एक प्रशंसनीय प्रयास’

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

श्री घूड़मल प्रह्लादकुमार आर्य धर्मार्थ न्यास, हिण्डोन सिटी अब देश विदेश में आर्य साहित्य के प्रकाशन में एक जाना-माना नाम बन गया है। विगत 20 वर्षों से भी अधिक समय से आपके नये नये प्रकाशन आर्य स्वाध्यायशील जनता को प्राप्त हो रहे है। जिसमें यजुर्वेद वेदभाष्य से लेकर वेदों, ऋषि दयानन्द व सामाजिक विषयों के शताधिक ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ है। आपके इस वर्ष के नवीन प्रकाशनों में एक प्रकाशन ‘‘यजुः सूक्ति-रत्नाकर ग्रन्थ है जिसके लेखक सुप्रसिद्ध वेद भाष्यकार एवं अनेक प्रसिद्ध ग्रन्थों के लेखक व प्रणेता डा. रामनाथ वेदालंकार जी के सुयोग्य पुत्र डा. विनोद चन्द्र विद्यालंकार जी हैं। डा. विनोद जी अनेक प्रसिद्ध ग्रन्थों के संपादक व अनुवादक भी है जिसका वर्णन हम आगे करेंगे। विचारणीय समीक्ष्य ग्रन्थ आर्य वानप्रस्थ आश्रम, ज्वालापुर की पूर्व वरिष्ठ विदुषी साधिका श्रीमती विमला देवी जी के 21,000 रूपयों के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित किया गया है। 100 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य रुपये 60.00 है। पुस्तक के लेखक विनोद जी ने कहा है कि किसी भी भाषा में सूक्तियों या सुभाषितों का स्र्वाधिक महत्व होता है। ये छोटी-छोटी सूक्तियां अनुपम रत्न तुल्य होती हैं। आचार्य चाणक्य के शब्दों में पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्। मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।। अर्थात् संसार में जल, अन्न और सुभाषित यही तीन रत्न हैं। मूर्खों ने व्यर्थ ही पत्थर के टुकड़ों को रत्न की संज्ञा दी है।

सूक्तियों के महत्व व उपयोगिता का उल्लेख करते हुए ग्रन्थकर्ता डा. विनोद चन्द्र विद्यालंकार जी पुरोवाक् में लिखते हैं कि यह लघु, अतिलघु सूक्तियां मानवमात्र के जिह्वाग्र पर बनी रहती हैं, जिनका प्रयोग वक्ता एवं लेखक प्रसंगानुसार सामान्य वाणी-व्यवहार से लेकर उच्च स्तरीय लेखों, व्याख्यानों, प्रवचनों, उपदेशों आदि में करते रहते हैं। यही कारण है कि इन सूक्तियों के संकलन के छोटे-बड़े अनेक ग्रन्थ प्रकाशित किये गये हैं। सुभाषित भण्डागार संस्कृत का एक बृहत् प्रसिद्ध सुभाषित ग्रन्थ है। संस्कृत साहित्य में रामायण, महाभारत आदि महाकाव्यों तथा कालिदास आदि कवियों की काव्य-कृतियों से रोचक एवं शिक्षाप्रद सूक्तियों का संकलन कर उन्हें ग्रन्थ रूप में प्रकाशित करवाया गया है।

 

                विचारणीय ग्रन्थ के प्रणयन की भूमिका के विषय में बताते हुए डा. विनोदचन्द्र जी कहते हंै कि नवम्बर, 2002 में सेवानिवृत्ति के बाद (पन्तनगर से) हरिद्वार आ गया। लेखन-सम्पादन में रुचि थी। यहां आने के बाद श्रद्धेय स्वामी दीक्षानन्द जी सरस्वती के सौजन्य से शतपथ के पथिक स्वामी समर्पणानन्द सरस्वती के प्रूफ प्राप्त हो गये और उन्हें पढ़ भी दिया। स्वामी श्रद्धानन्द: एक विलक्षण व्यक्तित्व के द्वितीय संस्करण के लिए उसे संशोधित/परिवर्द्धित करके श्री घूड़मल प्रह्लादकुमार आर्य धर्मार्थ न्यास, हिण्डोन सिटी के अध्यक्ष श्री प्रभाकरदेव जी आर्य को दे दिया। करने को बहुत कुछ था, प्रश्न था कि पहले क्या किया जाये। ऊहापोह के बाद निर्णय लिया कि पिता जी (आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी) से परामर्श किया जाये। पिता जी ने कहा कि अथर्ववेद की 1000 सूक्तियां तो मैंने संकलित कर ली थीं, जो वैदिक सूक्तियां नाम से प्रकाशित भी हो चुकी हैं, अब तुम यजुर्वेद, ऋग्वेद और सामवेद की सूक्तियों का संकलन करो। इन वेदों की कुछ सूक्तियां पहले ही संग्रहित थीं। पूज्य पिताजी के निर्देशानुसार उन्हीं के मार्गदर्शन में कार्य को आगे बढ़ाया। सूक्तियों का संकलन किया गया, उनके अर्थ लिखे गये, विषय-क्रम से अलग-अलग किया गया। यह समस्त कार्य पूज्य पिता जी के मार्गदर्शन और देखरेख में ही पूरा कर लिया गया था। अब केवल एक बार पुनरीक्षण कर अंतिम पाण्डुलिपि तैयार करनी थी। वह भी कर ली गई, जो प्रकाशन की स्थिति में आ गई। यजुर्वेद में 40 अध्याय हैं और कुल 1975 मन्त्र हैं। इन्हीं में से चुनी गई हैं प्रस्तुत 1000 सूक्तियां। इस संकलन को आठ अध्यायायों में विभाजित किया गया है। हम पाठकों से आग्रह करेंगे कि वह पुस्तक को प्राप्त कर उसे आद्योपांत पढ़े तभी वह पुस्तक के महत्व व उसकी उपयोगिता से परिचित व लाभान्वित हो सकते हैं।

