठोर परिशà¥à¤°à¤® करना पड़ा, उसका सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ पर बहà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¾ असर पड़ा। सनॠ1914 में आपने गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² के लिठ15 लाख रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की सà¥à¤¥à¤¿à¤° निधि जमा करने के लिठकठिन परिशà¥à¤°à¤® शà¥à¤°à¥‚ किया ही था कि सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ ने साथ नहीं दिया। मानो अपने सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ की आपने उस सरà¥à¤µà¤®à¥‡à¤§ यजà¥à¤ž में अनà¥à¤¤à¤¿à¤® आहà¥à¤¤à¤¿ दी थी, जिसका अलौकिक अनà¥à¤·à¥à¤ ान आपने आपने अपने जीवन रूपी यजà¥à¤žà¤•à¥à¤£à¥à¤¡ में किया था। आपने अपने को गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² के साथ इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° तनà¥à¤®à¤¯ कर दिया था कि आप के वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ और गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ को à¤à¤•-दूसरे से अलग करने वाली किसी सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ रेखा का अंकित करना संà¤à¤µ नहीं था। वैसे मà¥à¤‚शीराम जी के हृदय में इस सरà¥à¤µà¤®à¥‡à¤§-यजà¥à¤ž के अनà¥à¤·à¥à¤ ान की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ बहà¥à¤¤ पहले ही पैदा हो चà¥à¤•à¥€ थी।
सनॠ1891 की डायरी के 5 पौष (12 जनवरी) के पृषà¥à¤ मे लिखा हà¥à¤† है-‘‘मातृà¤à¥‚मि के पà¥à¤¨à¤°à¥à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤° के लिठबडे़ तप-यà¥à¤•à¥à¤¤ आतà¥à¤®à¤¸à¤®à¤°à¥à¤ªà¤£ की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है। बार-रूम में वकील à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ इस पेशे से धरà¥à¤®à¤¾à¤§à¤°à¥à¤® के विषय में बातचीत हà¥à¤ˆà¥¤ मैं बार-बार अपने आतà¥à¤®à¤¾ से पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ कर रहा हूं कि वैदिक धरà¥à¤® की सेवा का वà¥à¤°à¤¤ धारण किये हà¥à¤ कà¥à¤¯à¤¾ मैं वकील रह सकता हूं? मारà¥à¤— कà¥à¤¯à¤¾ है? कौन बतलाà¤à¤—ा? अपने सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ परमपिता से ही कलà¥à¤¯à¤¾à¤£-मारà¥à¤— पूछना चाहिये। यह संशयातà¥à¤®à¤• सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ ठीक नहीं। अपने देश तथा धरà¥à¤® की सेवा के लिठपूरा आतà¥à¤®-समरà¥à¤ªà¤£ करना चाहिये। परनà¥à¤¤à¥ परिवार à¤à¥€ à¤à¤• बड़ी रà¥à¤•à¤¾à¤µà¤Ÿ है। संदिगà¥à¤§ अवसà¥à¤¥à¤¾ में हूं। कà¥à¤› निशà¥à¤šà¤¯ शीघà¥à¤° होना चाहिà¤à¥¤ कृषà¥à¤£ à¤à¤—वानॠने कहा--संशयातà¥à¤®à¤¾ विनशà¥à¤¯à¤¤à¤¿à¥¤ पिता, तà¥à¤® ही पथ पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤• हो।” यही नहीं, à¤à¤• वरà¥à¤· पहिले सनॠ1890 के 15 माघ की डायरी में à¤à¥€ लिखा हà¥à¤† है ‘‘गृहसà¥à¤¥ मà¥à¤à¥‡ अनà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ की आवाज सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ से रोकता है, नहीं तो बहà¥à¤¤ काम हो सकता था। फिर à¤à¥€ जो कà¥à¤› कर सकता हूं, उसके लिठपरमातà¥à¤®à¤¾ को धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ है।” à¤à¤¸à¥‡ उदà¥à¤§à¤°à¤£ और à¤à¥€ दिये जा सकते हैं और उनकी समरà¥à¤¥à¤• कà¥à¤› घटनाठà¤à¥€ उदà¥à¤§à¥ƒà¤¤ की जा सकती है, किनà¥à¤¤à¥ इतने से ही यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ हो जाता है कि मà¥à¤‚शीराम जी गृहसà¥à¤¥ और वकालत दोनों के बनà¥à¤§à¤¨ काट कर देश और धरà¥à¤® की वेदी पर पूरे आतà¥à¤®-समरà¥à¤ªà¤£ अथवा सरà¥à¤µà¤®à¥‡à¤§-यजà¥à¤ž के अनà¥à¤·à¥à¤ ान की तयà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ बहà¥à¤¤ पहिले से ही कर रहे थे। इसीलिठपतिवà¥à¤°à¤¤à¤¾ पतà¥à¤¨à¥€ के असामयिक देहावसान के बाद पैंतीस-छतà¥à¤¤à¥€à¤¸ वरà¥à¤· की साधारण आयà¥, छोटे-छोटे बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के लालन-पालन की विकट समसà¥à¤¯à¤¾ और मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ व समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का सांसारिक पà¥à¤°à¤²à¥‹à¤à¤¨à¥‹à¤‚ से à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ आगà¥à¤°à¤¹ होने पर à¤à¥€ मà¥à¤‚शीराम जी फिर से गृहसà¥à¤¥ में फंसने का विचार तक नहीं कर सकते थे।
