वैदिक धरà¥à¤® सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ है
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Manmohan Kumar AryaDate
24-Nov-2018Category
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Vikas KumarUpload Date
24-Nov-2018Download PDF
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संसार में अनेक मत मतानà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ हैं। सà¤à¥€ अपने आप को मत, पनà¥à¤¥ आदि न कह कर ‘‘धरà¥à¤®” कहते हैं। कà¥à¤¯à¤¾ यह सà¤à¥€ धरà¥à¤® हैं? यदि ये सà¤à¥€ धरà¥à¤® होते तो इनकी सà¤à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚, सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ व परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ à¤à¤• समान होती व सतà¥à¤¯ होती। जल का जो धरà¥à¤® है वह उसका तरल होना, मनà¥à¤·à¥à¤¯ की पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ बà¥à¤à¤¾à¤¨à¤¾, हाइडà¥à¤°à¥‹à¤œà¤¨ तथा आकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ के संयोग से बनना, गरà¥à¤®à¥€ के समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• में आकर गरम होना व जमने पर ठणà¥à¤¡à¤¾ होना आदि हैं। जल के यह धरà¥à¤® संसार में सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° à¤à¤• समान हैं तो फिर मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के जो धरà¥à¤® हैं वह à¤à¥€ à¤à¤• विषय में तो à¤à¤• समान होने ही चाहियें। अब यदि उनमें अनà¥à¤¤à¤° व विरोधाà¤à¤¾à¤¸ है तो इसका अरà¥à¤¥ है कि सà¤à¥€ मत-पनà¥à¤¥à¥‹à¤‚ की सà¤à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ सतà¥à¤¯ नहीं हैं। यदि à¤à¤¸à¤¾ है तो सà¤à¥€ मतों को अपनी-अपनी सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही समीकà¥à¤·à¤¾ करनी चाहिये और सतà¥à¤¯ का गà¥à¤°à¤¹à¤£ तथा असतà¥à¤¯ का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करना चाहिये। परनà¥à¤¤à¥ देखा यह जा रहा है कि कोई मत अपनी असतà¥à¤¯ व मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के लिये हानिकारक बातों को छोड़ने के लिये तैयार नहीं हैं। à¤à¤¸à¥‡ à¤à¥€ मत हैं जो येन केन पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‡à¤£ उचित व अनà¥à¤šà¤¿à¤¤ तरीकों से अपनी जनसंखà¥à¤¯à¤¾ बà¥à¤¾ कर देश की सतà¥à¤¤à¤¾ को अपने मत के अधीन लाना चाहते हैं। दूसरी ओर हमारे ही देश में हमारे पौराणिक मत को मानने वाले बनà¥à¤§à¥ अनà¥à¤¯ मतों के सà¤à¥€ खतरों से अपरिचित दीखते हैं तथा अपनी पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ धारà¥à¤®à¤¿à¤• व सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• विरासत को सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रखने के लिये कोई विशेष पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ करते हà¥à¤ नहीं दीखते।
संसार के सà¤à¥€ मतों पर दृषà¥à¤Ÿà¤¿ डालते हैं तो हम यह पाते हैं कि सिख धरà¥à¤® का लगà¤à¤— 319 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ का इतिहास है। इसे शà¥à¤°à¥€ गà¥à¤°à¥ गोविनà¥à¤¦ सिंह जी ने सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया था। इसà¥à¤²à¤¾à¤® पर विचार करें तो यह à¤à¥€ 1500 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से अधिक पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ नहीं है। ईसाई मत लगà¤à¤— 2000 वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ है। इससे पहले यह सà¤à¥€ मत संसार में असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ नहीं रखते थे। तब इनके अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के पूरà¥à¤µà¤œ किस मत का पालन करते थे, यह कà¤à¥€ कोई विचार ही नहीं करता। ईसाई मत से à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ बौदà¥à¤§, जैन तथा सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शंकर का अदà¥à¤µà¥ˆà¤¤ मत है। इनकी अवधि अधिकतम 2500 वरà¥à¤· ही निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ होती है। इससे पूरà¥à¤µ पारसी मत था। इनकी धरà¥à¤® पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• का नाम ‘अवेसà¥à¤¤à¤¾’ है। यह मत बौदà¥à¤§, जैन आदि के समकालीन व इससे à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ है। 5000 वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ हà¥à¤ महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ यà¥à¤¦à¥à¤§ तक पहà¥à¤‚चे तो जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि तब पूरे विशà¥à¤µ में वेद मत वा वैदिक धरà¥à¤® से इतर कोई धरà¥à¤®, मत, पनà¥à¤¥ व समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ आदि नहीं था। सà¤à¥€ मत महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल के बाद उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ हैं। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ काल से महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल तक पूरे विशà¥à¤µ में केवल वैदिक मत ही था। वैदिक धरà¥à¤® व मत कब व कैसे असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में आया, इस पर à¤à¥€ विचार करते हैं।
