अग�निहोत�र विधि
दैनिक यज�ञ
||अथ अग�निहोत�रमंत�र:||
जल से आचमन करने के मंत�र
इससे पहला
� अमृतोपस�तरणमसि स�वाहा ।१।
इससे दूसरा
� अमृतापिधानमसि स�वाहा ।२।
इससे तीसरा
� सत�यं यश: श�रीर�मयि श�री: श�रयतां स�वाहा ।३।
मंतà¥?रारà¥?थ – हे सरà¥?वरकà¥?षक अमर परमेशà¥?वर! यह सà¥?खपà¥?रद जल पà¥?राणियों का आशà¥?रयà¤à¥‚त है, यह हमारा कथन शà¥?ठहो। यह मैं सतà¥?यनिषà¥?ठापूरà¥?वक मानकर कहता हूà¤? और सà¥?षà¥?ठूकà¥?रिया आचमन के सदृश आपको अपने अंत:करण में गà¥?रहण करता हूà¤?।।1।।
हे सर�वरक�षक अविनाशिस�वरूप, अजर परमेश�वर! आप हमारे आच�छादक वस�त�र के समान अर�थात सदा-सर�वदा सब और से रक�षक हों, यह सत�यवचन मैं सत�यनिष�ठापूर�वक मानकर कहता हू� और स�ष�ठूक�रिया आचमन के सदृश आपको अपने अंत:करण में ग�रहण करता हू�।।2।।
हे सरà¥?वरकà¥?षक ईशà¥?वर सतà¥?याचरण, यश à¤?वं पà¥?रतिषà¥?ठा. विजयलकà¥?षà¥?मी, शोà¤à¤¾ धन-à¤?शà¥?वरà¥?य मà¥?à¤?मे सà¥?थित हों, यह मैं सतà¥?यनिषà¥?ठापूरà¥?वक पà¥?रारà¥?थना करता हूà¤? और सà¥?षà¥?ठूकà¥?रिया आचमन के सदृश आपको अपने अंत:करण में गà¥?रहण करता हूà¤?।।3।।
जल से अंग स�पर�श करने के मंत�र
इसका पà¥?रयोजन है-शरीर के सà¤à¥€ महतà¥?तà¥?वपूरà¥?ण अंगों में पवितà¥?रता का समावेश तथा अंतः की चेतना को जगाना ताकि यजà¥?ञ जैसा शà¥?रेषà¥?ठकृतà¥?य किया जा सके । बाà¤?à¤? हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की उà¤?गलियों को उनमें à¤à¤¿à¤—ोकर बताà¤? गà¤? सà¥?थान को मंतà¥?रोचà¥?चार के साथ सà¥?परà¥?श करें ।
इस मंत�र से म�ख का स�पर�श करें
� वाङ�म आस�येऽस�त� ॥
इस मंतà¥?र से नासिका के दोनों à¤à¤¾à¤—
� नसोर�मे प�राणोऽस�त� ॥
इससे दोनों आ�खें
� अक�ष�णोर�मे चक�ष�रस�त� ॥
इससे दोनों कान
� कर�णयोर�मे श�रोत�रमस�त� ॥
इससे दोनों à¤à¥?जाà¤?ं
� बाह�वोर�मे बलमस�त� ॥
इससे दोनों जंघा�ं
� ऊर�वोर�म ओजोऽस�त� ॥
इससे सारे शरीर पर जल का मार�जन करें
� अरिष�टानि मेऽङ�गानि तनूस�तन�वा में सह सन�त� ॥
मंतà¥?रारà¥?थ – हे रकà¥?षक परमेशà¥?वर! मैं आपसे पà¥?रारà¥?थना करता हूà¤? कि मेरे मà¥?ख में वाकà¥? इनà¥?दà¥?रिय पूरà¥?ण आयà¥?परà¥?यनà¥?त सà¥?वासà¥?थà¥?य à¤?वं सामरà¥?थà¥?य सहित विदà¥?यमान रहे।