निवृतà¥à¤¤à¤¿ के मारà¥à¤— की ओर मà¥à¤‚ह किये हà¥à¤ महातà¥à¤®à¤¾ जी के लिठआतà¥à¤®-समरà¥à¤ªà¤£ करने का अवसर उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होने पर फलती-फूलती वकालत à¤à¥€ रà¥à¤•à¤¾à¤µà¤Ÿ नहीं बन सकी। राजà¤à¤µà¤¨ की मोह-माया और ममता के सब बनà¥à¤§à¤¨ à¤à¤• साथ तोड़ कर घोर तपसà¥à¤¯à¤¾ के लिठजंगल का रासà¥à¤¤à¤¾ पकड़ने वाले बà¥à¤¦à¥à¤§ के समान मà¥à¤‚शीराम जी ने à¤à¥€ वेद की इस वाणी को हृदयंगम करते हà¥à¤ ‘उपहà¥à¤µà¤°à¥‡ गिरीणां संगमे च नदीनां धियो विपà¥à¤°à¥‹à¤½à¤œà¤¾à¤¯à¤¤’ की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से चणà¥à¤¡à¥€ पहाड़ की तराई में हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में गंगा के उस पार विकट जंगलों का रासà¥à¤¤à¤¾ पकड़ा। कहते हैं तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी दयाननà¥à¤¦ ने à¤à¥€ सनॠ1824 के कà¥à¤®à¥à¤ के बाद सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤¯à¤¾à¤—ी होकर केवल लंगोटी रख तपसà¥à¤¯à¤¾ को पूरà¥à¤£à¤¤à¤¾ तक पहà¥à¤‚चाने के लिठइनà¥à¤¹à¥€à¤‚ जंगलों का रासà¥à¤¤à¤¾ पकड़ा था। गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² की वह à¤à¥‚मि, मà¥à¤‚शीराम जी के सरà¥à¤µà¤®à¥‡à¤§ यजà¥à¤ž के अनà¥à¤·à¥à¤ ान की यजà¥à¤žà¤à¥‚मि होने से, पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की दणà¥à¤¡à¤•à¤¾à¤°à¤£à¥à¤¯ की à¤à¥‚मि के समान ही आप के लिठतपोà¤à¥‚मि बन गई। उठती हà¥à¤ˆ आयॠके वैà¤à¤µ-समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होने के जीवन के सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ à¤à¤¾à¤— को उस बीहड़ जंगल में गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² के रूप में पूरà¥à¤£ सà¥à¤µà¤¤à¤¨à¥à¤¤à¥à¤° उपनिवेश बसाने में लगा देने के कारण उस à¤à¥‚मि को आपकी करà¥à¤®à¤à¥‚मि कहना चाहिà¤à¥¤ गंगा की धारा के पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤•à¥‹à¤ª के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥‚ल à¤à¤• नयी सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना करने वाले महातà¥à¤®à¤¾ मà¥à¤‚शीराम जी ही उस à¤à¥‚मि के बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ थे। उस à¤à¥‚मि का छोटे से छोटा परिवरà¥à¤¤à¤¨ à¤à¥€ आपकी आंखों के सामने हà¥à¤† था। गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² की वाटिका में लगाये गये à¤à¤•-à¤à¤• पौधे और उसमें बखेरे गये à¤à¤•-à¤à¤• बीज को आपका आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ था। उस à¤à¥‚मि में खड़े किये गये मकानों की नींव तक में à¤à¤°à¥€ हà¥à¤ˆ à¤à¤•-à¤à¤• रोड़ी और उस रोड़ी पर जमाई गई à¤à¤•-à¤à¤• इंरà¥à¤Ÿ में आपके तà¥à¤¯à¤¾à¤— की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ कà¥à¤› à¤à¤¸à¥€ समाई हà¥à¤ˆ थी, जैसे आपने अपने हाथों से ही उनको चà¥à¤¨à¤¾ हो। घूमने की सड़कें, खेलने के मैदान और आशà¥à¤°à¤® तथा विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के दालान, सारांश यह कि गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² की सबकी सब रचना आपके महानॠवà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ की जीती जागती निशानी थी। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ और करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ ही नहीं, उस à¤à¥‚मि के पशà¥, पकà¥à¤·à¥€, वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ और जंगम सृषà¥à¤Ÿà¤¿ तक में आपके सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µ अरà¥à¤ªà¤£ की सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ छाया दीख पड़ती थी। मà¥à¤‚शीराम जी के लिठयह सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤°-अरà¥à¤ªà¤£ अथवा सरà¥à¤µà¤®à¥‡à¤§ यजà¥à¤ž का अनà¥à¤·à¥à¤ ान à¤à¤• विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ गृहसà¥à¤¥ का बोठथा। आपके सारà¥à¤µà¤œà¤¨à¤¿à¤• जीवन के जिस à¤à¤¾à¤— को इस जीवनी में वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥ का नाम दिया जा रहा है, उसके लिठआप कहा करते थे-‘‘मैं अधिकतर गृहसà¥à¤¥ में फंस गया हूं। आपका यही विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ गृहसà¥à¤¥ गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² कांगड़ी के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हà¥à¤†à¥¤”
इन पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤•à¤° हमें सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ जी का सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µ तà¥à¤¯à¤¾à¤—ी सà¥à¤µà¤°à¥‚प पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· होता है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जिस गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² कांगड़ी की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की वह आजादी व उसके कà¥à¤› वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ बाद तक फूला फला। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ सà¥à¤µà¤°à¥‚प सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ जी व महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ के विचारों व à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं के अनà¥à¤•à¥‚ल हमें पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ नहीं होता। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ जी की यह जीवनी “सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦” नाम से ‘हितकारी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ समिति, हिणà¥à¤¡à¥‹à¤¨ सिटी’ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ की गई है। यदि किसी को आदरà¥à¤¶ आरà¥à¤¯ के जीवन के दरà¥à¤¶à¤¨ करने हों तो वह आपको इस जीवनी में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ जी के जीवन को पà¥à¤•à¤° मिलेगा। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी का जीवन बहà¥à¤†à¤¯à¤¾à¤®à¥€ था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने देश की आजादी व समाज सà¥à¤§à¤¾à¤° के अनेक कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को किया। बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤¶ पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ रहे रैमà¥à¤œà¥‡ मैकडोनालà¥à¤¡ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जीवित ईसामसीह की उपाधि दी थी। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी की आतà¥à¤®à¤•à¤¥à¤¾ ‘कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ मारà¥à¤— का पथिक’ à¤à¤• उतà¥à¤¤à¤® आतà¥à¤®à¤•à¤¥à¤¾ है। आरà¥à¤¯ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ डॉ. विनोद चनà¥à¤¦à¥à¤° विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤‚कार जी ने ‘à¤à¤• विलकà¥à¤·à¤£ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ - सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦’ नाम से सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ जी पर पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• लिखी है। यह पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• à¤à¥€ उतà¥à¤¤à¤® कोटि का गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ हैं। आप इन गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ को पà¥à¤•à¤° अपने जीवन को शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ जीवन बनाने की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ ले सकते हैं। ओ३मॠशमà¥à¥¤
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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