अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°-यजà¥à¤ž कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ करें ?
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Manmohan Kumar AryaDate
30-Nov-2018Category
लेखLanguage
HindiTotal Views
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Vikas KumarUpload Date
10-Dec-2018Download PDF
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सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में परमातà¥à¤®à¤¾ ने चार ऋषियों अगà¥à¤¨à¤¿, वायà¥, आदितà¥à¤¯ व अंगिरा को वेदों का à¤à¤¾à¤·à¤¾ व उनके अरà¥à¤¥ सहित जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया था। वेदों में यजà¥à¤ž करने का विधान है जिसके आधार पर महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ जी ने यजà¥à¤ž की पूरà¥à¤£ विधि पंचमहायजà¥à¤ž विधि सहित संसà¥à¤•à¤¾à¤° विधि में दी है। यजà¥à¤ž कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ करें, इस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ का उतà¥à¤¤à¤° à¤à¥€ ऋषि ने अपने गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में दिया है। यजà¥à¤ž सà¤à¥€ गृहसà¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ व अनà¥à¤¯ तीन आशà¥à¤°à¤® के लोगों का à¤à¥€ पà¥à¤°à¤®à¥à¤– करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है। यह करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ इसलिये है कि इससे हमारा व दूसरों का कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ होता है। कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ का विलोम शबà¥à¤¦ अकलà¥à¤¯à¤¾à¤£ व हानि होता है। यदि हम यजà¥à¤ž नहीं करेंगे तो हमारी हानि होगी इसलिये ऋषि दयाननà¥à¤¦ जी और उनसे पूरà¥à¤µ के ऋषियों ने à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में यजà¥à¤ž का विधान किया है। यजà¥à¤ž करने से वायॠव वरà¥à¤·à¤¾-जल की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ होती है। वायॠव जल हमारे लिये सबसे अधिक आवशà¥à¤¯à¤• पदारà¥à¤¥ हैं। यदि हमें दो मिनट à¤à¥€ वायॠन मिले तो हमारे पà¥à¤°à¤¾à¤£ बाहर आने को होते हैं। सरà¥à¤¦à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में à¤à¤¸à¥€ अनेक घटनायें घटती हैं कि जब लोग अपने कमरे बनà¥à¤¦ करके और अंगेठियां जला कर सो जाते हैं। इससे कमरे की वायॠआकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ गैस का अà¤à¤¾à¤µ हो जाता है जिससे कà¥à¤› लोगों की मृतà¥à¤¯à¥ हो जाती है। इस उदाहरण से वायॠके महतà¥à¤µ को समà¤à¤¾ जा सकता है। इसके बाद अनà¥à¤¨ व ओषधियों का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ आता है। यह सà¤à¥€ पदारà¥à¤¥ और वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¥€ यजà¥à¤ž करने से शà¥à¤¦à¥à¤§ व पवितà¥à¤° होती हैं जिसके सेवन से मनà¥à¤·à¥à¤¯ निरोग, सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥, बलवान, पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨, सà¥à¤–ी व दीरà¥à¤˜à¤¾à¤¯à¥ होता है। अतः सबको यजà¥à¤ž अवशà¥à¤¯ ही करना चाहिये।
अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°-यजà¥à¤ž करने से मनà¥à¤·à¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ व निरोग कैसे होता है, इसका कारण उसे शà¥à¤¦à¥à¤§ वायॠका पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होना है। हम जो शà¥à¤µà¤¾à¤‚स लेते हैं उसमें यदि आकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ की मातà¥à¤°à¤¾ की कमी होती है तथा विषैली गैसे जैसे कारà¥à¤¬à¤¨ डाई आकà¥à¤¸à¤¾à¤‡à¤¡ व अनà¥à¤¯ गैसें अधिक मातà¥à¤°à¤¾ में मिली हà¥à¤ˆ होती हैं तो इससे फेफड़ों का हमारा रकà¥à¤¤ यथोचित मातà¥à¤°à¤¾ में शà¥à¤¦à¥à¤§ नहीं होता जिससे शरीर में अनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के रोग होने की आशंका होती हैं। अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°-यजà¥à¤ž करने से वायॠशà¥à¤¦à¥à¤§ होती है और हमें पà¥à¤°à¤¾à¤£ व शà¥à¤µà¤¾à¤‚स लेने के लिये शà¥à¤¦à¥à¤§ आकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ वायॠमिलती है। यजà¥à¤ž में हम जो गोघृत, ओषधि व वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ सामगà¥à¤°à¥€, गà¥à¥œ-शकà¥à¤•à¤° व सà¥à¤—नà¥à¤§à¤¿à¤¤ केसर, कसà¥à¤¤à¥‚री à¤à¤µà¤‚ अगर, तगर व गà¥à¤—à¥à¤—ल आदि डालते हैं, यह सब हमें सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ रखने के साथ आरोगà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करती हैं। इससे हम सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ à¤à¤µà¤‚ निरोग होकर बलवान व दीरà¥à¤˜à¤¾à¤¯à¥ होते हैं। यजà¥à¤ž करने से वरà¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ होती है। महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ के à¤à¤• अंग गीता में इसका उलà¥à¤²à¥‡à¤– है। यजà¥à¤ž की धूम से आकाश का वृषà¥à¤Ÿà¤¿ जल शà¥à¤¦à¥à¤§ होकर ओषधियà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाता है जिसकी वरà¥à¤·à¤¾ होने से हमारा अनà¥à¤¨, ओषधियां व वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ आदि सà¤à¥€ उतà¥à¤¤à¤® आरोगà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¤• होती हैं। यह लाठदैनिक व कामà¥à¤¯ अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° यजà¥à¤žà¥‹à¤‚ को करने से होते हैं। दैनिक यजà¥à¤ž पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ व सायं दो समय अवशà¥à¤¯ करना चाहिये। इससे हमें अपने घरों के à¤à¥€à¤¤à¤° à¤à¥€ शà¥à¤¦à¥à¤§ वायॠशà¥à¤µà¤¾à¤‚स हेतॠपà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो सकेगी। घर के à¤à¥€à¤¤à¤° मधà¥à¤¯ में यजà¥à¤ž करने से यजà¥à¤žà¤¾à¤—à¥à¤¨à¤¿ के समà¥à¤ªà¤°à¥à¤• में आकर घर के अनà¥à¤¦à¤° की वायॠगरà¥à¤® होकर हलà¥à¤•à¥€ हो जाने से वह रोशनदान व खिड़की दरवाजों से बाहर चली जाती है और बाहर की यजà¥à¤ž के धूम से शà¥à¤¦à¥à¤§ हà¥à¤ˆ वायॠघर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करती है जिससे हमें शà¥à¤µà¤¾à¤‚स के लिये आरोगà¥à¤¯ देने वाली वायॠमिलती है। अतः इस कारण यजà¥à¤ž किया जाता है व सà¤à¥€ लोगों को यजà¥à¤ž के इन लाà¤à¥‹à¤‚ को जानकर यजà¥à¤ž अवशà¥à¤¯ करना चाहिये।
यजà¥à¤ž में हम वेदों के मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को पà¥à¤¤à¥‡ हैं। इससे मनà¥à¤¤à¥à¤° कणà¥à¤ सà¥à¤¥ होने से इनकी रकà¥à¤·à¤¾ व पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° होता है। वेदों के मनà¥à¤¤à¥à¤° ईशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ है और इनके जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ होता है। अतः यजà¥à¤ž व इसमें मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤šà¥à¤šà¤¾à¤° करना सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है। यजà¥à¤ž से आंशिक रूप से वेदाधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ का लाठहोता है। मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के पाठसे हमें मनà¥à¤¤à¥à¤° में निहित विचारों का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¥€ होता है जिसका लाठहमें मिलता है। इनसे