आजकल हमारे देश के बहत से लोग नाना दिवसों पर वरत व उपवास आदि रखते और आशा करते हैं कि उससे उनको लाभ होगा। महरषि  दयाननद चारों वेदों व समपूरण वैदिक व अवैदिक गरनथों के अपूरव विदवान थे। उनहोंने समाधि अवसथा में ईशवर का साकषातकार भी किया था और अपने विवेक से वरत-उपवासों वं इसी परकार के अनय करमकाणडों की असलियत को जाना था। सतय व असतय का जञान कराने के लि उनहोंने वरत व उपवास का उललेख सवलिखित गरनथ सतयारथ परकाश के कादशसमललास में किया है। लोग को इन वरतों व उपवासों का सतय सवरूप विदित कराने के लि हम महरषि की कछ पंकतियों का उललेख कर रहे हैं।

महरषि दयाननद ने क परशन परसतत किया है कि गरडपराणादि जो गरनथ हैं, कया यह वेदारथ वा वेद की पषटि करने वाले हैं या नहीं? इसका उततर देते ह वह कहते हैं कि नहीं, किनत वेद के विरोधी और उलटे चलते हैं तथा तनतर गरनथ भी वैसे ही हैं। जैसे कोई मनषय किसी क का मितर और सब संसार का शतर हो, वैसा ही पराण और तनतर गरनथों को मानने वाला परूष होता है कयोंकि क दूसरे से विरोध कराने वाले ये गरनथ हैं। इनका मानना किसी विदवान का काम नहीं किनत इन को मानना अविदवता-अजञान-अनधविशवास है। वह लिखते हैं कि देखो ! शिवपराण में तरयोदशी, सोमवार, आदितयपराण में रवि, चनदरखणड में सोमगरह वाले मंगल, बध, बृहसपति, शकर, शनैशचर, राह, केत के वैषणव कादशी, वामन की दवादशी, नृसिंह वा अननत की चतरदशी, चनदरमा की पौरणमासी, दिकपालों की दशमी, दरगा की नौमी, वसओं की अषटमी, मनियों की सपतमी, कारतिक सवामी की षषठी, नाग की पंचमी, गणेश की चतरथी, गौरी की तृतीया, अशविनीकमार की दवितीया, आदयादेवी की परतिपदा और पितरों की अमावसया पराण रीति से ये दिन उपवास करने के हैं। और सरवतर यही लिखा है कि जो मनषय इन वार और तिथियों में अनन, पान गरहण करेगा वह नरकगामी होगा।

अब पोप और पोप जी के चेलों को चाहिये कि किसी वार अथवा किसी तिथि में भोजन न करें कयोंकि जो भोजन वा पान किया तो नरकगामी होंगे। अब निरणयसिनध’, ‘धरमसिनध’, ‘वरतारक आदि गरनथ जो कि परमादी लोगों के बनाये हैं, उनहीं में क-क वरत की सी दरदशा की है कि जैसे कादशी को शैव, दशमी, विदधा, कोई दवादशी में कादशी वरत करते हैं अरथात कया बड़ी विचितर पोपलीला है कि भूखे मरने में भी वाद विवाद ही करते हैं। जो कादशी का वरत चलाया है उस में उनका अपना सवारथपन ही है और दया कछ भी नहीं। वे कहते हैं-कादशयामनने पापानि वसनति।। जितने पाप हैं वे सब कादशी के दिन अनन में वसते हैं। इसके लिखने वाले पोप जी से पूछना चाहिये कि किस के पाप उस में बसते हैं? तेरे वा तेरे पिता आदि के? जो सब के पाप कादशी में जा बसें तो कादशी के दिन किसी को दःख न रहना चाहिये। सा तो नहीं होता किनत उलटा कषधा आदि से दःख होता है। दःख पाप का फल है। इससे भूखे मरना पाप है। इस का बड़ा माहातमय बनाया है जिस की कथा बांच के बहत ठगे जाते हैं। उस में क गाथा है कि—

 

 

