अग�निहोत�र विधि

दैनिक यज�ञ

||अथ अग�निहोत�रमंत�र:||

जल से आचमन करने के मंत�र

 

इससे पहला

� अमृतोपस�तरणमसि स�वाहा ।१।

 

इससे दूसरा

� अमृतापिधानमसि स�वाहा ।२।

 

इससे तीसरा

� सत�यं यश: श�रीर�मयि श�री: श�रयतां स�वाहा ।३।

 

मंतà¥?रारà¥?थ – हे सरà¥?वरकà¥?षक अमर परमेशà¥?वर! यह सà¥?खपà¥?रद जल पà¥?राणियों का आशà¥?रयभूत है, यह हमारा कथन शà¥?भ हो। यह मैं सतà¥?यनिषà¥?ठापूरà¥?वक मानकर कहता हूà¤? और सà¥?षà¥?ठूकà¥?रिया आचमन के सदृश आपको अपने अंत:करण में गà¥?रहण करता हूà¤?।।1।।

हे सर�वरक�षक अविनाशिस�वरूप, अजर परमेश�वर! आप हमारे आच�छादक वस�त�र के समान अर�थात सदा-सर�वदा सब और से रक�षक हों, यह सत�यवचन मैं सत�यनिष�ठापूर�वक मानकर कहता हू� और स�ष�ठूक�रिया आचमन के सदृश आपको अपने अंत:करण में ग�रहण करता हू�।।2।।

हे सर�वरक�षक ईश�वर सत�याचरण, यश �वं प�रतिष�ठा. विजयलक�ष�मी, शोभा धन-�श�वर�य म��मे स�थित हों, यह मैं सत�यनिष�ठापूर�वक प�रार�थना करता हू� और स�ष�ठूक�रिया आचमन के सदृश आपको अपने अंत:करण में ग�रहण करता हू�।।3।।

 

जल से अंग स�पर�श करने के मंत�र

 

इसका प�रयोजन है-शरीर के सभी महत�त�वपूर�ण अंगों में पवित�रता का समावेश तथा अंतः की चेतना को जगाना ताकि यज�ञ जैसा श�रेष�ठ कृत�य किया जा सके । बा�� हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की उ�गलियों को उनमें भिगोकर बता� ग� स�थान को मंत�रोच�चार के साथ स�पर�श करें ।

 

इस मंत�र से म�ख का स�पर�श करें

� वाङ�म आस�येऽस�त� ॥

 

इस मंत�र से नासिका के दोनों भाग

� नसोर�मे प�राणोऽस�त� ॥

 

इससे दोनों आ�खें

� अक�ष�णोर�मे चक�ष�रस�त� ॥

 

इससे दोनों कान

� कर�णयोर�मे श�रोत�रमस�त� ॥

 

इससे दोनों भ�जा�ं

� बाह�वोर�मे बलमस�त� ॥

 

इससे दोनों जंघा�ं

� ऊर�वोर�म ओजोऽस�त� ॥

 

इससे सारे शरीर पर जल का मार�जन करें

� अरिष�टानि मेऽङ�गानि तनूस�तन�वा में सह सन�त� ॥

 

मंतà¥?रारà¥?थ – हे रकà¥?षक परमेशà¥?वर! मैं आपसे पà¥?रारà¥?थना करता हूà¤? कि मेरे मà¥?ख में वाकà¥? इनà¥?दà¥?रिय पूरà¥?ण आयà¥?परà¥?यनà¥?त सà¥?वासà¥?थà¥?य à¤?वं सामरà¥?थà¥?य सहित विदà¥?यमान रहे।

हे रक�षक परमेश�वर! मेरे दोनों नासिका भागों में प�राणशक�ति पूर�ण आय�पर�यन�त स�वास�थ�य �वं सामर�थ�यसहित विद�यमान रहे।

हे रक�षक परमेश�वर! मेरे दोनों आखों में दृष�टिशक�ति पूर�ण आय�पर�यन�त स�वास�थ�य �वं सामर�थ�यसहित विद�यमान रहे।

