“कà¥à¤¯à¤¾ मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा वेदानà¥à¤•à¥‚ल, तरà¥à¤• व यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ संगत है?â€
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Manmohan Kumar AryaDate
25-Feb-2019Category
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HindiTotal Views
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Vikas KumarUpload Date
25-Feb-2019Download PDF
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हम जिस संसार में रहते हैं वह हमें बना बनाया मिला है। हम अपने लिये घर बनाते हैं या किराये का घर लेकर रहते हैं। अपना मकान हम सà¥à¤µà¤¯à¤‚ बनाते हैं या अपने धन से खरीदते हैं और किराये का मकान किसी दूसरे वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का होता है जो उसे अपने धन और पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ से बनाता है। हम उसे उसके धन व पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ के बदले में मासिक किराये के रूप में धन देते हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि आजकल पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ को धन देकर खरीदा व बेचा जाता है। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° हमारी यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ हमें बनी बनाई मिली है और कोई हमसे इसका किराया à¤à¥€ नहीं मांगता है।
हम इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का उपà¤à¥‹à¤— करने के लिये किराये के रूप में उस सतà¥à¤¤à¤¾ को जिसने यह समसà¥à¤¤ संसार बनाया है, अपनी किस वसà¥à¤¤à¥ वा धन आदि का दान दे सकते हैं? इसका उतà¥à¤¤à¤° यह है कि हमारे पास अपनी à¤à¤¸à¥€ कोई वसà¥à¤¤à¥ नहीं जिससे इसका ऋण चà¥à¤•à¤¾à¤¯à¤¾ जा सके। हमारा करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है कि हम सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ और इसके पालक को जाने। हम उसे सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ व सà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾ के नाम से पà¥à¤•à¤¾à¤° सकते हैं। यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯ से यà¥à¤•à¥à¤¤ है। धरती, वायà¥, जल, अनà¥à¤¨, फूल, फल, पशà¥, पकà¥à¤·à¥€ आदि à¤à¤• पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का धन व à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯ है। यह सब उस सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ का ही है। सब à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ को ईशà¥à¤µà¤° कहा जाता है। इसलिये वैदिक धरà¥à¤® व संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ में सृषà¥à¤Ÿà¤¿ बनाने वाली सतà¥à¤¤à¤¾ का à¤à¤• नाम ईशà¥à¤µà¤° à¤à¥€ है। यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ वा बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ अति विशाल व अननà¥à¤¤ परिमाण वाला है।
अतः उस ईशà¥à¤µà¤° को à¤à¥€ अननà¥à¤¤ व सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• मानना होगा। वह आंखों से दिखाई नहीं देता। इसका कारण उसका अतिसूकà¥à¤·à¥à¤® होना है। अतः निषà¥à¤•à¤°à¥à¤· में हम कह सकते हैं कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• à¤à¤µà¤‚ सूकà¥à¤·à¥à¤® सतà¥à¤¤à¤¾ है। विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का नियम है कि कोई à¤à¥€ वसà¥à¤¤à¥ यदि बनती है तो वह अपने उपादान कारण से बनती है जो कि à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• व जड़ होता है। उस मूल कारण पदारà¥à¤¥ जिससे वसà¥à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤‚ बनती हैं वह अनादि व अनà¥à¤¤à¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होता है। उसका विनाश नहीं किया जा सकता। सतà¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¾à¤¨ का अà¤à¤¾à¤µ नहीं होता और अà¤à¤¾à¤µ से à¤à¤¾à¤µ व सतà¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¾à¤¨ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ नहीं हो सकती। इस कारण ईशà¥à¤µà¤° अनादि व अविनाशी सिदà¥à¤§ होता है।
इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का अनादि उपादान कारण तà¥à¤°à¤¿à¤—à¥à¤£à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ सिदà¥à¤§ होती है। इस पूरे विषय को जानने के लिये हमें वेद, दरà¥à¤¶à¤¨, उपनिषद, सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ आदि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ की शरण लेनी पड़ती है जहां ईशà¥à¤µà¤°, जीवातà¥à¤®à¤¾ तथा पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का यथारà¥à¤¥ सà¥à¤µà¤°à¥‚प व इनके गà¥à¤£, करà¥à¤® व सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ हमें पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ व जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होते हैं। इस जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को पांच हजार वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ हà¥à¤ महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ यà¥à¤¦à¥à¤§ के बाद लोग अपने आलसà¥à¤¯, पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦ à¤à¤µà¤‚ कà¥à¤› अनà¥à¤¯ कारणों से à¤à¥‚ल चà¥à¤•à¥‡ थे। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने विदà¥à¤¯à¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¯à¤¨, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ वà¥à¤°à¤¤ का पालन और योगाà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ किया, समाधि को सिदà¥à¤§ किया, घोर तप à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ किया और साथ ही इन गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर इनका अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ à¤à¥€ किया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी सतà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤µà¥‡à¤·à¥€ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ से सà¤à¥€ अनादि व अविनाशी मूल ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ सहित धरà¥à¤®à¤¾à¤§à¤°à¥à¤® का तरà¥à¤• व यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¸à¤—त जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया जो वेद, दरà¥à¤¶à¤¨ और उपनिषद आदि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ पर आधारित था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ के रूप में देश की जनता को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया जिससे मनà¥à¤·à¥à¤¯ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ को पà¥à¤•à¤° सतà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¤à¥à¤¯ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨, बोध व विवेक पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सकता है।
ईशà¥à¤µà¤° ने हमें यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ और इसके सà¤à¥€ पदारà¥à¤¥ निःशà¥à¤²à¥à¤• दिये हैं। हमारा करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ है कि हम इसका मूलà¥à¤¯ ईशà¥à¤µà¤° को दें कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह सà¤à¥€ वसà¥à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤‚ उसी की देन हैं। इसका उपाय केवल उस ईशà¥à¤µà¤° की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿, पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ व उपासना ही हो सकता है। सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ में ईशà¥à¤µà¤° के यथारà¥à¤¥ गà¥à¤£à¥‹à¤‚ को जानना, उनका चिनà¥à¤¤à¤¨ व मनन सहित उन गà¥à¤£à¥‹à¤‚ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° की यथारà¥à¤¥ पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा, कीरà¥à¤¤à¤¨ व गà¥à¤£à¤—ान करना है। पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ में हम ईशà¥à¤µà¤° से अपनी इचà¥à¤›à¤¾à¤“ं व आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾à¤“ं की पूरà¥à¤¤à¤¿ में सहायता की याचना करते हैं। उपासना का अरà¥à¤¥ ईशà¥à¤µà¤° के समीप बैठना होता है।
ऋषि दयाननà¥à¤¦ के समय में इस सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿, पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ व उपासना के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ थी। आज à¤à¥€ यह पूरà¥à¤µà¤µà¤¤à¥ व पहले से à¤à¥€ अधिक पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ है। दिन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ इसमें वृदà¥à¤§à¤¿ हो रही है और उपासà¥à¤¯à¤¦à¥‡à¤µà¥‹à¤‚ की संखà¥à¤¯à¤¾ में वृदà¥à¤§à¤¿ à¤à¥€ हो रही है। नये नये जीवित व मृतक देवता मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ होते जाते हैं। अà¤à¥€ कà¥à¤› वरà¥à¤· ही हà¥à¤ साईं बाबा की मूरà¥à¤¤à¤¿ बनाकर उसकी पूजा की जाने लगी। यह ईशà¥à¤µà¤° के वेद जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सहित वेदाचरण, ईशà¥à¤µà¤° à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ तथा योगाà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ से à¤à¥€ अपरिचित थे। मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा को जिन उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये किया जाता है उसकी पूरà¥à¤¤à¤¿ कैसे होती है?