 

पुस्तक में आठ अध्याय हैं जिनके शीर्षक हैं 1- प्रभु चरणों में, 2- एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति, 3- मानवोचित गुणों की पुकार, 4- गृहस्थ जीवन के धर्म, 5- उन्नति के पथ पर, 6- शरीर-रक्षा, त्रैतवाद और 8- विविध-विषयों पर विविधा। विषयक्रम के आरम्भ में ईश-प्रार्थना शीर्षक दिया गया है जिसके अन्तर्गत अथर्ववेद की 10 सूक्तियां व उनके अर्थ आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी की पुस्तक वैदिक सूक्तियां से उद्धृत किये हैं। इसमें एक सूक्ति है यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु। (अथर्व. 7/80/3) इसका अर्थ किया गया है कि हे प्रभु, जिस शुभ इच्छा से हम तेरा आह्वान करें, वह इच्छा हमारी पूर्ण हो।

 

लेखक डा. विनोद कुमार विद्यालंकार जी का सारा जीवन अध्ययन, लेखन, सम्पादन आदि कार्यो में व्यतीत हुआ है। लेखन के क्षेत्र में आपके द्वारा मौलिक वा सम्पादित रचनाएं हैं 1- स्वामी श्रद्धानन्द: एक विलक्षण व्यक्तित्व, 2- शतपथ के पथिक स्वामी समर्पणानन्द: एक बहुआयामी व्यक्तित्व (दो खण्ड), 3- जयदेव: आचार्य एवं नाटककार के रूप में आलोचनात्मक अध्ययन, 4- स्नातक परिचायिका (गुरुकुल विश्वविद्यालय के 1976 तक के स्नातक/स्नातिकाओं का परिचय), 5- निःश्रेयस् (आर्य वानप्रस्थ आश्रम की हीरक जयन्ती स्मारिका), 6- निहारिका, 7- भारतीय संस्कृति के पुरोधा: स्वामी श्रद्धानन्द। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में वैदिक एवं अन्य विषयों पर आपके लेख भी प्रकाशित होेते रहे हैं। अपने सेवाकाल के दिनों में भी अपने सम्पादन व अनुवाद का कार्य किया। कृषि, पशु चिकित्सा, पशु पालन, आभियांत्रिकी आदि की 34 हिन्दी पुस्तकों का आपने सम्पादन किया। इसके अतिरिक्त 15 अंग्रेजी-वैज्ञानिक-पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद भी किया है। वर्तमान में आप हरिद्वार के निकट ज्वालापुर में आर्य वानप्रस्थाश्रम में निवास कर रहे हैं।

 

यद्यपि यजुः सूक्ति-रत्नाकर ग्रन्थ डा. विनोद कुमार विद्यालंकार जी ने तैयार किया है परन्तु हमें ऐसा लगता है कि यह पं. रामनाथ वेदालंकार जी की एक नई कृति है। कार्य तो आदरणीय डा. विनोद जी का है परन्तु प्रेरणा और मार्गदर्शन तो आचार्य रामनाथ जी का ही है। डा. विनोद जी क्योंकि आचार्य जी के सुपुत्र हैं अतः इस ग्रन्थ को हम दोनों आर्यसमाज के शीर्ष विद्वानों का संयुक्त ग्रन्थ कह सकते हैं। हम आशा करते हैं कि जो पाठक इस ग्रन्थ को देंखे व पढ़ेंगे, वह इसे उपयोगी पायेंगे। इसके अध्ययन से यजुर्वेद के अध्ययन का आंशिक लाभ भी उन्हें प्राप्त होगा। इस सुन्दर व भव्य प्रकाशन के लिए हम ग्रन्थकर्ता डा. विनोद चन्द्र विद्यालंकार जी और प्रकाशक श्री प्रभाकरदेव आर्य जी को हार्दिक बधाई देते हैं।

 

यह भी अवगत करा दें कि डा. विनोद कुमार विद्यालंकार जी द्वारा सम्पादित एक और ग्रन्थ ‘‘अथर्ववेदीय चिकित्सा शास्त्र का प्रकाशन श्री घूड़मल प्रह्लाद कुमार आर्य धर्मार्थ न्यास, हिण्डोन सिटी से इसी वर्ष हुआ है। इस ग्रन्थ के लेखक स्वामी ब्रह्ममुनि परिव्राजक विद्यामार्तण्ड हैं। यह भी बहुत उपयोगी ग्रन्थ है। इसका परिचय हम कुछ समय बाद प्रस्तुत करेंगे। इति शम्।

                 -मनमोहन कुमार आर्य

पताः 196 चुक्खूवाला-2

देहरादून-248001

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