हे रकà¥?षक परमेशà¥?वर! मेरे दोनों नासिका à¤à¤¾à¤—ों में पà¥?राणशकà¥?ति पूरà¥?ण आयà¥?परà¥?यनà¥?त सà¥?वासà¥?थà¥?य à¤?वं सामरà¥?थà¥?यसहित विदà¥?यमान रहे।हे रकà¥?षक परमेशà¥?वर! मेरे दोनों आखों में दृषà¥?टिशकà¥?ति पूरà¥?ण आयà¥?परà¥?यनà¥?त सà¥?वासà¥?थà¥?य à¤?वं सामरà¥?थà¥?यसहित विदà¥?यमान रहे।
हे रकà¥?षक परमेशà¥?वर! मेरे दोनों कानों में सà¥?नने की शकà¥?ति पूरà¥?ण आयà¥?परà¥?यनà¥?त सà¥?वासà¥?थà¥?य à¤?वं सामरà¥?थà¥?यसहित विदà¥?यमान रहे।हे रकà¥?षक परमेशà¥?वर! मेरी à¤à¥?जाओं में पूरà¥?ण आयà¥?परà¥?यनà¥?त बल विदà¥?यमान रहे।
हे रक�षक परमेश�वर! मेरी जंघाओं में बल-पराक�रम सहित सामर�थ�य पूर�ण आय�पर�यन�त विद�यमान रहे।हे रक�षक परमेश�वर! मेरा शरीर और अंग-प�रत�यंग रोग �वं दोष रहित बने रहें, ये अंग-प�रत�यंग मेरे शरीर के साथ सम�यक� प�रकार संय�क�त ह�� सामर�थ�य सहित विद�यमान रहें।
ईशà¥?वर की सà¥?तà¥?ति - पà¥?रारà¥?थना – उपासना के मंतà¥?र
� विश�वानी देव सवितर�द�रितानि परास�व ।
यद à¤à¤¦à¥?रं तनà¥?न आ सà¥?व ॥१॥
मंतà¥?रारà¥?थ – हे सब सà¥?खों के दाता जà¥?ञान के पà¥?रकाशक सकल जगत के उतà¥?पतà¥?तिकरà¥?ता à¤?वं समगà¥?र à¤?शà¥?वरà¥?ययà¥?कà¥?त परमेशà¥?वर! आप हमारे समà¥?पूरà¥?ण दà¥?रà¥?गà¥?णों, दà¥?रà¥?वà¥?यसनों और दà¥?खों को दूर कर दीजिà¤?, और जो कलà¥?याणकारक गà¥?ण, करà¥?म, सà¥?वà¤à¤¾à¤µ, सà¥?ख और पदारà¥?थ हैं, उसको हमें à¤à¤²à¥€à¤à¤¾à¤‚ति पà¥?रापà¥?त कराइये।
हिरणà¥?यगरà¥?à¤: समवरà¥?तà¥?ततागà¥?रे à¤à¥‚तसà¥?य जात: पतिरेक आसीतà¥? ।
स दाघार पृथिवीं द�याम�तेमां कस�मै देवाय हविषा विधेम ॥२॥
मंतà¥?रारà¥?थ – सृषà¥?टि के उतà¥?पनà¥?न होने से पूरà¥?व और सृषà¥?टि रचना के आरमà¥?ठमें सà¥?वपà¥?रकाशसà¥?वरूप और जिसने पà¥?रकाशयà¥?कà¥?त सूरà¥?य, चनà¥?दà¥?र, तारे, गà¥?रह-उपगà¥?रह आदि पदारà¥?थों को उतà¥?पनà¥?न करके अपने अनà¥?दर धारण कर रखा है, वह परमातà¥?मा समà¥?यकà¥? रूप से वरà¥?तमान था। वही उतà¥?पनà¥?न हà¥?à¤? समà¥?पूरà¥?ण जगत का पà¥?रसिदà¥?ध सà¥?