अगर जयश्री आसिफा होती तो शोर मच जाता पर अब खामोशी है क्योंकि उसका नाम जयश्री है. जयश्री का मामला फिल्मी जगत, पत्रकारिता और राजनीति से जुड़े लोगों की कमीज पर आरोपों की बौछारें छोड़ रहा है। महज मीटू अभियान में कई लोगों को इस्तीफा देना पड़ता हिया और कुछ को सोशल मीडिया ट्रायल का सामना करना पड़ा किन्तु आज जयश्री के मामले में सिर्फ जाँच के नाम पर लीपापोती काम जारी है।

मासूमियत और दरिंदगी कैसी दिखती हैं जयश्री की दोनों फोटो बताने के लिए काफी है। मैंने एक तस्वीर में उस बच्ची की मासूमियत देखी और दूसरा में क्षत-विक्षत शव देखा जिसमें उसे राजनितिक कीड़ों ने खाया है।

14 साल की जयश्री तमिलनाडू के विल्लुपुरम जिले से थी। घर पर अकेली थी उसी समय उसके घर सत्ताधारी (एआईएडीएमके) ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम पार्टी के दो सदस्य आये और जयश्री के हाथ, पैर बांधकर और उसके मुंह में कपडा ठूसकर उसे आग के हवाले कर दिया। बंधे मुंह से वो बच्ची चीख भी नहीं सकी होगी। 95 फीसदी जली जयश्री की चीखें उसके मौत के साथ उसके अन्दर घुटकर रह गयी और अब आरोपी शान से कह रहे है कि उसके पिता जयपाल के साथ उसकी पुरानी दुश्मनी होने के कारण उन्होंने ऐसा किया।

तमिलनाडु में हुए जघन्य अपराध को राजनितिक दुश्मनी बताया जा रहा है, लेकिन इससे पहले भी वहां ऐसा हो चूका है। जयललिता वाली पार्टी एआईएडीएमके के सदस्यों द्वारा छात्रा को जिंदा जलाने का यह दूसरा मामला है। इससे पहले साल 2000 में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम के सदस्यों द्वारा धर्मपुरी में एक बस में आग लगा दी गई थी, जिसमें तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले तीन छात्राएं जिंदा जल गई थीं।

कुछ समय पहले की घटना है हैदराबाद में एक पशु चिकित्सक डॉ प्रियंका रेड्डी के साथ ऐसा हैवानियत भरा अपराध हुआ था हालाँकि वह राजनीती से प्रेरित नहीं था लेकिन हुआ तो था जिसके कुछ दिन बाद ही सभी हत्यारे पुलिस मुठभेड़ में मार गिराए गये थे। तब देश भर में हैदराबाद एनकाउंटर पर खुशी मनाई गयी थी। इस जश्न में आम देशवासियों के साथ देश भर के विभिन्न दलों के नेता शामिल हुए थे। सबने मिलकर इसे प्रियंका के साथ हुए अन्याय पर न्याय करार दिया था। इस एनकाउंटर से एक बात साबित हुई थी कि अब जनता का सत्ता और कानून से विश्वास उठ गया है और वह फटाफट न्याय से खुश थी और ऐसे हर एक अपराध के लिए ऐसे ही न्याय चाहती है।

लेकिन आज ऐसा कुछ नहीं है मासूम जयश्री की दर्द प्रियंका से कम नहीं है, लेकिन आज राजनीती मौन है। जिस तरह जयश्री को अपने पिता की राजनितिक दुश्मनी की कीमत उसे चुकानी पड़ी उसके लिए ऐसे न्याय की मांग नहीं सुनाई दे रही है।

क्या कारण है जब देश की जनता ने सड़क पर न्याय चाहने का मन बना ही लिया है तो फिर नेता और राजनितिक दल क्या देखने.? सिर्फ न्याय की मांग करें? लेकिन ऐसा नहीं होता और लोग राजनितिक दलों के बीच फंस जाते है क्योंकि लोग राजनितिक दलों में बंटे हुए है शायद यही कारण है कि विभिन्न प्रताड़ना की शिकार हुईं महिलाओं को न्याय दिलाने में जनता इतनी उग्र नहीं होती जितनी सामाजिक स्तर पर हुए अन्याय में होती है। जबकि विभिन्न राजनीतिक दलों में भूखे भेड़ियें बैठे हैं, उनके खिलाफ सड़कों पर उतरकर जनता कभी मोर्चा नहीं खोलती. दामिनी निर्भया के चार दोषियों को सजा देने से अपराध समाप्त नहीं होगा।