हे रक�षक परमेश�वर! मेरे दोनों कानों में स�नने की शक�ति पूर�ण आय�पर�यन�त स�वास�थ�य �वं सामर�थ�यसहित विद�यमान रहे।

हे रक�षक परमेश�वर! मेरी भ�जाओं में पूर�ण आय�पर�यन�त बल विद�यमान रहे।

हे रक�षक परमेश�वर! मेरी जंघाओं में बल-पराक�रम सहित सामर�थ�य पूर�ण आय�पर�यन�त विद�यमान रहे।

हे रक�षक परमेश�वर! मेरा शरीर और अंग-प�रत�यंग रोग �वं दोष रहित बने रहें, ये अंग-प�रत�यंग मेरे शरीर के साथ सम�यक� प�रकार संय�क�त ह�� सामर�थ�य सहित विद�यमान रहें।

 

ईशà¥?वर की सà¥?तà¥?ति - पà¥?रारà¥?थना – उपासना के मंतà¥?र

 

� विश�वानी देव सवितर�द�रितानि परास�व ।
यद भद�रं तन�न आ स�व ॥१॥

 

मंतà¥?रारà¥?थ – हे सब सà¥?खों के दाता जà¥?ञान के पà¥?रकाशक सकल जगत के उतà¥?पतà¥?तिकरà¥?ता à¤?वं समगà¥?र à¤?शà¥?वरà¥?ययà¥?कà¥?त परमेशà¥?वर! आप हमारे समà¥?पूरà¥?ण दà¥?रà¥?गà¥?णों, दà¥?रà¥?वà¥?यसनों और दà¥?खों को दूर कर दीजिà¤?, और जो कलà¥?याणकारक गà¥?ण, करà¥?म, सà¥?वभाव, सà¥?ख और पदारà¥?थ हैं, उसको हमें भलीभांति पà¥?रापà¥?त कराइये।

 

हिरण�यगर�भ: समवर�त�तताग�रे भूतस�य जात: पतिरेक आसीत� ।
स दाघार पृथिवीं द�याम�तेमां कस�मै देवाय हविषा विधेम ॥२॥

 

मंतà¥?रारà¥?थ – सृषà¥?टि के उतà¥?पनà¥?न होने से पूरà¥?व और सृषà¥?टि रचना के आरमà¥?भ में सà¥?वपà¥?रकाशसà¥?वरूप और जिसने पà¥?रकाशयà¥?कà¥?त सूरà¥?य, चनà¥?दà¥?र, तारे, गà¥?रह-उपगà¥?रह आदि पदारà¥?थों को उतà¥?पनà¥?न करके अपने अनà¥?दर धारण कर रखा है, वह परमातà¥?मा समà¥?यकà¥? रूप से वरà¥?तमान था। वही उतà¥?पनà¥?न हà¥?à¤? समà¥?पूरà¥?ण जगत का पà¥?रसिदà¥?ध सà¥?वामी केवल अकेला à¤?क ही था। उसी परमातà¥?मा ने इस पृथà¥?वीलोक और दà¥?यà¥?लोक आदि को धारण किया हà¥?आ है, हम लोग उस सà¥?खसà¥?वरूप, सृषà¥?टिपालक, शà¥?दà¥?ध à¤?वं पà¥?रकाश-दिवà¥?य-सामरà¥?थà¥?य यà¥?कà¥?त परमातà¥?मा की पà¥?रापà¥?ति के लिये गà¥?रहण करने योगà¥?य योगाभà¥?यास व हवà¥?य पदारà¥?थों दà¥?वारा विशेष भकà¥?ति करते हैं।

 

य आत�मदा बलदा यस�य विश�व उपासते प�रशिषं यस�य देवा: ।
यस�य छायाऽमृतं यस�य मृत�य�: कस�मै देवाय हविषा विधेम ॥३॥