ईशà¥à¤µà¤° की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿, पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ व उपासना का लाठà¤à¥€ वायॠशà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ आदि लाà¤à¥‹à¤‚ से अतिरिकà¥à¤¤ होता है। यजà¥à¤ž में पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ लोगों की उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ à¤à¥€ होती है जिनकी संगति से हमें उनके अनà¥à¤à¤µà¥‹à¤‚ व उस पर आधारित जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की बातें सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ को मिलती है। यजà¥à¤žà¥‹à¤‚ में वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ व संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ संगतिकरण से à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विदà¥à¤¯à¤¾ की उपलबà¥à¤§à¤¿ सहित शिलà¥à¤ª विदà¥à¤¯à¤¾ का विकास व विसà¥à¤¤à¤¾à¤° होता है। यह लाठà¤à¥€ यजà¥à¤ž से होता है ।
रामायण व महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ सहित मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ आदि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में दैनिक यजà¥à¤ž को अनिवारà¥à¤¯ बताया गया है। दरà¥à¤¶à¤¨ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ यजà¥à¤ž के लाà¤à¥‹à¤‚ का वरà¥à¤£à¤¨ मिलता है। हमें राजा अशà¥à¤µà¤ªà¤¤à¤¿ की कथा à¤à¥€ पà¥à¤¨à¥‡ को मिलती है जिसमें ऋषियों को समà¥à¤¬à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ कर कहा गया है कि मेरे राजà¥à¤¯ में कोई चोर नहीं है, कोई मदà¥à¤¯ पीने वाला नहीं है, कोई कंजूस नहीं है, कोई वà¥à¤¯à¤à¤¿à¤šà¤¾à¤°à¥€ नहीं है, अतः वयà¤à¤¿à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€ à¤à¥€ नहीं है। सà¤à¥€ अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤°-यजà¥à¤ž करते हैं। इससे à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में यजà¥à¤ž की महिमा, उसके विधान व पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है। पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ à¤à¤¾à¤°à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से समà¥à¤¨à¥à¤¨à¤¤ था, लोग वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में रोगी नहीं होते थे, वायॠव जल वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ से अधिक सà¥à¤µà¤šà¥à¤› व शà¥à¤¦à¥à¤§ उपलबà¥à¤§ होते थे जिस कारण से रोग बहà¥à¤¤ कम थे। अब à¤à¥€ यदि सà¤à¥€ लोग यजà¥à¤ž करना आरमà¥à¤ कर दें तो रोगों में कमी आ सकती है। अतः सà¤à¥€ को यजà¥à¤ž करना चाहिये ।
रामायण में à¤à¤• यह à¤à¥€ कथा आती है कि राजा दशरथ के यहां जब दीरà¥à¤˜à¤•à¤¾à¤² तक सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ नहीं हà¥à¤ˆ तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ऋषियों की समà¥à¤®à¤¤à¤¿ से पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ यजà¥à¤ž कराया जिसके परिणाम से उनको चार पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆ जिनमें से à¤à¤• राम थे। सà¤à¥€ à¤à¤¾à¤ˆ वेद पथ पर चलते थे। सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ व अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° करते थे तथा माता-पिता सहित ऋषियों व विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की आजà¥à¤žà¤¾à¤“ं का पालन à¤à¥€ करते थे। उनके उन कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का यश आज लाखों वरà¥à¤· बाद à¤à¥€ विधमान है। अतः यश पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिये à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को यजà¥à¤ž सहित वेदाचरण करना चाहिये ।
