“ऋषि दयाननà¥à¤¦ कà¥à¤¯à¤¾ चाहते थे?â€
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Manmohan Kumar AryaDate
21-Feb-2019Category
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Vikas KumarUpload Date
21-Feb-2019Download PDF
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ऋषि दयाननà¥à¤¦ महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ के बाद विगत लगà¤à¤— पांच हजार वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में वेदों के मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ के सतà¥à¤¯ अरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ को जानने वाले व उनके आरà¥à¤· वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° सतà¥à¤¯, यथारà¥à¤¥ तथा वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤• अरà¥à¤¥ करने वाले ऋषि हà¥à¤ हैं। महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ के बाद à¤à¤¸à¤¾ कोई विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ नहीं हà¥à¤† है जिसने वेदों के सतà¥à¤¯, यथारà¥à¤¥ तथा महरà¥à¤·à¤¿ यासà¥à¤• के निरà¥à¤•à¥à¤¤ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ के अनà¥à¤°à¥‚प वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤•, उपयोगी, कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤µà¤‚ जà¥à¤žà¤¾à¤¨-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के अनà¥à¤°à¥‚प अरà¥à¤¥ किये हों। वेदों का यथारà¥à¤¥ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ हो जाने पर मनà¥à¤·à¥à¤¯ ईशà¥à¤µà¤°, जीवातà¥à¤®à¤¾ और पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के सतà¥à¤¯ रहसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से परिचित à¤à¤µà¤‚ अà¤à¤¿à¤œà¥à¤ž हो जाता है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ से पूरà¥à¤µ उन जैसा वेदों का विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ व पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤• न होने के कारण विगत पांच हजार वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से मनà¥à¤·à¥à¤¯ ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾ के सतà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥‚प के विषय में शंकित व à¤à¥à¤°à¤®à¤¿à¤¤ था। इस बीच बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ में मत-मतानà¥à¤¤à¤° उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ परनà¥à¤¤à¥ वह वेदों व उपनिषदों के होते हà¥à¤ à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤° के सतà¥à¤¯à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प को लेकर à¤à¥à¤°à¤®à¤¿à¤¤ रहे। सà¤à¥€ मतों के आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में विवेक का अà¤à¤¾à¤µ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ वह जड़ पूजा, मिथà¥à¤¯à¤¾ पूजा व मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा का विरोध व खणà¥à¤¡à¤¨ अवशà¥à¤¯ करते और जनसामानà¥à¤¯ को बताते कि ईशà¥à¤µà¤° सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ à¤à¤µà¤‚ निराकार आदि गà¥à¤£à¥‹à¤‚ वाला है और उसकी उपासना धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करने सहित सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿, पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ व उपासना के माधà¥à¤¯à¤® से ही की जा सकती है।
महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ कà¥à¤¯à¤¾ चाहते थे? इसके उतà¥à¤¤à¤° में यह कह सकते हैं कि वह संसार को ईशà¥à¤µà¤°, जीवातà¥à¤®à¤¾ तथा पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का सतà¥à¤¯à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प बताना चाहते थे जो सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• ईशà¥à¤µà¤° ने अपने जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वेदों के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अमैथà¥à¤¨à¥€ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ चार ऋषियो ंको दिया था। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾ विषयक वेदों के समसà¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को अपने पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨à¥‹à¤‚ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया था और इतिहास में पहली बार इसे सरल लोकà¤à¤¾à¤·à¤¾ हिनà¥à¤¦à¥€ सहित संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ में देश-देशानà¥à¤¤à¤° में पहà¥à¤‚चाया। ईशà¥à¤µà¤°à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ ‘‘वेद” सब सतà¥à¤¯ विदà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है। इस कारण वह इसे सà¤à¥€ देशवासियों सहित विशà¥à¤µ के लोगों तक पहà¥à¤‚चाना चाहते थे जिससे वह वेदों का आचरण कर धरà¥à¤®, अरà¥à¤¥, काम व मोकà¥à¤· को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो सकें। वह इस कारà¥à¤¯ में आंशिक रूप से सफल à¤à¥€ हà¥à¤à¥¤ आज इसका पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ समसà¥à¤¤ विशà¥à¤µ पर देखा जा सकता है। इसी कारà¥à¤¯ के लिये ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की थी। इस कारà¥à¤¯ को समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ करने के लिये उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अनेक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤£à¤¯à¤¨ किया जिनमें ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ (आंशिक) तथा यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ के संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ व हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ सहित सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶, ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¾à¤¦à¤¿à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯à¤à¥‚मिका, संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¤µà¤¿à¤§à¤¿, पंचमहायजà¥à¤žà¤µà¤¿à¤§à¤¿, आरà¥à¤¯à¤¾à¤à¤¿à¤µà¤¿à¤¨à¤¯, वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤à¤¾à¤¨à¥, गोकरूणानिधि आदि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ हैं। देश व विशà¥à¤µ के लोग ईशà¥à¤µà¤° व आतà¥à¤®à¤¾ के सतà¥à¤¯à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प तथा गà¥à¤£-करà¥à¤®-सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ को जानें और सही विधि से ईशà¥à¤µà¤°à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤¨à¤¾ करें, इसके लिये उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पंचमहायजà¥à¤žà¤µà¤¿à¤§à¤¿ लिखी जिसमें उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ व सायं धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ विधि से ईशà¥à¤µà¤° की उपासना की विधि ‘‘सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾” के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ की है। ईशà¥à¤µà¤° का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करने की यही विधि सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® है। इसका जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सà¤à¥€ उपासना पदà¥à¤§à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ सहित सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने से होता है। अतीत में अनेक पौराणिक विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ ने à¤à¥€ अपनी सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ व उपासना पदà¥à¤§à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को छोड़कर ऋषि दयाननà¥à¤¦ लिखित संनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ की शरण ली थी। पं. यà¥à¤§à¤¿à¤·à¥à¤ िर मीमांसक जी ने अपनी आतà¥à¤®à¤¾à¤•à¤¥à¤¾ में इसका उलà¥à¤²à¥‡à¤– करते हà¥à¤ बताया है कि काशी में जिस उचà¥à¤š कोटि के विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ से वह पà¥à¤¤à¥‡ थे उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यह जाने बिना की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• किसकी लिखी हà¥à¤ˆ है, इसे सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® जानकर इसी विधि से उपासना करना आरमà¥à¤ कर दिया था। बाद में जब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यह पता चला कि वह सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ ने लिखी है तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ऋषि दयाननà¥à¤¦ की विदà¥à¤µà¤¤à¤¾ को जानकर सà¥à¤–द आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ हà¥à¤† था।
महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने 10 अपà¥à¤°à¥ˆà¤², सनॠ1875 को मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ नगरी में आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की थी। इसके बाद आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के 10 नियम बनाये गये जिनमें से आठवां नियम है ‘अविदà¥à¤¯à¤¾ का नाश और विदà¥à¤¯à¤¾ की वृदà¥à¤§à¤¿ करनी चाहिये।’ हम इससे पूरà¥à¤µ किसी संसà¥à¤¥à¤¾ व देश के संविधान में इस नियम का विधान नहीं पाते। यह नियम à¤à¤¸à¤¾ नियम है कि जो समाज व देश इस नियम को अपना ले, वह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ में शिखर सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सकता है। आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ है कि हमारे देश में इसे अब तक लागू नहीं किया जा सका। ऋषि दयाननà¥à¤¦ अपने गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में देश के सà¤à¥€ बालक व बालिकाओं के लिये वेदानà¥à¤®à¥‹à¤¦à¤¿à¤¤ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की शिकà¥à¤·à¤¾ का विधान करते हैं। वह लिखते हैं कि शिकà¥à¤·à¤¾ व विदà¥à¤¯à¤¾ देश के सà¤à¥€ बालक व बालिकाओं को निःशà¥à¤²à¥à¤• व समान रूप से मिलनी चाहिये। वैदिक शिकà¥à¤·à¤¾ में बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² में रहकर शिकà¥à¤·à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करनी होती है। राजा हो या रंक, सबको शिकà¥à¤·à¤¾ का अधिकार है, इसका विधान ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने किया है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यह à¤à¥€ लिखा है कि किसी à¤à¥€ विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ के साथ किसी à¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का à¤à¥‡à¤¦à¤à¤¾à¤µ नहीं होना चाहिये। सबको समान रूप से वसà¥à¤¤à¥à¤°, à¤à¥‹à¤œà¤¨ à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ सà¤à¥€ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ मिलनी चाहियें। यह à¤à¥€ कहा है कि शिकà¥à¤·à¤¾ सà¤à¥€ बालक व बालिकाओं के लिये अनिवारà¥à¤¯ होनी चाहिये। जो माता-पिता अपने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤², पाठशाला व विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ में न à¤à¥‡à¤‚जे, वह दणà¥à¤¡à¤¨à¥€à¤¯ होने चाहिये।
मनà¥à¤·à¥à¤¯ जब ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾ के विषय को यथारà¥à¤¥ रूप में जान लेता है तब वह सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ व अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ सहित मिथà¥à¤¯à¤¾ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं से à¤à¥€ परिचित होकर सतà¥à¤¯ का गà¥à¤°à¤¹à¤£ और असतà¥à¤¯ का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करता है। जनà¥à¤®à¤¨à¤¾ जातिवाद पर à¤à¥€ ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने पà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤° किया है। जनà¥à¤®à¤¨à¤¾ जाति वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ को ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने मरण वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की उपमा दी है। वह इस वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से दà¥à¤ƒà¤–ी थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वेदों के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व अपने विवेक से यà¥à¤µà¤• व यà¥à¤µà¤¤à¥€ के विवाह का विधान कर उनके गà¥à¤£, करà¥à¤® व सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ की समानता व अनà¥à¤•à¥‚लता पर बल दिया है। वह बेमेल विवाह व बाल विवाह के विरोधी थे। वह इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वेद विरà¥à¤¦à¥à¤§ à¤à¤µà¤‚ देश व समाज की उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ में बाधक मानते थे। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने यà¥à¤µà¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की विधवाओं व विधà¥à¤°à¥‹à¤‚ का विरोध नहीं किया। यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ वह सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के पà¥à¤¨à¤°à¥à¤µà¤¿à¤µà¤¾à¤¹à¥‹à¤‚ को उचित नहीं मानते थे परनà¥à¤¤à¥ आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ इसे आपदधरà¥à¤® के रूप में सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करता है। वेद में à¤à¥€ विधवा सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के पà¥à¤¨à¤µà¤¿à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¹ का विधान है। सà¤à¥€ सामाजिक परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं पर महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ की विचारधारा पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ डालती है।
