देश की कता व विशाल शकतिशाली भारत के निरमाण में सरदार पटेल का सरवोपरि योगदान

‘माता भूमि पतरो अहं पृथिवया’ इस वेद की सूकति में निहित मातृभूमि की सेवा व रकषा की भावना से सराबोर देश की आजादी के अविसमरणीय योदधा, देश के परथम गृहमंतरी वं उप परधान मंतरी सरदार वललभ भाई पटेल ने देश की आजादी और और उसकी उननति के लि जो सेवा की है वह इतिहास में सवरणाकषरों में अंकित है।

 

गजरात परानत के करमसद गांव में 31 अकतूबर सन 1885 को आपका जनम हआ। आपके पिता शरी बेर भाई पटेल दूसरे वयकतियो की भूमि पर खेती कर जीवन यापन करते थे। आप बहादर वं पकके देश भकत थे। सन 1857 के परथम सवतंतरता संगराम में महारानी लकषमी बाई की सेना में भरती होकर आप अंगरेजों वं उनके भारतीय वफादारों के विरूदध लड़े थे। इंदौर के महाराजा ने गिरफतार कर आपको अपने यहां बनदी बनाया जहां संयोग से महाराजा को शंतरज के खेल में अपनी चालों से विजय दिलवाकर आप मकत ह। यहां से आप अपने गांव पहंचे और पनः खेती करने लगे।

 

शरी बेर भाई के दो पतर थे। दूसरे बड़े पतर शरी विटठल भाई ने असेमबली के परधान के रूप में आशयरचजनक परतिभा का परिचय दिया। दोनों भाईयों को बहादरी वं यदध परियता के गण अपने पिता से विरासत में मिले थे। वललभ भाई की परारंभिक शिकषा माता-पिता की देखरेख में गांव में हई। इसके बाद नदियाद वं बड़ोदा में आपने शिकषा परापत की। मैटरिªà¤• की परीकषा आपने नदियाद से पास की।

 

बचपन में आपकी वीरता का उदाहरण तब मिला जब आपकी कांख के फोड़े को लाल गरम लोहे की सलाखा से भोंकने वाले वयकति में हिममत की कमी देखकर आपने सवयं ही गरम लाल लोहे की सलाख से फोड़े को दाग दिया। मौलाना शौकत अली ने क बार आपके बारे में यथारथ ही कहा था कि वललभ भाई बरफ से ढके जवालामखी के समान है। उनके साथियों ने यह अनभव किया कि उनके हृदय में हमेशा आग धधकती रहती है जो असंखय लोगों को दगध करने की कषमता रखती है। इसी कारण उनका रकत सदैव उबाल मारता रहता था, भजायें फड़कती रहती थी वं वाणी सदा पाप, अनयाय व अतयाचार के विरूदध आग उगलने के लि ततपर रहती थी।

 

यदयपि वललभ भाई विदेश जाकर बैरिसटर बनना चाहते थे परनत पारिवारिक विपननता के कारण आपने अपने इस विचार को सथगित कर मखतारी की परीकषा पास करके गोधरा में परैकटिस की। आपकी परैकटिस अचछी चली और अलप-काल में ही विदेश यातरा हेत आवशयक धन अरजित कर लिया। आपके बड़े भाई विटठल भाई भी विलायत जाने के इचछक थे। सवरजित धन से आपने पहले बड़े भाई को विदेश भेजा वं सवयं उनके तीन वरष बाद सन 1910 में विलायत गये। कालानतर में बड़े भाई के राजनीतिक गतिविधियो में भाग लेने के कारण आपने उनहें पारिवारिक दायितवों से मकत कर कटमब का पालन किया।

 

गोधरा में गांधी जी की अधयकषता में परांतीय राजनीतिक सममेलन में वललभ भाई को राजनीतिक कारयों की उपसमिति का मंतरी बनाया गया। आपके महतवपूरण कारयों के कारण आप शीघर ही गजरात परांत में लोकपरिय हो गये। सारवजनिक जीवन में आपको पहली सफलता गजराज में ‘बेगार परथा’ का उनमूलन करने पर मिली। आपके दवारा सतयागरह की धमकी से कमिशनर घबरा गया। आपसे वारतालाप कर उसने बेगार परथा के उनमूलन की मांग सवीकार कर ली।

 

गांधी जी के समपरक में आने पर उनकी रीति-नीति के परति आपको विशेष रूचि नहीं हई। आपको लगा कि अहिंसा वं सतयागरह कमजोर आदमी के हथियार हैं। अहमदाबाद के मजदूरों के आनदोलन की सफलता पर पहली बार आपको गांधी जी के आतमबल का परिचय मिला। गांधी जी के परति आपके मैतरी भाव ने ही आपको सकरिय राजनीति में परविषट कराया।

