सूकà¥à¤·à¥à¤® ईशà¥à¤µà¤° सà¥à¤¥à¥‚ल न होने के कारण आंखों से दिखाई नहीं देता
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Manmohan Kumar AryaDate
21-Feb-2016Language
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UmeshUpload Date
22-Feb-2016Download PDF
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संसार के अधिकांश लोग ईशà¥à¤µà¤° के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ रखते हैं और बहà¥à¤¤ से à¤à¤¸à¥‡ à¤à¥€ है जो ईशà¥à¤·à¥à¤µà¤° के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ में विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ नहीं रखते। आंखों से दिखाई न देने के कारण वह ईशà¥à¤µà¤° की सतà¥à¤¤à¤¾ से इनकार कर देते हैं। इन à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ को यह नहीं पता की सूकà¥à¤·à¥à¤® पदारà¥à¤¥ आंखों से देखे नहीं जा सकते। कà¥à¤¯à¤¾ हम वायॠऔर जल के à¤à¤• अणॠवा इसके दो ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ हाइडà¥à¤°à¥‹à¤œà¤¨ व आकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ के परमाणà¥à¤“ं को देख पाते हैं? कोई à¤à¥€ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• आंखों से न दिखने वाले परमाणà¥à¤“ं सहित वायॠव अनà¥à¤¯ सूकà¥à¤·à¥à¤® पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ से इनकार नहीं करता। यदि वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• आंखों से न दिखने वाले अनेक पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ को मान सकते हैं तो फिर ईशà¥à¤µà¤° पर ही यह शरà¥à¤¤ लगाना हमें अलà¥à¤ª बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ वालों का ही कारà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है। हमने किसी अजà¥à¤žà¤¾à¤¤ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को à¤à¤• पतà¥à¤° लिखा और डाक से à¤à¥‡à¤œ दिया। पतà¥à¤° पाने वाला हमें देख नहीं रहा है। हमें जानता à¤à¥€ नहीं है। परनà¥à¤¤à¥ वह पतà¥à¤° को पढ़कर हमें हमारे पते पर उसका उतà¥à¤¤à¤° à¤à¥‡à¤œ देता है। उसे पतà¥à¤° देखकर ही हमारी सतà¥à¤¤à¤¾ का विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ हो जाता है। हमने पतà¥à¤° à¤à¥‡à¤œà¤¨à¥‡ वाले को नहीं देखा और न उसने हमें देखा परनà¥à¤¤à¥ à¤à¤• दूसरे की सतà¥à¤¤à¤¾ को दोनों सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करते हà¥à¤ आपस में पतà¥à¤°à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करते हैं। यहां हमारा पतà¥à¤° व उसमें लिखी बातें ही हमारे असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ के होने का पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है। इसे लकà¥à¤·à¤£ पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ कह सकते हैं। पतà¥à¤° लकà¥à¤·à¤£ है हमारे विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ होने का। यदि हम न होते तो पतà¥à¤° à¤à¥‡à¤œà¤¾ ही नहीं जा सकता था। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° संसार में à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ की रचना को देखकर इसके रचयिता का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· होता है। सूरà¥à¤¯ को देखकर इसको बनाने व धारण करने वाले का, इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से पृथिवी, पृथिवी पर विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ सà¤à¥€ पदारà¥à¤¥ और समसà¥à¤¤ जड़ व जंगम जगत à¤à¤• ईशà¥à¤µà¤° के होने का पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है। सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€, अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€, मूरà¥à¤–, हठी, दà¥à¤°à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹à¥€ व अविदà¥à¤¯à¤¾ से गà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ लोग दूसरे मनà¥à¤·à¥à¤¯ के सतà¥à¤¯ को à¤à¥€ असतà¥à¤¯ ही ठहराते हैं और अपने असतà¥à¤¯ को सतà¥à¤¯ मान कर वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करते व दूसरों को à¤à¥à¤°à¤®à¤¿à¤¤ कर उसमें फंसाने का काम करते हैं। यही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ हमें ईशà¥à¤µà¤° को न मानने वालों में से अधिकांश शिकà¥à¤·à¤¿à¤¤ लोगों की लगती है। उनके पास विवेक की कमी है और वह सब मिथà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° के शिकार हैं।
