वीर सावरकर, नेताजी सुभाषचंद्र बोस और शहीद भगत सिंह जी की प्रतिमाओं को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय में चले विवाद के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने सावरकर के साथ लगाई गई शहीद भगत सिंह और नेताजी सुभाष चंद बोस की प्रतिमा को भी खंबे सहित हटवाकर साइड में रखवा दिया है। इन तीनों स्वतंत्नता सेनानियों की एक साथ तीन मूर्तियां बनवाकर भाजपा के छात्न संगठन ने दिल्ली विवि के परिसर में लगवा दी थीं। लेकिन कांग्रेस, वामपंथी दलों और आम आदमी पार्टी के छात्र-संगठनों ने विशेषकर सावरकर की मूर्ति का विरोध किया और उस पर कालिख पोत दी।

ये सब उस देश में हुआ जिसके के इतिहास में 800 वर्ष से अधिक शासन करने वाले विदेशी लुटेरों की कथित महानता के किस्से पढ़ायें जाते रहे है। इसके अलावा देश की राजधानी से लेकर अनेकों छोटे बड़े में शहरों में मुगल शासको के नाम से सड़कें भी दिखाई देती है। ये भी बताया गया कि ये लोग हिन्दुओं पर जजिया कर यानि धार्मिक टेक्स लगाकर गरीब हिन्दुओं को गरीबी से विवश करके इस्लाम की शरण लेने मजबूर कर देते थे। इनके कारण ही अपने सतीत्व की रक्षा के लिए लाखों पद्मानियाँ जौहर कर जाती थी। हमारे धर्म स्थल तोड़ डाले, नालंदा जैसे विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों को आग की भेंट चढ़ा दिया पर इसके बावजूद भी ये लोग आज इतिहास महान है और अपना सर्वस जीवन देश की मिटटी के नाम करने वाले क्रन्तिकारी देशद्रोही है।

असल में वीर सावरकर जैसे अमर क्रन्तिकारी की मूर्ति पर कालिख पोतने वाले वामपंथी और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को इतिहास के तथ्यों से कोई मतलब नहीं है। इनकी अपनी राजनीतिक जरूरतें झूठ से पूरी होती है तो ये झूठ को ही सच कहेंगे। क्योंकि आज की तारीख़ में इनकी जरूरत भी यही है पिछले दिनों जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाकर ये लोग अपनी मंशा खुलेआम जाहिर भी कर चुके है। इनका अपना एक अलग एजेंडा है। ये हर उस इतिहास पुरुष का विरोध करेंगे जिसने भी हिन्दू धर्म और इस राष्ट्र के लिए अपने प्राण न्योछावर किये है।

अब आप कहेंगे कि यह कोई तर्क है? इससे यह साबित कैसे हो जाता है कि ये लोग अपने धर्म के विरोधी है. तो हम बता दे जेएनयू ने सावरकर को हमेशा विलेन की भूमिका में दिखाया और बताया है। इनके अनुसार सावरकर जी कि गलती ये मानी जाये कि उन्होंने एक किताब लिखी हिंदुत्व-हू इज हिंदू इस किताब में  ख़ास कर मुसलमानों को लेकर उनके जो विचार थे वह उनके विरोधियों को पसंद नहीं थे। सावरकर ने अपनी एक थ्योरी दी थी कि हिन्दू कौन है और भारत में रहने का हक किसे है? सावरकर हिंदुत्व की परिभाषा देते हुए कहते हैं कि इस देश का इंसान मूलत: हिंदू है। इस देश का नागरिक वही हो सकता है जिसकी पितृ भूमि, मातृ भूमि और पुण्य भूमि यही हो। भारत हिन्दुओं की पुण्य भूमि है। लेकिन मुसलमानों की पुण्य भूमि नहीं हो सकती। ईसाइयों की पुण्य भूमि नहीं हो सकती।

