इस सम्पूर्ण संसार की सबसे अमूल्य वस्तु यदि कुछ है, तो वो हैं प्रकृति। इसके बिना किसी भी जीव का जीवन जीना, कल्पना मात्र है। मनुष्य कि आर्थिक उन्नति का आधार प्रकृति ही है। यदि हमने प्रकृति संरक्षण पर ध्यान नही दिया तो इसके बहुत ही भयंकर दुष्परिणाम हो सकते हैं। लोगों को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि प्रकृति का संरक्षण ही हमारे और हमारी आने वाली पीढ़ी के सुनहरे भविष्य का आधार है।

 

हमें अपनी दिनचर्या में ऐसी गतिविधियों को भी शामिल करना चाहिए, जिससे प्रकृति का संरक्षण हो। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारी किन्हीं भी गतिविधियों से पर्यावरण को कोई नुकसान न हो। हम किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत एक पौधा लगाकर कर सकते हैं या उपहार में देकर कर सकते हैं।

 

हमारे घर के आस-पास या सड़क के किनारे जहां भी खाली जगह दिखाई दे, वहां एक पौधा जरूर रोपित करें। विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस à¤ªà¤° एक संकल्प ले और प्रकृति के संरक्षण की आदत बच्चों को भी सिखाएं, इससे हमारी आने वाली पीढ़ी भी पर्यावरण को बचाने के लिए सहयोग करेगी।

 

ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाले इस पर्यावरण संकट की समस्या के समाधान का कोई उपाय आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी के पास भी नहीं है क्योंकि इसी प्रौद्योगिकी ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन द्वारा ग्लोबल वार्मिंग के इस संकट को गहराया है। ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए, प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक होना होगा, तथा हमें वायु, जल, प्रकृति का रक्षण, संरक्षण करना होगा।

 

हमारे वेदों में प्रकृति के बारे में कहा गया है –

 

माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।

 

अर्थात् भूमि को माता तथा वहां के निवासी को उसका पुत्र बताया गया है - यजुर्वेद के एक मन्त्र में विश्व पर्यावरण की रक्षा हेतु द्युलोक, अन्तरिक्षलोक, पृथिवीलोक और समस्त वनस्पति जगत की शान्ति हेतु प्रार्थना की गई है-

 

द्यौः शान्तिः अन्तरिक्षं शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिःओषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिः विश्वेदेवाः शान्तिःब्रह्म शान्तिः सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ।

 

NDND माइक्रोबायलॉजी के वैज्ञानिक डॉ.मोनकर ने हवन के प्रभावों के अध्ययन के बाद यह साबित करने में कामयाबी पाई है कि हवन के बाद जो वातावरण निर्मित होता है उसमें विषैले जीवाणु बहुगुणित नहीं हो पाते और बेअसर हो जाते हैं। एसटाईपी नामक प्राणघातक बैक्टीरिया हवन के बाद के वातावरण में सक्रिय ही नहीं रह पाता।


यह जानना बहुत ही जरुरी है कि यदि वन्य जीव भूमंडल पर न रहें तो पर्यावरण पर तथा मनुष्य के आर्थिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ेगा?  à¤ªà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ ऐसा है जिसका जवाब भी हमारे सामने है कि यदि ये ना रहे तो हमारी प्रजाति पर बहुत ही बुरा असर हो सकता है। लेकिन इन्हे बचने के भी कुछ तरीके है जोकि हमें अपनी नियमित जीवन में शामिल करना बहुत जरुरी है। जैसे :-

 

  1. 1. जंगलों को न काटे, यदि हम वृक्षों को काटते रहे तो इससे कारण मिट्टी का कटाव मिट्टी के प्रवाह को बढ़ाता है जिसके कारण बाढ़ और सूखा का विशिष्ट चक्र शुरू होता है। अधिक से अधिक वृक्ष लगायें।

 

  1. 2. à¤œà¤®à¥€à¤¨ में उपलब्ध पानी का उपयोग तब ही करें जब आपको बहुत ज्यादा जरूरत हो। क्योकि पृथ्वी के 78% भाग पर महासागर पाए जाते हैं जिनमें नमकीन जल मिलता है परंतु यह पीने के योग्य नहीं होता है। पीने योग्य जल को मीठा जल या मीठा पानी कहते हैं। à¤ªà¥ƒà¤¥à¥à¤µà¥€ पर मौजूद कुल जल में से 3 प्रतिशत जल ही पीने योग्य है।

 

  1. 3. à¤•à¤¾à¤°à¥à¤¬à¤¨ जैसी नशीली गैसों का उत्पादन बंद करे, औद्योगिक क्षेत्र से निकले जल में तेल. क्षार, अमोनिया, फिनाइल, हाइड्रोजन, सलफाइड एवं कार्बनिक रसायन होते हैं। जिससे जल, वायु, मिट्टी सब दूषित हो जाते हैं। यह जलीय जीवों, और मानव जीवन के लिए बेहत हानिकारक हैं। इसके कारण जल का गंध व स्वाद भी खराब हो जाता है।

 

  1. 4. प्लास्टिक के लिफाफे छोड़ें और रद्दी कागज के लिफाफे या कपड़े के थैले इस्तेमाल करें। प्लास्टिक प्रकृति प्रदुषण का सबसे बड़ा कारण है। हमारे भारत देश में 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिदिन 15000 टन प्लास्टिक अपशिष्ट à¤¨à¤¿à¤•à¤²à¤¤à¤¾ है। जो कि दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व में इतना प्लास्टिक हो गया है कि इस प्लास्टिक से पृथ्वी को 5 बार लपेटा जा सकता है। 

 

बदलें हम तस्वीर जहाँ कि, सुंदर सा एक दृश्य बनायें ।

संदेश ये हम सब तक फैलाएं, कि आओं पर्यावरण बचाएं ।।

 

-आचार्य अनूपदेव

 

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