एक समय था जब स्कूलों में छात्रों के आपसी झगडे में या तो किताब कॉपी के एक दो पन्ने फट जाते थे या स्कूल ड्रेस का कोई बटन या हुक टूट जाया करता था। इसकी सजा के रूप में स्कूल में दोनों को मुर्गा बनकर और घर में अलग से मार खानी पड़ती थी। पर आज ऐसा नहीं रहा, यदि अखबारों की खबरें देखें तो अब स्कूलों में आपसी झगडे का नतीजा हत्या, हिंसा के रूप में देखने को मिल रहा है और माता-पिता बच्चों के अपराध करने के जुर्म में कोर्ट के चक्कर काटते दिखाई दे रहे है।

अभी की ताजा घटना देखें तो देहरादून के एक बोर्डिंग स्कूल में एक बारह साल के बच्चे की निर्मम हत्या से एक बार फिर शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले स्कूल के दामन पर खून के धब्बे दिखाई दे रहे है। इस हत्याकांड में स्कूल प्रबन्धन पर भी सवाल उठ रहे है। सातवीं वीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्र वसु यादव को दो 12वीं के छात्रों ने क्रिकेट बैट से पीट-पीटकर मार डाला और आश्चर्य की बात ये है कि स्कूल प्रशासन ने बिना किसी को बताए यहां तक कि बच्चे के अभिभावकों को भी बिना बताए बच्चे को स्कूल परिसर में ही दफना दिया। इससे फिर यह सवाल खड़ा हो गया है कि स्कूलों में बच्चे कितने सुरक्षित हैं।

पिछले दिनों की कुछ घटनाओं को देखें तो दिल्ली के करावल नगर के जीवन ज्योति स्कूल की पहली मंजिल के बाथरूम में पंद्रह साल के एक छात्र वैभव की लाश मिली थी। जनवरी, 2018 को लखनऊ के एक स्कूल में पहली कक्षा के 7 वर्षीय छात्र ऋतिक शर्मा को 12 वर्षीय चौथी कक्षा में पढ़ने वाली एक छात्रा ने स्कूल के शौचालय में बंद करके उसकी छाती और पेट में छुरा घोंप कर गंभीर रूप से घायल कर दिया था। इसी दौरान दिल्ली के ज्योति नगर इलाके के एक सरकारी स्कूल में कुछ छात्रों ने 10वीं के छात्र की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। दिल्ली से सटे गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में हुए बहुचर्चित प्रद्युम्न हत्याकांड से कौन अनभिज्ञ होगा, इसके बाद देश के अन्य क्षेत्रों को देखें तो गुजरात के वड़ोदरा में एक छात्र की चाकू से 31 बार वार कर हत्या कर दी थी। 21 जुलाई को जींद में पिल्लूखेड़ा के एक प्राइवेट स्कूल में 12वीं कक्षा के 18 वर्षीय छात्र अंकुश को उसके कुछ साथी छात्रों ने छुरा घोंप कर घायल कर दिया था जिससे अगले दिन उसकी मौत हो गयी थी। देशभर में इस तरह की न जाने कितनी घटनाएं हैं, जो स्कूली छात्रों में पनप रही हिंसा की प्रवृत्ति की ओर इशारा करती हैं और ये घटनाएं समाज के लिए खतरे की घंटी हैं।

ऐसे सभी मामलों में पुलिस हत्या का कारण बच्चों में आपसी झगड़ा बताकर अपनी रिपोर्ट पूरी करती है या फिर इन हत्याओं में शामिल छात्रों को गिरफ्तार कर जेल भेज देती है। किन्तु इसकी बाद अगली कहानी फिर वही से शुरू हो जाती है कि आखिर स्कूली बच्चों अन्दर ये हिंसा कुंठा आ कहाँ रही है? जो विवाद आपसी संवाद से सुलझाये जा सकते है, उन्हें हत्या या हिंसा से क्यों सुलझाया जा रहा हैं। अभी तक ऐसे मामले पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका के राज्यों में देखने सुनने को मिलते थे। बंदूक संस्कृति में पैदा हुए वहां के बच्चें अपना जरा सा हित टकराते ही स्कूलों में गोलाबारी की घटनाओं को अंजाम देते रहते है। पिछले साल फ्लोरिडा में हुई गोलीबारी में 14 छात्रों सहित 17 लोगों की जानें गईं थी और टेक्सास के एक हाई स्कूल में हुई हिंसक घटना में कम से कम 10 छात्रों की मौत हुई थी।

अब सवाल ये उभरता है कि आखिर हमारे देश में ऐसा क्यों होने लगा है, अचानक बच्चों के अन्दर ये हिंसा कैसे पनप रही है? इस सवाल हल तलाश करने की कोशिश करें तो इसके दो सबसे बड़े कारण दिखाई देते है। एक तो आज के मोडर्न स्कूलों या संस्थानों में प्रबन्धन अपना मुनाफा ज्यादा देखता हैं। वह बच्चों के अन्दर प्रतिस्पर्धा तो पैदा करते है लेकिन इस प्रतिस्पर्धा में नैतिकता और सयम की शिक्षा नहीं दे पा रहे है।

इस कारण आगे निकलने की दौड़ में अमूमन छात्रों के अन्दर ईर्ष्या के भाव पैदा होने लगते है, जो कई बार हिंसात्मक भी हो जाते हैं। दूसरा कारण ध्यान दीजिए कहीं हिंसा के पीछे स्मार्टफोन या टीवी तो नहीं! क्योंकि वीडियो गेम्स जिसमें खूब मार-धाड़ हो या मार पीट करने वाली फिल्में आदि भी बच्चों के दिमाग पर गहरा असर करती है और वे कई बार वो खुद को वीडियो गेम्स के हीरो समझने लगते हैं। एक कारण घर का माहौल भी बनता है। जिसमें पिता द्वारा माता को पीटना या पिता का बच्चों को मारना शामिल है। कई बार अभिभावक बात मनवाने के लिए हिंसा का इस्तेमाल करते हैं। जैसे थप्पड़ मारना। ऐसा होने पर बच्चों के मन में ये धारणा घर कर जाती है कि हिंसा का इस्तेमाल सही है और वह भी ऐसा करके अपनी बात को बड़ा रख सकते हैं। अब बच्चें तो जो देखेंगे वहीं सीखेंगे। आप उन्हें रचनात्मक गतिविधियों में लगाएं, तो उनका मन वहां लगेगा सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान न दें, सिर्फ पाठ्यक्रम पढ़ाने से बच्चों का भला नहीं होगा। उनका भला होगा संस्कारो से परिपूर्ण शिक्षा से। वरना सभ्य आचरण, उत्तम व्यवहार, नैतिकता और शिक्षा के मंदिरों में ऐसी हिंसात्मक आपदा क्यों आ रही है? इसके लिए स्कूल जिम्मेदार है या परिवार या फिर आधुनिक समाज का रहन सहन आदि यदि आज इन सवालों के जवाब नहीं तलाशे गये तो शायद कल पछतावे के अलावा हमारे पास कुछ नहीं बचेगा।

 

 

 

 

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