बरहमलोक में क वेशया थी। उस ने कछ अपराध किया। उस को शाप हआ कि तू पृथिवी पर गिर। उस ने सतति की कि मैं पनः सवरग में कयोंकर आ सकूंगी? उसने कहा जब कभी कादशी के वरत का फल ते कोई देगा तभी तू सवरग में आ जायेगी। वह विमान सहित किसी नगर में गिर पड़ी। वहां के राजा ने उस से पूछा कि तू कौन है। तब उस ने सब वृतानत कह सनाया और कहा कि जो कोई मे कादशी का फल अरपण करे तो फिर भी सवरग को जा सकती हूं। राजा ने नगर में खोज कराया। कोई भी कादशी का वरत करने वाला न मिला। किनत क दिन किसी मूरख सतरी परूष में लडाई हई थी। करोध से सतरी दिन रात भूखी रही थी। दैवयोग से उस दिन कादशी ही थी। उस ने कहा कि मैंने कादशी जानकर तो नहीं की, अकसमात उस दिन भूखी रह गई थी। से राजा के भृतयों से कहा। तब तो वे उस को राजा के सामने ले आये। उस से राजा ने कहा कि तू इस विमान को छू। उसने छूआ तो उसी समय विमान ऊपर को उड़ गया। यह तो विना जाने कादशी के वरत का फल है। जो जान कर करे तो उस के फल का कया पारावार है!!।

 

 

इस पर टिपपणी कर महरषि दयाननद ने लिखा है--वाह रे आंख के अनधे लोगों ! जे यह बात सचची हो तो हम क पान का बीड़ा जो कि सवरग में नहीं होता, भेजना चाहते हैं। सब कादशी वाले अपना-अपना फल हमें दे दो। जो क पान का बीड़ा ऊपर को चला जायेगा तो पनः लाखों करोड़ों पान वहां भेजेंगे और हम भी कादशी किया करेंगे और जो सा न होगा तो तम लोगों को इस भूखे मरने रूप आपतकाल से बचावेंगे।

इन चौबीस कादशियों के नाम पृथक-पृथक रकखे हैं। किसी का धनदा किसी का कामदा किसी का पतरदा किसी का निरजला। बहत से दरिदर बहत से कामी और बहत से निरवंशी लोग कादशी करके बूढ़े हो गये और मर भी गये परनत धन, कामना, और पतर परापत न हआ और जयेषठ महीने के शकलपकष में कि जिस समय क घड़ी भर जल न पावे तो मनषय वयाकल हो जाता, वरत करने वालों को महादःख परापत होता है। विशेष कर बंगाल में सब विधवा सतरियों को कादशी के दिन बड़ी दरदशा होती है। इस निरदयी कसाई को लिखते समय कछ भी मन में दया न आई, नहीं तो निरजला का नाम सजला और पौष महीने की शकलपकष की कादशी का नाम निरजला रख देता तो भी कछ अचछा होता। परनत इस पोप को दया से कया काम? कोई जीवो वा मरो पोप जी का पेट पूरा भरो।महरषि दयाननद आगे लिखते हैं कि गरभवती वा सदयोविवाहिता सतरी, लड़के वा यवापरूषों को तो कभी उपवास न करना चाहिये। परनत किसी को करना भी हो तो जिस दिन अजीरण हो, कषधा न लगे, उस दिन शरकरावत (शरबत) वा दूध पीकर रहना चाहिये। जो भूख में नहीं खाते और विना भूख के भोजन करते हैं वे दोनों रोगसागर में गोते खाते व दःख पाते हैं। इन परमादियों के कहने लिखने का परमाण कोई भी न करे।

महरषि दयाननद ने अपने उपरयकत शबदों में कादशी सहित सभी वरतों का वासतविक सवरूप लिख कर भोली भाली धरमपारायण जनता का अपूरव हित किया है। हम आशा करते हैं कि वरत व उपवास आदि रखने वाले सभी धरमपरेमी महरषि दयाननद के शबदों पर निषपकष होकर विचार करेंगे जिससे उनको इसका लाभ परापत हो सके। महरषि दयाननद ने सतय के गरहण करने और असतय को छोड़ने को अपने जीवन का उददेशय बनाया था, उसी का परिणाम उनके यह विचार और उनका सतयासतय विषयों का गरनथ सतयारथ परकाश है। वेदों में ईशवर की आजञा भी यही है कि सभी मनषय सतय को सवीकार करें और असतय का तयाग करें। आजकल अनेक चैनलोà¤

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