ईशवर का अवतार होता है या नहीं विचारणीय परशन है। हमारे पौराणिक बनध जो सवयं को सनातन धरमी कहते हैं ईशवर का अवतार होना मानते हैं और राम कृषण आदि अनेक महापरूषों को ईशवर का अवतार ही नहीं मानते अपित उनकी मूरतियां बनाकर उनहें पौराणिक विधि व रीति से पूजते भी हैं। पहली बात तो यह कि ईशवर का अवतार ही विवादासपद है फिर बिना किसी परमाण व परबल तरक व यकति के उन तिहासिक महापरूषों की मूरति बना कर पूजा करना आज के वैजञानिक यग में उचित नहीं ठहरता कयोंकि मूरति के गण उस सरववयापक सरवजञ व सरवशकतिमान के गणों के सरवथा विपरीत हैं। आरय समाज महरषि दयाननद सरसवती दवारा सथापित सा संगठन है जो वेदों को तरक व जञान बदधि व यकति की कसौटी पर खरा उतरने के कारण ईशवर से परापत सतय जञान की पसतकें मानता है। वैदिक जञान वं यकति व परमाणों से आरय समाज ईशवर के अवतार की मानयता को कपोल कलपित अजञानता व पाखणड तथा अनधविशवास मानता है तथा अपनी मानयताओं व कथयों को वेदों से सिदध भी करता है। आरय समाज के संसथापक महरषि दयाननद सरसवती ने अपने जीवन काल 1825.1883 में पौराणिक मतावलमबियों से मूरतिपूजा अवतारवाद आदि अनेक विषयों पर शासतरारथ किये परनत हमारे पौराणिक भाई अपनी मूरतिपूजा व अवतारवाद आदि अवैदिक मानयताओं को वेद विहित या यकति आदि परमाणों से सतय सिदध नहीं कर सके। जब विगत 145 वरषों में सिदध नहीं कर सके तो भविषय में भी सिदध नहीं कर सकते जिसका कारण ूठ के पैर न होना है। ूठ को विदवानों से सवीकार नहीं कराया जा सकता। इसे तो अनधी शरदधा से पूरण तथा जञान के नेतरों से हीन वयकतियों दवारा ही सवीकार कराया जा सकता है।

विचार करने पर सनातन मत कहलाने वाले बनध व सनातन वैदिक धरमी आरय समाजी भी ईशवर को सरववयापक सरवानतरयामी सवरूप वाला होना सवीकार करते हैं। इसका अरथ हआ कि वह इस बरहमाणड में सब जगहों व सथानों पर यहां तक की हमारी जीवातमा के भीतर भी सृषटिकरता ईशवर वयापक है। जब वह आकाश, पाताल धरती व आकाश व संसार के कण.कण में सब जगह सब समय में पहले से ही मौजूद व उपसथित है तो फिर वह मनषय रूप धारण करता है यह मानना अजञानता पूरण ही कहा जा सकता है। जब वह ईशवर इस बरहमाणड का निरमाण इसका संचालन व पराणि जगत का सृजन व उतपतति तथा वेदों व भाषा का जञान आदि देने के साथ वरतमान में भी सभी पराणियों के भीतर निरनतर शभ  पररेणायें दे रहा है तो फिर उसे अवतार लेने की आवशयकता को मानना अपनी अजञानता को सिदध करने के साथ ईशवर के सवरूप को भली परकार से न समना ही कहा जा सकता है।