वैदिक मत वेद से असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में आया है। वेद चार हैं जिनके नाम ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦, यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦, सामवेद और अथरà¥à¤µà¥‡à¤¦ हैं। यह चार वेद सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में, अब से 1.96 अरब वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ, असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में आये। वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के रचयिता सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प, सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž, सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ तथा सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° ने सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की आदि में अमैथà¥à¤¨à¥€ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ चार ऋषि अगà¥à¤¨à¤¿, वायà¥, आदितà¥à¤¯ तथा अंगिरा को दिया था। ईशà¥à¤µà¤° सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• है और इस कारण मनà¥à¤·à¥à¤¯ की जीवातà¥à¤®à¤¾ के à¤à¥€à¤¤à¤° à¤à¥€ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है। वह आतà¥à¤®à¤¾ में पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ करके जà¥à¤žà¤¾à¤¨ देता है। जिस मनà¥à¤·à¥à¤¯ का आतà¥à¤®à¤¾ व मन जितना अधिक सà¥à¤µà¤šà¥à¤› व पवितà¥à¤° होता है, वह उतना ही अधिक ईशà¥à¤µà¤° के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ को गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर सकता है। आदि चार ऋषियों की आतà¥à¤®à¤¾, मन, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿, हृदय तथा जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ सà¤à¥€ वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में अधिकतम पवितà¥à¤° थे, इस लिये उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ही ईशà¥à¤µà¤° ने वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया था। ईशà¥à¤µà¤° इस संसार का रचयिता है। वह सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž व सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• है अतः उसे सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का ठीक-ठीक जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है। यदि उसके जà¥à¤žà¤¾à¤¨ में किंचित à¤à¥€ नà¥à¤¯à¥‚नता होती तो वह मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को वेदों का सरà¥à¤µà¤¾à¤‚गपूरà¥à¤£ सतà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ न दे पाता। ईशà¥à¤µà¤° के साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° करà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ वेदों के रहसà¥à¤¯ के à¤à¥€ साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° करà¥à¤¤à¤¾ ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने वेद à¤à¤µà¤‚ संसार की पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ सà¤à¥€ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर घोषणा की है कि ‘वेद सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• है। वेद का पà¥à¤¨à¤¾ पà¥à¤¾à¤¨à¤¾ और सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾ सब आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का परम धरà¥à¤® है।’ यह बात ऋषि दयाननà¥à¤¦ के वेद à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ इतर गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ को पà¥à¤¨à¥‡ पर सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§ होती है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ (1825-1883) à¤à¤¸à¥‡ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ व ऋषि हà¥à¤ हैं जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं की परीकà¥à¤·à¤¾ के लिये सà¤à¥€ मतों के आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के शंका समाधान व शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ का सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने जीवन में पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ सà¤à¥€ मतों के आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ व शंका-समाधान सहित वैदिक धरà¥à¤® के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर वारà¥à¤¤à¤¾à¤²à¤¾à¤ª किये और सà¤à¥€ को सनà¥à¤¤à¥à¤·à¥à¤Ÿ किया। सà¤à¥€ मतों के आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ में उनका पकà¥à¤· ही सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§ हà¥à¤†à¥¤
वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने पर ऋषियों ने वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ व वेद पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ को आरमà¥à¤ किया। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ यह परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ ही महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल तक तथा उसके बाद ऋषि दयाननà¥à¤¦ तक व अब गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤²à¥‹à¤‚ के माधà¥à¤¯à¤® से चल रही हैं। वेद की सà¤à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ संसार के सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये हितकारी हैं। इससे किसी मनà¥à¤·à¥à¤¯ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤ व अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯ नहीं होता। सà¤à¥€ शारीरिक, बौदà¥à¤§à¤¿à¤•, आतà¥à¤®à¤¿à¤• व सामाजिक कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° अपनी-अपनी उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ कर सकते हैं। वेदों में न अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ हैं न कà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿ व मिथà¥à¤¯à¤¾ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚। वेदों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पूरà¥à¤£ तरà¥à¤• संगत, सतà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° के लिये हितकारी है। वेदों के सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर à¤à¥€ à¤à¤• दृषà¥à¤Ÿà¤¿ डाल लेते हैं जिससे वेद सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ सिदà¥à¤§ हो जाते हैं और वेदों से पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯ के सà¤à¥€ धरà¥à¤® व करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ à¤à¥€ सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ सिदà¥à¤§ होते हैं।
वेदों के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ से ईशà¥à¤µà¤° के सतà¥à¤¯à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प सहित जीवातà¥à¤®à¤¾ और सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का अनादि कारण पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ उपलबà¥à¤§ होता है। ईशà¥à¤µà¤°, जीवातà¥à¤®à¤¾ और पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ ही संसार के मूल अनादि ततà¥à¤µ व पदारà¥à¤¥ हैं। ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾ चेतन ततà¥à¤µ हैं तथा पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ सूकà¥à¤·à¥à¤® व जड़ पदारà¥à¤¥ है। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ जिस परमाणॠको मानता है वह पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से बने हैं। पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ परमाणà¥à¤“ं से à¤à¥€ पूरà¥à¤µ की अवसà¥à¤¥à¤¾ है। इन परमाणà¥à¤“ं की रचना ईशà¥à¤µà¤° ने ही की है। परमातà¥à¤®à¤¾ सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, सरà¥à¤µà¤¾à¤¤à¤¿à¤¸à¥‚कà¥à¤·à¥à¤® तथा पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के à¤à¥€à¤¤à¤° à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• है। इस कारण वह परमाणॠà¤à¤µà¤‚ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना कर सकता है व उसने की à¤à¥€ है। यह à¤à¥€ कह सकते हैं कि मूल पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से ही परमाणॠव कारà¥à¤¯ जगत बना है। संसार में तीन पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ ईशà¥à¤µà¤°, जीव तथा पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के अनादि असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ को तà¥à¤°à¥ˆà¤¤à¤µà¤¾à¤¦ का सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ कहा जाता है। ईशà¥à¤µà¤° ने सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की? इसका उतà¥à¤¤à¤° है कि ईशà¥à¤µà¤° ने अपने जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व सृषà¥à¤Ÿà¤¿ रचना की सामरà¥à¤¥à¥à¤¯ को जीवों के कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ के लिये पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ किया है। यदि ईशà¥à¤µà¤° सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना न करता तो कौन कहता कि ईशà¥à¤µà¤° सृषà¥à¤Ÿà¤¿ रचयिता है व वह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना कर सकता है। ईशà¥à¤µà¤° ने सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना इस लिये की है कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨, मनà¥à¤·à¥à¤¯ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ में, अननà¥à¤¤ जीवों को उनके पूरà¥à¤µ जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ के शà¥à¤ व अशà¥à¤ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करा सके।