आईये, विचार करते हैं कि यदि ईशà¥à¤µà¤° न होता तो कà¥à¤¯à¤¾ हमारे इस दृशà¥à¤¯ संसार का असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ होता? हम व वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• जानते हैं कि यह संसार जड़ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के परमाणà¥à¤“ं से मिलकर बना है। à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ के सूकà¥à¤·à¥à¤® परमाणॠमिलकर सूकà¥à¤·à¥à¤® अणॠबनाते हैं और उन अणà¥à¤“ं की घनीà¤à¥‚त अवसà¥à¤¥à¤¾ यह दृशà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥ होते हैं। अब पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ यह है कि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के उपादान कारण इन परमाणà¥à¤“ं और उन परमाणà¥à¤“ं से अणà¥à¤“ं को किसने बनाया? किसको पता था कि इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में मनà¥à¤·à¥à¤¯ व अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ जनà¥à¤® लेंगे, वह जल, वायà¥, अनà¥à¤¨, दूध, फल, मेवे आदि का सेवन कर जीवित रहेंगे, इसलिये उनके लिठआवशà¥à¤¯à¤• सà¤à¥€ पदारà¥à¤¥ बनाने होंगे। यह सोचने व योजना बनाने का काम जड़ पदारà¥à¤¥ कदापि नहीं कर सकते। यह कारà¥à¤¯ केवल चेतन पदारà¥à¤¥ वा सतà¥à¤¤à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ही समà¥à¤à¤µ होता है। ‘‘जà¥à¤žà¤¾à¤¨” जड़ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का गà¥à¤£ नहीं है। जड़ता और चेतन गà¥à¤£ परसà¥à¤ªà¤° विरोधी होते हैं। दोनों à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पदारà¥à¤¥ है। यह à¤à¤• दूसरे से नहीं बनते अपितॠजड़ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का कारण सतà¥à¤µ, रज व तम गà¥à¤£à¥‹à¤‚ वाली सूकà¥à¤·à¥à¤® पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ है। चेतन पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ में आने वाले जीवातà¥à¤®à¤¾ और ईशà¥à¤µà¤° अनादि, अजनà¥à¤®à¤¾ व नितà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥ हैं। ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾ चेतन पदारà¥à¤¥ होने के कारण ही इनमें जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है। ईशà¥à¤µà¤° अनादि, सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž, सरà¥à¤µà¤¶à¤¤à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨, निराकार, सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• और सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प है। अनादि होने से उसने à¤à¤• बार नहीं, सौ व हजार बार नहीं अपितॠअननà¥à¤¤ बार इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को बनाया व धारण कर संचालन किया है। यदि वह न बनाता तो यह हमारी सृषà¥à¤Ÿà¤¿ न बनती। पà¥à¤°à¤²à¤¯ अवसà¥à¤¥à¤¾ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® रातà¥à¤°à¤¿ में में ईशà¥à¤µà¤° इस समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को 4.32 अरब वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक नहीं बनाता है तो यह नहीं बनती। परमाणà¥à¤“ं की पूरà¥à¤µ अवसà¥à¤¥à¤¾ सतà¥à¤µ, रज व तम अवसà¥à¤¥à¤¾ में यह पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ सूरà¥à¤¯ न होने के कारण घोर अनà¥à¤§à¤•à¤¾à¤° में रहती है। उसके बाद ईशà¥à¤µà¤° इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को बनाता है तो बन जाती है। अब बनाई है तो इसकी आयॠ4.32 अरब वरà¥à¤· पूरà¥à¤£ होने पर यह पà¥à¤°à¤²à¤¯ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होगी। पà¥à¤°à¤²à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ का समय पूरा होने पर ईशà¥à¤µà¤° इसे अपनी शाशà¥à¤µà¤¤ व सनातन सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ वा पà¥à¤°à¤œà¤¾ जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं के लिठपà¥à¤¨à¤ƒ बनायेगा। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° उसने इससे पूरà¥à¤µ à¤à¥€ à¤à¤¸à¥€ ही सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को अननà¥à¤¤ बार बनाया है। यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ चकà¥à¤° इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से चलता आ रहा है। इसमें शंका व à¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ व अविदà¥à¤¯à¤¾ से गà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ लोगों को होती है। इस दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से हमारे जो वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• इस वैदिक सतà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ को नहीं मानते उनके बार में à¤à¥€ यह मानना पड़ता है कि वह इस विषय में, अनà¥à¤¯ विषयों में