वामी केवल अकेला à¤?क ही था। उसी परमातà¥?मा ने इस पृथà¥?वीलोक और दà¥?यà¥?लोक आदि को धारण किया हà¥?आ है, हम लोग उस सà¥?खसà¥?वरूप, सृषà¥?टिपालक, शà¥?दà¥?ध à¤?वं पà¥?रकाश-दिवà¥?य-सामरà¥?थà¥?य यà¥?कà¥?त परमातà¥?मा की पà¥?रापà¥?ति के लिये गà¥?रहण करने योगà¥?य योगाà¤à¥?यास व हवà¥?य पदारà¥?थों दà¥?वारा विशेष à¤à¤•à¥?ति करते हैं।
य आत�मदा बलदा यस�य विश�व उपासते प�रशिषं यस�य देवा: ।
यस�य छायाऽमृतं यस�य मृत�य�: कस�मै देवाय हविषा विधेम ॥३॥
मंतà¥?रारà¥?थ – जो परमातà¥?मा आतà¥?मजà¥?ञान का दाता शारीरिक, आतà¥?मिक और सामाजिक बल का देने वाला है, जिसकी सब विदà¥?वान लोग उपासना करते हैं, जिसकी शासन, वà¥?यवसà¥?था, शिकà¥?षा को सà¤à¥€ मानते हैं, जिसका आशà¥?रय ही मोकà¥?षसà¥?खदायक है, और जिसको न मानना अरà¥?थात à¤à¤•à¥?ति न करना मृतà¥?यà¥? आदि कषà¥?ट का हेतà¥? है, हम लोग उस सà¥?खसà¥?वरूप à¤?वं पà¥?रजापालक शà¥?दà¥?ध à¤?वं पà¥?रकाशसà¥?वरूप, दिवà¥?य सामरà¥?थà¥?य यà¥?कà¥?त परमातà¥?मा की पà¥?रापà¥?ति के लिये गà¥?रहण करने योगà¥?य योगाà¤à¥?यास व हवà¥?य पदारà¥?थों दà¥?वारा विशेष à¤à¤•à¥?ति करते हैं।
य: पà¥?राणतो निमिषतो महितà¥?वैक इनà¥?दà¥?राजा जगतो बà¤à¥‚व।
य ईशे अस�य द�विपदश�चत�ष�पद: कस�मै देवाय हविषा विधेम ॥४॥
मंतà¥?रारà¥?थ – जो पà¥?राणधारी चेतन और अपà¥?राणधारी जड जगत का अपनी अनंत महिमा के कारण à¤?क अकेला ही सरà¥?वोपरी विराजमान राजा हà¥?आ है, जो इस दो पैरों वाले मनà¥?षà¥?य आदि और चार पैरों वाले पशà¥? आदि पà¥?राणियों की रचना करता है और उनका सरà¥?वोपरी सà¥?वामी है, हम लोग उस सà¥?खसà¥?वरूप à¤?वं पà¥?रजापालक शà¥?दà¥?ध à¤?वं पà¥?रकाशसà¥?वरूप, दिवà¥?यसामरà¥?थà¥?ययà¥?कà¥?त परमातà¥?मा की पà¥?रपà¥?ति के लिये योगाà¤à¥?यास à¤?वं हवà¥?य पदारà¥?थों दà¥?वारा विशेष à¤à¤•à¥?ति करते हैं ।
येन दà¥?यौरà¥?गà¥?रा पृथिवी च दà¥?रढा येन सà¥?व: सà¥?तà¤à¤¿à¤¤à¤‚ येन नाक: ।
यो अन�तरिक�षे रजसो विमान: कस�मै देवाय हविषा विधेम ॥५॥
