‘जनà¥à¤®-मृतà¥à¤¯à¥ रहसà¥à¤¯â€™
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Manmohan Kumar AryaDate
07-Dec-2018Category
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हम संसार में मनà¥à¤·à¥à¤¯ जनà¥à¤® और मृतà¥à¤¯à¥ दोनों को समय समय पर होते देखते हैं। यदि हम अपने परिवार के सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पर विचार करें तो हमें जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि हमारे माता, पिता हैं, उनके माता-पिता à¤à¥€ होते हैं या रहे होंगे और जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हम दादा-दादी कहते थे उनके à¤à¥€ माता-पिता अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ परदादी व परदादा थे। आज जब हम इन सà¤à¥€ संबंधियों को देखते हैं तो किसी परिवार में दादा-दादी यदि हैं à¤à¥€ तो परदादा व परदादी तो बहà¥à¤¤ ही कम परिवारों में होने की आशा की जाती है। वह और उनसे पूरà¥à¤µ के सà¤à¥€ समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¥€ मृतà¥à¤¯à¥ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो चà¥à¤•à¥‡ हैं। इससे हमें यह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ मिलता है कि संसार में जनà¥à¤® और मृतà¥à¤¯à¥ का चकà¥à¤° चल रहा है। यह चकà¥à¤° कब से आरमà¥à¤ हà¥à¤† ? यदि इस पर विचार करें तो विवेक से जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि यह जनà¥à¤®-मृतà¥à¤¯à¥ का चकà¥à¤° तà¤à¥€ से चल रहा है जब से कि यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ बनी है और पृथिवी पर अमैथà¥à¤¨à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ हà¥à¤ˆà¥¤ उसके बाद से मैथà¥à¤¨à¥€ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ हà¥à¤ˆ और अमैथà¥à¤¨à¥€ के सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ अपनी आयॠपूरी होने पर मृतà¥à¤¯à¥ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤à¥¤ मैथà¥à¤¨à¥€ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ à¤à¥€ जनà¥à¤® लेने के बाद अपनी-अपनी आयॠà¤à¥‹à¤— कर मृतà¥à¤¯à¥ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते आ रहे हैं। आज à¤à¤²à¥‡ ही हम सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ हों, परनà¥à¤¤à¥ हम यह नहीं कह सकते कि हम मरेंगे नहीं। मृतà¥à¤¯à¥ तो à¤à¤• दिन आनी ही है, वह कब आयेगी यह निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ रूप से वरà¥à¤·, महीने व दिन के रूप में नहीं बता सकते परनà¥à¤¤à¥ यह कà¤à¥€ à¤à¥€ आ सकती है।
जनà¥à¤® व मृतà¥à¤¯à¥ का चकà¥à¤° अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• नियमों की तरह परमातà¥à¤®à¤¾ ने बनाया है। जनà¥à¤® व मृतà¥à¤¯à¥ की यह वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की अटल वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ है। संसार में यह नियम काम कर रहा है कि जिसका जनà¥à¤® व उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ होती है उसकी मृतà¥à¤¯à¥ व नाश अवशà¥à¤¯ होता है। संसार में à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ से जो à¤à¥€ वसà¥à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤‚ बनी हैं, वह बनने के बाद से ही पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ व कà¥à¤·à¥€à¤£ होने लगती हैं और कà¥à¤› काल बाद वह नषà¥à¤Ÿ हो जाती हैं। हम अपने लिये अचà¥à¤›à¥‡ वसà¥à¤¤à¥à¤° सिलवाते हैं। यह बनने के समय नवीन व आकरà¥à¤·à¤• होते हैं। दिन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ हम इनका उपयोग करते हैं। इससे यह पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ होते जाते हैं और जीरà¥à¤£ होकर नषà¥à¤Ÿ हो जाते हैं। इसी को इनका नाश होना ,कहते हैं। à¤à¤¸à¤¾ ही अनà¥à¤¯ सà¤à¥€ à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के विषय में होता है। हमारी यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ à¤à¥€ 1.96 अरब वरà¥à¤· पहले बनी है। इसकी कà¥à¤² आयॠ4.32 अरब वरà¥à¤· है। जब इसका काल पूरा हो जायेगा तो परमातà¥à¤®à¤¾ इसकी पà¥à¤°à¤²à¤¯ व नाश कर देंगे। पà¥à¤°à¤²à¤¯ के बाद यह पà¥à¤¨à¤ƒ अपने मूल सà¥à¤µà¤°à¥‚प सतà¥à¤µ, रज, तम की सामà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती है और इतनी ही अवधि तक पà¥à¤°à¤²à¤¯ अवसà¥à¤¥à¤¾ में रहकर ईशà¥à¤µà¤° के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इससे पà¥à¤¨à¤ƒ नई सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का सृजन किया जायेगा। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में सृषà¥à¤Ÿà¤¿-पà¥à¤°à¤²à¤¯-सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का कà¥à¤°à¤® व चकà¥à¤° अनादि काल से चल रहा है और अननà¥à¤¤ काल तक चलता रहेगा। कà¤à¥€ इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿-पà¥à¤°à¤²à¤¯ कà¥à¤°à¤® का अनà¥à¤¤ होने वाला नहीं है। इसी को सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹ से अनादि होना कहते है।
