यजà¥à¤ƒ सूकà¥à¤¤à¤¿ रतà¥à¤¨à¤¾à¤•à¤°â€™ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ वैदिक साहितà¥à¤¯ की वृदà¥à¤§à¤¿ का à¤à¤• पà¥à¤°à¤¶à¤‚सनीय पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸â€™
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Manmohan Kumar AryaDate
21-Sep-2016Language
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Sandeep AryaUpload Date
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à¤à¤• पà¥à¤°à¤¶à¤‚सनीय पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸â€™
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯, देहरादून।
शà¥à¤°à¥€ घूड़मल पà¥à¤°à¤¹à¥à¤²à¤¾à¤¦à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯ धरà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤¥ नà¥à¤¯à¤¾à¤¸, हिणà¥à¤¡à¥‹à¤¨ सिटी अब देश विदेश में आरà¥à¤¯ साहितà¥à¤¯ के पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ में à¤à¤• जाना-माना नाम बन गया है। विगत 20 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से à¤à¥€ अधिक समय से आपके नये नये पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ आरà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¶à¥€à¤² जनता को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो रहे है। जिसमें यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ वेदà¤à¤¾à¤·à¥à¤¯ से लेकर वेदों, ऋषि दयाननà¥à¤¦ व सामाजिक विषयों के शताधिक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ हà¥à¤† है। आपके इस वरà¥à¤· के नवीन पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ में à¤à¤• पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ ‘‘यजà¥à¤ƒ सूकà¥à¤¤à¤¿-रतà¥à¤¨à¤¾à¤•à¤°” गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है जिसके लेखक सà¥à¤ªà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ वेद à¤à¤¾à¤·à¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° à¤à¤µà¤‚ अनेक पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ के लेखक व पà¥à¤°à¤£à¥‡à¤¤à¤¾ डा. रामनाथ वेदालंकार जी के सà¥à¤¯à¥‹à¤—à¥à¤¯ पà¥à¤¤à¥à¤° डा. विनोद चनà¥à¤¦à¥à¤° विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤‚कार जी हैं। डा. विनोद जी अनेक पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ के संपादक व अनà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤• à¤à¥€ है जिसका वरà¥à¤£à¤¨ हम आगे करेंगे। विचारणीय समीकà¥à¤·à¥à¤¯ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ आरà¥à¤¯ वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥ आशà¥à¤°à¤®, जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾à¤ªà¥à¤° की पूरà¥à¤µ वरिषà¥à¤ विदà¥à¤·à¥€ साधिका शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ विमला देवी जी के 21,000 रूपयों के आरà¥à¤¥à¤¿à¤• सहयोग से पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ किया गया है। 100 पृषà¥à¤ ों की इस पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• का मूलà¥à¤¯ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ 60.00 है। पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• के लेखक विनोद जी ने कहा है कि किसी à¤à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ या सà¥à¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤à¥‹à¤‚ का सà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• महतà¥à¤µ होता है। ये छोटी-छोटी सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ अनà¥à¤ªà¤® रतà¥à¤¨ तà¥à¤²à¥à¤¯ होती हैं। आचारà¥à¤¯ चाणकà¥à¤¯ के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में ‘पृथिवà¥à¤¯à¤¾à¤‚ तà¥à¤°à¥€à¤£à¤¿ रतà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¿ जलमनà¥à¤¨à¤‚ सà¥à¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤à¤®à¥à¥¤ मूढैः पाषाणखणà¥à¤¡à¥‡à¤·à¥ रतà¥à¤¨à¤¸à¤‚जà¥à¤žà¤¾ विधीयते।।’ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ संसार में जल, अनà¥à¤¨ और सà¥à¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ यही तीन रतà¥à¤¨ हैं। मूरà¥à¤–ों ने वà¥à¤¯à¤°à¥à¤¥ ही पतà¥à¤¥à¤° के टà¥à¤•à¥œà¥‹à¤‚ को रतà¥à¤¨ की संजà¥à¤žà¤¾ दी है।
सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के महतà¥à¤µ व उपयोगिता का उलà¥à¤²à¥‡à¤– करते हà¥à¤ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ डा. विनोद चनà¥à¤¦à¥à¤° विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤‚कार जी पà¥à¤°à¥‹à¤µà¤¾à¤•à¥ में लिखते हैं कि यह लघà¥, अतिलघॠसूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ मानवमातà¥à¤° के जिहà¥à¤µà¤¾à¤—à¥à¤° पर बनी रहती हैं, जिनका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— वकà¥à¤¤à¤¾ à¤à¤µà¤‚ लेखक पà¥à¤°à¤¸à¤‚गानà¥à¤¸à¤¾à¤° सामानà¥à¤¯ वाणी-वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° से लेकर उचà¥à¤š सà¥à¤¤à¤°à¥€à¤¯ लेखों, वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚, पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨à¥‹à¤‚, उपदेशों आदि में करते रहते हैं। यही कारण है कि इन सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के संकलन के छोटे-बड़े अनेक गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ किये गये हैं। ‘सà¥à¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤—ार’ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ का à¤à¤• बृहतॠपà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ सà¥à¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ साहितà¥à¤¯ में रामायण, महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ आदि महाकावà¥à¤¯à¥‹à¤‚ तथा कालिदास आदि कवियों की कावà¥à¤¯-कृतियों से रोचक à¤à¤µà¤‚ शिकà¥à¤·à¤¾à¤ªà¥à¤°à¤¦ सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का संकलन कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ रूप में पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ करवाया गया है।
विचारणीय गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ के पà¥à¤°à¤£à¤¯à¤¨ की à¤à¥‚मिका के विषय में बताते हà¥à¤ डा. विनोदचनà¥à¤¦à¥à¤° जी कहते हंै कि नवमà¥à¤¬à¤°, 2002 में सेवानिवृतà¥à¤¤à¤¿ के बाद (पनà¥à¤¤à¤¨à¤—र से) हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° आ गया। लेखन-समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ में रà¥à¤šà¤¿ थी। यहां आने के बाद शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¥‡à¤¯ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दीकà¥à¤·à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ जी सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ के सौजनà¥à¤¯ से ‘शतपथ के पथिक सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ समरà¥à¤ªà¤£à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€’ के पà¥à¤°à¥‚फ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो गये और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पॠà¤à¥€ दिया। ‘सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦: à¤à¤• विलकà¥à¤·à¤£ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ’ के दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¤°à¤£ के लिठउसे संशोधित/परिवरà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤¤ करके शà¥à¤°à¥€ घूड़मल पà¥à¤°à¤¹à¥à¤²à¤¾à¤¦à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯ धरà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤¥ नà¥à¤¯à¤¾à¤¸, हिणà¥à¤¡à¥‹à¤¨ सिटी के अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· शà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤•à¤°à¤¦à¥‡à¤µ जी आरà¥à¤¯ को दे दिया। करने को बहà¥à¤¤ कà¥à¤› था, पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ था कि पहले कà¥à¤¯à¤¾ किया जाये। ऊहापोह के बाद निरà¥à¤£à¤¯ लिया कि पिता जी (आचारà¥à¤¯ रामनाथ वेदालंकार जी) से परामरà¥à¤¶ किया जाये। पिता जी ने कहा कि अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ की 1000 सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ तो मैंने संकलित कर ली थीं, जो ‘वैदिक सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚’ नाम से पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ à¤à¥€ हो चà¥à¤•à¥€ हैं, अब तà¥à¤® यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦, ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ और सामवेद की सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का संकलन करो। इन वेदों की कà¥à¤› सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ पहले ही संगà¥à¤°à¤¹à¤¿à¤¤ थीं। पूजà¥à¤¯ पिताजी के निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ में कारà¥à¤¯ को आगे बà¥à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤ सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का संकलन किया गया, उनके अरà¥à¤¥ लिखे गये, विषय-कà¥à¤°à¤® से अलग-अलग किया गया। यह समसà¥à¤¤ कारà¥à¤¯ पूजà¥à¤¯ पिता जी के मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ और देखरेख में ही पूरा कर लिया गया था। अब केवल à¤à¤• बार पà¥à¤¨à¤°à¥€à¤•à¥à¤·à¤£ कर अंतिम पाणà¥à¤¡à¥à¤²à¤¿à¤ªà¤¿ तैयार करनी थी। वह à¤à¥€ कर ली गई, जो पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में आ गई। यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ में 40 अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ हैं और कà¥à¤² 1975 मनà¥à¤¤à¥à¤° हैं। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ में से चà¥à¤¨à¥€ गई हैं पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ 1000 सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚। इस संकलन को आठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ में विà¤à¤¾à¤œà¤¿à¤¤ किया गया है। हम पाठकों से आगà¥à¤°à¤¹ करेंगे कि वह पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर उसे आदà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¾à¤‚त पà¥à¥‡ तà¤à¥€ वह पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• के महतà¥à¤µ व उसकी उपयोगिता से परिचित व लाà¤à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¿à¤¤ हो सकते हैं।
पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• में आठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ हैं जिनके शीरà¥à¤·à¤• हैं 1- पà¥à¤°à¤à¥ चरणों में, 2- à¤à¤•à¤‚ सदà¥à¤µà¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¾ बहà¥à¤§à¤¾ वदनà¥à¤¤à¤¿, 3- मानवोचित गà¥à¤£à¥‹à¤‚ की पà¥à¤•à¤¾à¤°, 4- गृहसà¥à¤¥ जीवन के धरà¥à¤®, 5- उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ के पथ पर, 6- शरीर-रकà¥à¤·à¤¾, तà¥à¤°à¥ˆà¤¤à¤µà¤¾à¤¦ और 8- विविध-विषयों पर विविधा। विषयकà¥à¤°à¤® के आरमà¥à¤ में ईश-पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ शीरà¥à¤·à¤• दिया गया है जिसके अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦ की 10 सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ व उनके अरà¥à¤¥ आचारà¥à¤¯ रामनाथ वेदालंकार जी की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• ‘वैदिक सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚’ से उदà¥à¤§à¥ƒà¤¤ किये हैं। इसमें à¤à¤• सूकà¥à¤¤à¤¿ है ‘यतà¥à¤•à¤¾à¤®à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥‡ जà¥à¤¹à¥à¤®à¤¸à¥à¤¤à¤¨à¥à¤¨à¥‹ असà¥à¤¤à¥à¥¤’ (अथरà¥à¤µ. 7/80/3) इसका अरà¥à¤¥ किया गया है कि हे पà¥à¤°à¤à¥, जिस शà¥à¤ इचà¥à¤›à¤¾ से हम तेरा आहà¥à¤µà¤¾à¤¨ करें, वह इचà¥à¤›à¤¾ हमारी पूरà¥à¤£ हो।
लेखक डा. विनोद कà¥à¤®à¤¾à¤° विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤‚कार जी का सारा जीवन अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨, लेखन, समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ आदि कारà¥à¤¯à¥‹ में वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ हà¥à¤† है। लेखन के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में आपके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मौलिक वा समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ रचनाà¤à¤‚ हैं 1- सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦: à¤à¤• विलकà¥à¤·à¤£ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ, 2- शतपथ के पथिक सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ समरà¥à¤ªà¤£à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦: à¤à¤• बहà¥à¤†à¤¯à¤¾à¤®à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ (दो खणà¥à¤¡), 3- जयदेव: आचारà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ नाटककार के रूप में आलोचनातà¥à¤®à¤• अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨, 4- सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤• परिचायिका (गà¥à¤°à¥à¤•à¥à¤² विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के 1976 तक के सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤•/सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤¿à¤•à¤¾à¤“ं का परिचय), 5- निःशà¥à¤°à¥‡à¤¯à¤¸à¥ (आरà¥à¤¯ वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥ आशà¥à¤°à¤® की हीरक जयनà¥à¤¤à¥€ सà¥à¤®à¤¾à¤°à¤¿à¤•à¤¾), 6- निहारिका, 7- à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के पà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¾: सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦à¥¤ विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पतà¥à¤° पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾à¤“ं