ये संसार प्रार्थनाओं का संसार है पूरी दुनिया में करीब-करीब सभी लोग किसी न किसी भगवान की प्रार्थना करते है। अमीर हो या गरीब, छोटे हो या बड़े जो भी हैं, लगभग सभी प्रार्थना अवश्य करते हैं। मगर देखा जाये तो अधिसंख्य लोग सिर्फ दुख की घड़ी में प्रार्थना ज्यादा करते हैं। अगर ढंग से मनुष्य मन उसकी प्रार्थनाओं पर कोई शोध किया जाये तो पता चलेगा कि दुनिया में भगवानों के पास इच्छित मनोरथ, स्वयं के लाभ की प्रार्थनाओं तथा इसके अलावा शिकायत ही पहुँचती होगी। हालाँकि इसके पीछे का अध्यात्मिक रहस्य यह है कि प्रार्थना या शिकायत करने वाले को यह विश्वास रहता है कि परमात्मा ऐसा शक्तिशाली है कि वह आसानी से उसकी इच्छा को पूरा कर ही देंगे।

यधपि प्रार्थनाओं के पीछे इसे एक अध्यात्मिक रहस्य कहा जाये या मनोविज्ञान अनेकों मौकों पर प्रार्थना मनुष्य की मानसिक स्थिति को मजबूत करती है तथा आशा और संभावना की मनोदशा के कारण मनुष्य की शारीरिक और मानसिक शक्तियां असाधारण रूप से सक्रिय हो उठती हैं। जिसके फलस्वरूप सफलता का मार्ग बहुत आसान बनता जाता है और प्राय: वह प्राप्त भी हो जाता है। किन्तु इसके विपरीत दुनिया में यदि स्वयं के लाभ, स्वार्थहित दूसरे के विनाश के लिए की गयी प्रार्थनाओं पर गौर करें तो भगवान भी विचलित हो जाते होंगे कि किसकी प्रार्थना सुनी जाये किसकी नहीं.?

मसलन एक डॉक्टर अपने क्लीनिक में चाहता है ज्यादा से ज्यादा मरीज आये, डॉक्टर की प्रार्थना मरीजो के लिए है। मरीज भगवान से अच्छे स्वास्थ की कामना प्रार्थना कर रहे है। मिटटी के बर्तन बनाने वाला एक कुम्हार चाहता है अच्छी तेज धुप रहे, बारिश न हो ताकि बर्तन अच्छी तरह पक जाये। किन्तु उसके बराबर के घर में बैठा किसान बारिश के लिए प्रार्थना कर रहा है ताकि उसकी फसल को पानी मिल जाये। एक गाड़ी ड्राइवर अपनी गाड़ी अच्छी चलने की प्रार्थना भगवान से कर रहा है लेकिन उसी दौरान एक गाड़ियों का गैराज मालिक प्रार्थना कर रहा है कि किसी की गाड़ी खराब हो ताकि उसका काम चलता रहे। कहने का अर्थ है शव वाहन और कफन बेचने वाले की अपनी प्रार्थना है और गंभीर बीमारी पीड़ित किसी व्यक्ति की मौत से बचने की अपनी प्रार्थना है, यानि हर किसी अपनी अलग प्रार्थना है।

अब सवाल है कि क्या प्रार्थना के बाद कोई चिन्ता, दुख परेशानी टिक सकती हैं? क्या भगवान गारंटी देते है कि प्रार्थना के बाद आपकी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी? क्या ऐसा है कि भगवान के यहाँ सभी प्रार्थनाएं नहीं सुनी जाती कुछ को अनसुना भी कर दिया जाता होगा? या फिर क्या मनुष्य की सभी आवश्यकता और सुरक्षा की जिम्मेदारी भगवान की है? दरअसल ये सवाल इसलिए क्योंकि अनेकों लोग अपनी मनोकामनाओं, इच्छित स्वार्थ पूर्ति, अपने लाभ के लिए कई बार भगवान बदल-बदलकर देखते है और कई बार तो धर्म ही बदल लेते है।