नहीं, अविदà¥à¤¯à¤¾ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ मिथà¥à¤¯à¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से गà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ हैं। अतः यह विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ है कि कोई à¤à¥€ रचना तà¤à¥€ होती है जब कोई चेतन सतà¥à¤¤à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° व मनà¥à¤·à¥à¤¯ उसकी रचना करे। यदि वह नहीं करेंगे तो पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨à¤µà¤¾à¤¨ रचना का असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ समà¥à¤à¤µ नहीं है। अपने आप बिना करà¥à¤¤à¤¾ व रचयिता के कोई पदारà¥à¤¥ कदापि नहीं बनता है। इसको अधिक विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से जानने के लिठवेद व दरà¥à¤¶à¤¨ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤ƒ सांखà¥à¤¯, वैशेषिक, योग, नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ आदि को देखना व पढ़ना चाहिये। इससे सà¤à¥€ à¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ दूर हो जाती हैं।
वेद और वैदिक धरà¥à¤® को छोड़कर सà¤à¥€ मत-मतानà¥à¤¤à¤°-समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯-धरà¥à¤® विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ शूनà¥à¤¯ हैं। यूरोप के जिन देशों में हमारे सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤, वहां के धरà¥à¤® व मतों में विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के विपरीत अनà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ पाये जाते थे। इस कारण उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने धरà¥à¤® को विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¹à¥€à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ का विरोधी मान लिया और आज तक मानते आ रहे हैं जबकि वेदों में यह बात नहीं है। वेद कहते ही जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को हैं और वेद पूरà¥à¤£ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ समà¥à¤®à¤¤ हैं। हमारा अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ और विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ है कि यदि यूरोप के सà¤à¥€ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ à¤à¤¾à¤°à¤¤ में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होते, वेद और वेदिक साहितà¥à¤¯ को पढ़ते तो वह à¤à¤• सà¥à¤µà¤° से ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾ के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ को अवशà¥à¤¯ सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करते। यदि आज à¤à¥€ संसार के सà¤à¥€ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• वेदों व वैदिक साहितà¥à¤¯ का सतà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥‚प जान लें तो वह अवशà¥à¤¯ ही ईशà¥à¤µà¤° व जीवातà¥à¤®à¤¾ विषयक à¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से मà¥à¤•à¥à¤¤ हो सकते हैं।
ईशà¥à¤µà¤° दिखाई नहीं देता, इसका à¤à¤• कारण यह à¤à¥€ है कि ईशà¥à¤µà¤° हमसे बहà¥à¤¤ दूर, अतिदूर है और निकट से निरटतम à¤à¥€ है। सूरà¥à¤¯ पृथिवी से 13 लाख गà¥à¤£à¤¾ बड़ा बताया जाता है परनà¥à¤¤à¥ आकाश में यह à¤à¤• गेद या फà¥à¤Ÿà¤¬à¤¾à¤² के समान दिखाई देता है। इसका कारण पृथिवी और सूरà¥à¤¯ के बीच की दूरी संबंधी विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के नियम हैं। ईशà¥à¤µà¤° सूरà¥à¤¯ में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• होने से विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है व उससे à¤à¥€ कहीं अधिक दूर होने से à¤à¥€ आंखों से दिखाई नहीं देता। हमारी आंख में यदि कोई तिनका पड़ जाये तो à¤à¥€ वह अति निकट होने के कारण दिखाई नहीं देता। उसे आंख से निकाल कर हाथ पर रखकर देख सकते हैं। अतः आंखों में à¤à¥€ समाये होने के कारण ईशà¥à¤µà¤° हमें दिखाई नहीं देता। आंखों के अनà¥à¤§à¥‡ हमारे à¤à¤¾à¤ˆà¤¯à¥‹à¤‚ को à¤à¥€ संसार की सà¤à¥€ वसà¥à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤‚ होने पर à¤à¥€ दिखाई नहीं देती। दिखाई देने के लिठआंखों का निरà¥à¤µà¤¿à¤•à¤¾à¤° होना à¤à¥€ आवशà¥à¤¯à¤• है। अतः यदि अनà¥à¤§à¤¾ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ यह कहे कि मà¥à¤à¥‡ संसार दिखाई नहीं देता, अतः यह है ही नहीं, à¤à¤¸à¤¾ ही तरà¥à¤• उन लोगों का है जो कहते हैं कि ईशà¥à¤µà¤° दिखाई न देने से नहीं है। फिर ईशà¥à¤µà¤° का अनà¥à¤à¤µ व जà¥à¤žà¤¾à¤¨ कैसे