सृषà¥à¤Ÿà¤¿ उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ विषयक वैदिक सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ और महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦â€™
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Manmohan Kumar AryaDate
05-May-2016Category
विविधLanguage
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UmeshUpload Date
05-May-2016Download PDF
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सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ के विषय में महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल के बाद उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ मत-मतानà¥à¤¤à¤°à¥‹à¤‚ के साहितà¥à¤¯ में अनेक पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की अवैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• व अविशà¥à¤µà¤¨à¥€à¤¯ विचार पायें जाते हैं। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ इन सबमें अपवाद हैं। उनके जीवन में शिवरातà¥à¤°à¤¿ को घटी चूहे की घटना बताती है कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡à¤‚ किशोरावसà¥à¤¥à¤¾ में ही जीवन की सà¤à¥€ बातों को तरà¥à¤• व यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ के आधार पर सिदà¥à¤§ होने पर ही सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करने का मन बना लिया था। यही कारण था कि वइ ईशà¥à¤µà¤°, जीव, पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ व सृषà¥à¤Ÿà¤¿ विषयक सतà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की खोज में अनेक वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ व अनà¥à¤¸à¤‚धान आदि करते रहे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ विषयक अपने विचार मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤ƒ सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ के आठवें समà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ में वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ किये हैं जिनका आधार वेद, दरà¥à¤¶à¤¨ व उपनिषद आदि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ हैं। हमनें à¤à¥€ महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ के इस विषय के विचारों का अनेक बार पाठव मनन किया है और हमारा विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ है कि आने वाले समय में विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ इन विचारों को पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर लेगा जिसका कारण वेदों का ईशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ होने से निरà¥à¤à¥à¤°à¤¾à¤‚त होना व वैदिक साहितà¥à¤¯ अलà¥à¤ªà¤œà¥à¤ž वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ से à¤à¥€ कहीं अधिक उचà¥à¤š जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के उचà¥à¤š कोटि के चिनà¥à¤¤à¤• मनीषी ऋषियों की देन है।
सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ 12/129/7 मनà¥à¤¤à¥à¤° के आधार पर महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ कहते हैं कि यह विविध सृषà¥à¤Ÿà¤¿ इस जगत के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ ईशà¥à¤µà¤° से पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ हà¥à¤ˆ है। वह इस जगतॠका धारण व पà¥à¤°à¤²à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ है। इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को बनाने वाला ईशà¥à¤µà¤° इस जगत में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• है। उसी से यह सब जगत उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿, सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ व पà¥à¤°à¤²à¤¯ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ आतà¥à¤®à¤¾ को उस परमातà¥à¤®à¤¾ को जानना चाहिये और उसके सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर किसी अनà¥à¤¯ को सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ नहीं मानना चाहिये। ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ के मनà¥à¤¤à¥à¤° 10/29/3 में बताया गया है कि जगत की रचना से पूरà¥à¤µ सब जगतॠअनà¥à¤§à¤•à¤¾à¤° से आवृत, रातà¥à¤°à¤¿à¤°à¥‚प में जानने के अयोगà¥à¤¯, आकाशरूप तथा तà¥à¤šà¥à¤› अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ अननà¥à¤¤ परमेशà¥à¤µà¤° के समà¥à¤®à¥à¤– à¤à¤•à¤¦à¥‡à¤¶à¥€ आचà¥à¤›à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ था। पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ परमेशà¥à¤µà¤° ने अपने सामरà¥à¤¥à¥à¤¯ से इस कारणरूप जगतॠको कारà¥à¤¯à¤°à¥‚प कर दिया अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ बना दिया। ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ के मनà¥à¤¤à¥à¤° 10/129/1 में कहा गया है कि सब सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ तेजसà¥à¤µà¥€ पदारà¥à¤¥à¥‹ का आधार और जो यह जगतॠहà¥à¤† है और होगा उस का à¤à¤• अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ पति परमातà¥à¤®à¤¾ इस जगतॠकी उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ के पूरà¥à¤µ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ था और जिस ने पृथिवी से लेके सूरà¥à¤¯à¤ªà¤°à¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ जगतॠको उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किया है, हे मनà¥à¤·à¥à¤¯ ! उस परमातà¥à¤® देव की पà¥à¤°à¥‡à¤® से à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ किया करें। यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ के मनà¥à¤¤à¥à¤° 31/2 में ईशà¥à¤µà¤° ने बताया है कि जो ईशà¥à¤µà¤° सब सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤—त पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ में पूरà¥à¤£ पà¥à¤°à¥à¤· है, जो नाशरहित कारण जड़ पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ और जीव का सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ है तथा जो पृथिवà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ जड़ और जीव से अतिरिकà¥à¤¤ है, हे मनà¥à¤·à¥à¤¯ ! वही पà¥à¤°à¥à¤· इस सब à¤à¥‚त, à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯à¤¤à¥ और वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨à¤¸à¥à¤¥ जगतॠका बनाने वाला है, à¤à¤¸à¤¾ सब मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को जानना चाहिये। तैतà¥à¤¤à¤¿à¤°à¥€à¤¯à¥‹à¤ªà¤¨à¤¿à¤·à¤¦à¥ में कहा गया है कि जिस परमातà¥à¤®à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ रचना करने से ये सब पृथिवà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ à¤à¥‚त व पदारà¥à¤¥ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होते हैं, जिस से जीते और जिससे व जिसमें पà¥à¤°à¤²à¤¯ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं, वह बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® है। उस को जानने की इचà¥à¤›à¤¾ सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को करनी चाहिये। शारीरिक सूतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में कहा गया है कि इस जगतॠका जनà¥à¤®, सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ और पà¥à¤°à¤²à¤¯ जिस से होता है, वह बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® है और वह जानने के योगà¥à¤¯ है।
पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ वैदिक सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° यह समसà¥à¤¤ जगतॠइसको बनाने वाले निमितà¥à¤¤ कारण परमेशà¥à¤µà¤° से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤† है। परमेशà¥à¤µà¤° ने इस जगतॠको उपादान कारण अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सतà¥à¤µ, रज व तम गà¥à¤£à¥‹à¤‚ वाली सूकà¥à¤·à¥à¤® व मूल पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से बनाया है। इस मूल पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को ईशà¥à¤µà¤° ने उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ नहीं किया। यह à¤à¥€ जानने योगà¥à¤¯ है कि संसार में ईशà¥à¤µà¤°, जीव व पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿, यह तीन पदारà¥à¤¥ अनादि व नितà¥à¤¯ हैं। इन जीव और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® में से à¤à¤• जो जीव है वह इस संसार में पापपà¥à¤£à¥à¤¯à¤°à¥‚प फलों को अचà¥à¤›à¥‡ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° à¤à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤¾ है और दूसरा परमातà¥à¤®à¤¾ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के फलों को न à¤à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤¾ हà¥à¤† चारों ओर अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ à¤à¥€à¤¤à¤° व बाहर सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤®à¤¾à¤¨ हो रहा है। जीव से ईशà¥à¤µà¤°, ईशà¥à¤µà¤° से जीव और दोनों से पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ सà¥à¤µà¤°à¥‚प व तीनों अनादि हैं। उपनिषदॠमें बताया गया है कि पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿, जीव और परमातà¥à¤®à¤¾ तीनों अज अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जिन का जनà¥à¤® कà¤à¥€ नही होता और न कà¤à¥€ यह तीन पदारà¥à¤¥ जनà¥à¤® लेते हैं अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ ये तीन पदारà¥à¤¥ सब जगतॠके कारण हैं। इन का कारण कोई नहीं। इस अनादि पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का à¤à¥‹à¤— अनादि जीव करता हà¥à¤† शà¥à¤ व अशà¥à¤ करà¥à¤® के बनà¥à¤§à¤¨à¥‹à¤‚ में फंसता है और उस में परमातà¥à¤®à¤¾ नहीं फंसता कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वह पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ व उसके पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का à¤à¥‹à¤— नहीं करता।
पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ कà¥à¤¯à¤¾ है, इसका वरà¥à¤£à¤¨ सांखà¥à¤¯ दरà¥à¤¶à¤¨ में है। इसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ (सतà¥à¤µ) शà¥à¤¦à¥à¤§ (रजः) मधà¥à¤¯ (तमः) जाडà¥à¤¯ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जडता गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ है। यह तीन गà¥à¤£ मिलकर इनका जो संघात है उस का नाम पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सतà¥à¤µ, रज व तम गà¥à¤£à¥‹à¤‚ का संघात पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के सूकà¥à¤·à¥à¤¤à¤® कण की à¤à¤• इकाई के समान है। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ में ईशà¥à¤µà¤° इस पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के सूकà¥à¤·à¥à¤® सतà¥à¤µ, रज व तम कणों में अपनी मनस शकà¥à¤¤à¤¿ से विकार व विकà¥à¤·à¥‹à¤ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ कर इनसे महतà¥à¤¤à¤¤à¥à¤µ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿, उससे अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ उस महततà¥à¤µ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ से अहंकार, उस से पांच तनà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾ सूकà¥à¤·à¥à¤® à¤à¥‚त और दश इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ तथा गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹à¤µà¤¾à¤‚ मन, पांच तनà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤“ं से पृथिवà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ पांच à¤à¥‚त ये चौबीस पदारà¥à¤¥ बनते हैं। पचà¥à¤šà¥€à¤¸à¤µà¤¾à¤‚ पà¥à¤°à¥à¤· अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जीव और परमेशà¥à¤µà¤° हैं। इनमें से सतà¥à¤µ, रज व तम गà¥à¤£à¥‹à¤‚ वाली पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ अधिकारिणी और महततà¥à¤µ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿, अहंकार तथा पांच सूकà¥à¤·à¥à¤® à¤à¥‚त पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का कारà¥à¤¯ हैं। यही पदारà¥à¤¥ इंदà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, मन तथा सà¥à¤¥à¥‚ल à¤à¥‚तों के कारण हैं। पà¥à¤°à¥à¤· अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जीवातà¥à¤®à¤¾ न किसी की पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿, न किसी का उपादान कारण और न किसी का कारà¥à¤¯ है। à¤à¤• उपनिषद वचन में कहा गया है कि हे शà¥à¤µà¥‡à¤¤à¤•à¥‡à¤¤à¥‹ ! यह जगतॠसृषà¥à¤Ÿà¤¿ के पूरà¥à¤µ सतà¥, असतà¥, आतà¥à¤®à¤¾ और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤°à¥‚प था। वही परमातà¥à¤®à¤¾ अपनी इचà¥à¤›à¤¾ से पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ व जीवों के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बहà¥à¤°à¥‚प वा जगतरूप हो गया।
जगतॠकी उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ के तीन कारण कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ निमितà¥à¤¤, उपादान तथा साधारण, यह तीन कारण होते हैं। निमितà¥à¤¤ कारण उसको कहते हैं कि जिसके बनाने से कà¥à¤› बने, न बनाने से न बने, आप सà¥à¤µà¤¯à¤‚ बने नहीं और दूसरे को पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤° बना देवे। दूसरा उपादान कारण उस को कहते हैं जिस के बिना कà¥à¤› न बने, वही अवसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤° रूप होकर बने व बिगड़े à¤à¥€à¥¤ तीसरा साधारण कारण उस को कहते हैं कि जो बनाने में साधन और साधारण निमितà¥à¤¤ हो। निमितà¥à¤¤ कारण दो पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के होते हैं। à¤à¤•-सब को कारण से बनाने, धारण करने और पà¥à¤°à¤²à¤¯ करने तथा सब की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ रखने वाला मà¥à¤–à¥à¤¯ निमितà¥à¤¤ कारण परमातà¥à¤®à¤¾à¥¤ दूसरा-परमेशà¥à¤µà¤° की सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में से पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ को लेकर अनेकविध कारà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤° बनाने वाला साधारण निमितà¥à¤¤ कारण जीव। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का उपादान कारण पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को कहते हैं। पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ वा परमाणà¥à¤°à¥‚प पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ जिस को सब संसार के बनाने की सामगà¥à¤°à¥€ कहते हैं। वह जड़ होने से अपने आप न बन और न बिगड़ सकती है किनà¥à¤¤à¥ दूसरे के बनाने से बनती और बिगाड़ने से बिगड़ती है। कहीं-कही जड़ के निमितà¥à¤¤ से जड़ à¤à¥€ बन और बिगड़ à¤à¥€ जाता है। जैसे परमेशà¥à¤µà¤° के रचित बीज पृथिवी से गिरने और जल पाने से वृकà¥à¤·à¤¾à¤•à¤¾à¤° हो जाते हैं और अगà¥à¤¨à¤¿ आदि जड़ के संयोग से बिगड़ à¤à¥€ जाते हैं। परनà¥à¤¤à¥ इनका नियमपूरà¥à¤µà¤• बनना और वा बिगड़ना परमेशà¥à¤µà¤° और जीव के आधीन है।
