देहरादून 8 अकतूबर। वैदिक साधन आशरम तपोवन, देहरादून के पांच दिवसीय शरदतसव के आज दूसरे दिन का कारयकरम समपनन हआ।  योग वं धयान साधना शिविर परातः 5:00 बजे से आरमभ हआ जिसके निरदेशक सवामी दिवयाननद सरसवती थे। परातः 6:30 बजे से अथरववेद पारायण यजञ आरमभ हआ जिसके मखय यजमान आशरम के परधान शरी दरशन कमार अगनिहोतरी तथा यजञ के बरहमा सवामी दिवयाननद सरसवती थे। मखय यजञशाला सहित अनय तीन वृहद यजञकणडों में भी यजञ समपनन हआ और अनेक यजमानों वं धरमपरेमी शरदधालओं ने यजञ में घृत व साकलय की शरदधा व भकति के साथ आहतियां दी। यजञ की समापती पर आरय भजनोपदेशक पंडित रूहेल सिंह आरय का क भजन हआ जिसके शबद थे मेरे मयूर मन के आननद धन तमही हो, आराधय देव तमहीं हो शोभा व यश तमही हो। भजन की समापती पर आगरा से पधारे आरय विदवान आचारय उमेश चनदर कलशरेषठ जी का यजञ के महतव पर परवचन हआ। उनहोंने कहा कि देव यजञ, अगनिहोतर को कहते हंै। देवताओं का यजञ होने से इसे देवयजञ भी कहते है। यजञ करके हम देवताओं का ऋण चकता कर सकते हैं। उनहोंने यजञोपवीत की चरचा कर कहा कि यजञोपवीत के तीन धागे सभी मनषयों पर करमश ऋषि, देव और पितृ ऋण का संकेत करते हैं जिनहें हमें अपने जीवन में चकाना है। इस देव यजञ के अतिरिकत कोई सा कारय नहीं है जिससे कि देवताओं का ऋण चकाया जा सके। 

शरी उमेश चनदर कलशरेषठ जी ने दान करने वाले क सेठ का दृषटानत परसतत कर बताया कि यह सेठ अपने जीवन में बहत दान करता था और सोचता था कि इससे उसकी मकति हो जायेगी वा सवरग मिलेगा। जब वह मरा तो उसने यमराज को कहा कि उसने अपने जीवन में बहत दान किया है इसलिये उसे मकति दी जाये। यमाचारयं के यहां क देवता खड़े ह और उनहोंने यमाचारय से पूछा कि कया कोई ऋणी वयकति सवरग जा सकता है? यम ने उततर दिया कि ऋणी वयकति को मोकष वा सवरग परापत नहीं हो सकता। सेठ जी ने देवता से उनके और उनके ऋण के बारे में पूछा? देवता ने कहा कि मेरा नाम वाय हूं। उसने सेठजी से पूछा कि तम पृथिवी लोक पर शदध वाय का सेवन करते थे या नहीं? आपने हमेशा मल-मूतर व अनय निजी कारयों को करके वाय को परदूषित तो किया परनत उसे सवचछ करने का कभी कोई परयास नहीं किया। यदि वाय को शदध करने का कोई काम किया तो बताओ कि कया काम किया? यमाचारय ने सेठ को कहा कि तम वाय के ऋणी हो, इसलि तमहें मृतयलोक में जाकर वाय का ऋण चकाना पड़ेगा। यमाचारय ने सेठ जी को पृथिवीलोक भेजकर सरप योनि में अजगर बना दिया। विदवान वकता ने बताया कि यह सांप बिचछू आदि पराणी विषैली गैसे पीते हैं। वाय को शदध करने में इन विषधारी पराणियों का बहत योगदान है। उनहोंने कहा कि परमपिता की सृषटि इस परकार की बनी हई है कि वह सबकी रकषा कर रहा है। सरप योनि में मृतय होने पर सेठ जी पनः यमाचारय के सममख उपसथित ह। इस बार यमाचारय के यहां जल देवता खड़े हो गये और बोले कि इसने सारा जीवन जल को अशदध किया परनत शदध करने का कोई काम नहीं किया। इस पर सजा के रूप में यमाचारय ने उनहें जल शदध करने हेत कछआ बना दिया। विदवान वकता ने कहा कि ईशवर की सृषटि में कछआ वं मछली आदि जलीय पराणी जल को शदध करते हैं। इस कछ की योनि से छूट कर यमाचारय के पास पहंचें तो पृथिवी देवता खड़े हो गये कि इसने पृथिवी व वनसपतियों का भकषण किया परनत उनका ऋण नहीं चकाया।