 

मंतà¥?रारà¥?थ – जो परमातà¥?मा आतà¥?मजà¥?ञान का दाता शारीरिक, आतà¥?मिक और सामाजिक बल का देने वाला है, जिसकी सब विदà¥?वान लोग उपासना करते हैं, जिसकी शासन, वà¥?यवसà¥?था, शिकà¥?षा को सभी मानते हैं, जिसका आशà¥?रय ही मोकà¥?षसà¥?खदायक है, और जिसको न मानना अरà¥?थात भकà¥?ति न करना मृतà¥?यà¥? आदि कषà¥?ट का हेतà¥? है, हम लोग उस सà¥?खसà¥?वरूप à¤?वं पà¥?रजापालक शà¥?दà¥?ध à¤?वं पà¥?रकाशसà¥?वरूप, दिवà¥?य सामरà¥?थà¥?य यà¥?कà¥?त परमातà¥?मा की पà¥?रापà¥?ति के लिये गà¥?रहण करने योगà¥?य योगाभà¥?यास व हवà¥?य पदारà¥?थों दà¥?वारा विशेष भकà¥?ति करते हैं।

 

य: प�राणतो निमिषतो महित�वैक इन�द�राजा जगतो बभूव।
य ईशे अस�य द�विपदश�चत�ष�पद: कस�मै देवाय हविषा विधेम ॥४॥

 

मंतà¥?रारà¥?थ – जो पà¥?राणधारी चेतन और अपà¥?राणधारी जड जगत का अपनी अनंत महिमा के कारण à¤?क अकेला ही सरà¥?वोपरी विराजमान राजा हà¥?आ है, जो इस दो पैरों वाले मनà¥?षà¥?य आदि और चार पैरों वाले पशà¥? आदि पà¥?राणियों की रचना करता है और उनका सरà¥?वोपरी सà¥?वामी है, हम लोग उस सà¥?खसà¥?वरूप à¤?वं पà¥?रजापालक शà¥?दà¥?ध à¤?वं पà¥?रकाशसà¥?वरूप, दिवà¥?यसामरà¥?थà¥?ययà¥?कà¥?त परमातà¥?मा की पà¥?रपà¥?ति के लिये योगाभà¥?यास à¤?वं हवà¥?य पदारà¥?थों दà¥?वारा विशेष भकà¥?ति करते हैं ।

 

येन द�यौर�ग�रा पृथिवी च द�रढा येन स�व: स�तभितं येन नाक: ।
यो अन�तरिक�षे रजसो विमान: कस�मै देवाय हविषा विधेम ॥५॥

 

मंतà¥?रारà¥?थ – जिस परमातà¥?मा ने तेजोमय दà¥?यà¥?लोक में सà¥?थित सूरà¥?य आदि को और पृथिवी को धारण कर रखा है, जिसने समसà¥?त सà¥?खों को धारण कर रखा है, जिसने मोकà¥?ष को धारण कर रखा है, जो अंतरिकà¥?ष में सà¥?थित समसà¥?त लोक-लोकानà¥?तरों आदि का विशेष नियम से निरà¥?माता धारणकरà¥?ता, वà¥?यवसà¥?थापक à¤?वं वà¥?यापà¥?तकरà¥?ता है, हम लोग उस शà¥?दà¥?ध à¤?वं पà¥?रकाशसà¥?वरूप, दिवà¥?यसामरà¥?थà¥?ययà¥?कà¥?त परमातà¥?मा की पà¥?रपà¥?ति के लिये गà¥?रहण करने योगà¥?य योगाभà¥?यास à¤?वं हवà¥?य पदारà¥?थों दà¥?वारा विशेष भकà¥?ति करते हैं ।

 

प�रजापते न त�वदेतान�यन�यो विश�वा जातानि परिता बभूव ।
यत�कामास�ते ज�ह�मस�तनो अस�त� वयं स�याम पतयो रयीणाम� ॥६॥

 

