कहाँ जा रहा है लॉक डाउन खुल जाये या इसे आगे और बढ़ा दिया जाये दोनों ही सूरतेहाल में यह तय है कि अगले कुछ दिनों में दुनिया में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे.. वो बदलाव क्या होंगे, कैसे होंगे, विश्व भर के समाज शास्त्री, और मनोचिकित्सक कुछ अनूठे और दिलचस्प अनुमान लगा रहे है..

प्राकृतिक बदलाव तो अभी से साफ नजर आ गये जालंधर से 200 किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश के धौलाधार पहाड़ दिखने लगे हैं. इसके अलावा भी दुनियाभर से ऐसी तस्वीरें आ रही हैं जिसमें आसमान साफ, नदियां साफ, सड़कें खाली दिख रही हैं. दिल्ली में नाले जैसी लगने वाली यमुना नदी का पानी भी नीला नजर आ रहा है इसी तरह लॉक डाउन का एलान होने के बाद से गंगा नदी भी पहले के मुकाबले 40 से 50 फीसदी साफ नजर आ रही है,

अब अगर सामाजिक आर्थिक और धार्मिक बदलाव के अनुमान की दुनिया की ओर बढे तो ये खबर अब आम हो चुकी है कि लोग इस महामारी से अब तक हजारों लोग अपनी जान गँवा चुके है.. जिस तरह मौत के आंकड़े बढ़ रहे है अगर हाल जस का तस रहा तो शायद आगे यूरोपीय देशों से मरने वालों के आंकड़ों के बजाय खबर ये आये कि किस देश ने अपने कितने नागरिकों को इस वायरस बचाया..विश्व भर में जिस रफ्तार से कोरोना मीटर आगे बढ़ रहा है हो सकता है जल्द ही यह संख्या करोड़ो में पहुँच जाये..

हालाँकि इन मौतों में मरने वालों का सही डेटा किसी देश के पास नहीं है, सिर्फ उन मौतों की गिनती की जा रही है जो सरकारी देख रेख में उपलब्ध है, वरना अमेरिका से लेकर इटली, फ्रांस और स्पेन के ओल्ड होम से लेकर घरों तक में भी लाशें मिल रही है.

ऐसा ही कुछ हाल भारत में भी नजर आता है, मध्य प्रदेश के इंदौर में जितने लोगों की मौत हुई है, उससे कहीं अधिक संख्या में नई कब्र और जनाजे कब्रिस्तान में दिखाई दे रहे है यह सिलसिला कई दिन से जारी था बस फर्क इतना आया कि यह बात उजागर होने के बाद अब रात को जनाजे कब्रिस्तान लाए जाने लगे. ठेले आदि में रखकर लाशों को चुपचाप दफनाया जा रहा है..

अभी संक्रमण सिर्फ आम लोगों में फैल रहा है लेकिन जिस तरह विश्व भर में धीरे-धीरे डॉक्टर, नर्स और मेडिकल टीम वायरस के चपेट में आ रही..इससे अगला खतरा और भी बेहद खतरनाक है..क्योंकि अभी तक इस लड़ाई को मेडिकल स्टाफ की सहायता से लड़ा जा रहा है..अगर मेडिकल स्टाफ जरा भी पीछे हट गया तो लोगों के पास विकल्प नहीं रहेंगे...

ऐसे हालात में अगर मौत बड़े पैमाने पर होती है तो मेडिकल जगत से लोगों का विश्वास टूट सकता है यानि कुछ ओझा, पादरी बाबा मोलवियों द्वारा दुनिया भर में नये अन्धविश्वासों का जन्म देने की सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता.. अनुमान जताया जा रहा है कि 18 वीं 19 वीं सदी की तरह छुआछूत एक बार फिर लोगों के दिमाग में हावी होगी ..अगर ऐसा हुआ तो बाहर खाना खाने से संक्रमण के डर के कारण विश्व भर में कारोबार कर रहे लाखों रेस्टोरेंट्स ढाबे, रेहड़ी पटरी वालों का क्या होगा?