 

सन 1917 में खेड़ा जिले में जब फसल खराब हो गई और सरकार दवारा किसानों की लगान वसूल न करने की मांग को ठकरा दिया गया तब भी गांधी जी की परेरणा पर आपने यह कारय अपने हाथ में लिया। अहमदाबाद के इस कशल बैरिसटर ने गांव-गांव घूमकर चेतना पैदा की। किसान लगान के विरूदध सतयागरह के लि कमर कस कर तैयार हो गये। किसानों के तेवर को देखकर सरकार क गई। इस सफलता ने गांधी जी के परति आपके आदर भाव को और बढ़ा दिया।

 

परथम महायदध की समापति पर रालेट कट का विरोध करने के लि गांधी जी ने देशभर में हड़ताल की घोषणा की। 4 मारच 1914 को देश ने नये यग में परवेश किया। अहमदाबाद में बललभ भाई पटेल के नेतृतव में रालेट कट के विरूदध की गई हड़ताल को मिली भारी सफलता से सरकार डर गई। जलूस में सतयागरहियों पर गोलियां चलाईं गईं। दिलली की हड़ताल का नेतृतव गजरात के टंकारा गांव में जनमें महरषि दयानंद सरसवती के शिषय सवामी शरदधाननद ने किया। दिलली के चांदनी चैक पर अभूतपूरव जलूस को जब अंगरेजी सरकार के गोरखे सैनिकों ने बंदूक की संगीने दिखाकर विफल करना चाहा तो इस वीर परूष ने संगीनों के सामने जाकर छाती खोकर ललकार कर कहा कि ‘‘हिममत है तो चलाओं गोली’’। इस घटना ने भी आजादी के आंदोलन में क नया इतिहास रचा। सन 1920 में कांगरेस दवारा असहयोग आंदोलन का परसताव पारित करने पर वललभभाई पटेल ने बैरिसटरी का ही तयाग नहीं किया अपित अपने दोनों पतरों को भी अधययन हेत विलायत जाने से रोक दिया। आप दोनों पतरों की उचच शिकषा हेत विलायत जाने की पूरी तैयारी कर चके थे।  

 

गांधी जी के बंदी बना लि जाने पर गजरात में कांगरेस के नेतृतव का भार आपको सौंपा गया जिसे आपने सफलतापूरवक निभाया। असहयोग आंदोलन में सकूल व कालेजों का बहिषकार करने वाले विदयारथियों के लि आपने ‘‘गजरात विदयापीठ’’ की जलाई 1920 में सथापना की और इस निमितत धनसंगरह कारय में भी सफलता परापत की। धन संगरहारथ आप बरमा भी गये। इससे पूरव गरूकल कांगड़ी, हरिदवार हेत धन संगरहारथ आचारय रामदेव वं विदयामारतणड पं. विशवनाथ विदयालंकार आदि भी बरमा गये थे। राषटरª  निरमाण में इन दोनों संसथाओं ने बहमूलय सेवायें दी हैं।

 

सन 1923 में बोरसद के किसानों को क ओर जहां डाकओं ने परेशान किया वहीं सरकार ने पलिस पर अतिरिकत वयय को भी लगान में जोड़ दिया। परेशान किसानों ने बललभ भाई के पास जाकर अपना रोना रोया। आपने किसानों को बढ़ा लगान देने से मना किया और बोरसद का सवयं भरमण कर सथिति का जायजा लिया। आपके परयास से वहां 200 सवयं सेवक तैयार कि ग जिनहोंने डाकओं का मकाबला करने का संकलप लिया। परिणाम यह हआ कि डाकओं के आकरमण बंद हो गये और सरकार भी पटेल जी की हंकार से क गई। इस सफलता ने भी आपको देश भर में लोकपरिय बना दिया।

 

नागपर के क भाग में राषटरीय ंडे पर परतिबनध वं जमना लाल बजाज की गिरफतारी के बाद वललभ भाई ने सतयागरह का मोरचा संभाला। पलिस ने वललभ भाई की सकरियता से भयभीत होकर परतिबंध वापिस लेकर उनहें अजेय योदधा सिदध किया।

 

इसके बाद गजरात में बाढ़ से हई तबाही के अवसर पर भी आपने 2,000 सवयं सेवक तैयार कर सहसरों बाढ़ पीडि़तों के पराणों की रकषा की। इन दिनों आप गजरात परदेश में कांगरेस के परधान के साथ अहमदाबाद मयनिसपल बोरड के भी अधयकष थे। पांच वरषों के कारयकाल में आपने जन कलयाण वं नागरिकों के सवासथय संबंधी जो उपयोगी योजनायें बनाई थी, वह देश भर के लि अनकरणीय सिदध हईं।

 