में वैदिक à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ विषयों पर आपके लेख à¤à¥€ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ होेते रहे हैं। अपने सेवाकाल के दिनों में à¤à¥€ अपने समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ व अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ का कारà¥à¤¯ किया। कृषि, पशॠचिकितà¥à¤¸à¤¾, पशॠपालन, आà¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚तà¥à¤°à¤¿à¤•à¥€ आदि की 34 हिनà¥à¤¦à¥€ पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ का आपने समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ किया। इसके अतिरिकà¥à¤¤ 15 अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€-वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•-पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•à¥‹à¤‚ का हिनà¥à¤¦à¥€ में अनà¥à¤µà¤¾à¤¦ à¤à¥€ किया है। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में आप हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° के निकट जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾à¤ªà¥à¤° में आरà¥à¤¯ वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® में निवास कर रहे हैं।
यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ ‘यजà¥à¤ƒ सूकà¥à¤¤à¤¿-रतà¥à¤¨à¤¾à¤•à¤°’ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ डा. विनोद कà¥à¤®à¤¾à¤° विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤‚कार जी ने तैयार किया है परनà¥à¤¤à¥ हमें à¤à¤¸à¤¾ लगता है कि यह पं. रामनाथ वेदालंकार जी की à¤à¤• नई कृति है। कारà¥à¤¯ तो आदरणीय डा. विनोद जी का है परनà¥à¤¤à¥ पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ और मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ तो आचारà¥à¤¯ रामनाथ जी का ही है। डा. विनोद जी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि आचारà¥à¤¯ जी के सà¥à¤ªà¥à¤¤à¥à¤° हैं अतः इस गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ को हम दोनों आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के शीरà¥à¤· विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ का संयà¥à¤•à¥à¤¤ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ कह सकते हैं। हम आशा करते हैं कि जो पाठक इस गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ को देंखे व पà¥à¥‡à¤‚गे, वह इसे उपयोगी पायेंगे। इसके अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ से यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ के अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ का आंशिक लाठà¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होगा। इस सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° व à¤à¤µà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ के लिठहम गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ डा. विनोद चनà¥à¤¦à¥à¤° विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤‚कार जी और पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤• शà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤•à¤°à¤¦à¥‡à¤µ आरà¥à¤¯ जी को हारà¥à¤¦à¤¿à¤• बधाई देते हैं।
यह à¤à¥€ अवगत करा दें कि डा. विनोद कà¥à¤®à¤¾à¤° विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤‚कार जी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ समà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ à¤à¤• और गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ ‘‘अथरà¥à¤µà¤µà¥‡à¤¦à¥€à¤¯ चिकितà¥à¤¸à¤¾ शासà¥à¤¤à¥à¤°” का पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ शà¥à¤°à¥€ घूड़मल पà¥à¤°à¤¹à¥à¤²à¤¾à¤¦ कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯ धरà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤¥ नà¥à¤¯à¤¾à¤¸, हिणà¥à¤¡à¥‹à¤¨ सिटी से इसी वरà¥à¤· हà¥à¤† है। इस गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ के लेखक सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤®à¥à¤¨à¤¿ परिवà¥à¤°à¤¾à¤œà¤• विदà¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¾à¤°à¥à¤¤à¤£à¥à¤¡ हैं। यह à¤à¥€ बहà¥à¤¤ उपयोगी गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है। इसका परिचय हम कà¥à¤› समय बाद पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करेंगे। इति शमà¥à¥¤
-मनमोहन कà¥à¤®à¤¾à¤° आरà¥à¤¯
पताः 196 चà¥à¤•à¥à¤–ूवाला-2
देहरादून-248001
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