कहा जाता है कि दषटों के दमन के लि ईशवर अवतार लेता है। उदाहरण के रूप में मरयादा परूषोततम शरी राम को लिया जाता और कहा जाता है कि रावण के वध के लि ईशवर को अरथात राम को अवतार लेना पड़ा। अब यहां परशन उपसथित होता है कि कया ईशवर बिना अवतार लि रावण को मार सकता था या नहीं यदि नहीं मार सकता था तो यह तरक सवीकार किया जा सकता है। आईये इस तरक की पड़ताल करते हैं। इस बरहमाणड को बने ह 1.96 अरब वरष हो चके हैं। इस अवधि में गणनातीत या असंखय मनषय आदि उतपनन ह व मरे भी। कया वह बिना ईशवर के अपरतयकष व परोकष परेरणा व मरजी से मर गये या वह सब ईशवर की परेरणा व मरजी व उसके परताप व परयतनों से ही मरे हैं इसका उततर यह है कि सबकी मृतय का कारण ईशवर ही है जिस परकार से कि जनम का कारण ईशवर है। जब सब पराणियों के जनम का कारण ईशवर का निराकार व अजनमा व अनावतार सवरूप है तो रावण हो या राम कृषण जी हों या अरजन यधिषठिर कंस या दरयोधन आदि सबकी मृतय का कारण निराकार सरववयापक सरवानतरयामी ईशवर ही सिदध होता है। रावण जैसे या रावण से भी बलवान दषट और अनयायकारी मनषय व राकषस के लि ईशवर के लि अवतार की कोई आवशयकता नहीं है। आजकल रोज बड़े.बड़े आतंकवादी और धरमातमा भी मर रहे हैं उनहें किसी अवतार दवारा नहीं अपित निराकार ईशवर दवारा ही अनवतार सवरूप से धराशायी किया जा रहा है। वेदों के सिदधानतों व मानयताओं के अनसार ईशवर सरवशकतिमान है। वह केवल संकलप से ही इस सारे संसार को बनाता व चलाता है तो इस महद कारय की तलना में रावण आदि अनयायकारियों को मारना तो अति तचछ कारय है अतः अवतार वाद की कलपना व मानयता तरक यकति व शासतरीय परमाणों से हीन होने के कारण असिदध पाखणड वं अनध विशवास ही है।

ईशवर सरववयापक और सरवानतरयामी तथा सरवशकतिमान है अतः उसे किसी भी छोटे या बड़े से बड़े पराणी को मारने के लि अवतार लेने के लि अवतार की कदापि आवशयकता नहीं है। हम यह भी कहना चाहते हैं कि रावण कंस व दरयोधन ने जो बरे कारय कि वह अपनी जवानी या बाद के वरषों में किये थे जबकि मरयादा परूषोततम राम व योगेशवर कृषण जी का जनम अनयायकारियों व दषटों का वध वा हतया करने से लगभग 25 से 80 वरष पूरव हो चका था। इस परसंग में शरी रामचनदर जी का उदाहरण ले सकते हैं जिनहोंने रावण का संहार किया। रामायण का अधययन करने पर जञात होता है कि रावण की आय राम से अधिक थी। इसका कारण राम व रावण का जब यदध हआ उस समय राम निःसनतान थे और रावण का पतर इनदरजीत या मेघनाथ परसिदध है। अतः राम व रावण की आय में लगभग 25 से 40 वरष तक का अनतर तो रहा ही है। राम ने रावण से यदध को टालने के लि सभी समभव परयास किये। पहले हनमान जी लंका गये और उसके बाद बाली के पतर अंगद को रावण को समाने व सीता जी को लौटाने के लि परयास करने के लि भेजा गया जिससे कि अनावशयक यदध को टाला जा सके। जब यह समभव न हआ तो यदध हआ जिसका परिणाम रावण का वध व जीवानानत हआ। इस घटना से पता चलता है कि यह घटना राम के जनम व अवतार लेने के 25 से 40 वरष बाद घटी थी। इससे यही निषकरष निकलता है कि रावण के बरे करमों से लगभग 25 से 40 वरष पूरव ही ईशवर अरथात शरी राम ने रावण को मारने के लि अवतार ले लिया था जबकि उसकी कोई आवशयकता थी ही नहीं। सा मानना बदधसंगत नहीं है और इससे यह सिदध होता है कि राम ईशवर के अवतार नहीं थे। ईशवर का रामचनदर जी के रूप अवतार लेना तब उचित होता जब यह निशचित होता कि इस दषट रावण का वध करना आवशयक व अपरिहारय है और वह बिना अवतार के नहीं हो सकता था। यह सथिति तो सीता हरण के बाद अंगद के परसताव को ठकरा देने पर उतपनन हई थी। इससे 25.40 पूरव ही शरी राम चनदर जी का जनम हो चका था जिसे अवतार कदापित नहीं कहा जा सकता। अब यदि राम अवतार थे और उनहोंने अपने अवतार लेने के उद़देशय को रावण को मार कर पूरा कर लिया था तो फिर वह अनेक वरषों तक जीवित कयों रहेघ उददेशय व काम पूरा कर लेने के बाद वरषों तक वही जमे रहना औचीतय पूरण नहीं माना जा सकता। कयों नहीं उनहोंने सीता जी सहित कौशलया आदि माताओं व लकषमण सहित अपने सभी भाईयों को अपने ईशवर का अवतार होने की बात कह कर अपने मूल निराकार व सरववयापक सवरूप को धारण कर लियाघ उसके बाद वह अनेक वरषों तक जीवित रहे और वैदिक वयवसथा के अनसार राजय किया। इन सबको जानने व समने पर सरववयापक सतता ईशवर का शरी रामचनदर जी के रूप में अवतार लेना असतय सिदध होता है। यही सथिति योगेशवर शरी कृषण जी व अनय अवतारों के जीवन व कारयों पर विचार करने पर भी सामने आती है।

