हिमालय की गोद हो, पर्वतों से घिरा शांति का वातवरण हो, स्वर्ग सी सुन्दरता हो और उसके मध्य में एक यज्ञशाला हो। जिसके चहूँओर यज्ञ करते छात्र छात्राएं हो। सुन्दर सा आर्य समाज मंदिर हो, स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का चित्र अंकित हो तथा वैदिक उधघोष हो। तो सोचिए ऐसी कल्पना जब धरा पर उतर रही हो तो महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के किस शिष्य का मन ख़ुशी से प्रफुल्लित नहीं होगा।

अब एक ऐसी कल्पना भारत के राज्य सिक्किम की धरा पर उतरने जा रही है, दिल्ली सभा एवं सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभाओं के पदाधिकारियों के अथक परिश्रम, महाशय धर्मपाल जी के आशीर्वाद और आर्य समाज के यशस्वी कार्यकर्ता नेता वर्तमान सिक्किम के महामहिम राज्यपाल गंगाप्रसाद जी से सहयोग से आर्य समाज के भवन का शिलान्यास हो गया है। पिछले दिनों सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग जी स्वयं गरिमामयी गंगाप्रसाद जी उपस्थिति में आर्य समाज के सेवा कार्यों के लिए आवंटित भूमि के कागजात दिल्ली सभा के महामंत्री विनय आर्य एवं अखिल भारतीय दयानन्द सेवाश्रम संघ के महामंत्री जोगिन्द्र खट्टर को सौंपे थे। अब आर्य समाज एक नई इबारत लिखते हुए सिक्किम में शिक्षा एवं सेवा का केंद्र स्थापित करने जा रहा है।  à¤‡à¤¸ केंद्र से न केवल सिक्किम की जनता को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा का लाभ मिलेगा बल्कि साथ ही साथ उच्च मापदंड वाली सेवाओं का लाभ भी मिल सकेगा।

सभी लोग भलीभांति जानते है पिछले कुछ वर्षों में बार आर्य समाज के कार्यकर्मों में मंचो से एक चिंता बार उठी है कि विदेशी मिशनरीज के कारण हम अपना पूर्वोत्तर भारत लगातार खोते जा रहे है। हालाँकि इस बीच इस चिंता से लड़ते, जूझते हुए पिछले कुछ वर्षों पूर्वोत्तर भारत में वैदिक संस्कृति की रक्षा हेतु अखिल भारतीय दयानन्द सेवाश्रम संघ एवं  आर्य समाज ने जिस तरीके से स्थानीय बच्चों के अन्दर राष्ट्रीयता का भाव जगाकर देश को एक सूत्र में जोड़ने का जो कार्य किया वह अपने आप में बेहद बड़ा कार्य रहा है।

असल में सिक्किम भारत के पूर्वोत्तर भाग में स्थित एक पर्वतीय राज्य है, हाथ के अंगूठे के आकार यह राज्य पश्चिम में नेपाल तथा दक्षिण-पूर्व में भूटान से और दक्षिण में पश्चिम बंगाल से लगा हुआ है। हिन्दी से लेकर अंग्रेजी, गोरखा नेपाली, भूटिया, लिंबू जैसी कई भाषाओँ का प्रयोग होता है। सामरिक एवं सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है। इस राज्य में बौद्ध नेपाली के अतिरिक्त मारवाड़ी समुदाय भी यहाँ रहता है। एक समय यह भाग आर्य संस्कृति का केन्द्र था और उत्तर-पश्चिमी भारत का सिरमौर कहलाता था।

धीरे-धीरे यहाँ बौद्ध मत पहुंचा लेकिन आज इस बौद्ध और हिन्दू मिश्रित सिक्किम राज्य में पिछले कुछ वर्षों में विदेशी मिशनरीज सक्रिय हुई और नेपाल और भूटान की तरह ही यहाँ के चाय बागानों में काम करने वाले गरीब मजदूरों का धर्मान्तरण शुरू कर दिया। जैसे आज मेघालय में 75 प्रतिशत, मिजोरम में 87 प्रतिशत, नागालैंड में 90 प्रतिशत आबादी ईसाई मत के मानने वालों की हो गयी है, इसी तरह धर्मांतरण के कारण सिक्किम में भी 8 प्रतिशत के करीब राज्य की आबादी पहुँच चुकी है।

आर्य समाज ने हमेशा से भारतीय धराधाम से जुड़े मत सम्प्रदायों का सम्मान किया, वैदिक संस्कृति एवं शिक्षा के साथ-साथ समाज सेवा के क्षेत्र में बिना किसी भेदभाव के अपने कदम आगे बढ़ाये, लोगों को जागरूक किया और उन लोगों के मध्य पहुंचा जो अपने सांस्कृतिक और धार्मिक अस्तित्व से दूर किये जा रहे है। ये कोई छिपा रहस्य नहीं है कि पूर्वोत्तर भारत सहित लगभग अभी आदिवासी क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियाँ तेजी से धर्मांतरण कर रही हैं। इन आदिवासियों के बच्चों को शिक्षा देने के नाम पर मिशनरी स्कूलों में बच्चों का धर्मान्तरण किया जा रहा है। इस छद्म धर्मांतरण से लड़ने का एक ही उपाय है कि इन क्षेत्रों में शिक्षा और अपनी भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार किया जाये। आर्य समाज ने इस चुनौती को स्वीकार किया और तेजी से इन क्षेत्रों में अपना कार्य बढ़ा रहा है। आर्य समाज चाहता है कि दूर दराज गाँवो और पहाड़ों में रहने वाले नागरिक भी सामान्य भारतीयों की तरह आधुनिक जीवन शैली तथा उपलब्ध सुविधाओं का उपभोग करें। इसी कारण अब सिक्किम की राजधानी गंगटोक में शिक्षा एवं सेवा का केंद्र स्थापित करने जा रहा है। जिसमें विद्यालय छात्रावास आर्य समाज मंदिर ध्यान केंद्र, और यज्ञशाला के निर्माण कर राज्य को प्रतिभावान नागरिक सोंपे जा सके।

दुखद यह है कि जिस विराट वैदिक संस्कृति और धर्म पास राम और कृष्ण जैसे महापुरुष रहे हो आज उस जाति को बहकाया जा रहा है प्रलोभन दिया जा रहा है, कारण हमने इन महापुरुषों को मूर्तियों के कैद कर इनके विचारों को भुला दिया। हमने आजादी के बाद भी सही ढंग से होश नहीं सम्हाला और वनवासियों, आदिवासियों को शूद्र, अछूत समझकर उनका निरादर किया जिसका लाभ मत-मतान्तरों ने उठाया। किन्तु सुखद यह है कि आर्य समाज ने इस पीड़ा को समझा और परिणाम आज पूर्वोत्तर भारत में वैदिक नाद हो रहा है, इस कड़ी में सिक्किम का जुड़ना अपने आप में आर्य कार्यकर्ताओं की मेहनत और अथक परिश्रम का परिणाम है कि एक बार पुन: हजारों वर्ष बाद सिक्किम की भूमि पर वैदिक मन्त्रों का पाठ होगा। असम नागालेंड त्रिपुरा समेत कई राज्यों के बाद अब आर्य समाज ने हिमालय की गोद में बसे सिक्किम राज्य में स्वामी दयानन्द जी के सपनों की पताका फहरा दी जाएगी।

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