मंतà¥?रारà¥?थ – जिस परमातà¥?मा ने तेजोमय दà¥?यà¥?लोक में सà¥?थित सूरà¥?य आदि को और पृथिवी को धारण कर रखा है, जिसने समसà¥?त सà¥?खों को धारण कर रखा है, जिसने मोकà¥?ष को धारण कर रखा है, जो अंतरिकà¥?ष में सà¥?थित समसà¥?त लोक-लोकानà¥?तरों आदि का विशेष नियम से निरà¥?माता धारणकरà¥?ता, वà¥?यवसà¥?थापक à¤?वं वà¥?यापà¥?तकरà¥?ता है, हम लोग उस शà¥?दà¥?ध à¤?वं पà¥?रकाशसà¥?वरूप, दिवà¥?यसामरà¥?थà¥?ययà¥?कà¥?त परमातà¥?मा की पà¥?रपà¥?ति के लिये गà¥?रहण करने योगà¥?य योगाà¤à¥?यास à¤?वं हवà¥?य पदारà¥?थों दà¥?वारा विशेष à¤à¤•à¥?ति करते हैं ।
पà¥?रजापते न तà¥?वदेतानà¥?यनà¥?यो विशà¥?वा जातानि परिता बà¤à¥‚व ।
यत�कामास�ते ज�ह�मस�तनो अस�त� वयं स�याम पतयो रयीणाम� ॥६॥
मंतà¥?रारà¥?थ – हे सब पà¥?रजाओं के पालक सà¥?वामी परमतà¥?मन! आपसे à¤à¤¿à¤¨à¥?न दूसरा कोई उन और इन अरà¥?थात दूर और पास सà¥?थित समसà¥?त उतà¥?पनà¥?न हà¥?à¤? जड-चेतन पदारà¥?थों को वशीà¤à¥‚त नहीं कर सकता, केवल आप ही इस जगत को वशीà¤à¥‚त रखने में समरà¥?थ हैं। जिस-जिस पदारà¥?थ की कामना वाले हम लोग अपकी योगाà¤à¥?यास, à¤à¤•à¥?ति और हवà¥?यपदारà¥?थों से सà¥?तà¥?ति-पà¥?रारà¥?थना-उपासना करें उस-उस पदारà¥?थ की हमारी कामना सिदà¥?ध होवे, जिससे की हम उपासक लोग धन-à¤?शà¥?वरà¥?यों के सà¥?वामी होवें ।
स नो बनà¥?धà¥?रà¥?जनिता स विधाता धामानि वेद à¤à¥?वनानि विशà¥?वा।
यतà¥?र देवा अमृतमानशाना सà¥?तृतीये घामनà¥?नधà¥?यैरयनà¥?त ॥à¥à¥¥
मंतà¥?रारà¥?थ – वह परमातà¥?मा हमारा à¤à¤¾à¤ˆ और समà¥?बनà¥?धी के समान सहायक है, सकल जगत का उतà¥?पादक है, वही सब कामों को पूरà¥?ण करने वाला है। वह समसà¥?त लोक-लोकानà¥?तरों को, सà¥?थान-सà¥?थान को जानता है। यह वही परमातà¥?मा है जिसके आशà¥?रय में योगीजन मोकà¥?ष को पà¥?रापà¥?त करते हà¥?à¤?, मोकà¥?षाननà¥?द का सेवन करते हà¥?à¤? तीसरे धाम अरà¥?थात परबà¥?रहà¥?म परमातà¥?मा के आशà¥?रय से पà¥?रापà¥?त मोकà¥?षाननà¥?द में सà¥?वेचà¥?छापूरà¥?वक विचरण करते हैं। उसी परमातà¥?मा की हम à¤à¤•à¥?ति करते हैं।
अग�ने नय स�पथा राय अस�मान� विश�वानि देव वय�नानि विद�वान।
यà¥?योधà¥?यसà¥?मजà¥?जà¥?हà¥?राणमेनो à¤à¥‚यिषà¥?ठां ते नम उकà¥?तिं विधेà¤?म ॥८॥