मनà¥à¤·à¥à¤¯ का शरीर जड़ है और यह पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के परमाणà¥à¤“ं व कणों से बना हà¥à¤† है। शरीर को बनाने वाला परमातà¥à¤®à¤¾ है। कोई à¤à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• रचना किसी निमितà¥à¤¤ चेतन जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤µà¤¾à¤¨ सतà¥à¤¤à¤¾ से ही होती है। जीवातà¥à¤®à¤¾ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ अपने व दूसरों के शरीर की रचना नहीं कर सकते। हां, वह इस कारà¥à¤¯ में सहायक हो सकते हैं। परमातà¥à¤®à¤¾ जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं को सà¥à¤– व उनके करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का à¤à¥‹à¤— कराने के लिये उनके पूरà¥à¤µ जनà¥à¤® के करà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° शरीर को बनाते है। यदि पूरà¥à¤µà¤œà¤¨à¥à¤® में हमने आधे से अधिक शà¥à¤ व पà¥à¤£à¥à¤¯ करà¥à¤® किये हैं तो जीवातà¥à¤®à¤¾ को मनà¥à¤·à¥à¤¯ का शरीर मिलता है अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ पशà¥, पकà¥à¤·à¥€ आदि पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के शरीर मिलतें हैं। मनà¥à¤·à¥à¤¯ योनि उà¤à¤¯ योनि हैं जहां वह शà¥à¤à¤¾à¤¶à¥à¤ करà¥à¤® करने के साथ पूरà¥à¤µ किये हà¥à¤ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल à¤à¥€ à¤à¥‹à¤—ता है जबकि सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‡à¤¤à¤° योनियों में जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं को अपने करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का à¤à¥‹à¤— करना होता है। वह सà¥à¤µà¤¤à¤¨à¥à¤¤à¥à¤° करà¥à¤¤à¤¾ नहीं होते जिसका कारण यह है कि उनके पास विचार शकà¥à¤¤à¤¿ वा बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ नहीं है। उनके पास करà¥à¤® करने के लिये हाथ à¤à¥€ नहीं हैं और न ही बोलने व अपनी बात को किसी दूसरे पशॠको कहने के लिठवाणी ही है। यही कारण है कि कोई मनà¥à¤·à¥à¤¯ पशॠबनना नहीं चाहता परनà¥à¤¤à¥ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व संकलà¥à¤ª की कमी के कारण वह अशà¥à¤ व पाप करते है जिससे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ परजनà¥à¤®à¥‹à¤‚ में पशà¥-पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ आदि अनेकानेक यानियों में जनà¥à¤® लेना पड़ता है। मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पशॠआदि निमà¥à¤¨ योनियों व मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ अशिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ व अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ तथा निरà¥à¤§à¤¨ व दà¥à¤°à¥à¤¬à¤² माता-पिता के यहां जनà¥à¤® मिले, इसके लिये सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° ने सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में ही वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया था। वह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ आज à¤à¥€ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ à¤à¤µà¤‚ उपलबà¥à¤§ है। उस जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को पà¥à¤•à¤° व उन पर ऋषियों के à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ व टीकायें पà¥à¤•à¤° तथा उनके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° अपना जीवन बनाकर हम पशà¥-पकà¥à¤·à¥€ योनियों में जाने से बच सकते हैं और मनà¥à¤·à¥à¤¯ योनि में à¤à¥€ अचà¥à¤›à¥‡ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ व वेद धरà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤·à¥à¤ माता-पिता से जनà¥à¤® लेकर अपने जीवन को वेद मारà¥à¤— पर चला कर सà¥à¤–ी व समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ रहकर सà¥à¤– à¤à¥‹à¤— सकते हैं।
