‘मांसाहार मनà¥à¤·à¥à¤¯ के सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ व पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के अनà¥à¤°à¥‚प नहीं है’
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Manmohan Kumar AryaDate
22-Jan-2019Category
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HindiTotal Views
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Vikas KumarUpload Date
22-Jan-2019Download PDF
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परमातà¥à¤®à¤¾ ने इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ व बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ को बनाया है और इसमें अनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ व वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ जगत को à¤à¥€ बनाया है। जितने à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ हैं वह सब जीवधारी अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जीवातà¥à¤®à¤¾ को अपने शरीर में धारण किये हà¥à¤ हैं। शरीर में विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ जीवातà¥à¤®à¤¾ à¤à¤• अनादि, नितà¥à¤¯, अमर, अविनाशी, à¤à¤•à¤¦à¥‡à¤¶à¥€, सà¥à¤µà¤²à¥à¤ª परिमाण, निराकार, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व करà¥à¤® करने की सामरà¥à¤¥à¥à¤¯ से यà¥à¤•à¥à¤¤, अलà¥à¤ªà¤œà¥à¤ž, जनà¥à¤®-मरणधरà¥à¤®à¤¾ तथा बनà¥à¤§à¤¨à¥‹à¤‚ में आबदà¥à¤§ सतà¥à¤¤à¤¾ है। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होने के बाद से इसके जनà¥à¤® व मृतà¥à¤¯à¥ƒ का कà¥à¤°à¤® निरनà¥à¤¤à¤° चलता रहता है। हम आज इस जीवन में हैं तो इससे पूरà¥à¤µ जनà¥à¤® से कà¥à¤› समय पहले मनà¥à¤·à¥à¤¯ या किसी अनà¥à¤¯ योनि में मृतà¥à¤¯à¥ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होकर परमातà¥à¤®à¤¾ की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से यहां आये हैं और यहां वृदà¥à¤§à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾, रोग, दà¥à¤°à¥à¤˜à¤Ÿà¤¨à¤¾ आदि व किसी अनà¥à¤¯ कारण से मृतà¥à¤¯à¥ होने पर पà¥à¤¨à¤ƒ इस जनà¥à¤® के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° हमारा पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® सà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने पूना में उनà¥à¤¨à¥€à¤¸à¤µà¥€à¤‚ शताबà¥à¤¦à¥€ के उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤°à¥à¤§ में जो पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ दिये हैं उसमें उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने à¤à¤• पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ में पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® को अनेक तरà¥à¤• व पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ से सिदà¥à¤§ किया है। अतः जीवातà¥à¤®à¤¾ का जनà¥à¤®, मरण व मोकà¥à¤· सतà¥à¤¯ वैदिक सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤°à¥‚प अनादि काल से होता आ रहा है और अननà¥à¤¤ काल तक होता रहेगा, यह शाशà¥à¤µà¤¤à¥ ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ नियम व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ है।
मनà¥à¤·à¥à¤¯ योनि सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€à¤¯à¥‹à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¤·à¥à¤ योनि है। यह सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ तà¤à¥€ बनती है कि जब हम सतà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सदà¥à¤•à¤°à¥à¤®à¥‹à¤‚ को धारण करें व उनका आचरण करें। यदि à¤à¤¸à¤¾ नही करते तो हम मनà¥à¤·à¥à¤¯ होकर à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ कहलाने के अधिकारी नहीं है। वेदों के अनà¥à¤ªà¤® विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ ऋषि दयाननà¥à¤¦ जी ने कहा है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ उसी को कहना कि जो मननशील हो। जो सà¥à¤µà¤¾à¤¤à¥à¤®à¤µà¤¤ अनà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के सà¥à¤–-दà¥à¤ƒà¤– व हानि लाठको समà¤à¥‡à¥¤ जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ मननशील न होकर केवल जिहà¥à¤µà¤¾ के सà¥à¤µà¤¾à¤¦ के लिये à¤à¥‹à¤œà¤¨ करे, वह अविवेकी होता है। उसे सचà¥à¤šà¥‡ अरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ में मनà¥à¤·à¥à¤¯ नहीं कह सकते। मनà¥à¤·à¥à¤¯ का पहला करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को व इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को बनाने व इसका संचालन, पालन व वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करने वाली सतà¥à¤¤à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° को जानना है। जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ईशà¥à¤µà¤° को जान लिया है वह धनà¥à¤¯ हैं और जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने नहीं जाना है वह शरीर की आकृति से à¤à¤²à¥‡ ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ हों, वह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व करà¥à¤® की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से मनà¥à¤·à¥à¤¯ नहीं कहे जा सकते।