शरी उमेश चनदर कलशरेषठ जी ने कहा कि पृथिवी व वनसपतियां हमारे पराणों की रकषा करती हैं। हमें इनसे शदध व पवितर भोजन मिलता है। इनके परति भी हमारा करतवय है। इनहें हमें शदध व पवितर रखना है। यही इनकी पूजा है। इस परकार से सेठ जी क योनि से दूसरी योनि में भरमण करते जा रहे या भटक रहे थे। सौभागय से क योनि में सेठ जी की क दयाल महातमा से भेंट हो गयी। उसने सेठ के पूरव जनमों को जानकर कहा कि सेठ जी आप तो बहत दान करते थे, आपकी यह दरदशा कैसे हई? सेठ जी ने अपना हाल बताया। इस पर महातमा जी ने कहा कि इस योनि से जब आप छूटे तो यमराज से परारथना करें कि वह आपको क बार मनषय योनि में भेज दे। महातमा जी ने कहा कि यदि आपको मनषय मिल जाये तो तम मनषय योनि में क काम, दैनिक यजञ अवशय करना। यह यजञ ही सा कारय है जो सभी देवताओं के ऋण को चकता कर देता है। महातमा जी ने भी सेठ जी को बताया कि ऋणी वयकति मकति या सवरग का अधिकारी नहीं होता। ऋषि ऋण, देव ऋण तथा पितृ ऋण, इन तीन ऋणों से जीवातमायें मनषय योनि में ही मकत हो सकती हैं। यदि कोई मनषय या आप 100 कमबल बांटते हैं तो इससे किसी देवता का ऋण नहीं चकता है। से अनेकों परकार के दान करने से कोई पतर पितृ ऋण से किंचित उ़ऋण नहीं हो सकता। इसके लि तो अनिवारयतः माता-पिता की सेवा करनी ही होगी। इसी परकार के जड़ देवताओं के ऋणों से तभी उऋण हो सकेंगे जब दैनिक यजञ करेंगे। इसी परकार ऋषि ऋण से भी तभी उऋण होंगे जब अपना समसत जञान अगली पीढ़ी को पूरा पूरा व कछ बढ़ा कर सहरष सौपेंगे। विदवान वकता ने कहा कि यदि आपको क वेद मनतर ही आता है तो उसे ही दूसरों को दीजि। यदि आपने परापत समसत जञान को दूसरों को नहीं सौंपा तो आप मर कर भी ऋणी रहेंगे और इसके लि नया जनम लेकर आपको ऋण चकाना होगा। आपने ऋषि ऋण की विसतार से चरचा कर बताया कि इस परमपरा के कारण लगभग 2 अरब वरष बीत जाने पर भी वेदों का जञान पूरणरूपेण सरकषित है। उनहोंने कहा कि अतीत में भारत में अनेक विदयाओं के जानकार वयकति रहे हैं जिनका उललेख पराचीन गरनथेां में मिलता है। उनहोंने अपनी अजञानता व सवारथवश वह जञान दूसरों को नहीं दिया जिससे कि वह नषट हो गया। शरी उमेश चनदर कलशरेषठ जी ने कहा कि देवयजञ, पितृयजञ और ऋषियजञ का अपना महतव है। दान का भी अपना महतव है जिसकी चरचा उनहोंने अपने अनय परवचन करने की बात कही। समय पूरा हो जाने के कारण उनहोंने अपने वयकतवय को विराम दिया।

आज परातः 10:00 बजे से वैदिक साधन आशरम तपोवन दवारा संचालित तपोवन विदया निकेतन जूनियर हाई सकूल का वारषिक महोतसव भी समपनन हआ। इस आयोजन में ल के जी से ककषा 8 तक की छातर छातराओं ने अपनी अनेकानेक परसततियां दी जिससे दरशक व शरोता भाव विभोर हो गये। बचचों ने अपनी परसततियों के लि कड़ी मेहनत व अभयास किया था जिस कारण किसी भी छातर-छातरा की परसतति में कोई कमी दृषटिगोचर नहीं हई। जो मखय कारयकरम परसतत ह वह करमशः दीप परजजवलन, सरसवती वनदना, अतिथियों के परति सवागत गीत, सलामी मारच, लगभग 2 वरष की तीन ननही छातराओं दवारा गायतरी मनतर पाठ, नरसरी ककषा की ननही छातराओं दवारा हिनदी-अंगरेजी में कविता पाठ, ककषा 6 से 8 के छातर-छातराओं दवारा दादी-पोते-पोतियों के पातरों के दवारा ‘भगवान को कयों व कैसे माने?’ नाटक की मनमोहन व जञानवरधक परसतति, विखयात गीतकार व गायक वयोवृदध पं. सतयापाल पथिक का बचचों को पररेणादायक उदबोधन, सामूहिक नृतय, सामूहिक देश भकति गीत, महाभारत के यकष-परशनों पर आधारित अंगरेजी संवादों से यकत नाटक, डा. वीरपाल विदयालंकार का बचचों को जीवन निरमाण हेत मारगदरशन, महरषि दयाननद को समरपित क सामूहिक भजन, योगासनों का सजीव परसततिकरण, सामूहिक गीत, गढ़वाली लोक नृतय, वैदिक विदवान शरी उमेश चनदर कलशरेषठ जी का बचचों को परेरणादायक उदबोधन आदि सममिलित है। अनय अनेक कारयकरम भी ह। बचचों को मखय अतिथि शरी जगमोहन लाल, चेयरमैन, विदयत निगम दवारा नकद परसकार भी परदान किये गये। कारयकरम बहत मनमोहन व सफल रहा।

तपोवन आशरम के उतसव में देश के अनेक भागों से बड़ी संखया में धरम व यजञ परेमी लोग पधारे ह हैं। सभी अतिथियों के भोजन व आवास की वयवसथा आशरम की ओर से की गई हैं। वैदिक साहितय के विकरेता भी आशरम में साहितय परदान कर रहे हैं। आशरम के परधान शरी दरशन कमार अगनिहोतरी तथा मंतरी इं परेमपरकाश शरमा ने सभी आगनतकों का धनयवाद किया। आज का कारयकरम पूरण सफल रहा।

 

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