मंतà¥?रारà¥?थ – हे सब पà¥?रजाओं के पालक सà¥?वामी परमतà¥?मन! आपसे भिनà¥?न दूसरा कोई उन और इन अरà¥?थात दूर और पास सà¥?थित समसà¥?त उतà¥?पनà¥?न हà¥?à¤? जड-चेतन पदारà¥?थों को वशीभूत नहीं कर सकता, केवल आप ही इस जगत को वशीभूत रखने में समरà¥?थ हैं। जिस-जिस पदारà¥?थ की कामना वाले हम लोग अपकी योगाभà¥?यास, भकà¥?ति और हवà¥?यपदारà¥?थों से सà¥?तà¥?ति-पà¥?रारà¥?थना-उपासना करें उस-उस पदारà¥?थ की हमारी कामना सिदà¥?ध होवे, जिससे की हम उपासक लोग धन-à¤?शà¥?वरà¥?यों के सà¥?वामी होवें ।

 

स नो बन�ध�र�जनिता स विधाता धामानि वेद भ�वनानि विश�वा।
यत�र देवा अमृतमानशाना स�तृतीये घामन�नध�यैरयन�त ॥७॥

 

मंतà¥?रारà¥?थ – वह परमातà¥?मा हमारा भाई और समà¥?बनà¥?धी के समान सहायक है, सकल जगत का उतà¥?पादक है, वही सब कामों को पूरà¥?ण करने वाला है। वह समसà¥?त लोक-लोकानà¥?तरों को, सà¥?थान-सà¥?थान को जानता है। यह वही परमातà¥?मा है जिसके आशà¥?रय में योगीजन मोकà¥?ष को पà¥?रापà¥?त करते हà¥?à¤?, मोकà¥?षाननà¥?द का सेवन करते हà¥?à¤? तीसरे धाम अरà¥?थात परबà¥?रहà¥?म परमातà¥?मा के आशà¥?रय से पà¥?रापà¥?त मोकà¥?षाननà¥?द में सà¥?वेचà¥?छापूरà¥?वक विचरण करते हैं। उसी परमातà¥?मा की हम भकà¥?ति करते हैं।

 

अग�ने नय स�पथा राय अस�मान� विश�वानि देव वय�नानि विद�वान।
य�योध�यस�मज�ज�ह�राणमेनो भूयिष�ठां ते नम उक�तिं विधे�म ॥८॥

 

मंतà¥?रारà¥?थ – हे जà¥?ञानपà¥?रकाशसà¥?वरूप, सनà¥?मारà¥?गपà¥?रदरà¥?शक, दिवà¥?यसामरà¥?थयà¥?कà¥?त परमातà¥?मन! हमें जà¥?ञान-विजà¥?ञान, à¤?शà¥?वरà¥?य आदि की पà¥?रापà¥?ति कराने के लिये धरà¥?मयà¥?कà¥?त, कलà¥?याणकारी मारà¥?ग से ले चल। आप समसà¥?त जà¥?ञानों और करà¥?मों को जानने वाले हैं। हमसे कà¥?टिलतायà¥?कà¥?त पापरूप करà¥?म को दूर कीजिये । इस हेतà¥? से हम आपकी विविध पà¥?रकार की और अधिकाधिक सà¥?तà¥?ति-पà¥?रारà¥?थना-उपासना सतà¥?कार व नमà¥?रतापूरà¥?वक करते हैं।

 

दीपक जलाने का मंत�र

 

� भूर�भ�व: स�व: ॥

 

मंतà¥?रारà¥?थ – हे सरà¥?वरकà¥?षक परमेशà¥?वर! आप सब के उतà¥?पादक, पà¥?राणाधार सब दà¥?:खों को दूर करने वाले सà¥?खसà¥?वरूप à¤?वं सà¥?खदाता हैं। आपकी कृपा से मेरा यह अनà¥?षà¥?ठान सफल होवे। अथवा हे ईशà¥?वर आप सत,चितà¥?त, आननà¥?दसà¥?वरूप हैं। आपकी कृपा से यह यजà¥?ञीय अगà¥?नि पृथिवीलोक में, अनà¥?तरिकà¥?ष में, दà¥?यà¥?लोक में विसà¥?तीरà¥?ण होकर लोकोपकारक सिदà¥?ध होवे।