मंतà¥?रारà¥?थ – हे जà¥?ञानपà¥?रकाशसà¥?वरूप, सनà¥?मारà¥?गपà¥?रदरà¥?शक, दिवà¥?यसामरà¥?थयà¥?कà¥?त परमातà¥?मन! हमें जà¥?ञान-विजà¥?ञान, à¤?शà¥?वरà¥?य आदि की पà¥?रापà¥?ति कराने के लिये धरà¥?मयà¥?कà¥?त, कलà¥?याणकारी मारà¥?ग से ले चल। आप समसà¥?त जà¥?ञानों और करà¥?मों को जानने वाले हैं। हमसे कà¥?टिलतायà¥?कà¥?त पापरूप करà¥?म को दूर कीजिये । इस हेतà¥? से हम आपकी विविध पà¥?रकार की और अधिकाधिक सà¥?तà¥?ति-पà¥?रारà¥?थना-उपासना सतà¥?कार व नमà¥?रतापूरà¥?वक करते हैं।
दीपक जलाने का मंत�र
à¥? à¤à¥‚रà¥?à¤à¥?व: सà¥?व: ॥
मंतà¥?रारà¥?थ – हे सरà¥?वरकà¥?षक परमेशà¥?वर! आप सब के उतà¥?पादक, पà¥?राणाधार सब दà¥?:खों को दूर करने वाले सà¥?खसà¥?वरूप à¤?वं सà¥?खदाता हैं। आपकी कृपा से मेरा यह अनà¥?षà¥?ठान सफल होवे। अथवा हे ईशà¥?वर आप सत,चितà¥?त, आननà¥?दसà¥?वरूप हैं। आपकी कृपा से यह यजà¥?ञीय अगà¥?नि पृथिवीलोक में, अनà¥?तरिकà¥?ष में, दà¥?यà¥?लोक में विसà¥?तीरà¥?ण होकर लोकोपकारक सिदà¥?ध होवे।
यज�ञ क�ण�ड में अग�नि स�थापित करने का मंत�र
à¥? à¤à¥‚रà¥?à¤à¥?व: सà¥?वरà¥?दà¥?यौरिव à¤à¥‚मà¥?ना पृथिवीव वरिमà¥?णा ।
तस�यास�ते पृथिवि देवयजनि पृष�ठेऽग�निमन�नादमन�नाद�यायादधे ॥
मंतà¥?रारà¥?थ – हे सरà¥?वरकà¥?षक सबके उतà¥?पादक और पà¥?राणाधार दà¥?खविनाशक सà¥?खसà¥?वरूप à¤?वं सà¥?खपà¥?रदाता परमेशà¥?वर! आपकी कृपा से मैं महतà¥?ता या गरिमा में दà¥?यà¥?लोक के समान, शà¥?रेषà¥?ठता या विसà¥?तार में पृथिवी लोक के समान हो जाऊं । देवयजà¥?ञ की आधारà¤à¥‚मि पृथिवी! के तल पर हवà¥?य दà¥?रवà¥?यों का à¤à¤•à¥?षण करने वाली यजà¥?ञीय अगà¥?नि को, à¤à¤•à¥?षणीय अनà¥?न à¤?वं धरà¥?मानà¥?कूल à¤à¥‹à¤—ों की पà¥?रापà¥?ति के लिà¤? तथा à¤à¤•à¥?षण सामरà¥?थà¥?य और à¤à¥‹à¤— सामरà¥?थà¥?य पà¥?रापà¥?ति के लिà¤? यजà¥?ञकà¥?णà¥?ड में सà¥?थापित करता हूà¤? ।
अग�नि प�रदीप�त करने का मंत�र
� उद� ब�ध�यस�वाग�ने प�रतिजागृहित�व�मिष�टापूर�ते सं सृजेथामयं च ।
अस�मिन�त�सधस�थे अध�य�त�तरस�मिन� विश�वे देवा यजमानश�च सीदत ॥