या फिर सावरकर जी गलती ये थी कि उन्होंने 1909 में लिखी पुस्तक द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857 में सावरकर ने इस लड़ाई को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई न केवल घोषित किया, बल्कि 1911 से 1921 तक अंडमान जेल में रहे। 1921 में वे स्वदेश लौटे और फिर 3 साल जेल हुई। जेल में हिन्दुत्व पर शोध ग्रंथ लिखा। 9 अक्टूबर 1942 को भारत की स्वतंत्रता के लिए चर्चिल को समुद्री तार भेजा और आजीवन अखंड भारत के पक्षधर रहे। अब क्या इनके अनुसार सावरकर की गलती बस ये रही कि वह गांधी जी के अधिकांश कार्यों के विरोधी रहे?

इस विवाद में वेद प्रताप वैदिक जी सही कहा कि बेशक राजनीतिक दल और उनके छात्र-संगठन एक-दूसरे की टांग-खिंचाई करते रहें, यह स्वाभाविक है लेकिन वे अपने कीचड़ में महान स्वतंत्नता सेनानियों को भी घसीट लें, यह उचित नहीं है। यह ठीक है कि सावरकर, सुभाष और भगत सिंह के विचारों और गांधी-नेहरू के विचारों में काफी अंतर रहा है, लेकिन इन महानायकों ने स्वतंत्रता संग्राम में उल्लेखनीय योगदान किया है।

जहां तक विनायक दामोदर सावरकर का सवाल है, 1909 में जब गांधी और सावरकर पहली बार लंदन के इंडिया हाउस में मिले तो इस पहली मुलाकात में ही उनकी भिड़ंत हो गई। यह ठीक है कि सावरकर के ग्रंथ ‘हिंदुत्व’ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ, भाजपा और हिंदू महासभा अपना वैचारिक मूलग्रंथ मानते रहे हैं लेकिन यदि आप उसे ध्यान से पढ़ें तो उसमें कहीं भी सांप्रदायिकता, संकीर्णता, जातिवाद या अतिवाद का प्रतिपादन नहीं है। वह जिन्ना और मुस्लिम लीग के द्विराष्ट्रवाद का कठोर उत्तर था। सावरकर के हिंदू राष्ट्र में हिंदुओं, मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों, यहूदियों आदि को समान अधिकार देने की वकालत की गई है। यदि सावरकर का स्वाधीनता संग्राम में जबर्दस्त योगदान नहीं होता तो प्रधानमंत्नी इंदिरा गांधी उन पर डाक टिकट जारी क्यों करतीं, संसद में सावरकर का चित्न क्यों लगवाया जाता?

आज इन लोगों को  इंदिरा जी से ही कुछ सीखना चाहिए। इंदिरा जी का सूचना मंत्नालय सावरकर पर फिल्म क्यों बनवाता? भारतीय युवा पीढ़ी को अपने पुरखों के कृतित्व और व्यक्तित्व पर अपनी दो-टूक राय जरूर बनानी चाहिए लेकिन उन्हें दलीय राजनीति के दल-दल में क्यों घसीटना चाहिए? वीर सावरकर विश्वभर के क्रांतिकारियों में अद्वितीय थे। उनका नाम ही भारतीय क्रांतिकारियों के लिए उनका संदेश था। वे एक महान क्रांतिकारी, इतिहासकार, समाज सुधारक, विचारक, चिंतक, साहित्यकार थे। उनकी पुस्तकें क्रांतिकारियों के लिए गीता के समान थीं। उनका जीवन बहुआयामी था। अब यदि ये सब सावरकर की गलतियाँ रही तो हर एक गुलाम देश की माँ चाहेगी कि उनकी कोख से सावरकर जैसे वीर पैदा हो और कोई माँ नहीं चाहेगी कि उसकी कोख से ऐसे बच्चे पैदा हो जो अपनी मातृ भूमि और अपने धर्म को रोदने वालों को महान बताएं और सावरकर जैसे वीर क्रन्तिकारी पर अँगुली उठाये।

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