इसके अलावा विवाह शादी पार्टी आदि में सहभोज करने वाले साथ मिलकर जहाँ सैकड़ों लोग हंसी खुसी खाना खाते थे इस परम्परा पर भी चोट हो सकती है, सामाजिक दूरी बढ़ेगी तो रिश्ते नाते कमजोर होंगे बीमार व्यक्ति के कंधे पर दिलासा जैसी मानवीय संवेदना दर्शाने का तरीका भी बदल सकता है.

क्योंकि फिलहाल के हालातों पर गौर करें तो कोरोना के कारण कुछ बदलाव हम सबके सामने आ चुके है लोगों ने मिलने-जुलने का तरीका तक बदल लिया है.. ताकि संक्रमण से बचा रहा जा सके.. बड़ी तादाद में कामकाजी लोग दफ्तर जाने के बजाय घर से ही काम वर्क फ्रॉम होम करने को तरजीह दे रहे हैं.

अभी तक जिस दुनिया को ग्लोबल विलेज और ग्लोबल गली कहा जा रहा था आगे इसमें बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे. सभी देश अपनी सीमाओं में सिमटकर रह जाएंगे, विदेशों में जाने के लिए मेडिकल जाँच जरुरी हो जाएगी. यही नहीं खानपान, काम करने के तरीकों, बिजनेस यात्रा के तौर तरीकों, अभिवादन समेत पूरी दुनिया को ज्यादातर चीजों स्थायी तौर पर बदल कर रख देगा.

अनुमान है कि इससे लोगों के सरकार के साथ संबंधों पर असर पड़ेगा. बाहरी दुनिया और आपस के व्यवहार में समय के साथ बड़ा फर्क आएगा. पॉलिटिको मैग्जीन की ओर से दुनिया के कई विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर किए गए सर्वे के मुताबिक, विशेषज्ञों को उम्मीद है कि कुछ बदलाव तो कुछ महीनों के भीतर ही नजर आने लगेंगे. वहीं, कुछ बड़े बदलावों में थोड़ा वक्त लगेगा. लोग देश की सीमाओं को बंद करने और अन्य देशों से सीधे संपर्क के बारे में हर पहलू से सोचने को मजबूर होंगे.

स्वीमिंग पूल में साथ नहाने से लेकर लोगों के एंज्वाय करने के तरीकों में तेजी से बदलाव होगा. लोग ज्यादातर चीजों के लिए तकनीक पर निर्भर होंगे. अगर ऐसा हुआ तो बेरोजगारी बढ़ेगी क्योंकि भीड़ कम करने के लिए प्राइवेट कम्पनियां स्टाफ में कमी लाएगी, दुकानों पर काम करने वाले लोगों की संख्या में कमी आएगी जहाँ पहले अधिसंख्य कपडे मेडिकल स्टोर किराना आदि दुकानों में 5 से 7 आदमी काम करते थे वहां यह संख्या कम हो सकती है.

उदहारण के तौर पर यदि पहले के बदलावों पर गौर करें तो 1896 और 1920 में प्लेग की महामारी जब फैली तो बीमार लोगों के घरों पर ताले लगा दिए गये थे झोपडी और छोटे बिन दरवाजे के मकानों में लाशें सडती रही शवों को उठाने वाले नहीं मिलते थे. लोग अपने सगे सम्बन्धियों को बीमार हालत में छोड़कर नई जगह पलायन कर गये थे जहाँ ये लोग बसे आज वह जगह गाँव कस्बे बन गये...