अतः ईशवर का अवतार नहीं होता और न ही हमारे आदरश व आदरासपद शरी राम व शरी कृषण ईशवर के अवतार थे। हां यह अपने समय के महापरूष थे जैसे कि 19वी शताबदी में महरषि दयाननद सरसवती हो गये हैं जिनहोंने वेदों व शरी राम व शरी कृषण की संसकृति व विरासत का पोषण किया उसे पनरजीवित पललिवित व पोषित किया।

वेदादि शासतरों में ईशवर को अजनमा व अमर कहा है। अजनमा वयकति जनम नहीं लेता और लेगा तो यह उसके सवाभाविक गण के विपरीत होगा जिससे उसकी सतता पर ही परशन चिनह लग जायेगा, सरवशकतिमान सतता का धनी ईशवर अपने संकलप मातर से जो करना होता है करता है। बड़े से बडा आततायी दषट अनयायी का अनत करना बिना अवतार के ही उसके लि अति सरल व समभव है। उसने अपने बारे में मनषयों को जानने योगय पूरण जञान वेदों में दे दिया है। जञानी लोग वेद से और अलप जञानी लोग वेदों के अनकूल व अनरूप वैदिक साहितय से ईशवर के बारे में आवशयकतानसार जान कर अपने जीवन का कलयाण कर सकते हैं। हमें लगता है कि यह कहना कि ईशवर अवतार लेता है या ईशवर ने कभी अवतार लिया था उसको क परकार से अपमानित करना है। इसलि कि वह वो कारय जो अवतार ले कर करता है अनयथा नहीं कर सकता इससे उसकी सरवशकतिमतता का गण लांछित होता है। हम आशा करते हैं कि परबदध पाठक हमारे विचारों से पूरण रूप से सहमत होंगे। इस लेख से यह जञात होता है कि मरयादा परूषोततम शरी राम व योगेशवर शरी कृषण अपने समय के महान परूष थे। इनहें गणों की खान शवरयशाली व महिमावान होने के कारण भगवान तो कहा जा सकता है परनत वह सरववयापक ईशवर से भिनन क सतता जीवातमा ही थे। यह बात वेदादि सदगरनथों के सवाधयाय विजञान तरक बदधि विवेक व सवारथहीन होकर ही जानी जा सकती है।

 

मन मोहन कमार आरय

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