 

यज�ञ क�ण�ड में अग�नि स�थापित करने का मंत�र

 

� भूर�भ�व: स�वर�द�यौरिव भूम�ना पृथिवीव वरिम�णा ।
तस�यास�ते पृथिवि देवयजनि पृष�ठेऽग�निमन�नादमन�नाद�यायादधे ॥

 

मंतà¥?रारà¥?थ – हे सरà¥?वरकà¥?षक सबके उतà¥?पादक और पà¥?राणाधार दà¥?खविनाशक सà¥?खसà¥?वरूप à¤?वं सà¥?खपà¥?रदाता परमेशà¥?वर! आपकी कृपा से मैं महतà¥?ता या गरिमा में दà¥?यà¥?लोक के समान, शà¥?रेषà¥?ठता या विसà¥?तार में पृथिवी लोक के समान हो जाऊं । देवयजà¥?ञ की आधारभूमि पृथिवी! के तल पर हवà¥?य दà¥?रवà¥?यों का भकà¥?षण करने वाली यजà¥?ञीय अगà¥?नि को, भकà¥?षणीय अनà¥?न à¤?वं धरà¥?मानà¥?कूल भोगों की पà¥?रापà¥?ति के लिà¤? तथा भकà¥?षण सामरà¥?थà¥?य और भोग सामरà¥?थà¥?य पà¥?रापà¥?ति के लिà¤? यजà¥?ञकà¥?णà¥?ड में सà¥?थापित करता हूà¤? ।

 

अग�नि प�रदीप�त करने का मंत�र

 

� उद� ब�ध�यस�वाग�ने प�रतिजागृहित�व�मिष�टापूर�ते सं सृजेथामयं च ।
अस�मिन�त�सधस�थे अध�य�त�तरस�मिन� विश�वे देवा यजमानश�च सीदत ॥

 

मंतà¥?रारà¥?थ – मैं सरà¥?वरकà¥?षक परमेशà¥?वर का सà¥?मरण करता हà¥?अ यहाà¤? कामना करता हूà¤? कि हे यजà¥?ञागà¥?ने ! तू भलीभांति उदà¥?दीपà¥?त हो, और पà¥?रतà¥?येक समिधा को पà¥?रजà¥?वलित करती हà¥?ई परà¥?यापà¥?त जà¥?वालामयी हो जा। तू और यह यजमान इषà¥?ट और पूरà¥?तà¥?त करà¥?मों को मिलà¥?कर समà¥?पादित करें। इस अति उतà¥?कृषà¥?ट, भवà¥?य और अतà¥?यà¥?चà¥?च यजà¥?ञशाला में सब विदà¥?वान और यजà¥?ञकरà¥?तà¥?ता जन मिलकर बैठें।

 

घृत की तीन समिधायें रखने के मंत�र

 

इस मंत�र से प�रथम समिधा रखें।

à¥? अयनà¥?त इधà¥?म आतà¥?मा जातवेदसà¥?तेनेधà¥?यसà¥?व वरà¥?दà¥?धसà¥?व चेदà¥?ध वरà¥?धयचासà¥?मानà¥? पà¥?रजयापशà¥?भिरà¥?बà¥?रहà¥?मवरà¥?चसेनानà¥?नादà¥?येन à¤¸à¤®à¥‡à¤§à¤¯ सà¥?वाहा । इदमगà¥?नेय जातवेदसे – इदं न मम ॥१॥

 