सà¤à¥€ आरà¥à¤¯ ऋषि दयाननà¥à¤¦ को अपने माता-पिता के समान मानते हैं। वह आदरà¥à¤¶ महापà¥à¤°à¥à¤· थे जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ईशà¥à¤µà¤° से हमारा परिचय व समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ कराया। हमें उनकी आजà¥à¤žà¤¾ व परामरà¥à¤¶ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ व यजà¥à¤ž सहित माता-पिता-विदà¥à¤µà¤¾à¤¨-अतिथि-वृदà¥à¤§à¥‹à¤‚ की सेवा à¤à¤µà¤‚ पशà¥-पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¥‹à¤œà¤¨ आदि कराना चाहिये। जब हम पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ पंच महायजà¥à¤žà¥‹à¤‚ का सेवन करेंगे तà¤à¥€ हम ऋषि दयाननà¥à¤¦ के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ व शिषà¥à¤¯ कहलाने के अधिकारी होंगे।
यजà¥à¤ž करने से à¤à¤• लाठयह à¤à¥€ है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ जो à¤à¥€ करà¥à¤® करता है वह पà¥à¤£à¥à¤¯ व पाप शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त दो पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के होते हैं। यजà¥à¤ž करने की आजà¥à¤žà¤¾ परमातà¥à¤®à¤¾ ने वेदों में सà¥à¤µà¤¯à¤‚ दी है, अतः यजà¥à¤ž à¤à¤• पà¥à¤£à¥à¤¯ करà¥à¤® है। यजà¥à¤ž से जो उपकार होते हैं उनसे à¤à¥€ यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ सिदà¥à¤§ है कि यह पà¥à¤£à¥à¤¯ करà¥à¤® है। यजà¥à¤ž से असंखà¥à¤¯ लोगों को लाठपहà¥à¤‚चता है। अतः यजà¥à¤ž करने से पà¥à¤£à¥à¤¯ अधिक होता है। इस पà¥à¤£à¥à¤¯ करà¥à¤® का फल मिलना à¤à¥€ निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ है। यजà¥à¤ž से लाखों लोगों को लाठहोता है अतः हमें फल à¤à¥€ उसी के अनà¥à¤°à¥‚प मिलेगा। यजà¥à¤ž के इस महतà¥à¤µ के कारण सà¤à¥€ को यजà¥à¤ž अवशà¥à¤¯ ही करना चाहिये। इससे हानि कà¥à¤› नहीं और लाठइस जनà¥à¤® व परजनà¥à¤® सहित उसके बाद में à¤à¥€ मिलता रहेगा।
à¤à¥‹à¤ªà¤¾à¤² गैस तà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤¦à¥€ से देश की जनता अà¤à¤¿à¤œà¥à¤ž है। गैस के रिसने से à¤à¥‹à¤ªà¤¾à¤² नगर के हजारों लोग कà¥à¤› ही समय में मरे थे। वहां à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ परिवार था जो पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ यजà¥à¤ž करता था। उसने घर मे गाय आदि पशॠà¤à¥€ पाले हà¥à¤ थे। उस परिवार पर विषैली पोटैशियम साइनाइड गैस का कोई पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ नहीं हà¥à¤†à¥¤ इसका कारण था कि यजà¥à¤ž से à¤à¤¸à¤¾ वातावरण बनता है कि विषैली गैसे उस यजà¥à¤žà¥€à¤¯ वातावरण का à¤à¥‡à¤¦à¤¨ कर याजà¥à¤žà¤¿à¤• परिवार के लोगों की नासिका तक नहीं पहà¥à¤‚च सकी और वह गैस से अपà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ रहे।
लेख को विराम देते हà¥à¤ हम यह कहना चाहते हैं कि यजà¥à¤ž करने के लिठगोघृत, समिधाओं à¤à¤µà¤‚ वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ सहित वनीय ओषधियों की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ होती है। हमें गाय, वन व ओषधियों आदि का संरकà¥à¤·à¤£ करना होगा जिससे हमें यजà¥à¤žà¥€à¤¯ सामगà¥à¤°à¥€ निरनà¥à¤¤à¤° मिलती रहे। यह सामगà¥à¤°à¥€ उपलबà¥à¤§ होंगी तà¤à¥€ यजà¥à¤ž हो सकता है। इस पर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दिये जाने की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है। ओ३मॠशमà¥à¥¤
---मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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