कà¥à¤¯à¤¾ आप जानते है कबीर साहिब ने गोरकà¥à¤·à¤¾ के लिठअपना विवाह करने से इंकार कर दिया था?
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Dr. Vivek AryaDate
07-Aug-2016Category
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amitUpload Date
12-Aug-2016Download PDF
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हमारे देश के इतिहास में अनेक महापà¥à¤°à¥à¤· हà¥à¤ है जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने विपरीत परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ होते हà¥à¤ à¤à¥€ गौ रकà¥à¤·à¤¾ के लिठतन-मन à¤à¤µà¤‚ धन से सहयोग किया। गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ के ऊना में हà¥à¤ˆ घटना को सामाजिक रूप से हल निकालने के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर उसका राजनीतिकरण कर दिया गया। हिनà¥à¤¦à¥‚ समाज जो पहले ही छà¥à¤†à¤›à¥‚त के चलते दीमक लगे पेड़ के समान खोखला हो चूका है। हिनà¥à¤¦à¥‚ समाज के अà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ अंग दलित समाज में कà¥à¤› तथाकथित नेता अपने वोट बैंक बनाने के पीछे दलित-मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® गठजोड़ तक बनाने से पीछे नहीं हट रहे। जबकि देश का इतिहास उठा कर देखिये। मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® आकà¥à¤°à¤¾à¤‚ताओं ने हिनà¥à¤¦à¥‚ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ हो या दलित सà¤à¥€ पर अवरà¥à¤£à¤¨à¥€à¤¯ अतà¥à¤¯à¤¾à¤šà¤¾à¤° किये है। दलित समाज सà¥à¤§à¤¾à¤°à¤•à¥‹à¤‚ में रविदास, कबीर, बिरसा मà¥à¤‚डा से लेकर डॉ अमà¥à¤¬à¥‡à¤¡à¤•à¤° अनेक पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦ नाम है।
दलित संतों à¤à¤µà¤‚ समाज सà¥à¤§à¤¾à¤°à¤•à¥‹à¤‚ ने गोरकà¥à¤·à¤¾ के लिठसामाजिक सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ दिया। आज इसके विपरीत ऊना की घटना को लेकर अपने आपको दलित विचारक कहने वाले लोग गौ के समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ में उलटे सीधे कà¥à¤¤à¤°à¥à¤• दे रहे है। सतà¥à¤¯ यह है कि दलितों के नाम पर राजनीती करने वाले लोग असल विदेशी चंदे पर पलने वाली जमात है। ये लोग ईसाईयों और मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के हाथों की कठपà¥à¤¤à¤²à¥€ मातà¥à¤° है। इनका काम केवल दलितों को आकà¥à¤°à¥‹à¤¶à¤¿à¤¤ कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हिनà¥à¤¦à¥‚ समाज से अलग करना है। à¤à¤•à¤¤à¤¾ में शकà¥à¤¤à¤¿ है। हिनà¥à¤¦à¥‚ समाज को अपनी शकà¥à¤¤à¤¿ को बचाना है तो जातिवाद का नाश करना होगा।
इस लेख में हम सिदà¥à¤§ करेंगे कि कबीर साहिब ने गोरकà¥à¤·à¤¾ करने के लिठअपना विवाह तक करने से इंकार कर दिया था।
à¤à¤• दिन गोसाईं कबीर पूरब की धरती नगर बनारस में रहते थे। जब कबीर अठारह बरस के à¤à¤ तो उनके माता-पिता ने विचारा कि इसका बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ कर दिया जाà¤à¥¤ कबीर बहà¥à¤¤ उदासीन हो रहा है, कà¥à¤¯à¤¾ पता बà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥‡ का मन टिक जाà¤, कबीर को बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ ही दें।
जहां पर कबीर को बà¥à¤²à¤µà¤¾à¤¯à¤¾ गया था, वहां पर कबीर का होने वाला ससà¥à¤° पूछने लगा : अरे à¤à¤¾à¤ˆ समधियो ! इसे हमारे यहां बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ दो। तब कबीर के मां-बाप ने कहा कि à¤à¤²à¤¾ होठजी ! चलिठबà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ से जा कर पूछते हैं, जो साहा जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ वह साहा मान लेते हैं।