सदà¥à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ व करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हमें वेद व वेदानà¥à¤•à¥‚ल विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ से होता है जिसमें सबसे अधिक सरल व सà¥à¤¬à¥‹à¤§ ऋषि दयाननà¥à¤¦ की रचना सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ है जिसके पà¥à¤°à¤¥à¤® दस समà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ में वेदानà¥à¤•à¥‚ल सà¤à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤“ं को यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ व तरà¥à¤• सहित अनेक ऋषियों के पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ के साथ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ व सिदà¥à¤§ किया गया है। अतः आज के समय में हम देश के सà¤à¥€ नागरिकों के लिये सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ के पà¥à¤°à¤¥à¤® दस समà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ अनिवारà¥à¤¯ व अपरिहारà¥à¤¯ समà¤à¤¤à¥‡ हैं। हम अनà¥à¤à¤µ करते हैं सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ से ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ सचà¥à¤šà¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯ बन सकता है। हमारे पाठक व मितà¥à¤° इस विषय में अपनी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं के आदान-पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ à¤à¤µà¤‚ तरà¥à¤•à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इस विषय का निरà¥à¤£à¤¯ कर सकते हैं।
मनà¥à¤·à¥à¤¯ के à¤à¥‹à¤œà¤¨ विषयक सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ व पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के बारे में विचार करते हैं। मनà¥à¤·à¥à¤¯ à¤à¥‹à¤œà¤¨ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ करता है? इसका उतà¥à¤¤à¤° है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ रखने, निरोग बने रहने और बल वा शकà¥à¤¤à¤¿ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिये à¤à¥‹à¤œà¤¨ करता है। इससे उसे सà¥à¤– मिलता है। à¤à¥‚ख की निवृतà¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ इसका à¤à¤• कारण है। जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ को दूर करने के लिये सà¥à¤µà¤šà¥à¤› जल ही उतà¥à¤¤à¤® माना जाता है इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से हमारा अनà¥à¤¨ व फल आदि सà¤à¥€ पदारà¥à¤¥ à¤à¥€ शà¥à¤¦à¥à¤§ होने चाहिये।
कोई मनà¥à¤·à¥à¤¯ बासी, पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ व कीड़े लगा हà¥à¤† फल कà¤à¥€ नहीं खाता। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से à¤à¥‹à¤œà¤¨ करते हà¥à¤ à¤à¥€ यह विचार अवशà¥à¤¯ करना चाहिये कि à¤à¥‹à¤œà¤¨ से सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ व आरोगà¥à¤¯ होगा या नहीं? सà¤à¥€ वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ व परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ शाकाहारी à¤à¥‹à¤œà¤¨ सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ के लिये शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ पाया जाता है। घोड़ा घास खाता है और सबसे तेज दौड़ता है। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ ने à¤à¥€ इस बात को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर शकà¥à¤¤à¤¿ की इकाई को अशà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿ या हारà¥à¤¸ पावर का नाम दिया है। हाथी à¤à¥€ शाकाहारी पशॠहै। यह à¤à¥€ वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर अपना जीवन बिताता है। इसे बल में सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• कह सकते हैं। यह पेड़ को à¤à¥€ अपनी सूंड से पकड़ कर जड़ से उखाड़ने की कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ रखता है। शेर मांसाहारी पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ है। बल à¤à¥€ उसमें होता है। वह सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पशà¥à¤“ं का मांस खाता है। उसमें इतना साहस व वीरता नहीं होती कि वह हाथी पर सामने से आकà¥à¤°à¤®à¤£ करे। इससे जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि व डरपोक पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ है, कम से कम हाथी से तो डरता ही है। उसे अपने बल का पता है कि वह बल में हाथी को पराजित नहीं कर सकता। शेर में इस डर व साहस की नà¥à¤¯à¥‚नता मांस व पतित à¤à¥‹à¤œà¤¨ के कारण हैं। इसमें शेर की à¤à¥€ गलती नहीं है। परमातà¥à¤®à¤¾ ने उसे बनाया ही वैसा है। उसके शरीर में दांत व पांचन तनà¥à¤¤à¥à¤° पशॠके मांस को खाने व पचाने के अनà¥à¤°à¥‚प है तथा पैर के पंजे à¤à¥€ इस काम में सहायक होते हैं। परमातà¥à¤®à¤¾ ने शाकाहारी जीव-जनà¥à¤¤à¥à¤“ं के दांत व मांसाहारी जीव-जनà¥à¤¤à¥à¤“ं के दांतों में à¤à¥€ अनà¥à¤¤à¤° किया है। उनके पाचन तंतà¥à¤° à¤à¥€ अलग पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के बनाये हैं। मनà¥à¤·à¥à¤¯ के दांत व पाचन तंतà¥à¤° शाकाहारी पशà¥à¤“ं के समान होने से à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤° ने यह सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ दिया है कि मनà¥à¤·à¥à¤¯ à¤à¤• शाकाहारी पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ नादानी व अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ में à¤à¤²à¥‡ ही मांस का सेवन कर ले परनà¥à¤¤à¥ वह पशà¥à¤“ं की à¤à¤¾à¤‚ति केवल कचà¥à¤šà¥‡ मांस पर निरà¥à¤à¤° व जीवित नहीं रह सकता। उसे मांस को पकाकर खाना पड़ता है उसमें नमक, मिरà¥à¤š, मसाले, तेल व घी आदि डालने पड़ते हैं अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ केवल मांस को पशà¥à¤“ं की à¤à¤¾à¤‚ति दांतों से कचà¥à¤šà¤¾ चबा कर वह नहीं खा सकता। इससे मनà¥à¤·à¥à¤¯ के लिये पशà¥à¤“ं का मांस पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ व सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से अनिषà¥à¤Ÿ व विरà¥à¤¦à¥à¤§ है।
मनà¥à¤·à¥à¤¯ को परमातà¥à¤®à¤¾ ने अहिंसक सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ का पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ बनाया है। उसके हृदय में दूसरों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ दया व करूणा का à¤à¤¾à¤µ दिया है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ गाय पालता है तो उसका दूध पीकर उसमें गाय के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ माता की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होती है। गाय à¤à¥€ अपने पालक पर दया व करूणा की वरà¥à¤·à¤¾ करती है। गाय पालक व उसका पूरा परिवार गाय को मातà¥à¤° घास का à¤à¥‹à¤œà¤¨ ही कराता है जिसे परमातà¥à¤®à¤¾ ने पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ में बहà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¤¤ में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किया है। घास को कृषक को उगाना नहीं पड़ता, वह सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही उगता है व निःशà¥à¤²à¥à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। उस घांस से गाय पालक का अपना पूरा परिवार सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥, निरोग व बलिषà¥à¤ बनता है। दीरà¥à¤˜à¤¾à¤¯à¥ होता है। मांसà¤à¤•à¥à¤·à¥€ पशॠपà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ अलà¥à¤ªà¤¾à¤¯à¥ वाले होते हैं जबकि शाकाहारी पशॠव मनà¥à¤·à¥à¤¯ दीरà¥à¤˜à¤¾à¤¯à¥, निरोग, सà¥à¤– व पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ का जीवन वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ करते हैं। मांसाहारियों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मांस का सेवन करने से उनके उदर व पांचन तनà¥à¤¤à¥à¤° पर बà¥à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ पड़ता है। अनेक मांसाहारी मदिरापान के दà¥à¤°à¥à¤µà¥à¤¯à¤¸à¤¨ से à¤à¥€ गà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ होते हैं। यह सब पदारà¥à¤¥ रोगकारक व अलà¥à¤ªà¤¾à¤¯à¥ को आमंतà¥à¤°à¤£ देते हैं। इससे जितना अधिक बचा जाये उतना अचà¥à¤›à¤¾ है।