मंतà¥?रारà¥?थ – मैं सरà¥?वरकà¥?षक परमेशà¥?वर का सà¥?मरण करता हà¥?अ यहाà¤? कामना करता हूà¤? कि हे यजà¥?ञागà¥?ने ! तू à¤à¤²à¥€à¤à¤¾à¤‚ति उदà¥?दीपà¥?त हो, और पà¥?रतà¥?येक समिधा को पà¥?रजà¥?वलित करती हà¥?ई परà¥?यापà¥?त जà¥?वालामयी हो जा। तू और यह यजमान इषà¥?ट और पूरà¥?तà¥?त करà¥?मों को मिलà¥?कर समà¥?पादित करें। इस अति उतà¥?कृषà¥?ट, à¤à¤µà¥?य और अतà¥?यà¥?चà¥?च यजà¥?ञशाला में सब विदà¥?वान और यजà¥?ञकरà¥?तà¥?ता जन मिलकर बैठें।
घृत की तीन समिधायें रखने के मंत�र
इस मंत�र से प�रथम समिधा रखें।
à¥? अयनà¥?त इधà¥?म आतà¥?मा जातवेदसà¥?तेनेधà¥?यसà¥?व वरà¥?दà¥?धसà¥?व चेदà¥?ध वरà¥?धयचासà¥?मानà¥? पà¥?रजयापशà¥?à¤à¤¿à¤°à¥?बà¥?रहà¥?मवरà¥?चसेनानà¥?नादà¥?येन समेधय सà¥?वाहा । इदमगà¥?नेय जातवेदसे – इदं न मम ॥१॥
मनà¥?तà¥?रारà¥?थ- मैं सरà¥?वरकà¥?षक परमेशà¥?वर का सà¥?मरण करता हà¥?आ कामना करता हूà¤? कि हे सब उतà¥?पनà¥?न पदारà¥?थों के पà¥?रकाशक अगà¥?नि! यह समिधा तेरे जीवन का हेतà¥? है जà¥?वलित रहने का आधार है।उस समिधा से तू पà¥?रदीपà¥?त हो, सबको पà¥?रकाशित कर और सब को यजà¥?ञीय लाà¤à¥‹à¤‚ से लाà¤à¤¾à¤¨à¥?वित कर, और हमें संतान से, पशà¥? समà¥?पितà¥?त से बढ़ा।बà¥?रहà¥?मतेज ( विदà¥?या, बà¥?रहà¥?मचरà¥?य à¤?वं अधà¥?यातà¥?मिक तेज से, और अनà¥?नादि धन-à¤?शà¥?वयरà¥? तथा à¤à¤•à¥?षण à¤?वं à¤à¥‹à¤—- सामथà¥?यरà¥? से समृदà¥?ध कर। मैं तà¥?यागà¤à¤¾à¤µ से यह समिधा- हवि पà¥?रदान करना चाहता हूà¤? | यह आहà¥?ति जातवेदस संजà¥?ञक अगà¥?नि के लिà¤? है, यह मेरी नही है ||1||
इन दो मन�त�रों से दूसरी समिधा रखें
ओं समिधाग�निं द�वस�यत घृतैर�बोधयतातिथम� |
आस�मिन हव�या ज�होतन स�वाहा | इदमग�नये इदन�न मम ||२||
मनà¥?तà¥?रारà¥?थ- मैं सरà¥?वरकà¥?षक परमेशà¥?वर का सà¥?मरण करते हà¥?à¤? वेद के आदेश का कथन करता हूà¤? कि हे मनà¥?षà¥?यो! समिधा के दà¥?वारा यजà¥?ञागà¥?नि की सेवा करो -à¤à¤•à¥?ति से यजà¥?ञ करो।घृताहà¥?तियों से गतिशील à¤?वं अतिथ के समान पà¥?रथम सतà¥?करणीय यजà¥?ञागà¥?नि को पà¥?रबà¥?दà¥?ध करो, इसमें हवà¥?यों को à¤à¤²à¥€à¤à¤¾à¤‚ति अपिरà¥?त करो।मैं तà¥?यागà¤à¤¾à¤µ से यह समिधा- हवि पà¥?रदान करना चाहता हूà¤?। यह आहà¥?ति यजà¥?ञागà¥?नि के लिà¤? है, यह मेरी नहीं है ||२||