तब कबीर का पिता और ससà¥à¤° उठखड़े हà¥à¤ और मिल कर बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ के पास गà¤à¥¤ पतà¥à¤°à¥€ कढाई, साहा निरà¥à¤®à¤² निकला, बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ से साहा जà¥à¤¡à¤¼à¤¾à¤¯à¤¾, साहा जोड़- बांध कर दोनों के हाथ में थमा दिया गया। उसे लेकर कबीर का पिता और à¤à¤¾à¤µà¥€ ससà¥à¤° अपने-अपने घर चले आà¤à¥¤
अनाज की सामगà¥à¤°à¥€ à¤à¤•à¤¤à¥à¤° की जाने लगी। घी-शकà¥à¤•à¤° लिया, चावल-दही लिया। और कबीर का जो काका था, कबीर के बाप का छोटा à¤à¤¾à¤ˆ, तिसको काका कहते हैं। वह कबीर जी का काका जाकर à¤à¤• गाय मोल ले आया वध करने के निमितà¥à¤¤à¥¤ तब परिवार के लोग कह उठे कि कबीर का काका à¤à¤• गाय वध करने को ले लाया है।
जब गोसाईं कबीर ने सà¥à¤¨à¤¾ कि काका जी गाय वध करने को ले आया है, तब कबीर बाहर आà¤à¥¤ जब देखा कि काका जी गाय ले आया है, तब कबीर जी ने पूछा : ठकाका जी ! यह गऊ तà¥à¤® काहे को लाठहो। तब कबीर के काका ने कहा : कबीर ! यह गऊ वध करने को लायी गई है।
तब कबीर ने यह बानी बोली राग गà¥à¤œà¤°à¥€ में :
काका à¤à¤¸à¤¾ काम न कीजै
इह गऊ बà¥à¤°à¤¹à¤®à¤¨ कउ दीजै।। रहाउ ।।
तिसका परमारà¥à¤¥ : तब गोसाईं कबीर ने कहा : काका जी ! यह गऊ वध नहीं करनी है, यह गऊ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को दे दीजिà¤à¥¤ यह गऊ वध करने योगà¥à¤¯ नहीं, बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को देने योगà¥à¤¯ है। तब गोसाईं कबीर के काका ने कहा : गाय वध किठबिना हमारा कारज नहीं संवरता। यहां बहà¥à¤¤ लोग जà¥à¤¡à¤¼à¥‡à¤‚गे। जब गोवध करेंगे तब ही किसी
महमान आठका आदर होगा। तà¥à¤® यह गोवध मना मत करो।
तब गोसाईं कबीर ने यह बानी बोली :
रोमि रोमि उआ के देवता बसत है।। बà¥à¤°à¤¹à¤® बसै रग माही।
बैतरनी मिरतक मà¥à¤•à¤¤à¤¿ करत है। सा तà¥à¤® छेदहॠनाही।।
तिसका परमारà¥à¤¥ : तब गोसाईं कबीर ने कहा : काका जी ! तà¥à¤® इस गऊ के गà¥à¤£
सà¥à¤¨ लो। इस गऊ के जितने रोम हैं, इसके रोम-रोम में देवता बसते हैं। और इसकी रगों में सà¥à¤µà¤¯à¤‚ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® ही बसता है। और जी ! इसका à¤à¤• यह बड़ा गà¥à¤£ है कि वैतरणी मृतक चलते-चलते बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को मिलती है। तब उस मृतक को वह गऊ à¤à¤µ जल तार देती है। à¤à¤¸à¥€ यह गऊ है जी। इस गऊ का नाम à¤à¤µà¤œà¤²-तारिणी है जी। इस गऊ का वध करना ठीक नहीं। यह गऊ तà¥à¤® बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ धरà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤¥ दे दो जी।
काका कहने लगा : तू यह कहता है कि यह गऊ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को दे दो और हमारे बड़े बà¥à¤œà¤¼à¥à¤°à¥à¤— इसे कोह=मार कर लोगों को खिलाते थे। हमें à¤à¥€ उसी राह चलना चाहिà¤à¥¤ यदि à¤à¤¸à¤¾ नहीं करेंगे तो लोग कहेंगे कि ये गà¥à¤®à¤°à¤¾à¤¹ हो गठहैं, इनसे यह चीज़ होने को न आई। कबीर जी ! गऊ वध करनी ही à¤à¤²à¥€ है। इसे, छोड़ देना हमें समठनहीं आता। बलिहारी जाऊं कबीर जी ! यह गà¥à¤¨à¤¾à¤¹ हमें बख़à¥à¤¶à¥‹ जी।
तब गोसाईं कबीर ने यह बानी बोली :
दूधॠदही घृत अंबà¥à¤°à¤¿à¤¤ देती। निरमल जा की काइआ।
गोबरि जा के धरती सूची। सा तै आणी गाइआ।।