मन�त�रार�थ- मैं सर�वरक�षक परमेश�वर का स�मरण करता ह�आ कामना करता हू� कि हे सब उत�पन�न पदार�थों के प�रकाशक अग�नि! यह समिधा तेरे जीवन का हेत� है ज�वलित रहने का आधार है।उस समिधा से तू प�रदीप�त हो, सबको प�रकाशित कर और सब को यज�ञीय लाभों से लाभान�वित कर, और हमें संतान से, पश� सम�पित�त से बढ़ा।ब�रह�मतेज ( विद�या, ब�रह�मचर�य �वं अध�यात�मिक तेज से, और अन�नादि धन-�श�वयर� तथा भक�षण �वं भोग- सामथ�यर� से समृद�ध कर। मैं त�यागभाव से यह समिधा- हवि प�रदान करना चाहता हू� | यह आह�ति जातवेदस संज�ञक अग�नि के लि� है, यह मेरी नही है ||1||

 

इन दो मन�त�रों से दूसरी समिधा रखें

ओं समिधाग�निं द�वस�यत घृतैर�बोधयतातिथम� |
आसà¥?मिन हवà¥?या जà¥?होतन सà¥?वाहा | à¤‡à¤¦à¤®à¤—à¥?नये इदनà¥?न मम ||२||

 

मन�त�रार�थ- मैं सर�वरक�षक परमेश�वर का स�मरण करते ह�� वेद के आदेश का कथन करता हू� कि हे मन�ष�यो! समिधा के द�वारा यज�ञाग�नि की सेवा करो -भक�ति से यज�ञ करो।घृताह�तियों से गतिशील �वं अतिथ के समान प�रथम सत�करणीय यज�ञाग�नि को प�रब�द�ध करो, इसमें हव�यों को भलीभांति अपिर�त करो।मैं त�यागभाव से यह समिधा- हवि प�रदान करना चाहता हू�। यह आह�ति यज�ञाग�नि के लि� है, यह मेरी नहीं है ||२||

 

स�समिद�धाय शोचिषे घृतं तीव�रं ज�होतन अग�नये जातवेदसे स�वाहा।
इदमग�नये जातवेदसे इदन�न मम ||३||

 

मन�त�रार�थ- मैं सर�वरक�षक परमेश�वर के स�मरणपूर�वक वेद के आदेश का कथन करता हू� कि हे मन�ष�यों! अच�छी प�रकार प�रदीप�त ज�वालाय�क�त जातवेदस� संज�ञक अग�नि के लि� वस�त�मात�र में व�याप�त �वं उनकी प�रकाशक अग�नि के लि� उत�कृष�ट घृत की आह�तिया� दो . मैं त�याग भाव से समिधा की आह�ति प�रदान करता हू� यह आह�ति जातवेदस� संज�ञक माध�यमिक अग�नि के लि� है यह मेरी नहीं।।३।। इस मन�त�र से तीसरी समिधा रखें।

 

तन�त�वा समिदि�भरङि�गरो घृतेन वर�द�धयामसि ।
बृहच�छोचा यविष�ठय स�वाहा।।इदमग�नेऽङिगरसे इदं न मम।।४।।

 

मन�त�रार�थ - मैं सर�वरक�षक परमेश�वर का स�मरण करते ह�� यह कथन करता हू� कि हे तीव�र प�रज�वलित यज�ञाग�नि! त��े हम समिधायों से और धृताह�तियों से बढ़ाते हैं।हे पदार�थों को मिलाने और पृथक करने की महान शक�ति से सम�पन�न अग�नि ! तू बह�त अधिक प�रदीप�त हो, मैं त�यागभाव से समिधा की आह�ति प�रदान करता हू� ।यह अंगिरस संज�ञक पृथिवीस�थ अग�नि के लि� है यह मेरी नहीं है।

 

नीचे लिखे मन�त�र से घृत की पांच आह�ति देवें

 