ऋषि दयाननà¥à¤¦ देश में सà¥à¤µà¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ देखना चाहते थे। इस विषय में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में सà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤¶à¥€à¤¯ राजà¥à¤¯ को सरà¥à¤µà¥‹à¤ªà¤°à¤¿ उतà¥à¤¤à¤® बताया है और कहा है कि मत-मतानà¥à¤¤à¤° के आगà¥à¤°à¤¹ रहित, अपने और पराये का पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤à¤¶à¥‚नà¥à¤¯, पà¥à¤°à¤œà¤¾ पर पिता माता के समान कृपा, नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ और दया के साथ विदेशियों का राजà¥à¤¯ पूरà¥à¤£ सà¥à¤–दायक नहीं हो सकता। उनके इन विचारों के परिणामसà¥à¤µà¤°à¥‚प कालानà¥à¤¤à¤° में देश में आजादी के लिये गरम व नरम विचारधारायें सामने आयीं। देश की आजादी के आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ में सबसे अधिक योगदान à¤à¥€ आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ ने ही किया। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ ने देश की आरà¥à¤¯ हिनà¥à¤¦à¥‚ जाति को धरà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¤£ से बचाया। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की वैदिक विचारधारा का पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° होने से सà¤à¥€ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ के विजà¥à¤ž व विवेकशील लोगों ने इसे विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ अनà¥à¤¯ मतों की विचारधारा से उतà¥à¤¤à¤® जानकर कà¥à¤› ने इसे अपनाया à¤à¥€à¥¤ इसका परिणाम यह हà¥à¤† कि विशà¥à¤µ इतिहास में पहली बार वैदिक सनातन धरà¥à¤® से इतर मतों के विजà¥à¤žà¤œà¤¨à¥‹à¤‚ ने वैदिक विचारधारा वा वैदिक धरà¥à¤® को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किया और ऋषि के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ वा आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने धरà¥à¤® में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ किया। आज à¤à¥€ à¤à¤¸à¥€ घटनायें होती रहती हैं। ऋषि दयाननà¥à¤¦ की विचारधारा मांसाहार की विरोधी à¤à¤µà¤‚ शà¥à¤¦à¥à¤§ अनà¥à¤¨ व à¤à¥‹à¤œà¤¨ का सेवन करने की पोषक है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ का à¤à¥‹à¤œà¤¨ अनà¥à¤¨, शाक-सबà¥à¤šà¥€, फल à¤à¤µà¤‚ दà¥à¤—à¥à¤§ आदि ही हैं। इनके सेवन से मनà¥à¤·à¥à¤¯ निरोग रहते हà¥à¤ लमà¥à¤¬à¥€ आयॠको पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है। मांसाहार अनेक रोगों को आमनà¥à¤¤à¥à¤°à¤£ देता है। मांसाहार ईशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ में बाधक है और मांसाहार हिंसायà¥à¤•à¥à¤¤ करà¥à¤® व अà¤à¤•à¥à¤·à¥à¤¯ होने सहित वेदों में इसकी आजà¥à¤žà¤¾ न होने के कारण जनà¥à¤®-जनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤° में इसका परिणाम दà¥à¤ƒà¤– पाना होता है। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ ने वायà¥-वृषà¥à¤Ÿà¤¿ जल के शोधक व आरोगà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¤• अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° यजà¥à¤ž का à¤à¥€ पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° किया जिससे असंखà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सà¥à¤– लाठहोने से पà¥à¤£à¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤œà¤¨ होता है और हमारा यह जनà¥à¤® व परजनà¥à¤® सà¥à¤– व कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ से पूरित होता है।
महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ का मà¥à¤–à¥à¤¯ उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ संसार से अविदà¥à¤¯à¤¾ का नाश तथा विदà¥à¤¯à¤¾ की वृदà¥à¤§à¤¿ करने सहित विदà¥à¤¯à¤¾ के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ वेदों सहित जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ को पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित व पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¤ करना था। वेद की किसी à¤à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से विरोध नहीं है। वसà¥à¤¤à¥ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ यह है कि वेदों की सà¤à¥€ मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ जà¥à¤žà¤¾à¤¨-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की पोषक हैं। ऋषि दयाननà¥à¤¦ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ में वेद और वेदानà¥à¤•à¥‚ल मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ सतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤°à¤£ का परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ हैं और यही वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• मनà¥à¤·à¥à¤¯ धरà¥à¤® हैं। सà¤à¥€ को ईशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ मानवमातà¥à¤° व पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° केहितकारी वेदमत का ही अनà¥à¤¸à¤°à¤£ करना चाहिये। यही ऋषि दयाननà¥à¤¦ को अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ था। इसी से विशà¥à¤µ में सà¥à¤– व शानà¥à¤¤à¤¿ का वातावरण बनाने में सहायता मिल सकती है। इस चरà¥à¤šà¤¾ के साथ इस लेख को विराम देते हैं। ओ३मॠशमà¥à¥¤
--मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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