आज ऐसी कल्पना तो नहीं की जा सकती है लेकिन जो कयास लगाये जा रहे है उनसे हम इंकार भी नहीं कर सकते है..अगर सोशल डिस्टेंस बढता रहा तो कई तरह के और भी बदलाव देखने को मिलेंगे.. चीजों को छूना, समूहों में लोगों के साथ रहना और संक्रमित हवा में सांस लेना भी हमारे जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. ऐसी यादें हमारे मन में हमेशा के लिए घर कर जाएगी.. एक दूसरे के प्रति संदेह बढ़ेगा..लोग इस डर से घरों में भी दुरी बरतेंगे एक दूसरे को संदेह की नजर से देखेंगे लोगों से हाथ मिलाने से कतराना, बार-बार हाथ धोना और समाज से कटकर रहना आने वाले समय में लोगों में डिसऑर्डर की तरह सामने आ सकता है. लोग किसी की मौजूदगी के बजाय अकेले रहने में ज्यादा सुकून महसूस करने लगेंगे.

ऑनलाइन कारोबार बढेगा, दुनिया भर का नकद लेन देन केश लेश की तरफ जायेगा ऑनलाइन कम्युनिकेशन बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा. इससे लोगों के बीच दूरियां बढ़ती चली जाएंगी. हालांकि, हम एकदूसरे का हालचाल जानने के लिए अब के मुकाबले ज्यादा बातचीत करने लगेंगे.

जहाँ अब से पहले दुनिया किसी दुश्मन से मिलकर लडती थी, जैसे लोग एक ही दुश्मन होने पर अपने पुराने बैर को भूलकर उससे निपटने के लिए एकजुट हो जाते हैं. अब यह लड़ाई अकेले-अकेले लड़ाई लड़ी जा रही है. ये पोस्ट सोशल मीडिया पर आपने घूमते देखी होगी लेकिन अगर इसका विश्लेषण करें तो मनोचिकित्सक अनुमान लगा रहे है कि मौजूदा व्यवस्थाओं को तगड़े झटके लगेंगे. ये जरूरी नहीं है कि इस बार ऐसा होगा ही, लेकिन 1816 से 1992 के बीच किए गए शोध के मुताबिक, 850 अंतरराष्ट्रीय विवादों में 75 फीसदी मामले शुरुआती 10 साल के भीतर ही खत्म हो गए. सामाजिक झटके कई स्तर पर बदलाव लाते हैं. इससे चीजें बेहतर के साथ खराब भी होती हैं. कोविड-19 को लेकर तनाव के कारण सांस्कृतिक और राजनीतिक बदलाव होना तय है. कुछ देशों के सीमाई और आंतरिक दुपक्षीय मामले भी इस महामारी से सुलझ सकते है..

अब अगर धार्मिक जगत की बात करें तो क्या पूजा प्रार्थना के स्वरूप भी बदल जायेंगे यह सवाल भी करवट लेते दिख रहा है....अगर शुरुआत हिन्दू धर्म से करें दुनिया का सबसे उदारवादी धर्म कहा जा सकता है जो समय के साथ परिवर्तन स्वीकार कर लेता है..लेकिन सवाल उनका है कट्टरता की चादर में लिपटे है जैसे इस्लाम में जुम्मे आदि की सामूहिक नमाज का क्या होगा..? रोजा और इफ्तारी दावत जो सामूहिक रूप से मजमा लगाकर की जाती है उसमें कितना परिवर्तन पढ़ा लिखा मुस्लिम जगत ले आएगा..? इसके अलावा ईसाइयों में सामूहिक रूप से ईस्टर पर्व का रुढ़िवादी ईसाई कितना विरोध कर पाएंगे...सन्डे की चर्च की सामूहिक प्रार्थना से भी लोग बचेंगे.. क्या ये बदलाव समय की मांग होंगे और उदारवादी लोग दुनिया के साथ मिलकर चलेंगे या फिर अपनी पुरानी रुढ़िवादी सोच के साथ सफ़र करेंगे यह सवाल भी सभी के सामने होगा..

लेकिन इन सब बदलावों की बात तब होगी जब इस महामारी पर काबू पा लिया जायेगा अहतियात बरते, फिलहाल सरकार की गाइड लाइन को फोलो करें तभी हम नये बदलावों की रूप रेखा और स्वरूप देख पाएंगे...

राजीव चौधरी
 

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