गजरात में जल परलय के बाद बाढ़ से खेतियों को हानि से अनन के अभाव ने सथानीय किसानों को भखमरी के कगार पर ला खड़ा किया। इस अवसर पर भी वललभ भाई ने दरभिकष पीडि़तों को सरकार से क करोड़ पचास लाख रूपयों की सहायता सवीकृत करवाकर उसके वितरण की सराहनीय वयवसथा की जिसमें भरषटाचार की लेशमातर भी कहीं गंजाइश नहीं थी। सरकार ने भी आपकी परबंध वयवसथा की सराहना की। इस कारय ने वललभ भाई को क सकषम नेता के साथ योगय वयवसथापक भी सिदध किया।

 

गजरात के क ताललके बारदौली में सरकार दवारा लगान में तीस परतिशत की वृदधि से परेशान किसान वललभ भाई के पास आये और उनहें नयाय दिलाने हेत परारथना की। वललभ भाई ने सवयं छानबीन कर इस वृदधि को अनयाय पूरण पाया। आपने किसानों को समाया कि इस अनयाय के विरूदध संघरष का परिणाम सरकार दवारा नानाविध किसानों का उतपीड़न होगा जिसमें करकी, बलातकार, बचचों की भखमरी भी शामिल है। किसानों दवारा हर परकार के तयाग का आशवासन देने पर आपने आंदोलन की बागडोर संभाली। सन 1928 में गवरनर से लगान वृदधि पर पनरविचार करने को कहा गया। आपके दवारा की गई मांग ठकरा दिये जाने से आंदोलन आरंभ हआ। सरकार दवारा लगान चकाने की तिथि निशचित कर संवेदनाशूनय होने का परिचय दिया। इस पर वललभ भाई ने किसानों को लगान की क पाई भी सरकार को न देने का लान किया। इस लान से मानसिक दृषटि से असंतलित सरकार ने उतपीड़न के सभी साधनों का परयोग किया। वललभ भाई हर सथिति से जूने के लि पहले से ही तैयार थे। बारदौली को आपने कई भागों में बांटकर वहां छावनियां सथापित कर दी थीं जिनमें संदेशवाहक निरनतर समपरक रखते थे वं आपके गपतचर सरकारी गतिविधियों की सभी सूचनायें वललभ भाई तक पहंचातें थे।

 

बारदौली का यह सतयागरह देश भर में चरचित हआ। ममबई असेमबली के अनेक सदसयों ने सदसयता से तयागपतर देकर सरकार के विरूदध अपना असनतोष परकट किया। अनततः सरकार को कना पड़ा। इस सतयागरह की सफलता ने आपको देश का परथम पंकति का नेता बना दिया। सरदार की उपाधि भी आपको इस अवसर पर मिली। इसके बाद आप सरदार पटेल के नाम से जाने गये।

 

31 दिसमबर 1929 को लाहौर कांगरेस के अधिवेशन में पूरण सवाधीनता का परसताव पारित हआ। इसके अनसार गांधी जी ने डांडी यातरा की तैयारी की। सरदार पटेल ने गजरात के क गांव ‘‘रास’’ में सभा करके इलाके के कलेकटर के परतिबनध को चनौती दी। परिणामतः आपको गिरफतार किया गया और पांच सौ रूपये जरमाने के साथ तीन माह की कैद का दंड मिला। बंदीगृह में आपका भार पनदरह पौणड घट गया। इस कारण 26 जून 1930 को आप रिहा ह। यह आपका आजादी के आंदोलन में परथम कारावास था।

 

जब आप बाहर आये तो सवतंतरता आंदोलन पूरे यौवन पर था। आंदोलन की बागडोर पं. मोतीलाल नेहरू के हाथों में थी। उनहोंने जेल जाते समय सरदार पटेल को अपना उततराधिकारी नियकत कर देश का नेतृतव उनहें सौंप दिया था। ममबई से आपने सवतं़तरता आंदोलन का संचालन किया। 1 अगसत को लोकमानय तिलक की बरसी पर लाखों लोगों की अनशासित भीड़ ने ममबई में जलूस निकाला। बोरी बंदर सटेशन से आगे पलिस ने जलूस को जाने नहीं दिया। शकति परीकषण हआ। लाखों की भीड़ ने वहां रातरि भर बैठकर मोरचा संभाला। रूषट पलिस ने लाठी और गोलियां चलाई। सैकड़ों को गोलियां लगी और लोगों के सिर फूटे। सरदार पटेल को जिममेदार मानकर उनहें गिरफतार किया गया वं मकदमा चलाया। तीन माह का कारावास का आपको दंड मिला। इसी बीच गांधी-इरविन समौता हो जाने पर 25 जनवरी 1931 को आप रिहा कर दि ग।

 