स�समिद�धाय शोचिषे घृतं तीव�रं ज�होतन अग�नये जातवेदसे स�वाहा।
इदमग�नये जातवेदसे इदन�न मम ||३||
मनà¥?तà¥?रारà¥?थ- मैं सरà¥?वरकà¥?षक परमेशà¥?वर के सà¥?मरणपूरà¥?वक वेद के आदेश का कथन करता हूà¤? कि हे मनà¥?षà¥?यों! अचà¥?छी पà¥?रकार पà¥?रदीपà¥?त जà¥?वालायà¥?कà¥?त जातवेदसà¥? संजà¥?ञक अगà¥?नि के लिà¤? वसà¥?तà¥?मातà¥?र में वà¥?यापà¥?त à¤?वं उनकी पà¥?रकाशक अगà¥?नि के लिà¤? उतà¥?कृषà¥?ट घृत की आहà¥?तियाà¤? दो . मैं तà¥?याग à¤à¤¾à¤µ से समिधा की आहà¥?ति पà¥?रदान करता हूà¤? यह आहà¥?ति जातवेदसà¥? संजà¥?ञक माधà¥?यमिक अगà¥?नि के लिà¤? है यह मेरी नहीं।।३।। इस मनà¥?तà¥?र से तीसरी समिधा रखें।
तनà¥?तà¥?वा समिदिà¥?à¤à¤°à¤™à¤¿à¥?गरो घृतेन वरà¥?दà¥?धयामसि ।
बृहच�छोचा यविष�ठय स�वाहा।।इदमग�नेऽङिगरसे इदं न मम।।४।।
मनà¥?तà¥?रारà¥?थ - मैं सरà¥?वरकà¥?षक परमेशà¥?वर का सà¥?मरण करते हà¥?à¤? यह कथन करता हूà¤? कि हे तीवà¥?र पà¥?रजà¥?वलित यजà¥?ञागà¥?नि! तà¥?à¤?े हम समिधायों से और धृताहà¥?तियों से बढ़ाते हैं।हे पदारà¥?थों को मिलाने और पृथक करने की महान शकà¥?ति से समà¥?पनà¥?न अगà¥?नि ! तू बहà¥?त अधिक पà¥?रदीपà¥?त हो, मैं तà¥?यागà¤à¤¾à¤µ से समिधा की आहà¥?ति पà¥?रदान करता हूà¤? ।यह अंगिरस संजà¥?ञक पृथिवीसà¥?थ अगà¥?नि के लिà¤? है यह मेरी नहीं है।
नीचे लिखे मन�त�र से घृत की पांच आह�ति देवें
ओमà¥? अयं त इधà¥?म आतà¥?मा जातवेदसà¥?तेनेधà¥?यसà¥?व वदà¥?धरà¥?सà¥?व चेदà¥?ध वधरà¥?य चासà¥?मानà¥? पà¥?रजयापशà¥?à¤à¤¿à¤¬à¥?रहà¥?मवरà¥?चसेनानà¥?नादà¥?येन समेधय सà¥?वाहा।इदमगà¥?नये जातवेदसे - इदं न मम।।१।।
मनà¥?तà¥?रारà¥?थ- मैं सरà¥?वरकà¥?षक परमेशà¥?वर का सà¥?मरण करता हà¥?आ कामना करता हूà¤? कि हे सब उतà¥?पनà¥?न पदारà¥?थों के पà¥?रकाशक अगà¥?नि! यह धृत जो जीवन का हेतà¥? है जà¥?वलित रहने का आधार है।उस धृत से तू पà¥?रदीपà¥?त हो और जà¥?वालाओं से बढ़ तथा सबको पà¥?रकाशित कर = सब को यजà¥?ञीय लाà¤à¥‹à¤‚ से लाà¤à¤¾à¤¨à¥?वित कर और हमें संतान से, पशà¥? समà¥?पितà¥?