तिसका परमारà¥à¤¥ : तब गोसाईं कबीर ने कहा : सà¥à¤¨à¤¿à¤ काका जी ! यह गाय जो है सो कैसी है, पहले इसका गà¥à¤£ सà¥à¤¨ लें कि यह गाय कैसी है। यह गाय à¤à¤¸à¥€ है जी : यह दूध देती है, तिसका दही होता है जी। दूध से खीर होती है। दही से अमृत वसà¥à¤¤à¥ घृत निकलता है जी। उस से सब à¤à¥‹à¤œà¤¨ पवितà¥à¤° होते हैं जी। देवताओं-सà¥à¤°à¥‹à¤‚ नरों को à¤à¥‹à¤— चढ़ता है। इस घृत का धूप वैकà¥à¤£à¥à¤ लोक जाता है। ठाकà¥à¤° जी को दूध-दही-घृत à¤à¥‹à¤— चढ़ता है जी और इस गऊ की काया जो है सो निरà¥à¤®à¤² है। जी à¤à¤¸à¥€ निरà¥à¤®à¤²à¤¾ यह गऊ है जिसके गोबर से धरती पवितà¥à¤° होती है, उसका तà¥à¤® बà¥à¤°à¤¾ चाहते हो ! सो इस बात में तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤²à¤¾ नहीं। बलिहार जाऊं काका जी ! यह गऊ तà¥à¤® बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को दे दो जी, वध करने में à¤à¤²à¤¾ नहीं।
तब फिर उन कबीर के बाबा=पिता और चाचा ने कहा : जिन शरीकों=रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ के यहां हमने यह वसà¥à¤¤à¥ खायी थी वह तो उनको à¤à¥€ खिलानी चाहिà¤à¥¤ यदि हम उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यह खिलाà¤à¤‚गे नहीं तो वे उठजाà¤à¤‚गे। अतः पà¥à¤¤à¥à¤° जी ! गऊ अवशà¥à¤¯ वध करनी चाहिà¤à¥¤ à¤à¤¸à¥‡ हमारी इज़à¥à¤œà¤¼à¤¤ नहीं रहती।
तब गोसाईं कबीर ने यह बानी बोली :
काहे कउ तà¥à¤®à¤¿ बीआहॠकरतॠहउ । कहत कबीर बीचारी।
जिसॠकारणि तà¥à¤®à¤¿ गऊ बिणासहà¥à¥¤ सा हमि छोडी नारी।।
तिसका परमारà¥à¤¥ : तब गोसाईं कबीर ने कहा : सà¥à¤¨à¤¿à¤ बाबा-काका जी ! तà¥à¤® जो हमारा बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ करते हो सो किस कारण करते हो जी। जिस कारण तà¥à¤® गऊ विनाशते हो जी कि हमारा कारज संवरे, वह तà¥à¤® अपना कारज रख छोड़ो। हमने वह सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ ही छोड़ी तो तà¥à¤® किसका बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ करते हो। हमने वह नारी ही छोड़ दी।
अजी ! तà¥à¤® जानो और तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ बà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥¤ हमने तो वह नारी ही छोड़ दी जी।
इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° जब गोसाईं कबीर कà¥à¤ªà¤¿à¤¤ हो उठे, तब उन सà¤à¥€ का अà¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ छिटक गया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आपस में मसलत करी कि जिस कबीर ने यह बात कही है वह बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ न करेगा। आओ अब यह गऊ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को दे दें और हम सीधा अनाज करें जैसा कबीर कहता है।
तब कबीर गोसाईं के पास परिवार के सब लोग मिल कर आठऔर बोले : à¤à¤²à¤¾ हो कबीर जी ! जैसा तेरा जी है वैसा ही करेंगे। यह गऊ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को दीजिठजी। और जो पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦=à¤à¥‹à¤œà¤¨ तà¥à¤® कहते हो हम वही पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ सेवन करेंगे जी। बस ! तà¥à¤® अब सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ न छोड़ो जी, अब तà¥à¤® सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ लो।
तब गोसाईं कबीर ने कहा : न बाबा जी ! हमारे मà¥à¤– से निकल चà¥à¤•à¤¾ है, सो अब मैं सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ नहीं बà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¤¤à¤¾à¥¤ तब जितना परिवार था सब कबीर जी को निवेदन करने लगे कि ना जी ! अब हमने गऊ छोड़ दी तो तà¥à¤® सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ न छोड़ो जी।
