सच बोलना तो हर समाज में गुनाह रहा है। याद करिए कि किस तरह सुकरात को सच बोलने के लिए जहर पीना पड़ा था। तसलीमा को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था लेकिन अभी तक हमारे देश में थोडा अलग माहौल रहा था यहाँ तो लोग वेदों का विरोध करने के बावजूद सिद्धार्थ को भगवान बुद्ध बना देते हैं। और वेदों का पक्ष लेने वाले स्वामी दयानन्द सरस्वती को जहर दे देते है।

सच की सजा मौत होती है फ्रांस की प्रसिद्ध पत्रिका शार्ली हेब्दो जब मोहमम्द का कार्टून छाप देती है तब उसके एक दर्जन पत्रकारों को उनके कार्यालय में ही घुसकर भून दिया जाता है। लगता है कि कमलेश तिवारी भी सच बोलने के चलते मारे गए। कमलेश तिवारी ने इसी सप्ताह पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं की हत्या को लेकर लखनऊ के अटल चौराहे पर प्रदर्शन किया था। कमलेश तिवारी जब विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि कोई उनकी भी हत्या करने की ताक में बैठा है। और प्रदर्शन के ठीक दो दिन बाद ही उनकी भी हत्या हो गई। उन्होंने हाल ही में अपने ट्विटर प्रोफाइल पर लिखा था, अजर हूं। अमर हूं, क्योंकि मैं सनातन हूं।

लगता है कमलेश तिवारी की हत्या की स्क्रिप्ट शायद उसी दिन लिख दी गयी हो जब साल 2015 में मुहम्मद साहब के खिलाफ विवादित बयान दिया था। उनके बयान के बाद मुस्लिम समुदाय काफी गुस्से में आ गया था। उनके खिलाफ देवबंद, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, लखनऊ सहित देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन हुआ था। पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के कालियाचक में भी बड़ा बवाल हुआ था। जनवरी 2016 में करीब 2.5 लाख मुसलमानों ने उग्र रैली निकाली और आगजनी की गई। पुलिस थाने पर हमला हुआ। बीएसएफ की एक गाड़ी को भी आग के हवाले कर दिया। यात्रियों से भरी बस पर भी पथराव किया गया। दंगाई कमलेश तिवारी की मौत मांग रहे थे।

कमलेश तिवारी की मौत को लेकर फतवे जारी हुए। बिजनौर के जामा मस्जिद के इमाम मौलाना अनवरुल हक और मुफ्ती नईम कासमी ने कमलेश तिवारी का सिर काटने वाले को 51 लाख रुपए का इनाम देने का एलान किया। यही मौलाना अनवरुल खुद एक महिला से रेप करते हुए रंगे हाथ पकड़ा भी गया। बाद में पुलिस ने कमलेश को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। उस समय अखिलेश यादव की सरकार ने उनके खिलाफ रासुका भी लगाया था। हालांकि, सितंबर 2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उनपर लगे रासुका को हटा दिया था। वो फिलहाल जमातन पर रिहा चल रहे थे।

समझ में नहीं आता कि पूरी दुनिया में जब भी कोई मोहम्मद साहब का चरित्र चित्रण करने का प्रयास करता है तो इतना हंगामा क्यों खड़ा हो जाता है? चाहे आशाराम हो या बाबा राम रहीम सिंह हो या रामपाल पिछले दिनों इनके बारे में क्या-क्या नहीं कहा गया। हमारे महापुरुष राम और श्रीकृष्ण के बारे में भी रोजाना क्या-क्या नहीं कहा जाता। लेकिन कहीं कोई हंगामा नहीं हुआ। लेकिन जैसे ही इस्लाम की जहरीली और अमानवीय शिक्षाओं और मोहम्मद साहब के बारे में कुछ कहा जाता है पूरी दुनिया में जैसे हिंसा का ज्वार पैदा हो जाता है। ऐसा क्यों है? जब आजम खान भारत माता और ओवेसी के भाई श्री रामचन्द्र जी के बारे मंट घटिया बातें करते है तब तो कोई उसे मना नहीं करता। लेकिन जब कोई कमलेश तिवारी उसका उत्तर देता है और तथ्यों के आधार पर देता है तब लोग क्यों पूरी दुनिया के गैर मुस्लिमों को जला देने पर आमादा हो जाते हैं?

किन्तु आज देश का सेलेक्टिव बुद्धिजीवी वर्ग मौन है। वही बुद्धिजीवी वर्ग जो कन्नड़ पत्रिका संपादक गौरी लंकेश गौरी लंकेश की हत्या के बाद स्थानीय प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में विरोध प्रदर्शन कर रहा था. । रविश कुमार और अनेकों पत्रकारों ने गौरी के लिए इंसाफ की मांग की थी। और कहा था कि असहमति की आवाजों को दबाने की कोशिश की जा रही है। देश में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता समाप्त हो गयी है।

राहुल गांधी सामने आये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए उन्हें दक्ष हिंदूवादी नेता करार दिया और कहा कि वह जो बोलते हैं, उसका उनके अपने लोगों के लिए कुछ मतलब होता है और दुनिया के लिए कुछ और।

इसके बाद पत्रकार गौरी लंकेश का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है। इस मौके पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया, गृह मंत्री रामालिंगा रेड्डी, जदएस विधायक बीजेड जमीर अहमद ख़ान, अभिनेता प्रकाश राज, रंगमंच की हस्तियां, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद रहते है। यही नहीं दिल्ली के सैकड़ों पत्रकार हत्याकांड के ख़िलाफ आवाज उठाते हुए कहते है कि खुली सोच की गुंजाइश कम होती जा रही है। वे ऐसे लोगों को चुप कराना चाहते हैं हम चुप नहीं रह सकते, क्योंकि वे तो यही चाहते हैं। इसलिए बिल्कुल चुप न रहें।

इसके अलावा मानवाधिकारों पर नजर रखने वाली एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया सामने आकर कहती है कि बेंगलुरु में पत्रकार गौरी लंकेश की उनके घर के बाहर बंदूकधारियों द्वारा की गई हत्या देश में अभिव्यक्ति की आजादी की स्थिति के बारे में चिंता पैदा करती है। इंडियन राइटर्स फोरम सामने आकर कहता है कि मुक्त विचार और भारत के बहुलतावाद से नफरत करने वालों के ख़िलाफ उनकी लड़ाई को जारी रखेंगे। मंच की तरफ से जारी एक बयान में लंकेश को असहमति की आवाज थी, एक उद्देश्य की आवाज थी जिसे बंदूकों से शांत कर दिया गया। लेकिन जब इसी अभिव्यक्ति की आजादी का पालन करते हुए कमलेश तिवारी की हत्या हो जाती है। तब कोई कुछ नहीं बोलता न एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया, न सैकड़ों पत्रकार और देश का सेलेक्टिव बुद्धिजीवी वर्ग भी मुंह में मानों कपडा ठूस लेता हैं।

 

 

 

ALL COMMENTS (0)