असल में देखा जाएँ तो जहां डिमांड है, वहा प्रार्थना नहीं है, क्योंकि डिमांड और प्रार्थना में अंतर है। आज के दौर में कोई भी धार्मिक स्थान हो, जागरण हो, लंगर या भंडारे से लेकर बाबाओं के मठों में कतार लगाये भीड़ प्रार्थना के लिए नहीं खड़ी है। पूछिए उनसे टटोलिये उनके मन को कोई पुत्र चाहता है, कोई रोजगार चाहता है, किसी को बीमारी से निजात पानी है तो किसी को धन की कामना है। बिना डिमांड के वहां कोई नहीं गया सबकी अपनी जरूरतें और शिकायतें है। शिकायत का यह भी अर्थ है कि शायद लोग स्वयं को भगवान से ज्यादा समझदार मानते हैं। भगवान जो कर रहा है, गलत कर रहा है। हमारी सलाह मानकर उसे करना चाहिए वही ठीक होगा। जैसे कि हमें पता है कि हमारे लिए क्या ठीक है क्या गलत?

इसलिए सच्ची प्रार्थना वही है जो भगवान पर छोड़ देता है, कि तू ही कर, जो तुझे मेरे लिए ठीक लगे वही प्रार्थना कर रहा है। और जो कहता है कि नहीं यह ठीक नहीं तू ऐसा कर, तू वैसा कर वह प्रार्थना नहीं कर रहा है, वह भगवान को सलाह दे रहा है कि तुझे कम ज्ञान है मैं ज्यादा ज्ञानी हूँ मेरी मान और काम कर।

काश, लोगों को यह पता होता कि उनके हित में क्या है! उन्हें नहीं पता उन्हें क्या चाहिए क्योंकि जो वो सुबह चाहते हैं, दोपहर को मना करने लगते हैं। और जो आज सांझ चाहा है, जरूरी नहीं है कि कल सुबह भी लोग वही चाहें। इसलिए इन प्रार्थनाओं को भगवान क्यों सुनेगा एक किस्म से सिर खा रहे हैं। ये प्रार्थनाएं आस्तिकता का सबूत नहीं हैं, न इनसे भगवान का कोई संबंध है। ये सब वासनाएं हैं। लेकिन दुखद बात कि महावीर हों, या मोहम्मद या फिर जीसस सभी कह गये कि तुम्हारी सब मांग पूरी हो जाएंगी, बस उसके द्वार पर डिमांड छोड़ आओ।

अब इसके बाद आती है प्रार्थना में रिश्वत। जैसे अपना कोई काम करवाने के लिए नौकर रख लेते है कुछ पैसा दिया, नौकर से काम करा लिया। ठीक उसी तरह भगवान को भी नौकर समझ लेते है, कोई इक्यावन रूपये चढ़ा है कोई पांच सौ एक। कुछ मालदार लोग अपनी मुरादे अपने मनचाहे काम करवाने के लिए और भी मोटी रकम चढ़ा रहे है कहते है लो भगवान बस यह काम करा दो, चाहें इसके लिए चढ़ावा कितना भी चढ़ाना पड़े।

वह छोटा बच्चा नहीं है कि दो रूपये अलग से दिए दौड़कर दुकान से सामान ले आया। क्या इसी तरह हम अपने कार्यों के लिए भगवान को धन चूका रहे है, कि ये हमारी मांगें हैं और मांगें पूरी हो जाएं? इसलिए जब लोग अपनी शर्त छोड़ देंगे जब कुछ मांगने को न बचेगा। सब उन्हें मिल जाएगा। लेकिन जब तक प्रार्थना में शर्त है उसके लिए चढ़ावा या प्रसाद है तब तक वह कभी पूरी नहीं होगी। क्योंकि हम सब कागज की नावों पर जीवन में यात्रा करते हैं। हमारी नावें सपनों से ज्यादा नहीं। हमारा जीवन रेत पर हस्ताक्षर जैसा हैं। हवा के झोंके आएंगे और सब बुझ जाएगा, सब मिट जाएगा। इसलिए प्रार्थना तो वही सार्थक है, जो वहां पहुंचा दे, जिसे मिलने पर फिर खोना नहीं है। जिसके मिलन में फिर बिछड़ना नहीं है। वह देवताओं आगे झोली फैलाने में नहीं वह तो परम सत्ता परमपिता परमात्मा की तरफ समर्पण से संभव है। वही प्रार्थना है जहाँ हम स्वयं को भूलकर परमात्मा में विलीन हो जाएँ।

ALL COMMENTS (0)