इसका किसी के पास कोई पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ नहीं है। अनà¥à¤§ आसà¥à¤¥à¤¾ व परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ के आधार पर मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा का कृतà¥à¤¯ किया जाता है। आसà¥à¤¥à¤¾ का अरà¥à¤¥ à¤à¥€ लोग नहीं जानते। आसà¥à¤¥à¤¾ सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ में विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ को कहते हैं। मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा करने वाले कà¤à¥€ मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा की सतà¥à¤¯à¤¤à¤¾ और इससे होने वाले लाठव हानियों का चिनà¥à¤¤à¤¨ व विचार नहीं करते। मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ अधिक पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ न होकर जैनमत से आरमà¥à¤ हà¥à¤ˆ है। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में à¤à¥€ यह विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ सतà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤µà¥‡à¤·à¥€ थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा की छानबीन की तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जà¥à¤žà¤¾à¤¤ हà¥à¤† कि मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा से कोई लाठनहीं होता अपितॠहानि होती है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ वेद, उपनिषदों व दरà¥à¤¶à¤¨ आदि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ से जड़ मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा की पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ करनी चाही परनà¥à¤¤à¥ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इसके पकà¥à¤· में कोई पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ नहीं मिला।
सनातन धरà¥à¤® के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में वेदों को ईशà¥à¤µà¤° से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ à¤à¤µà¤‚ सà¤à¥€ धारà¥à¤®à¤¿à¤• विषयों में परम पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ माना जाता है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में वेद सà¥à¤µà¤¤à¤ƒ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ हैं और अनà¥à¤¯ सà¤à¥€ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤•à¥ƒà¤¤ व ऋषिकृत होने से परतः पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ हैं। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा करने वाले सनातनी मत के अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा को वेद, तरà¥à¤• व यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ से सिदà¥à¤§ करने की चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ दी थी परनà¥à¤¤à¥ अनेक पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ करने पर à¤à¥€ काशी के शीरà¥à¤· विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ इसके लिये सहमत नहीं हà¥à¤ थे। बार-बार चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ देने पर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ विवश होकर शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ के लिये ततà¥à¤ªà¤° होना पड़ा परनà¥à¤¤à¥ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वेदों में मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा का कोई उलà¥à¤²à¥‡à¤– व पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ नहीं मिला।
वह बीस हजार से अधिक चार वेदों के मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में से à¤à¤• à¤à¥€ वेद मनà¥à¤¤à¥à¤° मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा किये जाने के पकà¥à¤· में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ नहीं कर सके। इस कारण 16 नवमà¥à¤¬à¤°, सनॠ1869 को काशी के आननà¥à¤¦ बाग में काशी के राजा शà¥à¤°à¥€ ईशà¥à¤µà¤°à¥€ नारायण सिंह की अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ तथा पचास हजार जनसमूह की उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में अकेले ऋषि दयाननà¥à¤¦ का पौराणिक सनातन धरà¥à¤® के लगà¤à¤— 30 शीरà¥à¤· विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ हà¥à¤† जिसमें ऋषि दयाननà¥à¤¦ की विजय हà¥à¤ˆà¥¤ काशी में हà¥à¤† यह शासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥ मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¤ रूप में उपलबà¥à¤§ है जिसे इचà¥à¤›à¥à¤• वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ देख सकते हैं।
वेदों में जड़ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ वा मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा का विधान नहीं है। वेदों से मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा का खणà¥à¤¡à¤¨ होता है। पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ रूप में यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ के 40/9 और 32/3 को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया जा सकता है। यह मनà¥à¤¤à¥à¤° हैं-
अनà¥à¤§à¤¨à¥à¤¤à¤®à¤ƒ पà¥à¤° विशनà¥à¤¤à¤¿ येऽसमà¥à¤à¥‚तिमà¥à¤ªà¤¾à¤¸à¤¤à¥‡à¥¤ तपो à¤à¥‚यऽइव ते तमो यऽउ समà¥à¤à¥‚तà¥à¤¯à¤¾à¤‚रताः।।
न तसà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤½à¤…सà¥à¤¤à¤¿à¥¤