हो? ईशà¥à¤µà¤° का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ किस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° हो इसके लिठहिनà¥à¤¦à¥€, अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€, उरà¥à¤¦à¥‚ आदि अनेक à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ व विदेशी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में उपलबà¥à¤§ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ को पढ़कर जाना व अनà¥à¤à¤µ किया जा सकता है। योगदरà¥à¤¶à¤¨ जीवातà¥à¤®à¤¾ को परमातà¥à¤®à¤¾ वा ईशà¥à¤µà¤° के साथ जोड़ने की विदà¥à¤¯à¤¾ का गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है। इसे पढ़कर, समठकर व अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ कर ईशà¥à¤µà¤° का पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· किया जा सकता है। वेदों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर ईशà¥à¤µà¤° के गà¥à¤£, करà¥à¤® व सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ को जानकर उसे आंखे बनà¥à¤¦ कर अपनी आतà¥à¤®à¤¾ में खोजने पर वह ईशà¥à¤µà¤° की कृपा होने पर यथासमय साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥ जाना जा सकता है। इसे ईशà¥à¤µà¤°-साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° कहा जाता है। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ व अनेक योगियों ने ईशà¥à¤µà¤° का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° किया था। आज à¤à¥€ देश में ईशà¥à¤µà¤° साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° किये हà¥à¤ योगी हो सकते हैं। ईशà¥à¤µà¤° साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° के साधक तो हजारों व लाखों में है जिनके अपने-अपने आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• अनà¥à¤à¤µ होते हैं। पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤•à¤¾à¤² में हमारे सà¤à¥€ ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿ ईशà¥à¤µà¤° का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° किये हà¥à¤ होते थे जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आपà¥à¤¤ पà¥à¤°à¥‚ष कहा जाता था। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने सनà¥à¤§à¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤¨à¤¾ की विधि लिखी है। इसे पढ़कर व समà¤à¤•à¤° साधनाà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ करने से à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤° को जाना व पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· किया जा सकता है। ईशà¥à¤µà¤° का वेद वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ सà¥à¤µà¤°à¥‚प लिखकर हम इस लेख को विराम देते हैं। वेदों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ईशà¥à¤µà¤° कि जिसके बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®, परमातà¥à¤®à¤¾à¤¦à¤¿ नाम हैं, जो सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦à¤¾à¤¦à¤¿ लकà¥à¤·à¤£à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ है, जिसके गà¥à¤£, करà¥à¤®, सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ पवितà¥à¤° हैं, जो सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž, निराकार, सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, अजनà¥à¤®à¤¾, अननà¥à¤¤, सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤®à¤¿à¤¾à¤¨à¥, दयालà¥, नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥€, सब सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का करà¥à¤¤à¤¾, धरà¥à¤¤à¤¾, हरà¥à¤¤à¤¾, सब जीवों को करà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° सतà¥à¤¯ नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ से फलदाता आदि लकà¥à¤·à¤£à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ है, उसी को परमेशà¥à¤µà¤° कहते हैं। ईशà¥à¤µà¤° के इसी सà¥à¤µà¤°à¥‚प को सà¤à¥€ धारà¥à¤®à¤¿à¤• बनà¥à¤§à¥à¤“ं को मानना चाहिये। इससे à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ सà¥à¤µà¤°à¥‚प को मानने वाले लोग वसà¥à¤¤à¥à¤¤ मिथà¥à¤¯à¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से गà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ हैं। सतà¥à¤¯ को गà¥à¤°à¤¹à¤£ करना और असतà¥à¤¯ का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करना मनà¥à¤·à¥à¤¯ का मà¥à¤–à¥à¤¯ धरà¥à¤® है। जो à¤à¤¸à¤¾ नहीं करता वह धारà¥à¤®à¤¿à¤• नहीं पाखणà¥à¤¡à¥€ ही कहा जा सकता है।
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