जब कोई वसà¥à¤¤à¥ बनाई जाती है तब जिन-जिन साधनों का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करते हैं वह जà¥à¤žà¤¾à¤¨, दरà¥à¤¶à¤¨, बल, हाथ और नाना पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के साधन कहलाते हैं और दिशा, काल और आकाश साधारण कारण होते हैं। जैसे घड़े का बनाने वाला कà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤° निमितà¥à¤¤ कारण, मिटà¥à¤Ÿà¥€ उपादान कारण और दणà¥à¤¡ चकà¥à¤° आदि सामानà¥à¤¯ कारण। दिशा, काल, आकाश, पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶, आंख, हाथ, जà¥à¤žà¤¾à¤¨, कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ आदि साधारण और निमितà¥à¤¤ कारण à¤à¥€ होते हैं। इन तीन कारणों के बिना कोई à¤à¥€ वसà¥à¤¤à¥ नहीं बन सकती और न बिगड़ सकती है।
इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से यह समसà¥à¤¤ जगतॠजिसमें सूरà¥à¤¯, चनà¥à¤¦à¥à¤°, तारें, पृथिवी व पृथिवी के सà¤à¥€ पदारà¥à¤¥ तथा पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ जगत समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ है निमितà¥à¤¤ कारण ईशà¥à¤µà¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उपादान कारण परमाणॠरूप पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से बनाये गये हैं। परमातà¥à¤®à¤¾ के सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤•, सरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤®à¥€, सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž, सरà¥à¤µà¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨, अनादि, नितà¥à¤¯ आदि गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ होने से उसके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ बनाने व उसे संचालित करने में असमà¥à¤à¤µ जैसा कà¥à¤› à¤à¥€ नहीं है। यह वरà¥à¤£à¤¨ पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ सतà¥à¤¯, वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•, तरà¥à¤• संगत, विशà¥à¤µà¤¸à¤¨à¥€à¤¯, निà¤à¥à¤°à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤ व वेदों के पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ से पà¥à¤·à¥à¤Ÿ है। अतः इस सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ को सà¤à¥€ आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ व à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ को मानना चाहिये। इसके विपरीत वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ के पास अà¤à¥€ तक सृषà¥à¤Ÿà¤¿ उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ का कोई सनà¥à¤¤à¥‹à¤·à¤œà¤¨à¤• उतà¥à¤¤à¤° इसलिठनहीं है कि यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ अनादि निमितà¥à¤¤ कारण ईशà¥à¤µà¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अनादि उपादान कारण पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ की गई है जिसका उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ अनादि जीवातà¥à¤®à¤¾à¤“ं को उनके पूरà¥à¤µà¤œà¤¨à¥à¤®à¥‹à¤‚ के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का सà¥à¤– व दà¥à¤ƒà¤–रूपी फल पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करना है। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ रचना विषयक इस जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के विसà¥à¤¤à¤¾à¤° व संशयों के निवारण के लिठमहरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ कृत सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ का आठवां समà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ व ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¾à¤¦à¤¿à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯à¤à¥‚मिका के सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना व उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ के पà¥à¤°à¤•à¤°à¤£à¥‹à¤‚ को देखना चाहिये। वेद, उपनिषदों व दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ à¤à¥€ इस विषय की सà¤à¥€ शंकाओं को दूर करता है। योग का अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸, धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ व समाधि से à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ रचना का यह गà¥à¤ªà¥à¤¤ व सूकà¥à¤·à¥à¤® विषय जाना जा सकता है। हम आशा करते हैं कि पाठक इस लेख से लाà¤à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¿à¤¤ होंगे। इसी के साथ लेखनी को विराम देते हैं।
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