तब गोसाईं कबीर ने कहा : मैं सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ तà¤à¥€ न छोड़ूंगा जी जब तà¥à¤® सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के मां-बाप को à¤à¥€ जाकर कहो कि गोवध नहीं करना। यदि तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ कहने लगकर वे गोवध नहीं करेंगे तो मैं उस सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ से बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ कर लूंगा। यदि वे गोवध करेंगे तो मैं वहां न जाऊंगा, न ही मैं वह सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ बà¥à¤¯à¤¾à¤¹ कर लाऊंगा।
तब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा : à¤à¤²à¤¾ हो जी ! वे लोग चलते-चलते उनके पास पहà¥à¤‚चे और बोले : à¤à¤¾à¤ˆ रे ! हमने जो गऊ वध के लिठलायी थी वह कबीर ने बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को दिलवा दी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सारी बात कह सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ कि यह बात à¤à¤¸à¥‡-à¤à¤¸à¥‡ घटी है। अब कबीर कहता है कि हमारे सास-ससà¥à¤° को कहो कि हम तब ही तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ घर आवेंगे जब तà¥à¤® गोवध न करोगे।
तब उन लोगों ने कहा : à¤à¤¾à¤¡à¤¼ में जाठवह बात जो कबीर जी को न à¤à¤¾à¤µà¥‡à¥¤ हम तो तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ लिठही गोवध करने वाले थे। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ जी ! जब तà¥à¤®à¥à¤¹à¥€à¤‚ ख़à¥à¤¶ हो तो हम गोवध नहीं करेंगे।
तब कबीर के परिवारी लोग बोले : हमें इस बात में खरी ख़à¥à¤¶à¥€ होगी, यदि तà¥à¤® लोग गोवध न करो।
तब सब मिल कर कबीर जी के पास लौट आà¤à¥¤ माता-पिता और सास-ससà¥à¤° सबने आकर नमसà¥à¤•à¤¾à¤° किया और कहा : कबीर जी ! जो तà¥à¤®à¤¨à¥‡ कहा वह हम सबने मान लिया। हमने गाय छोड़ दी जी। पर अब तà¥à¤® जो आजà¥à¤žà¤¾ करोगे हम वैसा ही पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ बनाà¤à¤‚गे बारात के आवà¤à¤—त के लिà¤à¥¤
तब गोसाईं कबीर ने कहा : अब तà¥à¤® यही पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ करो : यही शकà¥à¤•à¤°-à¤à¤¾à¤¤-घी-दही मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ करो। तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤²à¤¾ होगा।
तब उन लोगों ने गोसाईं कबीर से कहा : à¤à¤²à¤¾ जी ! हम यही पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ बनाà¤à¤‚गे जी। पर जी ! अब
तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ ख़à¥à¤¶à¥€ है न हमारे ऊपर।
तब गोसाईं कबीर ने कहा : तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ ऊपर ठाकà¥à¤° जी की ख़à¥à¤¶à¥€ है, तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤²à¤¾ होगा।
तब वे सास-ससà¥à¤° अपने घर चले गà¤à¥¤ इधर बाबा-काका-परिवार के सब लोग ख़à¥à¤¶ हà¥à¤à¥¤
इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° गोसाईं कबीर बà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥‡ गठऔर राम-नाम सà¥à¤®à¤°à¤£ करने लगे।
जनमसाखी à¤à¤—त कबीर जी की
मूल पंजाबी रचयिता : सोढी मनोहरदास मेहरबान
रचनाकाल : १६६ॠविकà¥à¤°à¤®à¥€, साखी नं• ४ का अनà¥à¤µà¤¾à¤¦
हिनà¥à¤¦à¥€ अनà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤• : राजेनà¥à¤¦à¥à¤° सिंह
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