जब हम इतिहास पर दृषà¥à¤Ÿà¤¿ डालते हैं तो उसमें शूरवीर व बलवानों पर दृषà¥à¤Ÿà¤¿ जाती है। हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ व à¤à¥€à¤® हमारे इतिहास में सबसे अधिक बलवान मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के रूप में हैं। यह दोनों ही शà¥à¤¦à¥à¤§ शाकाहारी व वेदानà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ थे। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ जी का शरीर à¤à¥€ अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ आकरà¥à¤·à¤•, सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ à¤à¤µà¤‚ बलवान था। यदि सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ जी को उनके विरोधियों, शतà¥à¤°à¥à¤“ं और षडयनà¥à¤¤à¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ समय-समय पर विष न दिया जाता तो समà¥à¤à¤µ है कि वह 100 से अधिक वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक जीते। महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल में 160 से 180 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ के बीच के à¤à¥€à¤·à¥à¤® पितामह इस बड़ी आयॠमें à¤à¥€ यà¥à¤µà¤¾à¤“ं से यà¥à¤¦à¥à¤§ करते रहे और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हजारों व लाखों वीरों को मृतà¥à¤¯à¥ के पार पहà¥à¤‚चाया था। यह शाकाहार का पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से हमारे मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® शà¥à¤°à¥€ राम, योगशà¥à¤µà¤° शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£, रावण, सà¥à¤—à¥à¤°à¥€à¤µ, लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ आदि सà¤à¥€ शाकाहारी वीर व साहसी योदà¥à¤§à¤¾ थे। अतः मांस बल का परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ न होकर रोग और अलà¥à¤ª जीवन का परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ ही कहा जा सकता है।
वैदिक धरà¥à¤® जो कि ईशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¦à¤¤ है, इसका à¤à¤• पà¥à¤°à¤®à¥à¤– सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ करà¥à¤®-फल सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ है। संसार में जो à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ जनà¥à¤® लेता है वह अपने पूरà¥à¤µà¤œà¤¨à¥à¤®à¥‹à¤‚ के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल à¤à¥‹à¤—ने के लिये ही जनà¥à¤® लेता है। सà¤à¥€ पशà¥, पकà¥à¤·à¥€ आदि पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ अपने जीवन में अपने पूरà¥à¤µà¤œà¤¨à¥à¤®à¥‹à¤‚ के पापों का फल à¤à¥‹à¤—ते हैं। à¤à¤• वा अनेक पशà¥-पकà¥à¤·à¥€ योनियों में फल à¤à¥‹à¤—ने के बाद इनका मनà¥à¤·à¥à¤¯ योनि में जनà¥à¤® होता है जिससे यह मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की à¤à¤¾à¤‚ति अपने करà¥à¤® के बनà¥à¤§à¤¨à¥‹à¤‚ को काट कर मोकà¥à¤· को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सके। सà¤à¥€ पशॠव पकà¥à¤·à¥€ à¤à¥€ किसी न किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से मनà¥à¤·à¥à¤¯ को लाठपहà¥à¤‚चाते हैं। à¤à¤¸à¥‡ लाà¤à¤•à¤¾à¤°à¥€ पशà¥à¤“ं को मारना हिंसा है जो कि अमानवीय होने से मनà¥à¤·à¥à¤¯ की पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ व सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ के विरà¥à¤¦à¥à¤§ है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ का करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ लाà¤à¤•à¤¾à¤°à¥€ पशà¥à¤“ं की रकà¥à¤·à¤¾ करना व उनके लिये à¤à¥‹à¤œà¤¨ का पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§ करना उचित है तà¤à¥€ वह अपने बनà¥à¤§à¤¨à¥‹à¤‚ को काट सकते हैं। à¤à¤¸à¤¾ न करना उनके लिये बहà¥à¤¤ अधिक हानिकारक कारà¥à¤¯ है। मांसाहारी मनà¥à¤·à¥à¤¯ देश व समाज को à¤à¥€ हानि पहà¥à¤‚चाते हैं और अपना परजनà¥à¤® à¤à¥€ नषà¥à¤Ÿ करते हैं। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने लिखा है कि हिंसक सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ वाले मांसाहारियों को योग विदà¥à¤¯à¤¾ व ईशà¥à¤µà¤° की पूजा में सफलता पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं होती। हो à¤à¥€ कैसे, वह ईशà¥à¤µà¤° की आजà¥à¤žà¤¾ का उलà¥à¤²à¤‚घन जो करते हैं। अतः मनà¥à¤·à¥à¤¯ को à¤à¥‹à¤œà¤¨ के पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ पर मनन करना चाहिये व वैदिक विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की समà¥à¤®à¤¤à¤¿ लेनी चाहिये। पशà¥à¤“ं का मांस का आहार छोड़कर उनकी रकà¥à¤·à¤¾ व पालन कर अपने दà¥à¤·à¥à¤•à¤°à¥à¤®à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ करना चाहिये। इसी के साथ इस लेख को विराम देते हैं। ओ३मॠशमà¥à¥¤
-मनमोहन आरà¥à¤¯
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