इन मनà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के ऋषि दयाननà¥à¤¦ कृत अरà¥à¤¥ हैं:- जो असमà¥à¤à¥‚ति अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ अनà¥à¤¤à¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ अनादि पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ कारण की बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में उपासना करते हैं वे अनà¥à¤§à¤•à¤¾à¤° अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ और दà¥à¤ƒà¤–सागर में डूबते हैं। और समà¥à¤à¥‚ति जो कारण से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ कारà¥à¤¯à¤°à¥‚प पृथिवी आदि à¤à¥‚त, पाषाण और वृकà¥à¤·à¤¾à¤¦à¤¿ अवयव और मनà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ के शरीर की उपासना बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में करते हैं वे महामूरà¥à¤– उस अनà¥à¤§à¤•à¤¾à¤° से à¤à¥€ अधिक अनà¥à¤§à¤•à¤¾à¤° अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ चिरकाल तक घोर दà¥à¤ƒà¤–रूप नरक में गिर कर महाकà¥à¤²à¥‡à¤¶ à¤à¥‹à¤—ते हैं। दूसरे मनà¥à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤‚श का अरà¥à¤¥ है कि जो सब जगतॠमें वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• है
उस निराकार परमातà¥à¤®à¤¾ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ परिमाण सादृशà¥à¤¯ वा मूरà¥à¤¤à¤¿ नहीं है। केनोपनिषद के अनेक वचन मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा के विरà¥à¤¦à¥à¤§ हैं। उनमें से दो का तातà¥à¤ªà¤°à¥à¤¯ यहां लिखते हैं। à¤à¤• शà¥à¤²à¥‹à¤• में कहा गया है कि जो वाणी की –इदनà¥à¤¤à¤¾, अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ यह जल है लीजिये, वैसा निषय नहीं है। और जिसे धारण करने और जिसकी सतà¥à¤¤à¤¾ से वाणी की पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ होती है, उसी को बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® जान और उपासना कर। जो ईशà¥à¤µà¤° से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ है वह उपासनीय नहीं है। à¤à¤• अनà¥à¤¯ शà¥à¤²à¥‹à¤• में कहा है कि जो मन से ‘इयतà¥à¤¤à¤¾’ करके मन में नहीं आता, जो मन को जानता है उसी बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® को तू जान और उसी की उपासना कर। जो उस से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ जीव और अनà¥à¤¤à¤ƒà¤•à¤°à¤£ है उस की उपासना बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में मत कर। इन वेद और उपनिषद वचनों से जड़ मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा का खणà¥à¤¡à¤¨ हो जाता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा ईशà¥à¤µà¤° की उपासना का विकलà¥à¤ª व परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ नहीं हो सकती।
मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा à¤à¤µà¤‚ फलित जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· से à¤à¥€ देश को अतीत में अनेक हानियां हà¥à¤ˆ हैं और आज à¤à¥€ हो रही है। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा की हानियों की चरà¥à¤šà¤¾ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में की है। विधरà¥à¤®à¥€ विदेशी राजाओं से पराजय, देश की पराधीनता और विà¤à¤¾à¤œà¤¨ में à¤à¥€ अनà¥à¤§à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¾à¤¸ का परà¥à¤¯à¤¾à¤¯ जड़पूजा की à¤à¥‚मिका रही है। ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने कहा है कि मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा ईशà¥à¤µà¤° की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के मारà¥à¤— में सीà¥à¥€ नहीं अपितॠà¤à¤• खाई है जिसमें गिरकर मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जक व उपासक नषà¥à¤Ÿ हो जाता है। हम यहां यह à¤à¥€ बता दे कि ऋषि दयाननà¥à¤¦ ने मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा का खणà¥à¤¡à¤¨ इसके असतà¥à¤¯ होने के कारण à¤à¤µà¤‚ इससे मनà¥à¤·à¥à¤¯ के जीवन व जीवातà¥à¤®à¤¾ के परजनà¥à¤® में होने वाली हानियों से बचाने के लिये किया था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ईशà¥à¤µà¤° की यथारà¥à¤¥ उपासना विधि की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• à¤à¥€ लिखी है जो सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। वेदों व ऋषियों के गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ à¤à¥€ सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ व उपासना का मà¥à¤–à¥à¤¯ à¤à¤¾à¤— है।
सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾, धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ व समाधि से मनà¥à¤·à¥à¤¯ ईशà¥à¤µà¤° का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° कर धरà¥à¤®, अरà¥à¤¥, काम व मोकà¥à¤· को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है। यही मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन का मà¥à¤–à¥à¤¯ व अनà¥à¤¤à¤¿à¤® लकà¥à¤·à¥à¤¯ है। आईये, à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं व परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं में न बहकर वेद और ऋषियों के वचनों सहित तरà¥à¤• व यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ के आधार पर मूरà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚जा का विचार कर असतà¥à¤¯ का तà¥à¤¯à¤¾à¤— और सतà¥à¤¯ का गà¥à¤°à¤¹à¤£ करें। इसी में हमारा और हमारी सनà¥à¤¤à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का हित है। ओ३मॠशमà¥à¥¤
--मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
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