मनà¥à¤·à¥à¤¯ का जनà¥à¤® हमें पूरà¥à¤µ जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के आधार पर मिलता है। हम इस जनà¥à¤® में मनà¥à¤·à¥à¤¯ बने हैं, अतः हमारा करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है कि हम अपने करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ व अकरà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करें। वेद और ऋषि मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के वेदानà¥à¤•à¥‚ल गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ जैसा निरà¥à¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं होता। इसके लिये मà¥à¤–à¥à¤¯ आशà¥à¤°à¤¯ केवल वेद व वेदानà¥à¤•à¥‚ल गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ हैं जो ऋषियों के बनाये हà¥à¤ हैं। इनका सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ कर इनसे लाठउठाया जा सकता है। इसका लाठयह होता है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ इन गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में उपदिषà¥à¤Ÿ करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का पालन करके शà¥à¤ व पà¥à¤£à¥à¤¯ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का संगà¥à¤°à¤¹ कर सकता है जिससे उसे इस जीवन में सà¥à¤– मिलता है और उसका परजनà¥à¤® à¤à¥€ शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯ योनि में होने के साथ माता-पिता à¤à¥€ वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ व देव कोटि के मिलते हैं।
हमारा मानव शरीर पृथिवी, अगà¥à¤¨à¤¿, जल, वायॠऔर आकाश इन पंच à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ से बना है। यह शरीर अमर नहीं हो सकता। यह अधिक से अधिक 1 सौ या तीन चार सौ वरà¥à¤· ही जीवित रह सकता है जिसका आधार जीवातà¥à¤®à¤¾ का पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤¬à¥à¤§ और इस जनà¥à¤® में उसका जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व करà¥à¤® होते हैं। महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल में 100 वरà¥à¤· व उससे अधिक 200 वरà¥à¤· तक की आयॠके मनà¥à¤·à¥à¤¯ रहे हैं। à¤à¥€à¤·à¥à¤® पितामह की आयॠलगà¤à¤— 180 वरà¥à¤· थी। आजकल à¤à¥€ 100 व 150 वरà¥à¤· की बीच की आयॠके मनà¥à¤·à¥à¤¯ जापान व चीन आदि देशों में हैं। इससे अधिक आयॠके मनà¥à¤·à¥à¤¯ वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में किसी देश में नहीं हैं। अतः मनà¥à¤·à¥à¤¯ कितना à¤à¥€ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखे, उसे 100 व 150 से अधिक वरà¥à¤· की आयॠपà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं हो सकती। इस बीच तो मृतà¥à¤¯à¥ आयेगी और आतà¥à¤®à¤¾ को अपने शरीर को छोड़कर जाना ही होगा। वेदों में बताया गया है कि परमातà¥à¤®à¤¾ ही जीवातà¥à¤®à¤¾ को शरीर से यà¥à¤•à¥à¤¤ करता है व मृतà¥à¤¯à¥ के समय पर उसे शरीर से वियà¥à¤•à¥à¤¤ करता है। शरीर से वियà¥à¤•à¥à¤¤ करने का कारण यह है मानव शरीर जीवातà¥à¤®à¤¾ के रहने योगà¥à¤¯ नहीं रहा। उसमें अनेक विकार आ चà¥à¤•à¥‡ हैं। अब जीवातà¥à¤®à¤¾ शरीर में रहकर करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का à¤à¥‹à¤— नहीं कर सकता। यही मृतà¥à¤¯à¥ का कारण पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है। मृतà¥à¤¯à¥ होने के बाद जीवातà¥à¤®à¤¾ अपने करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° परमातà¥à¤®à¤¾ की कृपा से नये माता-पिता, परिवार व नया देह पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है और शिशॠअवसà¥à¤¥à¤¾ में जनà¥à¤® से उनà¥à¤¨à¤¤ होता हà¥à¤† पà¥à¤¨à¤ƒ यà¥à¤µà¤¾ व वृदà¥à¤§à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ तक जाता है। इस नये जीवन में उसे पà¥à¤¨à¤ƒ शिशà¥, किशोर, कà¥à¤®à¤¾à¤°, यà¥à¤µà¤¾ आदि अवसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं में मिलने वाले सà¥à¤– पà¥à¤¨à¤ƒ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं जो पूरà¥à¤µà¤œà¤¨à¥à¤® के शरीर में समà¥à¤à¤µ नहीं थे। इससे मनà¥à¤·à¥à¤¯ का पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® à¤à¥€ सिदà¥à¤§ होता है। जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° रातà¥à¤°à¤¿ के बाद दिन और दिन के बाद रातà¥à¤°à¤¿ अवशà¥à¤¯ आती है उसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° जनà¥à¤® के बाद मृतà¥à¤¯à¥ और मृतà¥à¤¯à¥ के बाद जनà¥à¤® à¤à¥€ निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ रूप से होता है। जब तक करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का कà¥à¤·à¤¯ और मनà¥à¤·à¥à¤¯ को ईशà¥à¤µà¤° का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° होकर विवेक पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं होगा, जनà¥à¤® व मरण का चकà¥à¤° चलता ही रहेगा। जनà¥à¤® मरण का चकà¥à¤° मोकà¥à¤· पर विराम पाता है। मोकà¥à¤· मिलने पर मनà¥à¤·à¥à¤¯ का जनà¥à¤® व मरण लमà¥à¤¬à¥€ अवसà¥à¤¥à¤¾ के लिये बनà¥à¤¦ हो जाता है और जीवातà¥à¤®à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° के सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ में रहकर आननà¥à¤¦ का à¤à¥‹à¤— करता है। यही जीवातà¥à¤®à¤¾ की चरम सà¥à¤– की अवसà¥à¤¥à¤¾ होती है। इसके बाद जीवातà¥à¤®à¤¾ की कोई अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤·à¤¾ शेष नहीं रहती। समाधि अवसà¥à¤¥à¤¾ में ईशà¥à¤µà¤° का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° होने पर उसे जीवन का सबसे बड़ा सà¥à¤– व आननà¥à¤¦ मिलता है। यह आननà¥à¤¦ सà¤à¥€ à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• सà¥à¤–ों से परिमाण व अनà¥à¤à¤µ में सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ होता है।
जीवातà¥à¤®à¤¾ के विषय में यह à¤à¥€ जानना है कि ईशà¥à¤µà¤° ही इसका सनातन व शाशà¥à¤µà¤¤ साथी है। ईशà¥à¤µà¤° जीवातà¥à¤®à¤¾ का पिता, माता, बनà¥à¤§à¥ व सखा है। वही जीवातà¥à¤®à¤¾ का वरणीय व उपासनीय है। जीवातà¥à¤®à¤¾ को ईशà¥à¤µà¤° के गà¥à¤£, करà¥à¤® व सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ कर उसे अपनाना और अपने दà¥à¤·à¥à¤Ÿ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करना ही जीवातà¥à¤®à¤¾ की उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ है। इसके विपरीत जीवातà¥à¤®à¤¾ दà¥à¤ƒà¤– व अवनति को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होकर अपना परजनà¥à¤® बिगाड़ता है। जीवातà¥à¤®à¤¾ का अपने परिवारजनों व सामाजिक वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से शारीरिक समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ होता है परनà¥à¤¤à¥ दो जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं का आपस में माता-पिता-à¤à¤¾à¤ˆ-बहिन-मितà¥à¤° व अनà¥à¤¯ कोई समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ नहीं होता। मृतà¥à¤¯à¥ होने पर मृतक की जीवातà¥à¤®à¤¾ के अपने परिवार व देशवासियों से सà¤à¥€ समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ समापà¥à¤¤ हो जाते हैं। परिवार के जो लोग जीवित रहते हैं उनका à¤à¥€ मृतक जीवातà¥à¤®à¤¾ से कोई समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ शेष नहीं रहता। अतः अनà¥à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ संसà¥à¤•à¤¾à¤° के बाद मृतक की जीवातà¥à¤®à¤¾ के लिये कà¥à¤› à¤à¥€ किया जाना उचित नहीं होता और न ही वेदों में इसका कहीं विधान है। हां, परिवार के जीवित वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के सà¥à¤– व शानà¥à¤¤à¤¿ के लिये हम ईशà¥à¤µà¤°à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤¨à¤¾, अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°-यजà¥à¤ž, परोपकार व दान आदि के काम कर सकते हैं। यह à¤à¥€ जान लें कि ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾ सà¥à¤µà¤°à¥‚प से सतà¥à¤¯, चितà¥à¤¤, अनादि, नितà¥à¤¯ हैं। इनका परसà¥à¤ªà¤° सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž-अलà¥à¤ªà¤œà¥à¤ž, वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¯-वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€-सेवक का समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ है। ईशà¥à¤µà¤° अजनà¥à¤®à¤¾ है तथा जीव जनà¥à¤®-मरण में फंसा हà¥à¤† है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ ईशà¥à¤µà¤°à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤¨à¤¾, यजà¥à¤ž, दान व परोपकार आदि करà¥à¤® करके बनà¥à¤§à¤¨à¥‹à¤‚ से मà¥à¤•à¥à¤¤ होता है व à¤à¤¸à¤¾ न करने से बनà¥à¤§à¤¨à¥‹à¤‚ में फंसता है। ईशà¥à¤µà¤° सदा मà¥à¤•à¥à¤¤ और आननà¥à¤¦ से यà¥à¤•à¥à¤¤ रहता है। जीवातà¥à¤®à¤¾ के जीवन का उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ वैदिक विधि से उपासना करके ईशà¥à¤µà¤° को पाना है। इसी के साथ इस चरà¥à¤šà¤¾ को विराम देते हैं। ओ३मॠशमà¥à¥¤
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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