अक्सर देश में मांसाहारी भोजन पर प्रतिबंध को लेकर कोई न कोई बहस चल रही होती है। मांसहार के समर्थक और आलोचक दोनों ही तरह के लोग आमने-सामने भी आते रहते हैं। कई बार अभद्र भाषा का भी इस्तेमाल किया जाता है और सरकारों पर दबाव भी बनाया जाता है कि मांसाहारी भोजन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। हर बार सरकारें असमंजस में भी होती है कि क्या किया जाये, क्या नहीं!

किन्तु इसका हल भारतीय जनता पार्टी के सांसद प्रवेश साहिब सिंह ने पिछले दिनों लोकसभा में पेश कर दिया। उनकी तरफ एक निजी बिल पेश किया गया जिसमें सरकारी बैठकों और कार्यक्रमों में मांसाहारी भोजन परोसने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। अपने बिल पर प्रवेश सिंह ने कहा कि, मांसहारी खाद्य पदार्थों के सेवन से ना केवल जानवरों के साथ दुर्व्यवहार और हत्याएं होती हैं, बल्कि विनाशकारी पर्यावरणीय प्रभाव भी होते हैं। उन्होंने इन बिल में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि दुनिया को जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों से बचाने के लिए पशु उत्पाद की कम खपत आवश्यक है। मांस उद्योग के विनाशकारी प्रभाव है तथा इस उधोग से जानवरों को भी भीषण पीड़ा वेदना से गुजरना पड़ता है।

इसे एक अच्छी खबर और बेहतरीन मांग कही जानी चाहिए, क्योंकि दूसरों को सही रास्ते पर लाने से पहले खुद सही रास्ते पर आना जरुरी होता है। सरकारों का दायित्व भी यही बनता है कि पहले स्वयं शाकाहार अपनाया जाये बाद में इसके लाभ जनता तक पहुंचाए जाये। निसंदेह पश्चिम दिल्ली के भाजपा सांसद प्रवेश साहिब सिंह की इस बिल के पेश करने को लेकर जितनी प्रसंशा की जाये उतनी कम है। हालाँकि पिछले वर्ष मई में रेल मंत्रालय द्वारा भी 2 अक्टूबर को रेलवे परिसर में नॉनवेज न परोसने की सिफारिश की थी कि गांधी जयंती स्वच्छता दिवस के साथ-साथ शाकाहारी दिवस के रूप में भी जाना जाएगा। इससे पहले अप्रैल 2017 में पशु प्रेमी संस्था पेटा द्वारा भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पत्र के माध्यम से अपील की गयी थी कि सभी सरकारी बैठकों और कार्यक्रमों में सभी तरह के मांसाहार भोजन पर रोक लगा दी जाये।

पेटा ने अपने पत्र में लिखा था कि पेटा की इस मांग का समर्थन करते हुए जर्मनी के पर्यावरण मंत्री ने सरकारी बैठकों में खाने की सूची से मांसाहारी पदार्थों को परोसे जाने को प्रतिबंधित कर दिया है। इससे से प्रभावित होकर पेटा ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी से भी आग्रह किया था कि इससे ग्रीन हाउस गैसों पर नियंत्रण होगा। साथ ही जलवायु परिवर्तन के मुद्दे से निपटने में भी मदद मिलेगी।

अथर्ववेद में भी कहा गया है कि जो मनुष्य घोड़े, गाय आदि पशुओं का मांस खाता है, वह राक्षस है और यजुर्वेद में कहा गया है कि सभी प्राणीमात्र को मित्र की दृष्टि से देखो। किन्तु दुखद कि आज ऐसे सुंदर कथनों का पालन नहीं किया जा रहा है। ये जरुर है कि दिल्ली सहित पूरे उत्तर भारत में नवरात्र और सावन के महीने में बड़ी संख्या में लोग मांसाहार बंद कर देते हैं। पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार में छठ के दौरान मांसाहार बंद हो जाता है लेकिन कोई प्रतिबंधित नहीं करता। इस तरह की मांग की अपनी एक समस्या है। परन्तु लोगों को समझना चाहिए कि यह मामला धार्मिक नहीं है या प्रकृति से जुड़ा मामला है जब किसी पशु को मारा जाता है तब उसे उतनी ही वेदना होती है जितनी किसी मनुष्य को मारने से होती है। पशु स्वेच्छा से नहीं मर रहा है। अगर कोई हमें तुम्हें मारता है, तो हम स्वेच्छा से नहीं मरोगे। जो उस समय हमारे मन पर बीतेगी वही उस समय पशु के मन पर बीतती हैं। उसके पूरे शरीर पर हिंसा, वेदना, पीड़ा फैल जाती है। उसका पूरा शरीर विष से भर जाता है, शरीर की सब ग्रंथियां जहर छोड़ती हैं क्योंकि पशु न चाहते हुए भी मर रहा है और फिर जो लोग मांस खाते वही जहरीले भाव उनके शरीर में चले जाते हैं। वह मनुष्य दिखने में ही मनुष्य रहता है अंदर हिंसा भर जाती है और हिंसा कहां व्यक्त हो रही है यह भी छिपा नहीं हैं।

आज लोगों को समझना चाहिए कि हम ऋषि-मुनियों की संताने है और हमारे ऋषि मुनि शाकाहारी थे यही बात पश्चिम के लोगों को भी समझ जानी चाहिए कि वैज्ञानिक इस तथ्य को मानते हैं कि मानव शरीर का संपूर्ण ढांचा दिखाता है कि वह पूर्णतया शाकाहारी हैं। इसके अलावा यदि वह डार्विन पर भरोसा करते है और अगर डार्विन सही है तो आदमी को शाकाहारी होना चाहिए क्योंकि वह आदमी को बन्दर की संतान मानता था और बन्दर मांसाहारी नही होते, बंदर पूर्ण शाकाहारी होते हैं। बरहाल मूल विषय और मुद्दा यही है कि एक मानव होने के नाते हमे मानव समाज में जीना है, एक जंगल में नहीं, हमें हिंसा से प्रेम से जीना होगा उसके लिए शाकाहार अपनाना होगा। इसलिए हम सांसद प्रवेश साहिब सिंह का आभार व्यक्त करते है एक किस्म से उन्होंने जगत कल्याण के लिए इस बिल को संसद में पेश किया हैं।

विनय आर्य

 

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