संसार के सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ मतों को इस जनà¥à¤®-मृतà¥à¤¯à¥ व पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® के रहसà¥à¤¯ व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं है। वेद जीवातà¥à¤®à¤¾ के पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ को मानते हैं। पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® का कारण जीवातà¥à¤®à¤¾ के शà¥à¤ व अशà¥à¤ करà¥à¤® तथा उनका सà¥à¤– व दà¥à¤ƒà¤– रूपी फल व à¤à¥‹à¤— होता है। पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® का सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨, तरà¥à¤• व अनेक आधारों पर सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§ होता है। संसार के अनेक मत अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾à¤µà¤¶ पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® के सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को न जानते हैं और न मानते हैं। पं. लेखराम जी ने उनà¥à¤¨à¥€à¤¸à¤µà¥€à¤‚ शताबà¥à¤¦à¥€ के अनà¥à¤¤ में पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® पर à¤à¤• पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• लिखी थी जिसमें उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® विषयक सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ को समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ कर उनका तरà¥à¤•à¤ªà¥‚रà¥à¤£ उतà¥à¤¤à¤° दिया है। वैदिक धरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के परिवारों में जब सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ जनà¥à¤® लेती है तो उसका जातकरà¥à¤® संसà¥à¤•à¤¾à¤° होता है। इस संसà¥à¤•à¤¾à¤° में ईशà¥à¤µà¤° के दिये वेदमनà¥à¤¤à¥à¤° बोले जाते हैं। बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को ओ३मॠनाम सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾ जाता है। उसे यह à¤à¥€ बताया जाता है कि तू वेद अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व करà¥à¤® की शकà¥à¤¤à¤¿ से यà¥à¤•à¥à¤¤ है और तà¥à¤à¥‡ वेद व सांसारिक जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¤¤ कर ईशà¥à¤µà¤° की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿, पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾, उपासना, यजà¥à¤ž, पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥, परोपकार तथा दान आदि करके à¤à¤µà¤‚ अपने मन को संयम में रखकर मोकà¥à¤· को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करना है। मोकà¥à¤· का सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ जैसा वेद व वैदिक साहितà¥à¤¯ में है, किसी मत व मतानà¥à¤¤à¤° में नहीं है। इस सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ से अनà¥à¤¯ मतों की अनà¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¤à¤¾ का कारण हमें उनकी अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है। वैदिक धरà¥à¤® में मनà¥à¤·à¥à¤¯ की मृतà¥à¤¯à¥ होने पर उसका दाहकरà¥à¤® व अनà¥à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ करà¥à¤® किया जाता है। अनà¥à¤¯ मतों में पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ à¤à¤¸à¤¾ नहीं होता। वहां मृतक शरीर को à¤à¥‚मि में गाड़ने का विधान है। इसका कारण उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जीवातà¥à¤®à¤¾ और शरीर का ठीक-ठीक जà¥à¤žà¤¾à¤¨ न होना है। आतà¥à¤®à¤¾ के शरीर से निकलने के बाद जड़ शरीर बचता है। यह शरीर पंच ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ से मिलकर बना हà¥à¤† होता है। अतः इसे अगà¥à¤¨à¤¿ में जलाकर पंच-ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ में विलीन करना होता है। शरीर में हमें जो सà¥à¤– दà¥à¤ƒà¤– होता है वह हमारी आतà¥à¤®à¤¾ को होता है। आतà¥à¤®à¤¾ के निकल जाने पर शरीर को जलाने से उसे किंचित à¤à¥€ कषà¥à¤Ÿ या दà¥à¤ƒà¤– नहीं होता। अतः सà¤à¥€ को मृतà¥à¤¯à¥ होने पर उसका दाह करà¥à¤® ही करना चाहिये जिससे à¤à¥‚मि पà¥à¤°à¤¦à¥à¤·à¤¿à¤¤ होने से बच सके अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ आने वाले समय में कृषि के à¤à¥‚मि शेष नहीं रहेगी।
वैदिक धरà¥à¤® में गरà¥à¤à¤¾à¤§à¤¾à¤¨ से अनà¥à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ परà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ सोलह संसà¥à¤•à¤¾à¤° करने का विधान है। इन संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को करने का कारण व उसकी विधि तथा उसमें जिन वेद मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का विनियोग वा विधान है, वह अतà¥à¤¯à¥à¤¤à¥à¤¤à¤® व शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ है। अनà¥à¤¯ मतों में इसका à¤à¥€ अà¤à¤¾à¤µ है। वैदिक धरà¥à¤® की à¤à¤• विशेषता यह à¤à¥€ है कि यहां नारी को पà¥à¤°à¥à¤· से à¤à¥€ अधिक महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ में लिखा है कि जहां नारियों का समà¥à¤®à¤¾à¤¨ होता है उस घर व परिवार में देवता अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ मानव निवास करते हैं। अनà¥à¤¯ मतों में नारी की à¤à¤¸à¥€ गौरवपूरà¥à¤£ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ नहीं है। वैदिक धरà¥à¤® में सामाजिक वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ à¤à¥€ शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ है। यह वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ जनà¥à¤® पर आधारित न होकर गà¥à¤£, करà¥à¤® व सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ पर आधारित है। देश व समाज में जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की पूरà¥à¤¤à¤¿ करने वालों को बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£, देश व समाज की रकà¥à¤·à¤¾ व नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ करने वालों को कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯, कृषि व वाणिजà¥à¤¯ कारà¥à¤¯ करने वालों को वैशà¥à¤¯ और जो जà¥à¤žà¤¾à¤¨, शारीरिक बल में नà¥à¤¯à¥‚न तथा उनà¥à¤¨à¤¤ कृषि व वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° आदि नहीं कर सकते उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अनà¥à¤¯ तीन वरà¥à¤£à¥‹à¤‚ की सेवा करने के कारण शूदà¥à¤° व शà¥à¤°à¤®à¤¿à¤• कहा जाता है। वैदिक काल में यह सब परसà¥à¤ªà¤° सौहारà¥à¤¦à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• रहते थे। हमारे शरीर में जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ शिर है, बल व करà¥à¤® का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ हमारे बाहू हैं, कृषि व वाणिजà¥à¤¯ करà¥à¤® का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• हमारा उदर है तथा सेवा के पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• हमारे पैर हैं। शरीर में जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° सà¤à¥€ अंग आपस में पà¥à¤°à¥‡à¤® व à¤à¤• विचार होकर रहते हैं, इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° समाज में à¤à¥€ सà¤à¥€ वरà¥à¤£à¥‹à¤‚ को संगठित à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¥‡à¤® पूरà¥à¤µà¤• रहना चाहिये। मधà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤² में इस वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ मे ंविकार आने से यह अपनी महतà¥à¤¤à¤¾ खो बैठी। आज à¤à¥€ विशà¥à¤µ, देश व समाज में जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ को पà¥à¤°à¤¥à¤® सà¥à¤¥à¤¾à¤¨, बलवान व बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ को दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ तथा कृषक वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¥€ को तृतीय सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। यह à¤à¥€ वैदिक वरà¥à¤£à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ का à¤à¤• कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• व उतà¥à¤¤à¤® रूप ही है।
वैदिक धरà¥à¤® में à¤à¤• पतà¥à¤¨à¥€ व à¤à¤• पति का सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ है। इसी को आदरà¥à¤¶ गृहसà¥à¤¥à¥€ माना जाता है और यह है à¤à¥€à¥¤ वैदिक धरà¥à¤® में तलाक जैसी कà¥à¤ªà¥à¤°à¤¥à¤¾ à¤à¥€ नहीं है। यहां à¤à¤• बार विवाह हो गया तो उनका समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ मृतà¥à¤¯à¥ होने पर ही छूटता है। अनà¥à¤¯ मतों के समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• में आने पर इसमें à¤à¥€ कà¥à¤› बà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤¯à¤¾à¤‚ आ गई हैं। वैदिक धरà¥à¤® मनà¥à¤·à¥à¤¯ को सतà¥à¤¯ पर आधारित सतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤°à¤£ व शà¥à¤ करà¥à¤® करने की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ देता है। वेदों में यजà¥à¤ž का à¤à¥€ विधान है जिससे वायॠव जल पà¥à¤°à¤¦à¥à¤·à¤£ दूर होने के साथ मनà¥à¤·à¥à¤¯ आजीवन निरोग वा सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ रहता है। यजà¥à¤ž से दूसरे पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¥€ लाठहोता है जिसका पà¥à¤£à¥à¤¯ यजà¥à¤ž करने वाले को होता है और इसका सà¥à¤–द परिणाम ईशà¥à¤µà¤° से जीव को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। अनà¥à¤¯ मतों में à¤à¤¸à¥‡ विधान नहीं है। इन सब शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ विधानों व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹ ंके होने से वैदिक धरà¥à¤® सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ सिदà¥à¤§ होता है। हम आहà¥à¤µà¤¾à¤¨ करते हैं कि बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ लोगों को वैदिक धरà¥à¤® की शरण में आकर अपने जनà¥à¤® व जीवन को शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ बनाना चाहिये। सचà¥à¤šà¤¾ वैदिक धरà¥à¤®à¥€ इस जनà¥à¤® में à¤à¥€ सà¥à¤– पाता है और मरने के बाद à¤à¥€ उसकी उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ होकर उसे मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। आईये, वेदों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करें तथा पृथिवी के शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ वैदिक धरà¥à¤® को अपनायें। इसी में मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° का कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ है। ओ३मॠशमà¥à¥¤
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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