हरिद्वार के अर्धकुम्भ व आर्यसमाज के स्थापना दिवस 10 अप्रैल के अवसर आज यहां आर्यसमाज की भव्य व विशाल शोभायात्रा एवं नगर  कीर्तन में भाग लेने का अवसर मिला। कुछ कारणों से हमारी बस विलम्ब से पहुंची अतः हम शोभायात्रा आरम्भ होने के कुछ समय बाद ही उसमें सम्मिलित हो सके। इस समय शोभायात्रा गंगा के तट व एक पुल पर है जहां एक कार के ऊपर बैठे हुए श्री सत्यव्रत सामवेदी जी महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज विषयक कुछ तथ्यों को सामने खड़ी आर्यजनता को बता रहे हैं। इनसे पूर्व सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई दिल्ली के यशस्वी मंत्री श्री विट्ठलराव जी ने आर्यों को सम्बोधित किया। हमनें आर्य भाईयों से उनके सम्बोधन के बारे में पूछा तो सभी ने उनके सम्बोधन को तथ्यपूर्ण एवं अति प्रभावशाली बताया। सामवेदी जी के बाद सार्वदेशिक सभा के प्रधान यशस्वी स्वामी आर्यवेश जी का सम्बोधन वहीं सड़क पर शोभायात्रा को रोककर हुआ। स्वामीजी ने कहा कि गंगा में स्नान करने से गंगा के श्रद्धालुओं के पाप कटने वाले नहीं है। बुराईयों को छोड़े बिना कोई मनुष्य पाप से मुक्त नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि यहां आये हुए भाई बहिनों में देहरादून से भी बड़ी संख्या में लोग आयें हैं जिनमें गुरुकुल पौंधा के ब्रह्मचारी और द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की छात्रायें व उनकी विदुषी आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी भी हैं। आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तराखण्ड के प्रधान माननीय श्री गोविन्द सिंह भण्डारी जी वागेश्वर से अपने साथियों के साथ आयें हैं जिनमें कुमाऊं व निकटवर्ती पर्वतीय स्थानों के अनेक भाई व बहिनें भी हैं। आज की शोभायात्रा में 15 प्रदेशों की आर्य प्रतिनिधि सभाओं के अनेक सभासद व सार्वदेशिक सभा के प्रतिनिधि व गणमान्य व्यक्ति भी इस भव्य शोभायात्रा के साक्षी बने हैं। स्वामी आर्यवेश जी ने बताया कि हमारे सामने के चण्डी मन्दिर में स्वामी दयानन्द जी ने तप किया था। इसी स्थान पर स्वामी दयानन्द जी ने पाखण्ड खण्डिनी पताका फहराकर दुनियां के पाखण्डों  व अन्य मत-मतान्तरों को चुनौती दी थी। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानन्द जी व उनके कार्यों से प्रेरणा लेकर ही हम यहां अर्धकुम्भ के अवसर पर वेद प्रचार का शिविर चला रहे। स्वामी आर्यवेश जी ने इस विशाल एवं व्ययसाध्य कार्य में आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तराखण्ड के प्रधान गोविन्द सिंह भण्डारी के सहयोग की सराहना की। स्वामीजी का व्याख्यान पूरा होने पर उन्होंने लोगों में जोश भरने के लिए अनेक नारे लगाये जिनमें से कुछ थे, ‘‘कन्या भू्रण हत्या मिटायेंगे, जातिवाद मिटायेंगे, आर्य राष्ट्र बनायेंगे, पाखण्डवाद मिटायेंगे, वैदिक धर्म फैलायेंगे, गोहत्या बन्द करो, बन्द करो और पाखण्डवाद मिटाने को ऋषि दयानन्द आये थे। इन जयघोषों व नारों को लोगों ने इतने उत्साह से लगाया कि हम भी अपने आप को रोक न सके और हमने भी अपनी पूरी शक्ति