कांगरेस में सरदार पटेल का गांधी जी के पशचात दूसरा सथान बन गया। यही कारण था कि आपको कांगरेस के अधिवेशन का अधयकष बनाया गया। कराची का मारच 1931 का अधिवेशन घटनापूरण रहा। अधिवेशन से कछ दिन पूरव ही भगत सिंह को फांसी पर चढ़ाया गया था। आरय विदवान अनूप सिंह का मानना था कि यदि गांधी जी चाहते तो भगत सिंह को फांसी से बचा सकते थे। अहिंसा को समरपित बापू ने परसिदध करांतिकारी दरगा भाभी के इस संबंध में निवेदन को भी गंभीरता से नहीं लिया था। यह तथय भगत सिंह के साथी शहीद सखदेव लिखित पसतक में दि ग थे। भगत सिंह, सखदेव वं राजगरू की शहादत से आहत कांगरेस अधिवेशन के अधयकष सरदार पटेल ने सभापति के जलूस का समारोह इन देशभकतों की याद में सथगित कर अदभत साहस का परिचय दिया। अधयकष पद से सरदार पटेल दवारा दिया गया भाषण हितहासिक सारगरभित वं अनोखा था।

 

कराची कांगरेस में सतयागरह की घोषणा की गई। गांधी जी विलायत से खाली हाथ लौटे थे। सरदार पटेल को सरकार ने पनः गिरफतार कर लिया । जेल में आपका सवासथय अतयधिक गिर जाने के कारण आपको रिहा कर दिया गया। सवासथय की परवाह न कर आपने चनाव यदध में कांगरेस के परतयाशियों को सफल बनाने के लि देश का वयापक दौरा किया। आप कांगरेस पारलियामेंटरी बोरड के अधयकष थे। आठ परांतों में कांगेरस का मंतरिगंडल सततारूढ़ था। मंतरियों पर सरदार पटेल का कड़ा अनशासन था जिसके परिणामसवरूप मधय परांत के मखय मंतरी डाकटर खरे को पद छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था।

 

सन 1942 के सवाधीनता के निरणायक यदध में कांगरेस कारय समिति के सदसयों के साथ 9 अगसत 1942 को आपको अहमदनगर जेल में बंद कर दिया गया। 15 जून 1945 को आप जेल से मकत ह। इसी दिन अंगरेजी सरकार ने भारत को सवतंतरता परदान करने की अपने संकलप की घोषणा भी की। मसलिम लीग दवारा आजादी के रासते में डाली जा रही अड़चनों का आपने मंहतोड़ करारा उततर दिया और जिनना को लताड़ते ह कहा कि तलवारों का जवाब तलवारों से दिया जायेगा और आजादी विरोधी बातें करने वालों को कड़ी सजा दी जायेगी। सरदार पटेल ने आतमरकषा के लि जनता को हथियार उठाने के उनके अधिकार की पषटि की और कहा कि कायर की तरह मरने से हथियार चलाते ह सवाभिमान से मरना अधिक अचछा है। देश की आजादी के बाद हैदराबाद रियासत के नवाब उसमान अली की कार पर बम फेंकने वाले दो आरय यवकों को भी आपने दिलली में बलाकर सममानित किया था।

 

21 सितमबर 1946 को कांगरेस मंतरी-मणडल बनने पर आपको रियासती विभाग, गृह विभाग वं परचार मंतरी के साथ उप परधानमंतरी बनाया गया। आपने अपनी बदधिमतता से जो सफलतायें परापत कीं उसने देश विदेश के राजनीतिजञों को आपका परशंसक बना दिया। मसलिम लीग के विरोध वं अंगरेज सरकार के उसके परति सहयोगी रूख के बावजूद 9 दिसमबर, 1946 को संविधान सभा का अधिवेशन करवाकर आपने अपनी अदमय इचछा शकति, दृणता वं दूरदरशिता का परिचय दिया। आपने चनौती पूरण शबदों में कहा था कि ‘आकाश चाहे गिर पड़े, पृथिवी चाहे फट जाये, विधान सभा का अधिवेशन 9 दिसमबर से पीछे नहीं हेगा।’’ आपने अपनी चनौती को सतय सिदध कर दिखाया।

 

पाकिसतान को पृथक राषटर बनाकर लगभग 600 रियासतों को सवतंतरता परदान कर वं मसलमानों में हिनदू विरोधी भावनायें भरकर अंगरेजों ने विपलव वं अराजकता की सथिति पैदा कर दी थी। सरदार पटेल ने इस विषम परिसथिति में अपनी कूटनीतिजञता से देश के शतरओं के सभी षडयंतरों को विफल कर भारत के इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया। 15 अगसत, 1947 को सवतंतरता परापति के बाद अलपकाà¤

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