आज जनता को समझने की जरूरत है कि महिलाओं के साथ अपराध के सबसे अधिक मामले राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं पर हैं। जमीनी हकीकत यह है कि महिलाओं के साथ होने वाले अधिकतर अपराधों में या तो राजनीतिक दलों से जुड़े नेता सीधे सक्रिय होते हैं या फिर उनसे संपर्क रखने वाला व्यक्ति इस तरह का अपराध करता है।

पिछले कुछ समय में ही देख लीजिये उन्नाव के विधायक कुलदीप सेंगर ने एक नाबालिग लड़की के साथ रेप और उसके पूरे परिवार के साथ जो जुल्म ढाए वह सब राजनितिक दुश्मनी का ही परिणाम था। लेकिन फिर भी बहुत बड़ी संख्या में लोग बैनर लिए खड़े थे कि हमारा विधायक निर्दोष है।

हालाँकि आज कुलदीप सेंगर जेल में अपने किये की सजा भुगत रहा है लेकिन बड़ी संख्या में राजनितिक दलों से जुड़े अपराधी खुलें घूम रहे है। देश के 48 सांसद और विधायकों पर महिलाओं के होने वाले अपराध के केस दर्ज हैं।

यही नही एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट जारी की थी रिपोर्ट के मुताबिक देश के 33 फीसदी यानी 1580 सांसद-विधायक ऐसे हैं, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से 48 महिलाओं के खिलाफ अपराध के आरोपी हैं, जिनमें 45 विधायक और तीन सांसद हैं। इन जनप्रतिनिधियों पर महिला उत्पीड़न, अगवा करने, शादी के लिए दबाव डालने, बलात्कार, घरेलू हिंसा और मानव तस्करी जैसे अपराध दर्ज हैं।

ऐसा भी नहीं है कि यह रिपोर्ट विभिन्न थानों से एकत्र की गई है. यह रिपोर्ट देश के कुल 4845 जनप्रतिनिधियों के चुनावी एफिडेविट के विश्लेषण पर आधारित है। इसमें कुल 776 सांसदों में से 768 सांसद और 4120 विधायकों में से 4077 विधायकों के हलफनामे हैं।

अब अगर राज्यवार देखें तो महाराष्ट्र के सबसे ज्यादा 12 सांसद और विधायक आरोपी हैं. इसके बाद पश्चिम बंगाल के 11, ओडिशा और आंध्र प्रदेश के पांच-पांच जनप्रतिनिधि महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में शामिल हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पांच साल में रेप के आरोपी 28 नेताओं को विभिन्न दलों ने टिकट दिये हैं।

रेप के आरोपी 14 नेताओं ने निर्दलीय लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा के चुनाव लड़े. वहीं पिछले पांच साल में महिलाओं के साथ होने वाले अपराध के दागी 327 को टिकट मिला और 118 ऐसे नेताओं ने निर्दलीय चुनाव लड़ा। गत पांच साल में महिलाओं के खिलाफ अपराध के आरोपी 47 नेताओं को भाजपा ने और 35 को बसपा ने टिकट दिया है. कांग्रेस ने 24 को टिकट दिया है।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि जो राजनीतिक दल हैदराबाद एनकाउंटर पर खुश हो रहे थे या फिर जनता की सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहे थे। क्या वे अपने ही पार्टी के रेप हत्या के आरोपी नेताओं का एनकाउंटर कराने का दम रखते हैं. जवाब न ही आएगा।

पॉवर और रुतबा लेकर बैठे प्रभावशाली लोगों के खिलाफ जब तक इस तरह का अभियान नहीं छेड़ा जाएगा। प्रभावशाली और रुतबे वाले अपराधियों का एनकाउंटर नहीं होगा तब तक इस तरह के मामले नहीं रुकने वाले हैं। महिलाओं के साथ अपराध करने वाले नेता हर दल में मौजूद हैं. वह बात दूसरी है कि ये लोग समय देखकर मेढक की तरह अपना रंग बदल लेते हैं।

यदि वास्तव में समाज की गंदगी दूर करनी है तो ऊपर से करनी होगी जो प्रभावशाली लोग अपनी पॉवर और रुतबे का इस्तेमाल करके बहू बेटियों की इज्जत से खिलवाड़ करते हैं, उनके खिलाफ मोर्चा खोलने की जरूरत है। राजनीतिक ही नहीं किसी सरकारी या निजी कार्यालय का भी सर्वे कर लिया जाए तो वहां से ही सब माजरा समझ में आ जाएगा। लेकिन राजनितिक और सरकारी अपराधी बच जाते है और जयश्री जैसी मासूम बच्चियां इतिहास बन जाती है।

 

 

 

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