से इन नारों में भाग लिया। शोभा यात्रा अनेक मार्गों से होती हुए व ऋषि का जयघोष करती हुई शिविर में पहुंची जहां स्वामी आर्यवेश जी ने अपने संक्षिप्त विचार रखे। आर्यजनता को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हम व हमारे अनेक साथी यहां विपरीत  परिस्थितियों में विगत लगभग 1 माह से तप कर रहे हैं। भीषण गर्मी, आंधी व अनेक विपरीत स्थितियों को यहां हमारे साथियों ने सहन किया है। स्वामीजी ने कहा कि यह हमारे शिविर का स्थान ऐसा हैं जहां महर्षि दयानन्द के जीवन की घटनाओं, आत्मा व परमात्मा का चिन्तन करने पर ध्यान लगता है। यहां विगत दिनों चारों वेदों के सभी मन्त्रों से यज्ञ सम्पन्न हुआ है। स्वामी जी ने कहा कि यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी चन्द्रवेश जी ने यहां की भूमि व वातावरण को वेदों की ऋचाओं से गुंजा दिया है। स्वामी आर्यवेश जी ने जयघोष लगाया तो भावविभोर लोगों ने वैदिक धर्म की जय की ध्वनि अपनी पूरी शक्ति से की जिससे सभा मण्डप का वातवारण ऋषि भक्ति के रंग में रंग गया। स्वामी जी ने आर्यसमाज सागर मध्यप्रदेश का परिचय देते हुए बताया कि सागर ऐतिहासिक नगर है और वहां एक शानदार आर्यसमाज है। वहां से 6-7 लोग हरिद्वार में सार्वदेशिक सभा की बैठक व शोभा यात्रा में भाग लेने पधारे हैं। उन्होंने अर्धकुम्भ-मेले पर की गई व्यवस्था में सहयोग के रूप में ग्यारह हजार रूपयों की धनराशि स्वामी आर्यवेश जी को प्रदान की। अन्य कुछ लोगों ने भी अपनी-अपनी ओर से सहयोग राशियां प्रदान की जिनका परिचय स्वामी आर्यवेश जी ने श्रद्धालुओं को कराया।

आर्य विद्वान पं. सत्यव्रत सामवेदी ने शोभायात्रा के मध्य एक वाहन की छत पर बैठकर अपने प्रवचन में योगेश्वर श्री कृष्ण की चर्चा करते हुए कहा कि वह गोपाल थे। गोपाल गाय का पालन करने वाले को कहते है। अतः योगेश्वर श्री कृष्ण जी गोपालन करते थे। हमें उनसे प्रेरणा लेकर गोपालन करना चाहिये। श्री सामवेदी जी ने कहा कि ईश्वर यज्ञमय है, इसलिए हमें व आप को भी यज्ञ बनना है। उन्होंने कहा कि यदि हम सब यज्ञ करेंगे तो देश में सूखा नही पड़ेगा, भुखमरी नहीं होगी व किसान आत्म हत्या नहीं करेंगे। गोरक्षा से किसान समृद्ध होगा। अनेक राज्यों में शराब बन्दी की भी उन्होंने चर्चा की और सारे देश में शराबबन्दी किए जाने की मांग की। श्री सामवेदी जी ने श्री गुरुचरण छागला जी की चर्चा कर बताया कि उन्होंने शराब बन्दी के लिए आमरण अनशन किया और अपने प्राण दिये। आपने कहा कि आज देश में बहुत सारे समुदाय हैं परन्तु यहां आर्यसमाज का एक ओ३म् का ही झण्डा चहुंओर फहरा रहा है जो पाखण्ड खण्डन व ऋषि की दिग्विजय का सूचक है। उन्होंने कहा कि जब तक हमारे आर्यसमाज जीवित है, हमारे देश का भविष्य उज्जवल है। अपने विचारों को विराम देने से पूर्व उन्होंने कहा कि हमारा सफर तब तक चलेगा जब तक कि हम पूरे विश्व को आर्य नहीं बना लेंगे।