ओमà¥? अयं त इधà¥?म आतà¥?मा जातवेदसà¥?तेनेधà¥?यसà¥?व वदà¥?धरà¥?सà¥?व चेदà¥?ध वधरà¥?य चासà¥?मानà¥? पà¥?रजयापशà¥?भिबà¥?रहà¥?मवरà¥?चसेनानà¥?नादà¥?येन à¤¸à¤®à¥‡à¤§à¤¯ सà¥?वाहा।इदमगà¥?नये जातवेदसे - इदं न मम।।१।।

 

मन�त�रार�थ- मैं सर�वरक�षक परमेश�वर का स�मरण करता ह�आ कामना करता हू� कि हे सब उत�पन�न पदार�थों के प�रकाशक अग�नि! यह धृत जो जीवन का हेत� है ज�वलित रहने का आधार है।उस धृत से तू प�रदीप�त हो और ज�वालाओं से बढ़ तथा सबको प�रकाशित कर = सब को यज�ञीय लाभों से लाभान�वित कर और हमें संतान से, पश� सम�पित�त से बढ़ा। विद�या, ब�रह�मचर�य �वं आध�यात�मिक तेज से, और अन�नादि धन �श�वर�य तथा भक�षण �वं भोग सामर�थ�य से समृद�ध कर। मैं त�यागभाव से यह धृत प�रदान करता हू� ।यह आह�ति जातवेदस संज�ञक अग�नि के लि� है, यह मेरी नहीं है| ||१||

 

जल - प�रसेचन के मन�त�र

 

इस मन�त�र से पूर�व में

ओम� अदितेऽन�मन�यस�व।।

 

मन�त�रार�थ- हे सर�वरक�षक अखण�ड परमेश�वर! मेरे इस यज�ञकर�म का अन�मोदन कर अर�थात मेरा यह यज�ञान�ष�ठान अखिण�डत रूप से सम�पन�न होता रहे।अथवा, पूर�व दिशा में, जलसिञ�चन के सदृश, मैं यज�ञीय पवित�र भावनाओं का प�रचार प�रसार निबार�ध रूप से कर सकू�, इस कार�य में मेरी सहायता कीजिये।

 

इससे पश�चिम में

ओम� अन�मतेऽन�मन�यस�व।।

 

मन�त�रार�थ- हे सर�वरक�षक यज�ञीय �वं ईश�वरीय संस�कारों के अन�कूल ब�द�धि बनाने में समर�थ परमात�मन! मेरे इस यज�ञकर�म का अन�कूलता से अन�मोदन कर अर�थात यह यज�ञन�ष�ठान आप की कृपा से सम�पन�न होता रहे।अथवा, पश�चिम दिशा में जल सिञ�चन के सदृश मैं यज�ञीय पवित�र भावनाओं का प�रचार-प�रसार आपकी कृपा से कर सकूं, इस कार�य में मेरी सहायता कीजिये।

 

इससे उत�तर में

ओम� सरस�वत�यन�मन�यस�व।।

 

मन�त�रार�थ-हे सर�वरक�षक प�रशस�त ज�ञानस�वरूप �वं ज�ञानदाता परमेश�वर! मेरे इस यज�ञकर�म का अन�मोदन कर अर�थात आप द�वारा प�रदत�त उत�तम ब�द�वि से मेरा यह यज�ञन�ष�ठान सम�यक विधि से सम�पन�न होता रहे।अथवा, उत�तर दिशा में जलसिञ�चन के सदृश मैं यज�ञीय ज�ञान का प�रचार-प�रसार आपकी कृपा से करता रहू�, इस कार�य में मेरी सहायता कीजिये।

 

और - इस मन�त�र से वेदी के चारों और जल छिड़कावें।

ओं देव सवितः प�रस�व यज�ञं प�रस�व यज�ञपतिं भगाय।दिव�यो
गन�धर�वः केतपूः केतं नः प�नात� वाचस�पतिर�वाचं नः स�वदत�।।

 

मनà¥?तà¥?रारà¥?थ-- हे सरà¥?वरकà¥?षक दिवà¥?यगà¥?ण शकà¥?à¤