त से बढ़ा। विदà¥?या, बà¥?रहà¥?मचरà¥?य à¤?वं आधà¥?यातà¥?मिक तेज से, और अनà¥?नादि धन à¤?शà¥?वरà¥?य तथा à¤à¤•à¥?षण à¤?वं à¤à¥‹à¤— सामरà¥?थà¥?य से समृदà¥?ध कर। मैं तà¥?यागà¤à¤¾à¤µ से यह धृत पà¥?रदान करता हूà¤? ।यह आहà¥?ति जातवेदस संजà¥?ञक अगà¥?नि के लिà¤? है, यह मेरी नहीं है| ||१||
जल - प�रसेचन के मन�त�र
इस मन�त�र से पूर�व में
ओम� अदितेऽन�मन�यस�व।।
मनà¥?तà¥?रारà¥?थ- हे सरà¥?वरकà¥?षक अखणà¥?ड परमेशà¥?वर! मेरे इस यजà¥?ञकरà¥?म का अनà¥?मोदन कर अरà¥?थात मेरा यह यजà¥?ञानà¥?षà¥?ठान अखिणà¥?डत रूप से समà¥?पनà¥?न होता रहे।अथवा, पूरà¥?व दिशा में, जलसिञà¥?चन के सदृश, मैं यजà¥?ञीय पवितà¥?र à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं का पà¥?रचार पà¥?रसार निबारà¥?ध रूप से कर सकूà¤?, इस कारà¥?य में मेरी सहायता कीजिये।
इससे पश�चिम में
ओम� अन�मतेऽन�मन�यस�व।।
मनà¥?तà¥?रारà¥?थ- हे सरà¥?वरकà¥?षक यजà¥?ञीय à¤?वं ईशà¥?वरीय संसà¥?कारों के अनà¥?कूल बà¥?दà¥?धि बनाने में समरà¥?थ परमातà¥?मन! मेरे इस यजà¥?ञकरà¥?म का अनà¥?कूलता से अनà¥?मोदन कर अरà¥?थात यह यजà¥?ञनà¥?षà¥?ठान आप की कृपा से समà¥?पनà¥?न होता रहे।अथवा, पशà¥?चिम दिशा में जल सिञà¥?चन के सदृश मैं यजà¥?ञीय पवितà¥?र à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤“ं का पà¥?रचार-पà¥?रसार आपकी कृपा से कर सकूं, इस कारà¥?य में मेरी सहायता कीजिये।
इससे उत�तर में
ओम� सरस�वत�यन�मन�यस�व।।
मन�त�रार�थ-हे सर�वरक�षक प�रशस�त ज�ञानस�वरूप �वं ज�ञानदाता परमेश�वर! मेरे इस यज�ञकर�म का अन�मोदन कर अर�थात आप द�वारा प�रदत�त उत�तम ब�द�वि से मेरा यह यज�ञन�ष�ठान सम�यक विधि से सम�पन�न होता रहे।अथवा, उत�तर दिशा में जलसिञ�चन के सदृश मैं यज�ञीय ज�ञान का प�रचार-प�रसार आपकी कृपा से करता रहू�, इस कार�य में मेरी सहायता कीजिये।
और - इस मन�त�र से वेदी के चारों और जल छिड़कावें।
ओं देव सवितः पà¥?रसà¥?व यजà¥?ञं पà¥?रसà¥?व यजà¥?ञपतिं à¤à¤—ाय।दिवà¥?यो
गन�धर�वः केतपूः केतं नः प�नात� वाचस�पतिर�वाचं नः स�वदत�।।
मनà¥?तà¥?रारà¥?थ-- हे सरà¥?वरकà¥?षक दिवà¥?यगà¥?ण शकà¥?à¤