देश विदेश में आर्यसमाज के प्रचारक आर्य विद्वान श्री धर्मपाल शास्त्री जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि जिस प्रकार के विचारों व ज्ञान की आवश्यकता आज देश व समाज को है, उस प्रकार के विचारों को आप यहां हरिद्वार के अर्धकुम्भ के शिविर के अवसर पर प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम महर्षि दयानन्द जी के अनुयायी है। आप इतिहास पर दृष्टि डालिये। विश्व में अनेक महापुरुष हुए हैं। उन्होंने अनेक अच्छे कार्य किए हैं। यदि उन सभी महापुरुषों की तुलना स्वामी दयानन्द जी से करेंगे तो पायेंगे की ऋषि दयानन्द जी का स्थान बहुत ऊंचा है। उनके विचार सभी विषयों पर बहुत ऊंचे हैं और साथ हि मानव जाति के लिए कल्याणकारक भी हैं। ऋषि दयानन्द के विचारों का अध्ययन करने पर यह तथ्य भी सामने आता है कि उनके विचार विज्ञान पर आधारित हैं। उनके विचारों में विज्ञान विरोधी कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा कि विश्व के विद्वानों ने महर्षि दयानन्द के वेद विषयक विचारों पर अपनी सम्मति दी है जो कि अतीव महत्वपूर्ण व प्रशंसा से युक्त है। आचार्य धर्मपाल शास्त्री ने योगी अरविन्द के विचारों को प्रस्तुत किया। अरविन्द जी ने कहा है कि ऋषि दयानन्द को वेदों के समझने की कुंजी प्राप्त थी। वेद के परिप्रेक्ष्य में महर्षि दयानन्द को उन्होंने पर्वतों की सबसे ऊंची चोटी की उपमा देकर गौरवान्वित किया है। श्री धर्मपाल शास्त्री ने कहा कि बुद्ध, महावीर, ईसा, मुहम्मद, राम व कृष्ण के भक्तों ने अपने इन गुरुओं की मट्टी पलीद की। ऋषि दयानन्द ने इन महापुरुषों को कीचड़ से निकाला और यह सब पतित पावन बने। श्री धर्मपाल शास्त्री जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द तो सर्वत्र पावन ही पावन थे। महर्षि दयानन्द एक ऐसे अनोखे ऋषि थे जिन्होंने अपनी पूजा नहीं चलाई और देश की भलाई के लिए अपनी राख को भी किसी किसान के खेत में खाद के रूप में उपयोग करने की बात कही थी। श्री धर्मपाल शास्त्री ने कहा कि आज लोग हमारा स्वागत, सम्मान व सत्कार करते हैं परन्तु हमारे ऋषि का स्वागत व सम्मान तो लोग पत्थर, धूल, तलवार व विष देकर करते थे। विद्वान वक्ता ने कहा कि हम जो अच्छे विचार व उपदेश सुनें उनका मनन करें व उसे अपने जीवन में आत्मसात करें। उन्होंने कहा कि संसार की सभी समस्यायें मत, पन्थ व सम्प्रदायों की देन हैं। शराब और गोहत्या की चर्चा कर इन शराब व गोमांसाहार के व्यस्नों को उन्होंने हानिकारक व निन्दनीय बताया। महर्षि दयानन्द जी द्वारा बनाये गये आर्यसमाज के शारीरिक, सामाजिक व आत्मिक उन्नति के नियम व इससे होने वाले लाभों की चर्चा भी उन्होंने की और अपने वक्तव्य को विराम देते हुए कहा कि महर्षि दयानन्द ने वेदप्रचार करने के लिए आर्यसमाज रूपी वृक्ष लगाया था। श्री धर्मपाल आर्य जी का व्याख्यान आरम्भ होने से पूर्व आर्य प्रतिनिधि सभा, आन्ध प्रदेश की ओर से शाल ओढ़ाकर उनका सम्मान भी किया गया।

द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल देहरादून की विदुषी आचार्या डा. अन्नपूर्णा ने अपने व्याख्यान का आरम्भ ओ३म् ऋतं च सत्यं चाभीद्धात तपसोऽध्यजायत मन्त्र से किया। उन्होंने कहा कि हम सब हरिद्वार में वेद प्रचï

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